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भारत में ‘शोध सुगमता’ के लिए नीतिगत सुधार

Lokesh Pal June 17, 2025 03:18 7 0

संदर्भ 

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत में ‘नवाचार की आसानी’, ‘अनुसंधान की आसानी’ और ‘विज्ञान की आसानी’ को बढ़ाने के लिए परिवर्तनकारी नीति सुधारों की घोषणा की, जिसका उद्देश्य अनुसंधान और विकास (R&D) प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना है।

GTE एक खरीद प्रक्रिया है, जिसमें कार्यान्वयन संस्थान विदेशों से प्रतिस्पर्द्धी प्रस्ताव मांगते हैं, जब आवश्यक गुणवत्ता की वस्तुएँ घरेलू स्तर पर उपलब्ध नहीं होती।

प्रमुख नीतिगत परिवर्तन

  • गैर-GEM खरीद: शोध संस्थान प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध न होने वाले विशेष उपकरणों के लिए गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) को बायपास कर सकते हैं।
    • निदेशकों और कुलपतियों (VC) को सीधे खरीद निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है।

  • वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि
    • संशोधित सामान्य वित्तीय नियम (General Financial Rules- GFR) की अधिकतम सीमा
      • प्रत्यक्ष खरीद: ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹2 लाख किया गया।
      • विभागीय समिति खरीद: ₹1-10 लाख से बढ़ाकर ₹2-25 लाख किया गया।
      • सीमित निविदा पूछताछ/विज्ञापित निविदाएँ: ₹50 लाख से बढ़ाकर ₹1 करोड़ किया गया।
      • वैश्विक निविदा अन्वेषण (Global Tender Enquiries- GTE): संस्थानों के प्रमुख ₹200 करोड़ तक की GTE को मंजूरी दे सकते (पहले यह केंद्रीय प्राधिकरण का विशेषाधिकार था) हैं।

सुधारों के पीछे तर्क

  • नौकरशाही संबंधी बाधाएँ को दूर करना: अनिवार्य GeM खरीद के कारण पोर्टल पर उपलब्ध न होने वाले विशेष शोध उपकरणों में देरी हुई।
    • विशिष्ट वैज्ञानिक उपकरणों (जैसे- जीन सीक्वेंसर, कण त्वरक) के लिए गैर-GeM खरीद की अनुमति देना।
  • वैज्ञानिक उत्पादन में तेजी लाना: भारत शोध प्रकाशनों में तीसरे स्थान पर है, लेकिन व्यावसायीकरण में पिछड़ा हुआ है (वैश्विक पेटेंट का केवल 0.7%)।
    • नवाचार को बढ़ावा देने के लिए परियोजना में देरी को कम (जैसे- उपकरण आयात के लिए 6-12 महीने) करना।
  • संस्थागत नेतृत्त्वकर्त्ताओं को सशक्त बनाना
    • विश्वास-आधारित स्वायत्तता: निदेशक/VC अब अनुमोदन कर सकते हैं:
      • ₹200 करोड़ तक की वैश्विक निविदाएँ (पहले केंद्रीय अनुमोदन)।
      • बढ़ी हुई वित्तीय छतों के माध्यम से तेज खरीद (उदाहरण के लिए, प्रत्यक्ष खरीद के लिए ₹1L→₹2L)।
    • यह मिशन-महत्त्वपूर्ण खरीद में ISRO की विकेंद्रीकरण सफलता को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ सामंजस्य बिठाना
    • NEP 2020: प्रयोगशाला अवसंरचना की बाधाओं को कम करके अंतःविषय अनुसंधान का समर्थन करता है।
    • आत्मनिर्भर भारत: घरेलू अनुसंधान एवं विकास क्षमता का निर्माण करते हुए वैश्विक तकनीक तक पहुँच को सुगम बनाता है।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना
    • अमेरिकी मॉडल: NSF अनुदान विश्वविद्यालयों को खरीद में लचीलापन प्रदान करता है।
    • यूरोपीय संघ का क्षितिज यूरोप: सरलीकृत वित्तपोषण नियमों ने शोधकर्ताओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया।

गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) के बारे में

  • GeM विभिन्न सरकारी विभागों/संगठनों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा आवश्यक सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा के लिए वन स्टॉप पोर्टल है।
  • उद्देश्य: वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया, इसका उद्देश्य सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता, दक्षता और गति को बढ़ाना है।
  • नोडल मंत्रालय: वाणिज्य मंत्रालय (भारत सरकार)
  • सरकारी संस्थाओं द्वारा अनिवार्य खरीद: सरकारी उपयोगकर्ताओं द्वारा GeM के माध्यम से खरीद को वित्त मंत्रालय द्वारा अधिकृत और अनिवार्य बना दिया गया है।

भारत में अनुसंधान एवं विकास (R&D) की स्थिति

  • अनुसंधान एवं विकास में सरकारी निवेश
    • R&D पर सकल व्यय (GERD): भारत का GERD वर्ष 2010- 2011 में ₹60,196.75 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में ₹127,380.96 करोड़ हो गया है।
    • हालाँकि, GDP के प्रतिशत के रूप में GERD लगभग 0.7% है, जो वैश्विक बेंचमार्क से कम है।
    • वित्त पोषण का स्रोत: सार्वजनिक क्षेत्र का वित्तपोषण प्रभावी है, जो कुल शोध एवं अनुसंधान व्यय का लगभग 63% है। निजी क्षेत्र का योगदान कम (लगभग 7%) है।
      • केंद्रीय बजट 2025-26 में निजी क्षेत्र द्वारा संचालित अनुसंधान एवं विकास (R&D) कोष आरंभ करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) को 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
  • अनुसंधान अवसंरचना
    • शीर्ष संस्थान: IIT तथा IIS जैसे संस्थान अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ अनुसंधान में अग्रणी हैं। वे उच्च गुणवत्ता वाले शोध आउटपुट का उत्पादन करते हैं। 
    • उच्च शिक्षा: भारत विश्व में अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली है।
  • अनुसंधान परिणाम
    • प्रकाशन: भारत 3,00,000 से अधिक आउटपुट (2022) के साथ शोध प्रकाशनों में तीसरे स्थान पर है। उद्धरण गुणवत्ता प्रायः वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ताओं से पीछे रहती है।
    • पेटेंट: पेटेंट फाइलिंग के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर 6वें स्थान पर है। अकादमिक शोध को वाणिज्यिक उत्पादों में बदलना सीमित है।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत वैश्विक शोध साझेदारी में सक्रिय रूप से भाग लेता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय फंडिंग हासिल करने में चुनौतियों का सामना करता है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • वैश्विक भागीदारी: भारत अंतरिक्ष अनुसंधान, स्वास्थ्य सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में सक्रिय रूप से शामिल रहा है। ये सहयोग भारत को वैश्विक विशेषज्ञता, उन्नत प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण तक पहुँचने में मदद करते हैं।
    • अंतरिक्ष अनुसंधान: भारत की अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो, नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और अन्य देशों के साथ सहयोग कर रही है।
      • उदाहरण के लिए, चंद्रयान मिशन, चन्द्रमा का अन्वेषण करने तथा ग्रह विज्ञान को समझने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का हिस्सा रहे हैं।
    • जैव प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा: भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ मिलकर वैक्सीन विकास और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को आगे बढ़ाता है।
    • वैज्ञानिक सम्मेलन और कार्यक्रम: भारतीय वैज्ञानिक नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और अनुसंधान कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे वैश्विक वैज्ञानिक ज्ञान में योगदान मिलता है।
      • भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों का सदस्य है, जिनमें सर्न यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (CERN) और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) शामिल हैं।
  • वैश्विक अनुसंधान नेटवर्क और वित्तपोषण
    • अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क: भारत कई बड़े पैमाने के वैश्विक अनुसंधान कार्यक्रमों में शामिल है।
      • उल्लेखनीय रूप से, देश यूरोपीय संघ के अनुसंधान और नवाचार कार्यक्रम होराइजन यूरोप में भाग लेता है, जो यूरोपीय भागीदारों के साथ संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण की सुविधा प्रदान करता है।
    • वित्त पोषण कार्यक्रम: भारत अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों के साथ सहयोग के माध्यम से तेजी से अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण आकर्षित कर रहा है।
      • ग्लोबल इनोवेशन फंड (GIF) और न्यूटन फंड जैसे कार्यक्रम ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास पहलों का समर्थन करते हैं।

भारत के अनुसंधान एवं विकास में चुनौतियाँ

  • शोध एवं अनुसंधान (R&D) पर कम व्यय: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसार, R&D पर भारत का सकल व्यय, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7% है, जो चीन (2.4%) और संयुक्त राज्य अमेरिका (3.1%) से काफी कम है।
  • अनुमोदन और खरीद में प्रशासनिक विलंब: भारतीय R&D पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख बाधाओं में से एक परियोजना अनुमोदन, धन वितरण और विशेष उपकरणों की खरीद में होने वाली प्रशासनिक विलंब है।
    • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) प्रणाली, जिसे खरीद को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो प्रायः विशेष वैज्ञानिक उपकरणों को सूचीबद्ध नहीं करती है। इससे संस्थानों को खरीद के लिए लंबी छूट प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे देरी होती है।
  • सीमित उद्योग-अकादमिक सहयोग: शैक्षणिक अनुसंधान और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर है, जो अनुसंधान के व्यावसायीकरण में बाधा डालता है।
    • भारत के बढ़ते स्टार्टअप इकोसिस्टम के बावजूद, कुल अनुसंधान निधि का केवल 7.3% निजी क्षेत्र से आता है, जो मजबूत उद्योग-अकादमिक भागीदारी की कमी को दर्शाता है।
  • राज्य विश्वविद्यालयों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: जबकि IIT और IISc जैसे संस्थान विश्व स्तरीय अनुसंधान सुविधाओं से युक्त हैं, कई राज्य-वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में बुनियादी अनुसंधान बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
    • राज्य विश्वविद्यालय खराब वित्तीयन और पुराने उपकरणों के कारण उच्च-स्तरीय अनुसंधान करने में असमर्थ हैं।
  • अनुसंधान के व्यावसायीकरण की धीमी गति: हालाँकि भारत अत्यधिक मात्रा में अनुसंधान करता है, लेकिन यह इन नवाचारों का व्यावसायीकरण करने और उन्हें व्यावहारिक समाधानों में बदलने के लिए संघर्ष करता है।
    • भारत पेटेंट दायर करने के मामले में वैश्विक स्तर पर 6वें स्थान पर है, लेकिन अनुसंधान को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य उत्पादों में बदलना प्रायः धीमा होता है।
  • अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र का कम निवेश: अनुसंधान एवं विकास निधि में निजी क्षेत्र का योगदान कम है, जो अनुसंधान पहलों के पैमाने और स्थिरता को सीमित करता है।
    • सरकार कुल GERD का 63% प्रदान करती है, जबकि निजी क्षेत्र केवल 7% का योगदान देता है। सार्वजनिक निधि पर यह निर्भरता अनुसंधान निधि स्रोतों की विविधता को सीमित करती है और नवाचार की गति को धीमा करती है।
  • असंगत अनुसंधान निधि और सूक्ष्म प्रबंधन: अनुसंधान निधि में निरंतरता की कमी है, प्रायः वित्तीयन में देरी होती है या कठोर शर्तों के कारण इसे प्रतिबंधित किया जाता है।
    • इसके अतिरिक्त, शोधकर्ताओं को निधि उपयोग में सूक्ष्म प्रबंधन का सामना करना पड़ता है।
  • प्रतिभा पलायन और प्रतिधारण की कमी: भारत को प्रतिभा पलायन की एक महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ कई प्रतिभाशाली शोधकर्त्ता बेहतर अवसरों के लिए विदेश चले जाते हैं, जिससे घरेलू अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में कुशल पेशेवरों की कमी हो जाती है।
    • बड़ी संख्या में भारतीय शोधकर्ता बेहतर वित्त पोषण, बुनियादी ढाँचे और कैरियर की संभावनाओं वाले देशों में कार्य करना पसंद करते हैं।

भारत में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ और पहल

  • अटल इनोवेशन मिशन (AIM) (2016): AIM का उद्देश्य पूरे देश में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना है।
    • स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब और स्टार्टअप के लिए अटल इनक्यूबेशन सेंटर की स्थापना का समर्थन करता है।
  • अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (AANRF) (2023): भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उच्च-स्तरीय रणनीतिक दिशा की सुविधा प्रदान करने वाले शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करना।
    • शैक्षणिक संस्थानों में अनुसंधान को बढ़ावा देने और अंतःविषय अनुसंधान का समर्थन करने के लिए ₹14,000 करोड़ के वित्तपोषण के साथ स्थापित।
  • स्टार्टअप इंडिया पहल (2016): भारत में विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में स्टार्टअप के विकास के लिए अनुकूलित वातावरण निर्मित करना।
    • स्टार्टअप के लिए कर लाभ, वित्तपोषण सहायता और विनियामक छूट प्रदान करता है।
  • FIST (विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी अवसंरचना के सुधार के लिए निधि) (2000): शैक्षणिक संस्थानों में अवसंरचना को बढ़ाने के लिए वित्तपोषण प्रदान करके अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार करना।
  • शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने की योजना (SPARC) (2018): शीर्ष स्तरीय भारतीय संस्थानों और अग्रणी वैश्विक विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर शैक्षणिक अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार करना।
  • i-STEM (भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग सुविधाएँ मानचित्र) (2020): संस्थानों में अनुसंधान और विकास सुविधाओं और बुनियादी ढाँचे को साझा करने के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करना।
    • शोधकर्ताओं को संपूर्ण भारत  में उपलब्ध वैज्ञानिक सुविधाओं का पता लगाने और उन तक पहुँचने में मदद करता है।

अनुसंधान एवं विकास में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: सार्वजनिक-निजी भागीदारी और नवाचार केंद्र
    • अमेरिका ने विशेष रूप से NASA, NIH और ऊर्जा विभाग जैसी एजेंसियों के माध्यम से सार्वजनिक-निजी भागीदारी आधारित एक मजबूत प्रणाली विकसित की है।
    • सिलिकॉन वैली मॉडल, जहाँ स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने गूगल एवं टेस्ला जैसी तकनीकी स्टार्टअप के साथ मिलकर कार्य किया, इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे अकादमिक और उद्योग सहयोग अभूतपूर्व नवाचारों का निर्माण कर सकते हैं।
  • इजराइल: नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और सैन्य-नागरिक अनुसंधान एवं विकास संबंधी सामंजस्य
    • इजराइल ने सैन्य और नागरिक अनुसंधान एवं विकास को सफलतापूर्वक एकीकृत किया है, विशेष रूप से साइबर सुरक्षा और AI जैसे उच्च तकनीक क्षेत्रों में। रक्षा के लिए विकसित प्रौद्योगिकियों को प्रायः वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिए अनुकूलित किया जाता है।
  • चीन: राज्य-संचालित निवेश और वैश्विक एकीकरण
    • चीन ने अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश किया है, विशेष रूप से AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और जैव प्रौद्योगिकी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में। राज्य विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और निजी कंपनियों को मजबूत समर्थन प्रदान करता है, जबकि चीनी संस्थानों को वैश्विक अनुसंधान नेटवर्क में एकीकृत करता है।
  • यू.एस. मॉडल: विज्ञान प्रशासन और अनुसंधान का पृथक्करण
    • यू.एस. में, वैज्ञानिक संस्थान प्रायः प्रशासनिक कार्यों को अनुसंधान कार्यों से अलग करते हैं। प्रशासनिक भूमिकाओं के लिए चुने गए वैज्ञानिकों को उनके करियर की शुरुआत में प्रशिक्षित किया जाता है और वे विशेष रूप से प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

भारत में अनुसंधान एवं विकास के लिए आगे की राह 

  • अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्तपोषण में वृद्धि: वित्तपोषण अंतराल को पाटने और वैश्विक अनुसंधान नेतृत्व के लिए भारत की क्षमता को बढ़ाने के लिए अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि करना।
    • सरकार को राष्ट्रीय बजट का बड़ा हिस्सा अनुसंधान एवं विकास के लिए आवंटित करना चाहिए, जिसमें AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और स्वच्छ ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों को लक्षित किया जाना चाहिए।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग को मजबूत करना: अनुसंधान के नवाचार और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच मजबूत संबंधों को बढ़ावा देना।
    • अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और सहयोगी अनुसंधान कार्यक्रम स्थापित करना।
    • संयुक्त अनुसंधान, उत्पाद विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए उद्योग-अकादमिक केंद्र का निर्माण करना।
  • अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना: सरकारी वित्तपोषण को पूरक बनाने और नवाचार अंतर को पाटने के लिए अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने वाली निजी कंपनियों के लिए कर प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करना।
  • अनुसंधान अवसंरचना के निर्माण पर ध्यान देना: अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं में निवेश करके कुलीन संस्थानों और अन्य विश्वविद्यालयों के बीच अवसंरचना असमानता को दूर करना।
    • FIST (विज्ञान और प्रौद्योगिकी अवसंरचना के सुधार के लिए निधि) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से गैर-कुलीन संस्थानों में अवसंरचना को बढ़ाना।
  • नौकरशाही और विनियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना: नौकरशाही प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और अनुसंधान निष्पादन की गति में बाधा डालने वाली विनियामक बाधाओं को कम करना।
    • वित्तपोषण, खरीद और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए अनुमोदन प्रक्रियाओं को सरल बनाएँ।
  • अंतर्विषयक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: नवाचार को गति देने और भारतीय अनुसंधान को वैश्विक वैज्ञानिक रुझानों के साथ संरेखित करने के लिए वैश्विक भागीदारी और अंतःविषयक अनुसंधान को मजबूत करना।
    • होराइजन यूरोप जैसे अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संघों में भागीदारी बढ़ाना और अंतरिक्ष अनुसंधान, स्वास्थ्य सेवा और जलवायु परिवर्तन में वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ताओं के साथ सहयोग करना।
  • एक मजबूत नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाना: ऐसे वातावरण का निर्माण करना जो जमीनी स्तर से लेकर शीर्ष-स्तरीय संस्थानों तक सभी स्तरों पर नवाचार को प्रोत्साहित करना।
    • विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में नवाचार केंद्रों, इनक्यूबेटरों और एक्सलेटर के निर्माण का समर्थन करना।
  • मानव संसाधन विकास में निवेश करना: भारत की अनुसंधान एवं विकास क्षमता को बढ़ाने के लिए कुशल शोधकर्ताओं के विकास और प्रतिधारण को मजबूत करना।
    • महत्त्वपूर्ण शोध क्षेत्रों में शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने हेतु PhD और पोस्टडॉक्टरल कार्यक्रमों के वित्त पोषण का विस्तार करना।

निष्कर्ष

वर्ष 2025 के लिए ‘नवाचार, अनुसंधान और विज्ञान में आसानी’ के तहत प्रस्तावित नीतिगत सुधार भारत के वैज्ञानिक समुदाय को सशक्त बनाने का प्रयास करते हैं। ये सुधार खरीद प्रक्रिया में अधिक स्वायत्तता और वित्तीय सीमाओं में वृद्धि के माध्यम से नौकरशाही की देरी को समाप्त करने, नवाचार को प्रोत्साहित करने, और भारत को एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास केंद्र के रूप में स्थापित करने के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं।

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