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जनगणना-2027

Lokesh Pal June 06, 2025 05:25 28 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि अत्यधिक विलंब होने वाली जनगणना वर्ष 2021 को दो चरणों में आयोजित किया जाएगा, जो 1 अक्टूबर, 2026 और 1 मार्च, 2027 को शुरू होगी।

जनगणना-2027 के बारे में

  • जनगणना-2027 भारत की 16वीं दशकीय जनगणना है, जिसका उद्देश्य व्यापक जनसांख्यिकीय, सामाजिक, आर्थिक और जातिगत डेटा एकत्र करना है।
  • प्राधिकरण: गृह मंत्रालय के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा जनगणना अधिनियम, 1948 तथा जनगणना नियम, 1990 के तहत आयोजित किया जाता है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • डिजिटल जनगणना: डेटा संग्रहण के लिए मोबाइल और वेब अनुप्रयोगों का उपयोग।
      • भारत में पहली डिजिटल जनगणना।
      • CMMS पोर्टल: जनगणना गतिविधियों के प्रबंधन और निगरानी से संबंधित।
    • दो-चरणीय प्रक्रिया
      • आवास सूचीकरण और आवास अनुसूची (1 अप्रैल – सितंबर 2026): इस चरण में आवास और घरेलू सुविधाओं के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है।
      • जनगणना (27 फरवरी – 1 मार्च, 2027): इस चरण में स्वतंत्रता उपरांत  भारत में पहली बार जातिगत विस्तृत सामाजिक-आर्थिक डेटा सहित व्यक्तियों की गणना पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • स्व-गणना: राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को ऑनलाइन अपडेट करने वाले परिवारों हेतु विकल्प उपलब्ध है।
    • जाति गणना: वर्ष 1931 के बाद पहली बार जाति से संबंधित डेटा (SC/ST से परे) एकत्र किया जाएगा।
      • डेटा में होने वाले दोहराव से बचने के लिए मोबाइल ऐप में ड्रॉप-डाउन जाति निर्देशिका।

भारत में जनगणना का ऐतिहासिक अवलोकन

स्वतंत्रता-पूर्व जनगणना

  • प्राचीन एवं मध्यकालीन काल
    • ऋग्वेद (800-600 ई.पू.): जनसंख्या गणना का उल्लेख करता है।
    • कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र (321-296 ई.पू.): कराधान के लिए जनगणना की का समर्थन करता है।
    • मुगल सम्राट अकबर के अंतर्गत ‘आइन-ए-अकबरी’ (1595): जनसंख्या, उद्योग और धन को सम्मलित करते हुए  प्रथम विस्तृत जनगणना।
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक युग
    • प्रारंभिक प्रयास (1800-1850 के दशक)
      • भारत में पहली जनगणना 1800 में की गई थी, हालाँकि इसमें  आंशिक डेटा ही एकत्र किया गया था।
      • भारत की प्रथम पूर्ण जनगणना वर्ष 1830 में हेनरी वाल्टर द्वारा ढाका (अब ढाका) में आयोजित की गई थी।
      • वर्ष 1824 में, पहली नगर जनगणना इलाहाबाद में हुई, उसके बाद वर्ष 1827-28 में जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनारस में जनगणना की गई थी।
    • वर्ष 1871 की जनगणना: ब्रिटिश शासन के तहत पहली राष्ट्रव्यापी जनगणना।
      • गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल के दौरान संपूर्ण ब्रिटिश भारत में जनसांख्यिकीय डेटा एकत्र करने का यह पहला संरचित प्रयास था।
      • जनगणना में धर्म, जाति, व्यवसाय और भाषा से संबंधित प्रश्न शामिल थे।
    • वर्ष 1881 की जनगणना
      • यह ब्रिटिश भारत (कश्मीर के अलावा) के सभी क्षेत्रों को शामिल करते हुए पहली आधुनिक समकालिक जनगणना थी । इसका फोकस पूर्ण कवरेज और जनसांख्यिकीय वर्गीकरण पर था।
      • हिंदुओं के लिए लैंगिक वैवाहिक स्थिति और विस्तृत जाति संबंधी जानकारी पर आधारित प्रश्नों को शामिल किया गया।
    • वर्ष 1931 की जनगणना
      • यह व्यापक जाति पर आधारित डेटा को शामिल करने वाली अंतिम जनगणना। इसमें 4,147 जातियों की गणना की गई।
      • इसने परवर्ती आरक्षण नीतियों को आकार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से वर्ष 1980 की मंडल आयोग रिपोर्ट में।

स्वतंत्रता के बाद की जनगणना

  • वर्ष 1951 की जनगणना: इसे स्वतंत्रता के बाद जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत आयोजित किया गया।
    • सामान्य जनसंख्या में जाति आधारित जनगणना को शामिल नहीं किया गया, लेकिन अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes- ST) से संबंधित डेटा को दर्ज किया गया।
    • शिक्षा, साक्षरता और रोजगार की स्थिति जैसे सामाजिक-आर्थिक मापदंडों पर पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • बाद की जनगणनाएँ (1961-2001)
    • वर्ष 1961 की जनगणना: उद्योग के आधार पर श्रमिकों को वर्गीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रवास, साक्षरता और रोजगार पर विस्तृत डेटा शामिल करने हेतु  दायरे का विस्तार किया गया।
    • वर्ष 1971 की जनगणना: दो-चरणीय प्रणाली- हाउसलिस्टिंग और जनसंख्या गणना शुरू की गई। प्रजनन दर और प्रवास पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • वर्ष 1981 की जनगणना: शौचालय सुविधाओं और आवास सुविधाओं पर प्रश्नों के साथ दायरे का और अधिक विस्तार किया गया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा के महत्त्व को दर्शाता है। 
    • वर्ष 1991 की जनगणना: भूतपूर्व सैनिकों, आर्थिक स्थिति, साक्षरता और रोजगार की परिष्कृत परिभाषाओं से संबंधित नवीन प्रश्नों को शामिल किया गया।
  • वर्ष 2001 की जनगणना: हस्तलिखित डेटा का डिजिटलीकरण करने हेतु इंटेलिजेंट कैरेक्टर रीडिंग (Intelligent Character Reading- ICR) के उपयोग सहित तकनीकी प्रगति।
    • संपत्ति, स्वच्छता और भूमि स्वामित्व पर ध्यान केंद्रित किया गया, साथ ही दिव्यांगता, परिवहन के तरीके और रोजगार की स्थिति पर नवीन प्रश्न पूछे गए।
  • 2011 की जनगणना: कंप्यूटर, इंटरनेट उपयोग और मोबाइल फोन एक्सेस पर डेटा सहित आधुनिक सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • दिव्यांगता से संबंधित प्रश्नों और प्रवासन डेटा संग्रह को गाँव/कस्बों के नामों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया।

इंटेलिजेंट कैरेक्टर रिकॉग्निशन (Intelligent Character Reading- ICR) एक तकनीक है, जिसका उपयोग हस्तलिखित या मुद्रित पाठ को मशीन पठनीय डेटा में डिजिटल रूप से परिवर्तित करने हेतु किया जाता है।

समय के साथ जनगणना में प्रमुख बदलाव

  • जाति गणना से लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) मान्यता तक
    • स्वतंत्रता पूर्व: जाति को व्यवस्थित रूप से शामिल  किया जाता था, जिससे मूल्यवान सामाजिक-आर्थिक जानकारी मिलती थी।
      • वर्ष 1931 की जनगणना में 4,147 जातियों की गणना की गई थी।
    • स्वतंत्रता पश्चात्: जाति गणना केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) तक सीमित थी, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को औपचारिक रूप से इसमें शामिल नहीं किया गया था।
    • हाल ही में बदलाव: वर्ष 2027 की जनगणना में स्वतंत्र भारत में पहली बार जाति गणना को पुनः शुरू किया जाएगा, जिसमें सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बेहतर ढंग से संबोधित करने के लिए OBC को लक्षित किया जाएगा।
  • तकनीकी विकास
    • पूर्ववर्ती जनगणनाएँ (वर्ष 2001 से पूर्व): आँकड़ों का संग्रहण मुख्यतः मैनुअल था, तथा प्रपत्रों को हाथ से तैयार किया जाता था।
    • वर्ष 2001 की जनगणना के बाद: इंटेलिजेंट कैरेक्टर रिकॉग्निशन (ICR) जैसी डिजिटल डेटा संग्रह विधियों की शुरुआत, जिससे डेटा का तेज और अधिक सटीक प्रसंस्करण संभव हो गया।
    • वर्ष 2027 की जनगणना: पहली डिजिटल जनगणना, जिसका उद्देश्य डेटा संग्रह और विश्लेषण में सटीकता और दक्षता में सुधार करना है।
  • डेटा का दायरा बढ़ाना
    • वर्ष 2001 से पहले की जनगणना: मुख्य रूप से बुनियादी जनसांख्यिकीय डेटा- आयु, लिंग, धर्म, साक्षरता और रोजगार पर केंद्रित थी।
    • वर्ष 2001 की जनगणना के बाद: दिव्यांगता, संपत्ति, भूमि स्वामित्व, आवास सुविधाओं और गतिशीलता पैटर्न जैसे अधिक सूक्ष्म सामाजिक-आर्थिक डेटा को कवर करने के लिए विस्तारित किया गया।
    • वर्ष 2027 की जनगणना: इसमें जाति गणना और डिजिटल तरीके शामिल होंगे, साथ ही सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर निरंतर बल दिया जाएगा।

भारत में जनगणना का संवैधानिक और कानूनी ढाँचा

 संवैधानिक अधिदेश

  • अनुच्छेद-246: सातवीं अनुसूची में संघ सूची की प्रविष्टि 69 के तहत जनगणना पर केंद्र सरकार को अधिकार प्रदान करता है।
    • दसवर्षीय आवधिकता के लिए कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है, लेकिन परंपरागत रूप से वर्ष 1881 से प्रत्येक 10 वर्ष में जनगणना की जाती है।
  • अनुच्छेद-81: वर्ष 2026 के बाद प्रथम जनगणना के आधार पर लोकसभा सीटों की कुल संख्या निर्धारित की जाएगी।
  • अनुच्छेद-82: परिसीमन आयोग को अपना कार्य वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना के जनगणना डेटा पर आधारित करना चाहिए।

जनगणना के लिए कानूनी ढाँचा

  • जनगणना अधिनियम, 1948
    • धारा 3: सरकार को यह अधिकार देता है कि जब भी वह इसे आवश्यक या वांछनीय समझे, जनगणना कराए।
    • धारा 4: जनगणना आयुक्त को डेटा एकत्र करने और प्रकाशित करने का अधिकार प्रदान करती है।
    • धारा 6: जनगणना प्रक्रिया का अनुपालन न करने पर दंड आरोपित करती है।
    • धारा 8: सरकार को जनगणना के दौरान व्यक्तियों से जानकारी माँगने की अनुमति प्रदान करती है।
  • जनगणना नियम, 1990
    • डेटा संग्रह की प्रक्रिया, गणनाकर्ताओं की जिम्मेदारियों और डेटा की गोपनीयता के बारे में विस्तृत जानकारी।
    • व्यक्तिगत जानकारी के अनधिकृत प्रकटीकरण पर रोक लगाकर उत्तरदाताओं की गोपनीयता सुनिश्चित करता है।

कानूनी और संवैधानिक परिवर्तन

  • 84वाँ संविधान संशोधन (2002): वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या को वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना तक निर्धारित रखता है।
    • यह निर्धारित करता है कि परिसीमन वर्ष 2027 की जनगणना के आधार पर होगा।
  • परिसीमन अधिनियम, 2002: जनगणना के आँकड़ों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण को नियंत्रित करता है।
  • जाति गणना की पुनः शुरुआत (वर्ष 2027): वर्ष 1931 में अंतिम बार एकत्र किए गए जाति डेटा को वर्ष 2027 की जनगणना में शामिल किया जाएगा।

जाति जनगणना क्या है?

  • जाति जनगणना के दौरान नागरिकों की जातिगत पहचान के बारे में डेटा एकत्र करना शामिल है।
  • अंतिम  जाति-आधरित जनगणना वर्ष 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी।
  • वर्तमान में केंद्रीय सूची में लगभग 2,650 ओबीसी समुदाय, SC श्रेणी में 1,170 और ST सूची में 890 समुदाय हैं।
    • राज्य सरकारें OBC समूहों की अपनी सूची बनाए रखती हैं।
  • जाति जनगणना को वर्ष 2027 की जनगणना में शामिल किया जाएगा।

सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC)

  • वर्ष 2011 में शुरू की गई SECC का उद्देश्य परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करना एवं जाति विवरण एकत्र करना था।
  • यह नियमित जनगणना से अलग थी तथा वंचितों की पहचान करने और कल्याण लक्ष्यीकरण में सहायता के लिए आयोजित की गई थी।
  • SECC से डेटा सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंप दिया गया।
  • हालाँकि, असंगत जाति नाम प्रविष्टियों (46 लाख से अधिक भिन्नताएँ) और वर्गीकरण चुनौतियों जैसे मुद्दों के कारण SECC से जाति डेटा अप्रकाशित है।

जनसंख्या जनगणना का महत्त्व

  • नीति नियोजन और शासन: जनगणना के आँकड़े विकास और शासन के लिए नीति निर्माण का मार्गदर्शन करते हैं।
    • यह बुनियादी ढाँचे में ग्रामीण-शहरी असमानताओं की पहचान करने में मदद करता है, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए लक्षित नीतियाँ सुनिश्चित होती हैं।
  • परिसीमन और चुनावी सुधार: वर्ष 2026 के बाद, 84वें संशोधन अधिनियम, 2001 (1971 की जनगणना के आधार पर वर्ष 2026 तक सीटें स्थिर) के अनुसार, लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए डेटा प्रदान करता है।
    • संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण के कार्यान्वयन को सक्षम बनाता है।
  • सामाजिक न्याय और कल्याण कार्यक्रम: जनगणना के आँकड़ों का उपयोग SC, ST और ओबीसी के लिए सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को डिजाइन करने के लिए किया जाता है।
    • अंतर-समूह असमानताओं को दूर करने के लिए पिछड़े वर्गों (जैसे- OBC के लिए न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग) के भीतर उप-वर्गीकरण का समर्थन करता है।
  • सामाजिक-आर्थिक विकास: जनगणना के आँकड़े शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
    • वर्ष 1991 की जनगणना में साक्षरता दर में अंतर दिखा, जिससे ग्रामीण शिक्षा में सुधार के लिए नीतियाँ बनाई गईं।
  • बुनियादी ढाँचा नियोजन: जनगणना डेटा आवास, परिवहन और बुनियादी सुविधाओं के लिए योजना निर्माण में सहायता करता है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना से प्राप्त डेटा ने सरकार को स्वच्छता आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की योजना बनाने में मदद की।
  • सामाजिक और आर्थिक असमानता को संबोधित करना: जनगणना जाति, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं की पहचान करती है।
    • वर्ष 1931 की जनगणना के डेटा के अनुसार ही मंडल आयोग की रिपोर्ट आई, जिसमें OBC के लिए आरक्षण की सिफारिश की गई।
  • अनुसंधान और विश्लेषण: जनगणना डेटा अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में अकादमिक अनुसंधान का समर्थन करता है।
    • NSS तथा NFHS गरीबी और भेदभाव का अनुमान लगाने के लिए जनगणना डेटा का उपयोग करते हैं।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) और सुरक्षा: यदि NPR अपडेट को शामिल किया जाता है (जैसा कि वर्ष 2021 के लिए योजना बनाई गई है), तो यह शासन और सुरक्षा के लिए जनसांख्यिकीय डेटाबेस को मजबूत करता है।
    • संभावित NRC लिंकेज के कारण विवादास्पद, जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

जनगणना संबंधी चुनौतियाँ

  • डेटा की सटीकता और कवरेज: सभी आबादी, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, का पूर्ण कवरेज सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना में, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भौगोलिक चुनौतियों के कारण देरी तथा अपूर्ण गणना का सामना करना पड़ा।
  • राजनीतिक और सामाजिक संवेदनशीलता: जाति, धर्म और जातीयता पर डेटा एकत्र करना राजनीतिक विवादों को जन्म दे सकता है।
    • वर्ष 2027 की जनगणना में जाति गणना को शामिल करने से इसके संभावित राजनीतिक निहितार्थों के कारण कुछ क्षेत्रों में बहस और विरोध हुआ है।
  • तार्किक और प्रशासनिक कठिनाइयाँ: जनगणना प्रक्रिया की विशालता इसे प्रशासनिक अक्षमताओं और तार्किक मुद्दों से ग्रस्त बनाती है।
    • वर्ष 2027 की जनगणना में नए डिजिटल तरीकों के माध्यम से गणनाकर्ताओं को प्रशिक्षित करना एक बड़े पैमाने का कार्य है, जिसमें देरी का सामना करना पड़ सकता है।
  • सार्वजनिक अनिच्छा और गैर-अनुपालन: कुछ व्यक्ति डेटा के दुरुपयोग या गोपनीयता संबंधी चिंताओं के डर से सटीक जानकारी देने में अनिच्छुक हो सकते हैं।
    • पिछली जनगणनाओं में, आदिवासी समुदायों के कुछ लोगों ने प्रक्रिया में अविश्वास के कारण भाग लेने से इनकार कर दिया था।
  • तकनीकी एकीकरण: डिजिटल जनगणना विधियों को लागू करना प्रौद्योगिकी अपनाने और डिजिटल साक्षरता से संबंधित चुनौतियों को प्रस्तुत करता है।
    • वर्ष 2027 की जनगणना में डिजिटल प्रारूप में बदलाव के लिए स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी तक व्यापक पहुँच की आवश्यकता होगी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित हो सकती है।
  • जाति वर्गीकरण के मुद्दे: विभिन्न क्षेत्रों में जातियों को सटीक रूप से वर्गीकृत करने से विसंगतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC) के दौरान जाति वर्गीकरण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसमें अनियमित रिपोर्टिंग के कारण 46 लाख से अधिक जाति प्रविष्टियाँ हुईं।
  • वित्तीय और मानव संसाधन: जनगणना के लिए महत्त्वपूर्ण धन और मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।
    • वर्ष 2021 की जनगणना में आंशिक रूप से धन की कमी और COVID-19 महामारी के कारण देरी हुई।

जनगणना-2027 में जातिगत आँकड़ों को शामिल करना: तर्क और वितर्क

सकारात्मक पहलू

  • लक्षित कल्याण कार्यक्रम: जातिगत डेटा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अंतर्गत सामाजिक-आर्थिक असमानताओं की पहचान करने में मदद करता है, जिससे लक्षित सकारात्मक कार्रवाई और कल्याणकारी योजनाओं को सक्षम बनाया जा सकता है।
    • मंडल आयोग (1980) ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश करने के लिए वर्ष 1931 की जनगणना से जातिगत डेटा का उपयोग किया।
  • ओबीसी के लिए सटीक प्रतिनिधित्व: जातिगत डेटा को शामिल करने से ओबीसी के लिए सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा, जिससे सरकार को संसाधनों को अधिक निष्पक्ष रूप से आवंटित करने में मदद मिलेगी।
    • वर्ष 2027 की जनगणना ओबीसी की संख्या की अधिक सटीक पहचान करने की अनुमति देगी, जिससे बेहतर आरक्षण नीतियों और कल्याणकारी सहायता में सहायता मिलेगी।
  • नीति नियोजन और सामाजिक न्याय: जातिगत डेटा नीतिगत निर्णयों के लिए अनुभवजन्य साक्ष्य प्रदान करेगा, जिससे जाति आधारित भेदभाव और हाशिए पर जाने को संबोधित करना आसान हो जाएगा।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों से पता चला है कि SC और ST को महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वित्तीय सहायता और शैक्षिक कोटा जैसी नीतियों को बढ़ावा मिला है।
  • असमानताओं पर नजर रखना: जनगणना जाति आधारित आर्थिक असमानताओं की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करेगी, जिससे केंद्रित नीतिगत हस्तक्षेप संभव होगा।
    • जाति संबंधी डेटा सरकार को शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में अंतर की निगरानी करने में मदद करेगा।

नकारात्मक पहलू

  • राजनीतिक हस्तक्षेप: जातिगत डेटा के संग्रह से जनगणना का राजनीतीकरण हो सकता है, क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दल जाति आधारित समूहों से समर्थन जुटाने के लिए डेटा का उपयोग कर सकते हैं।
    • जातिगत डेटा को शामिल करने से वोट बैंक की राजनीति हो सकती है, जिसमें पार्टियाँ चुनावी लाभ के लिए विशिष्ट समूहों को लक्षित कर सकती हैं।
  • सामाजिक विभाजन: जातिगत डेटा सामाजिक विभाजन को गहरा कर सकता है, जिससे आरक्षण और संसाधनों के लिए जातियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा की भावना पैदा हो सकती है, जिससे संभावित रूप से सामाजिक अशांति हो सकती है।
    • ओबीसी आरक्षण पर बहस ने तमिलनाडु जैसे राज्यों में तनाव पैदा कर दिया है, जहाँ जनसंख्या आधारित परिसीमन के विरुद्ध प्रतिरोध है।
  • जाति पर अत्यधिक जोर: नीति-निर्माण के लिए जातिगत डेटा पर बहुत अधिक निर्भर रहना आर्थिक स्थिति, शिक्षा और क्षेत्रीय विकास जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों को प्रभावित कर सकता है।
    • मंडल आयोग की रिपोर्ट को जातियों के भीतर आर्थिक पिछड़ेपन पर विचार किए बिना मुख्य रूप से जाति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा।
  • डेटा सटीकता में चुनौतियाँ: जातिगत डेटा के साथ वर्गीकरण के मुद्दे अशुद्धि को जन्म दे सकते हैं, जिससे संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करना मुश्किल हो जाता है।
    • वर्ष 2011 की SECC में जाति वर्गीकरण में समस्याएँ आईं, जिसके कारण 46 लाख से अधिक जाति प्रविष्टियाँ हुईं, जिससे जाति डेटा संग्रह की जटिलता उजागर हुई।
  • समुदायों का प्रतिरोध: कुछ समुदाय भेदभाव या लाभों से वंचित होने के डर से जाति गणना का विरोध कर सकते हैं।
    • पिछली जनगणनाओं में, कुछ समुदायों, विशेष रूप से आदिवासी समूहों ने प्रणाली में अविश्वास के कारण भाग लेने से इनकार कर दिया था।

भारत में संघवाद पर जनगणना का प्रभाव

  • राजनीतिक शक्ति का पुनर्वितरण: जनगणना के आँकड़ों से निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर प्रभाव पड़ेगा। इससे राज्यों के बीच राजनीतिक शक्ति में बदलाव आ सकता है।
    • वर्ष 2027 की जनगणना संसद और राज्य विधानसभाओं में सीट आवंटन का मार्गदर्शन करेगी। अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को अधिक सीटें मिल सकती हैं।
  • असमान प्रतिनिधित्व: दक्षिण की तरह कम जनसंख्या वृद्धि वाले राज्य राजनीतिक प्रभाव खो सकते हैं।
    • उत्तर प्रदेश की तुलना में कम जनसंख्या वृद्धि के कारण तमिलनाडु अपनी सीटें खो सकता है।
  • संसाधन आवंटन विवाद: परिसीमन से विशेषतः कल्याणकारी कार्यक्रमों और बुनियादी ढाँचे के लिए संसाधन वितरण पर विवाद हो सकता है।
    • बिहार अपनी बड़ी आबादी के कारण अधिक संसाधनों की माँग कर सकता है, जबकि छोटे राज्य वंचित महसूस कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय तनाव: नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि वाले राज्य राष्ट्रीय निर्णय लेने में कम प्रतिनिधित्व महसूस कर सकते हैं।
    • दक्षिणी राज्य संघीय शासन में अपने प्रभाव में कमी आने के डर से बदलावों का विरोध कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR): हालाँकि वर्ष 2027 के लिए पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन वर्ष 2021 की जनगणना के लिए NPR अपडेट की योजना बनाई गई थी, जिससे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens- NRC) से इसके जुड़ाव को लेकर चिंताएँ बढ़ गई थीं।
    • पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने अल्पसंख्यकों और आदिवासी समूहों के हाशिए पर जाने की आशंकाओं का हवाला देते हुए वर्ष 2021 में NPR का विरोध किया।
  • सहकारी संघवाद को मजबूत करना: जनगणना से प्राप्त सटीक डेटा राज्य की आवश्यकताओं के हिसाब से कल्याणकारी योजनाओं में सुधार कर सकता है, जिससे सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिलेगा।
    • जाति और जनसंख्या डेटा उन राज्यों को अधिक निष्पक्ष रूप से संसाधन आवंटित करने में मदद कर सकता है, जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

जनगणना-2027 के लिए आगे की राह

  • बेहतर प्रौद्योगिकी एकीकरण: सटीकता और दक्षता बढ़ाने के लिए डेटा संग्रह और प्रसंस्करण के लिए डिजिटल उपकरणों के उपयोग का विस्तार करना।
    • वास्तविक समय डेटा सत्यापन (जैसे- जाति संबंधी गलत रिपोर्टिंग का पता लगाना) के लिए AI का उपयोग करना तथा CMMS पोर्टल के माध्यम से सुरक्षित भंडारण के लिए क्लाउड-आधारित सिस्टम का उपयोग करना।
  • जाति डेटा का मानकीकरण: विसंगतियों और गलत व्याख्या से बचने के लिए जाति वर्गीकरण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करना।
    • वर्ष 2011 के SECC में 46 लाख से अधिक जाति प्रविष्टियों के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे मानकीकृत जाति सूचियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • जागरूकता अभियान: जनगणना में जनता का विश्वास और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान संचालित करना।
    • आदिवासी भाषा सामग्री और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील गणनाकर्ताओं का उपयोग करके अविश्वास (जैसे- सेंटिनली, नागालैंड जनजातियों का 2011 का प्रतिरोध) को दूर करने के लिए आदिवासी परिषदों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय नेताओं के साथ भागीदारी करना।
  • समावेशी डेटा संग्रह: सुनिश्चित करना कि आदिवासी और प्रवासी समुदायों जैसे हाशिए पर पड़े समूहों को डेटा संग्रह प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
    • वर्ष 2027 की जनगणना में सटीक जानकारी जुटाने के लिए दूरदराज के इलाकों तक पहुँचने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • स्पष्ट कानूनी और नीतिगत ढाँचा: डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित करने और राजनीतिक दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को मजबूत करना।
    • उदाहरण: डेटा सुरक्षा कानूनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जाति और व्यक्तिगत जानकारी गोपनीय रहे।
  • निरंतर निगरानी और मूल्यांकन: किसी भी चुनौती का तुरंत समाधान करने के लिए जनगणना प्रक्रिया की निरंतर निगरानी के लिए तंत्र स्थापित करना।
    • उदाहरण: जनगणना-2027 के दौरान संचालित मूल्यांकन वास्तविक समय में समस्याओं की पहचान करने और उन्हें हल करने में मदद कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय चिंताओं को संबोधित करना: राजनीतिक तनाव को रोकने के लिए प्रतिनिधित्व और संसाधन आवंटन के बारे में क्षेत्रीय चिंताओं को सक्रिय रूप से संबोधित करना।
    • दक्षिणी राज्यों के नुकसान को कम करने के लिए लोकसभा सीटों को बढ़ाने पर विचार करते हुए, प्रतिनिधित्व को संतुलित करने के लिए अंतर-राज्यीय परिषद की बैठकों के माध्यम से राज्यों को शामिल करना।

निष्कर्ष 

जनसंख्या जनगणना-2027, अपने डिजिटल दृष्टिकोण और जाति गणना के साथ, भारत के नीतिगत परिदृश्य, सामाजिक न्याय ढाँचे और संघीय गतिशीलता को नया आकार देने के लिए तैयार है। हालाँकि, इसकी सफलता सटीक डेटा और न्यायसंगत परिणाम सुनिश्चित करने के लिए तार्किक, राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने पर निर्भर करती है।

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