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POCSO न्यायालय

Lokesh Pal May 19, 2025 03:28 98 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को आदेश दिया कि वह बाल यौन अपराध मामलों की समय पर सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए राज्यों में समर्पित पोक्सो (POCSO) न्यायालय तत्काल स्थापित करे।

संबंधित तथ्य

  • पहले, प्रत्येक जिले में एक विशेष न्यायालय बनाया जाता था यदि 100 से अधिक FIR दर्ज किए जाते थे। अब, यदि किसी जिले में 300 से अधिक लंबित मामले हैं, तो दो न्यायालयों की आवश्यकता होगी।

POCSO न्यायालय क्या है?

  • POCSO न्यायालय एक निर्दिष्ट न्यायालय है, जिसे विशेष रूप से लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 के तहत मामलों की सुनवाई का कार्य सौंपा गया है।
  • इन न्यायालयों का उद्देश्य त्वरित न्याय के लिए बच्चों के अनुकूल, संवेदनशील वातावरण प्रदान करना है।
  • जनवरी 2025 तक 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 404 विशिष्ट POCSO न्यायालयों सहित 754 फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSC) कार्यरत हैं, जिन्होंने 3,06,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है।

POCSO अधिनियम, 2012 के बारे में

  • बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाने के लिए वर्ष 2012 में POCSO अधिनियम बनाया गया था। 
  • यह जाँच से लेकर मुकदमे तक कानूनी प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में बच्चों के अनुकूल प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करता है। 
  • यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के विरुद्ध भौतिक और मौखिक यौन अपराधों दोनों को शामिल करता है।

POCSO अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

  • समयबद्ध सुनवाई: संज्ञान की तिथि से एक वर्ष के भीतर सुनवाई पूरी करना अनिवार्य है।
  • अनिवार्य रिपोर्टिंग: किसी भी व्यक्ति द्वारा किए गए अपराधों की रिपोर्टिंग करना अनिवार्य है, ऐसा न करने पर दंड का प्रावधान है।
  • बाल-अनुकूल प्रक्रियाएँ: बंद कमरे में सुनवाई सुनिश्चित करना, आक्रामक बहस से बचना तथा पीड़ितों के लिए सहायक व्यक्ति उपलब्ध कराना।
  • विशेष न्यायालय: राज्य सरकारों को विशेष POCSO मुकदमों के लिए विशेष न्यायालयों को नामित करने का अधिकार देता है।
  • लैंगिक तटस्थता: लैंगिक रूप से भेदभाव किए बिना सभी बच्चों पर लागू होती है, जिसमें पुरुष और ट्रांसजेंडर बाल पीड़ितों के लिए भी प्रावधान शामिल हैं।

POCSO मामलों से निपटने में चुनौतियाँ

  • उच्च लंबित मामले: तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में POCSO मामलों की लंबित संख्या चिंताजनक है।
  • अपर्याप्त विशेष न्यायालय: कई राज्य सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व आदेशों और केंद्रीय सहायता के बावजूद POCSO न्यायालयों की अनिवार्य संख्या स्थापित करने में विफल रहे हैं।
  • आरोप-पत्र दाखिल करने में देरी: जाँच में विलंब के कारण प्रायः कानूनी रूप से निर्धारित समय सीमा के भीतर आरोप-पत्र दाखिल करने में विफलता होती है। 
  • धीमी सुनवाई: मामले प्रायः एक वर्ष की सुनवाई पूरी होने की समय-सीमा से आगे निकल जाते हैं, जिससे POCSO अधिनियम का समयबद्ध उद्देश्य विफल हो जाता है। 
  • संवेदनशीलता का अभाव: कानून प्रवर्तन और न्यायिक कर्मियों के पास प्रायः अधिनियम के तहत बच्चों के प्रति संवेदनशील कानूनी प्रक्रियाओं के प्रबंधन हेतु पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव होता है।

प्रभावी POCSO कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें

  • POCSO न्यायालयों की तत्काल स्थापना: राज्यों को उच्च मामलों वाले सभी जिलों में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए तत्काल विशेष POCSO न्यायालयों की स्थापना करनी चाहिए।
  • समय-सीमा का पालन: इस अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से आरोप-पत्र समय पर दाखिल करने और तेजी से सुनवाई पूरी करने के लिए तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।
  • क्षमता निर्माण: बच्चों के प्रति संवेदनशील और कानूनी रूप से सुदृढ़ न्याय प्रक्रिया बनाने के लिए पुलिस, अभियोजकों तथा न्यायाधीशों के लिए व्यापक प्रशिक्षण आवश्यक है।

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