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प्लास्टिक प्रदूषण और प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया की भूमिका

Lokesh Pal February 08, 2025 02:57 19 0

संदर्भ

वैज्ञानिक प्लास्टिक प्रदूषण के मुद्दों को स्थायी रूप से संबोधित करने के लिए प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया और एंजाइम जैसे नवीन जैविक समाधानों की खोज कर रहे हैं।

वैश्विक और भारत के संदर्भ में प्लास्टिक प्रदूषण की स्थिति

  • प्लास्टिक प्रदूषण का तात्पर्य पर्यावरण में प्लास्टिक अपशिष्ट का जमा होना है, जो पारिस्थितिकी तंत्र, वन्यजीवों और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। 
    • इसमें एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक और गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री शामिल हैं, जो सदियों तक बनी रहती हैं।
  • प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक पर्यावरणीय संकट बन गया है, जिसमें लाखों टन प्लास्टिक अपशिष्ट लैंडफिल, महासागरों और पारिस्थितिकी तंत्रों में जमा हो रहा है।
  • वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण
    • 1950 के दशक से अब तक 8.3 बिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है, जिसमें से 10% से भी कम का पुनर्चक्रण किया जाता है।
    • प्रत्येक वर्ष लगभग 11 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है, जिससे समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न होता है।
  • भारत के संदर्भ में प्लास्टिक प्रदूषण
    • भारत में प्रत्येक वर्ष 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 30% का ही पुनर्चक्रण किया जाता है।
    • दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे शहर प्लास्टिक अपशिष्ट में सबसे अधिक योगदान देने वाले शहरों में से हैं।

भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण का कारण

  • प्लास्टिक की अधिक खपत: तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने किफायती, डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों, विशेष रूप से बैग, बोतलें एवं पैकेजिंग जैसी एकल-उपयोग वाली वस्तुओं की माँग में वृद्धि की है।
  • खराब अपशिष्ट प्रबंधन: अपर्याप्त अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण और पुनर्चक्रण अवसंरचना के कारण अनुचित निपटान होता है, जिससे बहुत सारा प्लास्टिक लैंडफिल, नदियों और महासागरों में प्रवाहित हो जाती है।
  • जागरूकता की कमी: प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में सीमित सार्वजनिक जागरूकता और इसके उपयोग को कम करने के लिए अपर्याप्त प्रयासों के कारण बड़े पैमाने पर कूड़ा-कचरा फैलता है।
  • औद्योगिक विकास: उद्योग प्लास्टिक पैकेजिंग पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं, क्योंकि इसमें कम लागत और टिकाऊ होता है, जिससे बहुत अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
  • अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र: हालाँकि भारत में एक बड़ा अनौपचारिक पुनर्चक्रण नेटवर्क है, यह अक्षम है एवं अक्सर उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा को नियंत्रित करने में असमर्थ है।
  • कमजोर प्रवर्तन: कुछ राज्यों में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बावजूद, विनियमों का खराब कार्यान्वयन और प्रवर्तन प्लास्टिक के उपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने में विफल रहता है।

प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया के उदाहरण

  • इडियोनेला साकाइनेसिस (Ideonella Sakaiensis): जापान में खोजा गया यह जीवाणु एंजाइम (PETase और MHETase) उत्पन्न करता है, जो पॉलिएथिलीन टेरेफ्थेलेट (PET) को अपघटित करता है। यह कई महीनों से लेकर वर्षों तक PET को विघटित करता है।
  • इंजीनियर्ड एंजाइम (Engineered Enzymes): अप्रैटिमा बायोसॉल्यूशंस (Apratima Biosolutions) (भारत) जैसी कंपनियों ने ऐसे एंजाइम विकसित किए हैं, जो 17 घंटों में 90% PET अपशिष्ट को विघटित कर देते हैं और इसे टेरेफ्थेलिक एसिड और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे पुन: उपयोग योग्य घटकों में बदल देते हैं।
  • बैसिलस सबटिलिस (Bacillus Subtilis): कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो के शोधकर्ताओं ने इस जीवाणु के ऊष्मा-प्रतिरोधी बीजाणुओं को प्लास्टिक उपभोग के लिए तैयार किया, जिससे 5 महीने के भीतर जैव-निम्नीकरण संभव हो गया।

प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया के उपयोग के लाभ

  • संधारणीय अपशिष्ट प्रबंधन: बैक्टीरिया प्लास्टिक को कार्बन डाइऑक्साइड, जल और बायोमास जैसे गैर-विषाक्त उप-उत्पादों में अपघटित कर सकते हैं, जिससे लैंडफिल अपशिष्ट और पर्यावरण प्रदूषण कम हो सकता है।
  • व्यापक समाधान: X-32 जैसे कुछ बैक्टीरिया कई तरह के प्लास्टिक को नष्ट कर सकते हैं, जिसमें PET, पॉलिओलेफिन और पॉलिमाइड शामिल हैं, जो प्लास्टिक अपशिष्ट के लिए एक व्यापक समाधान प्रदान करते हैं।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था: बैक्टीरिया से एंजाइम प्लास्टिक अपशिष्ट को पुन: प्रयोज्य कच्चे माल में परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे पुनर्चक्रण संभव हो सकता है और नए तरीके से प्लास्टिक उत्पादन पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • मापनीयता: प्लास्टिक में समाहित ऊष्मा-प्रतिरोधी बीजाणुओं जैसे जीवाणु समाधान, शुद्ध एंजाइमों की तुलना में अधिक आसानी से विकसित किए जा सकते हैं, जिससे वे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए व्यवहार्य बन जाते हैं। 

प्लास्टिक विघटन के लिए बैक्टीरिया के उपयोग के विरुद्ध चिंताएँ 

  • निम्नीकरण की धीमी दर: प्राकृतिक बैक्टीरिया और एंजाइम प्लास्टिक को विघटित करने में महीनों से लेकर वर्षों तक का समय लेते हैं, जिससे वे बड़े पैमाने पर अनुप्रयोगों के लिए अक्षम हो जाते हैं।
  • मापनीयता संबंधी चुनौतियाँ: बड़ी मात्रा में एंजाइमों का उत्पादन महंगा एवं तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • सार्वजनिक और विनियामक स्वीकृति: पर्यावरण में जीवित बैक्टीरिया को शामिल करने और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में चिंताएँ जताई जा रही है।
  • सीमित प्लास्टिक प्रकार: अधिकांश बैक्टीरिया और एंजाइम केवल विशिष्ट प्लास्टिक जैसे PET को ही लक्ष्य बनाते हैं, तथा अन्य प्रकार (जैसे- पॉलिओलेफिन्स) पर ध्यान नहीं देते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में चुनौतियाँ

  • उच्च लागत: प्लास्टिक को नष्ट करने वाले एंजाइम जैसे जैविक समाधानों को विकसित करने और उनका विस्तार करने के लिए पर्याप्त वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है, जो व्यापक रूप से अपनाने में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • तकनीकी सीमाएँ: वर्तमान विधियाँ विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक, विशेष रूप से क्रिस्टलीय प्लास्टिक को नष्ट करने में संघर्ष करती हैं, जिससे प्लास्टिक अपशिष्ट के पूरे स्पेक्ट्रम को संबोधित करने में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: कई विकासशील देशों में पर्याप्त रीसाइक्लिंग सुविधाएँ और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का अभाव है, जिससे बड़े पैमाने पर प्लास्टिक अपशिष्ट समाधानों को लागू करना जटिल हो जाता है।
  • व्यवहार संबंधी बाधाएँ: बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक या कम प्लास्टिक खपत जैसे सतत् विकल्पों को अपनाने का प्रतिरोध, अंतर्निहित प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी से उपजा है।

आगे की राह

  • अनुसंधान और नवाचार: प्लास्टिक को नष्ट करने वाले बैक्टीरिया, एंजाइम और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की दक्षता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश करना, जिससे मापनीयता एवं पर्यावरण के अनुकूल विकल्प सुनिश्चित हों।
  • सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल: प्लास्टिक अपशिष्ट को नए उत्पादों के लिए कच्चे माल में बदलने और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना, जिसका समर्थन संधारणीय प्रथाओं को अपनाने वाली कंपनियों एवं उद्योगों द्वारा किया जाएगा।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: प्लास्टिक अपशिष्ट के लिए निर्माताओं को जवाबदेह बनाने के लिए एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR) योजनाओं पर प्रतिबंध सहित सख्त नियम लागू करना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बड़े पैमाने पर संधारणीय समाधान विकसित करने और लागू करने के लिए सरकारों, उद्योगों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक सहयोग: साझा प्रौद्योगिकियों, नीतियों और सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से सीमापारीय प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करना।

निष्कर्ष

हालाँकि प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया एवं एंजाइम प्लास्टिक प्रदूषण के लिए एक आशाजनक समाधान प्रदान करते हैं, उनकी सफलता तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों पर नियंत्रण पाने पर निर्भर करती है। प्लास्टिक मुक्त भविष्य को प्राप्त करने के लिए जैविक नवाचारों, नीति सुधारों और सार्वजनिक भागीदारी को मिलाकर एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है।

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