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हट्टी जनजाति में बहुविवाह

Lokesh Pal July 24, 2025 03:10 18 0

संदर्भ

हिमाचल प्रदेश के दुर्लभ गिरी क्षेत्र में हट्टी जनजाति की एक महिला ने हाल ही मेंजोड़ीदारांनामक पारंपरिक बहुपत्नी प्रथा के तहत दो भाइयों से विवाह किया।

संबंधित तथ्य

  • इस घटना ने भारत में बहुपतित्व जैसी पारंपरिक जनजातीय प्रथाओं की वैधता और संवैधानिक वैधता पर चर्चा को फिर से शुरू कर दिया है।

हट्टी जनजाति के बारे में

  • हट्टी जनजाति हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड सीमा पर रहने वाला एक आदिवासी समुदाय है।
  • इसे भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • गाँव केहाटनामक बाजारों में उपज बेचने की उनकी परंपरा के कारण इसका नाम हट्टी पड़ा।
  • शासन: हरियाणा की खाप पंचायत के समान, खुंबलीनामक एक स्थानीय परिषद द्वारा स्थानीय शासन का संचालन किया जाता है।
  • खुंबलीके निर्णयों में व्यापक अधिकार निहित होते हैं, जो प्रायः पंचायती राज व्यवस्था की भूमिका को अप्रभावी बना देते हैं।

सामाजिक व्यवस्था 

  • हट्टी जनजाति में बहुपतित्व की प्रथा मुख्यतः अविभाजित कृषि भूमि की रक्षा करने और पारिवारिक संबंधों को सुदृढ़ बनाए रखने के उद्देश्य से प्रचलित रही है।
  • प्रथागत वैधता: यह प्रथा स्थानीय स्तर पर प्रचलित है और इसके समर्थक विशेष रूप से कृषि प्रधान आदिवासी समाजों में इसे महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा तथा पारिवारिक एकता बनाए रखने के एक प्रभावी माध्यम के रूप में देखते हैं।
  • समुदाय एक कठोर जातिगत पदानुक्रम का पालन करता है—जिसमेंभाटऔर ‘खशको उच्च जातियों के रूप में जबकि ‘बधोईको निम्न जाति के रूप में माना जाता है, अंतरजातीय विवाहों को सामाजिक रूप से हतोत्साहित किया जाता है।

बहुविवाह (Polygamy) के बारे में

  • बहुविवाह एक से अधिक जीवनसाथी रखने की प्रथा है, चाहे वह पत्नी हो या पति। यह प्रथा दो प्रकार की होती है:
    • बहुपत्‍नीत्‍व (Polygyny): एक पुरुष की कई पत्नियाँ
    • बहुपति (Polyandry): एक महिला की कई पति

बहुविवाह का प्रचलन

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (वर्ष 2019-20) के अनुसार, ईसाइयों में बहुविवाह का प्रचलन 2.1%, मुसलमानों में 1.9%, हिंदुओं में 1.3% और अन्य धार्मिक समूहों में 1.6% है।
  • कुछ अन्य आँकड़ों के अनुसार बहुविवाह का प्रचलन सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्यों में है।

भारत में बहुविवाह पर कानूनी स्थिति

  • वैधानिक निषेध: बहुविवाह, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 द्वारा गैर-कानूनी घोषित किया गया है और भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत इसे अपराध घोषित किया गया है।
  • जनजातीय छूट: हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2(2) अनुसूचित जनजातियों (ST) को इसके प्रावधानों से छूट देती है, जब तक कि केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्देश न दे।
  • प्रथा की परिभाषा: धारा 3 ‘प्रथाको एक ऐसे नियम के रूप में परिभाषित करती है, जिसका पालन लंबे समय से किया जा रहा है और जिसने कानून का स्वरूप प्राप्त कर लिया है। हालाँकि, कानूनी स्वीकृति के लिए, यह उचित, निश्चित और सार्वजनिक नीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिए।
    • संविधान जनजातीय रीति-रिवाजों की रक्षा करता है, लेकिन केवल तभी जब वे समानता, सम्मान और जीवन का अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का हनन न करें।

अनुसूचित जनजातियों की संवैधानिक स्थिति

  • संविधान के अंतर्गत विशेष संरक्षण: अनुच्छेद-342 अनुसूचित जनजातियों को मान्यता देता है और उन्हें एक विशिष्ट कानूनी दर्जा प्रदान करता है और प्रायः उनके रीति-रिवाजों को सामान्य कानून से ऊपर रखता है, जब तक कि वे भेदभावपूर्ण सिद्ध न हो जाएँ।
  • उत्तराखंड का समान नागरिक संहिता (UCC) अपवाद: उत्तराखंड द्वारा वर्ष 2024 में अधिनियमित समान नागरिक संहिता (UCC) बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाती है और विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाती है, लेकिन अनुच्छेद-366(25) और अनुच्छेद-342 के अनुसार अनुसूचित जनजातियों को इसके सीमा से स्पष्ट रूप से बाहर रखती है।

प्रथा बनाम मौलिक अधिकारों पर न्यायिक व्याख्या

  • तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए इसे मनमाना और अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन बताया।
  • सबरीमाला मामला (वर्ष 2018): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि रजस्वला महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकना, अपनी पारंपरिक मान्यताओं के बावजूद, अनुच्छेद-14, अनुच्छेद-15 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है।
  • जनजातीय उत्तराधिकार (वर्ष 2024): राम चरण एवं अन्य बनाम सुखराम मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि रीति-रिवाजों को समय के साथ विकसित होना चाहिए और वे महिलाओं के संपत्ति पर उत्तराधिकार के संवैधानिक अधिकारों को नकार नहीं सकते। न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि पुरुष प्रधान परंपराओं के आधार पर महिला उत्तराधिकारियों को संपत्ति से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है।

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