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ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए नीति

Lokesh Pal October 24, 2025 02:11 62 0

संदर्भ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय समान अवसर नीति तैयार करने हेतु छह-सदस्यीय समिति का गठन किया है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने उभयलिंगी व्यक्ति ( अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के कार्यान्वयन और सार्वजनिक जीवन में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की समावेशिता सुनिश्चित करने में केंद्र एवं राज्यों के ‘उदासीन रवैये‘ की सख्त आलोचना की।

मामले की पृष्ठभूमि

  • यह मामला एक ट्रांसजेंडर शिक्षिका जेन कौशिक द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने अपनी लैंगिक पहचान के कारण दो स्कूलों एक उत्तर प्रदेश (वर्ष 2022) और दूसरा गुजरात (वर्ष 2023) से अवैध रूप से बर्खास्तगी का आरोप लगाया था।
  • याचिकाकर्ता ने अपनी लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उत्पीड़न, बॉडी-शेमिंग और जबरन इस्तीफा देने का आरोप लगाया था।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख अवलोकन

  •  संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन
    • अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) यह अपेक्षा करता है कि हाशिए पर स्थित समूहों के लिए “उचित समायोजन” किया जाए।
    • भेदभाव केवल “कर्म द्वारा” नहीं बल्कि “उपेक्षा द्वारा” भी हो सकता है, अर्थात् कानूनी संरक्षण लागू न करना भी अन्याय है।
  •  NALSA (वर्ष 2014) के कार्यान्वयन की विफलता
    • सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को “सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC)” घोषित करने के बावजूद वर्ष 2019 अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया।
  • जानबूझकर नौकरशाही उपेक्षा
    • न्यायालय ने कहा कि यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि सामाजिक उपेक्षा और प्रशासनिक जड़ता से उपजी निष्क्रियता है।

समिति के बारे में

  • संरचना
    • अध्यक्ष: न्यायमूर्ति आशा मेनन (सेवानिवृत्त), दिल्ली उच्च न्यायालय
    • सदस्य: शैक्षणिक जगत और सक्रियता से जुड़े पाँच प्रमुख व्यक्ति, जिन्हें ट्रांसजेंडर, दलित और कानूनी अधिकारों में विशेषज्ञता प्राप्त हो।
    • पदेन सदस्य: सामाजिक न्याय, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम, कार्मिक और कानूनी मामलों के सचिव।
  • कार्यादेश
    • उभयलिंगी व्यक्ति ( अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुरूप, ट्रांसजेंडर और  लैंगिक रूप से विविध व्यक्तियों के लिए निर्णय के 6 महीने के भीतर एक आदर्श समान अवसर नीति का मसौदा तैयार करना।
    • उभयलिंगी व्यक्ति अधिनियम और नियम (2019-20) में कमियों की पहचान करना।
    • समावेशी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के लिए उपायों की सिफारिश करना।
    • राष्ट्रीय नीति अधिसूचित होने तक सभी संस्थानों और नियोक्ताओं के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना।
    • भेदभाव-विरोधी प्रवर्तन, पुनर्वास और सकारात्मक कार्रवाई के लिए रूपरेखाएँ सुझाना।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश

अनुच्छेद-142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, न्यायालय ने एक समयबद्ध सुधार योजना का आदेश दिया:

1. संस्थागत तंत्र: हर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश को अनिवार्य रूप से ये कार्य करने होंगे—

  • जिला मजिस्ट्रेटों के विरुद्ध शिकायतों के लिए एक अपीलीय प्राधिकारी नियुक्त करना।
  • ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड स्थापित करना।
  • प्रत्येक जिले में ट्रांसजेंडर संरक्षण प्रकोष्ठ स्थापित करना (जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस महानिदेशक (DM & DGP) के अधीन)।
    • ये सेल ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध अपराधों की निगरानी, शिकायत पंजीकरण, जाँच और अभियोजन सुनिश्चित करेंगे।

2. प्रवर्तन एवं शिकायत निवारण

  • सभी प्रतिष्ठानों को शिकायत अधिकारी नियुक्त करने होंगे (धारा 11, 2019 अधिनियम)।
  • राज्य मानवाधिकार आयोग अपीलीय निकायों के रूप में कार्य करेंगे।
  • ट्रांसजेंडर अधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी टोल-फ्री हेल्पलाइन की स्थापना।

3. कार्यान्वयन की समय सीमा: निर्णय की तिथि से तीन महीने के भीतर पूर्ण अनुपालन आवश्यक है।

अनुच्छेद-142 सर्वोच्च न्यायालय को “किसी भी मामले या उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री पारित करने या कोई भी आदेश देने की अनुमति देता है।”

निर्णय का महत्त्व

  • NALSA (2014) की भावना को पुनर्जीवित करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि संवैधानिक वादे कार्यान्वयन योग्य नीति में परिवर्तित हों।
  • “उचित समायोजन” की अवधारणा को एक संवैधानिक कर्तव्य के रूप में सुदृढ़ करता है।
  • राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर रोजगार और समावेशन ढाँचे के लिए पहला संस्थागत तंत्र स्थापित करता है।
  • त्रुटिपूर्ण भेदभाव को भी कानूनी उल्लंघन मानता है।

ट्रांसजेंडर अधिकारों से संबंधित प्रमुख न्यायिक उदाहरण 

  • NALSA बनाम भारत संघ (वर्ष 2014)
    • कानूनी मान्यता
      • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘थर्ड जेंडर’ (Third Gender) के रूप में संवैधानिक मान्यता दी।
      • उन्हें सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) घोषित कर शिक्षा व रोजगार में आरक्षण का निर्देश दिया।
    • स्व-पहचान का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी शल्य चिकित्सा या चिकित्सा प्रमाण के, पुरुष, महिला या थर्ड जेंडर के रूप में अपनी पहचान स्वयं बताने का अधिकार है।
    • मौलिक अधिकारों का विस्तार: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (भेदभाव न करना), 16 (रोजगार में समान अवसर), 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और 21 (जीवन और सम्मान का अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों के पूर्ण संरक्षण का अधिकार है।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018)
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराधमुक्त कर दिया गया, जिससे वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को वैध बना दिया गया।
    • अनुच्छेद-14, 15, 19 और 21 के तहत LGBTQ+ व्यक्तियों की समानता, गोपनीयता और गरिमा की पुष्टि की गई।
    • यौन अभिविन्यास को पहचान और स्वतंत्रता के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी गई।
  • शनवी पोनुसामी बनाम नागरिक उड्डयन मंत्रालय (वर्ष 2022)
    • एक ट्रांसजेंडर महिला ने एयर इंडिया को ‘केबिन क्रू’ की नौकरी देने से इनकार करने के निर्णय को चुनौती दी।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए रोजगार समावेशन सुनिश्चित करने वाली नीति बनाने का निर्देश दिया।
    • सार्वजनिक और निजी रोजगार में भेदभाव रहित और उचित समायोजन को सुदृढ़ किया।
  • विजयांती वसंथा मोगली बनाम तेलंगाना राज्य (वर्ष 2023)
    • तेलंगाना उच्च न्यायालय ने “तृतीय लिंग अधिनियम, 1919” (Eunuchs Act, 1919) को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।
    • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सम्मान और निजता के अधिकारों को मान्यता दी।
    • राज्य को इस समुदाय के लिए आरक्षण और कल्याणकारी योजनाएँ सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

उभयलिंगी व्यक्ति ( अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के बारे में

  • नवंबर 2019 में संसद द्वारा पारित, यह विधेयक 10 जनवरी, 2020 को लागू हुआ।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा, उनके सामाजिक समावेशन को सुनिश्चित करने और भेदभाव को रोकने के लिए अधिनियमित किया गया।
  • यह सर्वोच्च न्यायालय के नालसा बनाम भारत संघ (वर्ष 2014) के निर्णय को कानूनी रूप प्रदान करता है।

मुख्य प्रावधान

  • परिभाषा
    • इस अधिनियम के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है, जिसकी लैंगिक पहचान जन्म के समय निर्धारित लिंग से सुमेलित नहीं होती।
    • इसमें ट्रांस-मैन, ट्रांस-वुमन, जेंडरक्वियर, इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति शामिल हैं।
  • भेदभाव का निषेध: कोई भी व्यक्ति या प्रतिष्ठान किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरुद्ध निम्नलिखित मामलों में भेदभाव नहीं करेगा:
    • शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा।
    • सार्वजनिक वस्तुओं, सुविधाओं, आवास तक पहुँच।
    • आवागमन, राजनीतिक भागीदारी या सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार।
  • पहचान का अधिकार
    • प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को इस रूप में मान्यता प्राप्त होने और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी पहचान प्रमाण-पत्र प्राप्त करने का अधिकार होगा।
    • लैगिक परिवर्तन द्वारा पुरुष या महिला बनने के लिए, सर्जरी का प्रमाण-पत्र (सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी – SRS) जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत करना होगा।
  • कल्याणकारी उपाय: सरकार को समावेशन और भागीदारी के लिए निम्नलिखित उपाय करने की आवश्यकता है:
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण और स्व-रोजगार।
    • दुर्व्यवहार के शिकार लोगों का पुनर्वास।
    • लैंगिक परिवर्तन और हार्मोनल थेरेपी सहित स्वास्थ्य सेवा का प्रावधान।
    • शिक्षा, कौशल विकास और आवास के लिए योजनाएँ।
  • संस्थागत तंत्र: नीति कार्यान्वयन पर सलाह देने और निगरानी करने के लिए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद (NCTP) का गठन।

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