केंद्र सरकार ने भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के विनिर्माण केंद्र के रूप में बढ़ावा देने के लिए एक नीति को मंजूरी दे दी है।
संबंधित तथ्य
लक्ष्य: स्थानीय बाजार की स्थितियों एवं माँग के अनुसार, व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य तरीके से स्थानीय उत्पादन में परिवर्तन को सक्षम करना तथा वर्ष 2030 तक 30% की वार्षिक EV कार बिक्री हासिल करना।
यह नीति मोटे तौर पर टेस्ला एवं चीनी EV निर्माता BYD जैसे वैश्विक EV निर्माताओं के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश का रास्ता साफ करती है।
इलेक्ट्रिक वाहन के बारे में
यह पूरी तरह से बिजली से संचालित होता है एवं इसमें वाहन को चलाने के लिए बैटरी पैक द्वारा संचालित एक या अधिक इलेक्ट्रिक मोटर होती हैं तथा इसे बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV) के रूप में जाना जाता है।
वे अपने संचालन के लिए ऊर्जा प्रदान करने के लिए रिचार्जेबल बैटरी पैक का उपयोग करते हैं।
लक्ष्य: भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश के वाहन बेड़े का 30 प्रतिशत विद्युतीकरण हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2023: यह भविष्यवाणी करता है कि भारत के घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में वर्ष 2022 एवं 2030 के बीच 49 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) देखी जाएगी, जिसमें वर्ष 2030 तक 10 मिलियन वार्षिक बिक्री होगी।
आयात शुल्क में कमी: यह नीति $35,000 की न्यूनतम लागत, बीमा एवं माल ढुलाई (CIF) मूल्य के साथ पूरी तरह से निर्मित इकाई (CBU) के रूप में आयातित इलेक्ट्रिक वाहनों पर आयात शुल्क को वर्तमान 70% -100% से घटाकर 15% करने का प्रयास करती है।
यह प्रावधान पाँच वर्ष के लिए बढ़ाया जाएगा, बशर्ते निर्माता तीन वर्ष के भीतर भारत में अपनी सुविधाएँ स्थापित कर लें।
आयातित EV की कुल संख्या पर ₹6,484 करोड़ का कुल शुल्क या किए गए निवेश के अनुपात में जो भी कम हो, माफ कर दिया जाएगा।
आयात पर अधिकतम कोटा: योजना के तहत प्रति वर्ष अधिकतम 8,000 इकाइयों के साथ कुल 40,000 EV का आयात किया जा सकता है, बशर्ते कि किया गया न्यूनतम निवेश $800 मिलियन हो।
कुल मिलाकर, पात्रता के लिए न्यूनतम निवेश सीमा $500 मिलियन (लगभग ₹4,150 करोड़) निर्धारित की गई है। अप्रयुक्त वार्षिक आयात सीमाओं को आगे ले जाने की अनुमति है।
स्थानीयकरण लक्ष्य: निर्माताओं के पास भारत में अपनी विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिए 3 वर्ष का समय होगा, जिसमें प्रोत्साहन संचालन के तीसरे वर्ष तक 25% स्थानीयकरण एवं पाँचवें वर्ष तक 50% स्थानीयकरण प्राप्त होने की उम्मीद है।
यदि स्थानीयकरण लक्ष्य हासिल नहीं किए जाते हैं, एवं यदि न्यूनतम निवेश मानदंड पूरे नहीं किए जाते हैं, तो निर्माताओं की बैंक गारंटी लागू कर दी जाएगी।
नीति के लाभ
मध्य मार्ग की रणनीति: यह नीति मध्य मार्ग बिंदु खोजने का भारत का प्रयास है, जहाँ विदेशी प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करके कैप्टिव बाजार के लिए सामर्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि यह स्वीकार किया जाता है कि आयात प्रतिस्थापन एक चरणबद्ध प्रक्रिया है, जिसके लिए एक स्तरित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
भारतीय EV पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नए अवसर: बॉडी पार्ट्स, मोटर, इलेक्ट्रिक पार्ट्स जैसे घटकों को तीन वर्ष के भीतर स्थानीयकृत किया जा सकता है।
भारतीय बाजार की त्वरित समझ: परीक्षण एवं बाजार परीक्षणों के लिए पूरी तरह से निर्मित इकाइयों के आयात पर सीमा शुल्क में कटौती से वैश्विक खिलाड़ियों को कम जोखिम के साथ विकास प्रक्रिया में तेजी लाने में मदद मिलेगी।
EV पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: यह नीति वैश्विक EV खिलाड़ियों और उनके भारतीय जेवी के लिए भारत में बिक्री और निर्माण का विस्तार करना आकर्षक बनाती है, जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं स्थानीय आपूर्तिकर्ता पारिस्थितिकी तंत्र के उन्नयन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय निर्माताओं को लाभ होगा तथा हमारे समग्र EV पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा।
EV परिदृश्य में चिंताएँ
घरेलू EV खिलाड़ियों को खतरे में डालना: आयात शुल्क कम करने से घरेलू उद्योग पर असर पड़ेगा, जो अभी विकास की शुरुआती अवस्था में है एवं इसके परिणामस्वरूप प्रतिस्पर्द्धा समाप्त हो सकती है।
भारत विशिष्ट: नीति तभी सफल होगी जब वैश्विक खिलाड़ी केवल स्थानीय परिस्थितियों एवं पर्यावरण, सड़कों, ड्राइविंग व्यवहार तथा उपयोग की स्थितियों जैसी भारतीय ग्राहकों की अपेक्षाओं पर विचार करेंगे।
EV को अपनाने में कमी: जबकि दोपहिया और तिपहिया खंड में प्रवेश महत्त्वपूर्ण रहा है, यात्री वाहनों में अब तक केवल 2.2% का योगदान देखा गया है, जिसका मुख्य कारण उचित चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की कमी, रेंज की चिंता एवं किफायती उत्पादों की सीमित संख्या है। सीमित स्थानीयकरण के कारण सीमा।
अपर्याप्त चार्जिंग बुनियादी ढाँचा: देश में EV को अपनाने के लिए चार्जिंग बुनियादी ढाँचे को उन्नतशील बनाना अत्यावश्यक है।
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत को EV को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2030 तक कम-से-कम 13 लाख चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता हो सकती है।
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