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भारत की जनसंख्या नीति

Lokesh Pal November 26, 2024 01:18 13 0

संदर्भ

आंध्र प्रदेश सरकार ने आंध्र प्रदेश पंचायत राज अधिनियम और आंध्र प्रदेश नगरपालिका अधिनियमों को निरस्त कर दिया है, जो दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकते थे। 

  • आंध्र प्रदेश दो बच्चों की नीति को वापस लेने वाला पहला राज्य नहीं है।
  • वर्ष 2005 में छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने भी इस नीति को वापस ले लिया था।

जनसंख्या का मापन

  • सर्वेक्षण: जनसंख्या प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने के लिए प्रश्नावली के माध्यम से नमूना-आधारित जनसांख्यिकीय डेटा एकत्र करता है।
  • जनगणना: किसी देश की जनसंख्या की व्यापक गणना समय-समय पर, आमतौर पर प्रत्येक 10 वर्ष में की जाती है।
  • जनसंख्या रजिस्टर: वास्तविक समय में निवासियों के जनसांख्यिकीय विवरणों का निरंतर रिकॉर्ड बनाए रखता है।
  • महत्त्वपूर्ण पंजीकरण प्रणाली: जनसंख्या परिवर्तनों को मापने के लिए जन्म, मृत्यु और विवाह जैसी प्रमुख जीवन घटनाओं को ट्रैक करता है।

विभिन्न राज्यों में ‘टू-चाइल्ड’ नीति की उत्पत्ति

  • जनसंख्या नियंत्रण उपायों की प्रभाविता में कमी: वर्ष 1981 और 1991 की जनगणनाओं के बीच जनसंख्या नियंत्रण उपायों से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं।
    • अंतर-जनगणना डेटा से पता चला कि भारत जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सही रास्ते पर नहीं है।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council-NDC) द्वारा एक पैनल का गठन: राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) ने तत्कालीन केरल के मुख्यमंत्री के. करुणाकरण की अध्यक्षता में एक समिति की स्थापना की।
  • समिति की सिफारिशें: पैनल ने सिफारिश की कि दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत स्तर से लेकर संसद तक सरकारी पदों पर रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  • राज्यों द्वारा अपनाना: समिति की सिफारिशें NDC को सौंपी गईं और बाद में विभिन्न राज्यों द्वारा लागू की गईं।
  • नीति लागू करने वाले राज्य
    • राजस्थान वर्ष 1992 में पंचायत स्तर पर ‘दो-बच्चे की नीति’ अपनाने वाला पहला राज्य बना, उसके बाद आंध्र प्रदेश (तब अविभाजित) और हरियाणा ने वर्ष 1994 में इसे अपनाया।
    • ओडिशा (वर्ष 1993, वर्ष 1994 में ब्लॉक पंचायत स्तर तक विस्तारित), छत्तीसगढ़ (वर्ष 2000), हिमाचल प्रदेश (वर्ष 2000), मध्य प्रदेश (वर्ष 2000), महाराष्ट्र (वर्ष 2003), गुजरात (वर्ष 2005), बिहार (वर्ष 2007), असम (वर्ष 2017), उत्तराखंड (वर्ष 2019), दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव (वर्ष 2020)।

भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश

  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक अनुकूल आयु संरचना से उत्पन्न होने वाली आर्थिक विकास क्षमता को संदर्भित करता है, जहाँ कार्यशील आयु वर्ग की आबादी (15-64 वर्ष) आश्रितों (बच्चों एवं बुजुर्गों) से अधिक है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश वर्ष 2041 के आसपास चरम पर होगा, जब कार्यशील आयु वर्ग यानी 20-59 वर्ष की आबादी का हिस्सा 59% तक पहुँचने की उम्मीद है।

कुछ राज्यों द्वारा दो-बच्चे की नीति को रद्द करने के कारण

  • जन्म के समय लिंग अनुपात (SRB) में गिरावट: वर्ष 2003 और 2005 के बीच SRB घटकर 880: 1000 रह गया, जिससे नीति के नकारात्मक प्रभावों के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
    • SRB में भारी गिरावट का कारण निम्नलिखित थे:
      • कठोर दो-बच्चे की नीति।
      • प्रसवपूर्व लिंग-पहचान तकनीकों का व्यापक उपयोग।

  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में बदलाव (वर्ष 2000): राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (वर्ष 2000) ने लक्ष्य-मुक्त दृष्टिकोण और प्रजनन अधिकारों के संरक्षण को अपनाया, जो पहले के जनसंख्या नियंत्रण उपायों के साथ विरोधाभासी था।
  • नीति के लिए कानूनी चुनौतियाँ: पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में भागीदारी से बाहर किए जाने की संवैधानिक वैधता के खिलाफ कई व्यक्तिगत मुकदमे दायर किए गए थे।

आंध्र प्रदेश द्वारा ‘दो बच्चों की नीति’ वापस लेने के कारण

  • बढ़ती उम्र की आबादी पर चिंता: जैसे-जैसे प्रजनन दर में गिरावट आ रही है, भारत में उम्र बढ़ती जा रही है, वर्ष 2050 तक प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति की उम्र 60 वर्ष से अधिक होने की उम्मीद है।
    • लेकिन दक्षिणी राज्यों में इसका प्रभाव और भी अधिक स्पष्ट होगा।
    • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) और अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (International Institute for Population Sciences- IIPS) द्वारा तैयार की गई ‘इंडिया एजिंग रिपोर्ट- 2023’ के अनुसार,
      • आंध्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में बुजुर्गों की आबादी न केवल बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे उत्तर के राज्यों की तुलना में पहले से ही अधिक है।
      • लेकिन वर्ष 2021 और 2036 के बीच यह बहुत अधिक दर से बढ़ेगी।
  • कम कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR): आंध्र प्रदेश की TFR 1.5 है, जो राष्ट्रीय औसत 2.11 से काफी कम है।
  • परिसीमन प्रक्रिया: आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दो बच्चों की नीति को वापस लेने के निर्णय का कारण वर्ष 2026 में होने वाली जनसंख्या-आधारित परिसीमन प्रक्रिया भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • ऐसी आशंका है कि उनके राज्यों में घटती जनसंख्या के कारण परिसीमन प्रक्रिया के दौरान संसदीय सीटों में कमी आ सकती है।
    • दक्षिणी राज्यों के कई राजनीतिक दल के नेता केंद्र से आग्रह कर रहे हैं कि परिवार नियोजन को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए दक्षिणी राज्यों को दंडित न किया जाए और आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर सीटें आवंटित की जाएँ।

भारत में तेजी से प्रजनन क्षमता में बदलाव

  • तीव्र प्रजनन संक्रमण: भारत के प्रजनन दर में तेजी से कमी आई है:
    • प्रति महिला छह बच्चों से घटकर 2.1 हो गई है।
    • इस संक्रमण में फ्राँस को 285 वर्ष लगे, इंग्लैंड को 225 वर्ष लगे, जबकि भारत को सिर्फ 45 वर्ष लगे।
  • कारण
    • परिवार नियोजन पहल: सरकार की परिवार नियोजन नीतियाँ, जागरूकता अभियान, आदि।
    • सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन: कई परिवार कम बच्चे पैदा करना पसंद कर रहे हैं।
      • महिलाएँ कॅरियर या शिक्षा के कारण विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी कर रही हैं, जिससे जन्म दर में गिरावट आई है।
    • जीवन प्रत्याशा में वृद्धि: बुजुर्गों के लिए विशेष और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, जिसमें वृद्धावस्था देखभाल भी शामिल है, ने बेहतर स्वास्थ्य परिणामों और लंबी जीवन प्रत्याशा में योगदान दिया है।

भारत की जनसंख्या की स्थिति

  • भारत की जनसंख्या: विश्व जनसंख्या समीक्षा के अनुसार, नवंबर 2024 तक भारत 1.45 बिलियन से अधिक लोगों के साथ सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग 17.77% है।
  • युवा जनसंख्या: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व जनसंख्या की स्थिति (SOWP) रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 68% आबादी 15-64 वर्ष की आयु वर्ग की है और 26% 10-24 वर्ष की आयु वर्ग की है, जो भारत को दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक बनाता है।
  • भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) उपलब्धि: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य 5 सर्वेक्षण (2019-21) के अनुसार, भारत ने पहली बार 2.0 की कुल प्रजनन दर (TFR) प्राप्त की, जो NFHS 4 (2015-16) में 2.2 से गिरकर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से कम है।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (NPP) 2000

  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 सतत् विकास के लिए जनसंख्या स्थिरीकरण पर ध्यान केंद्रित करती है तथा इसे शिक्षा, स्वच्छता, आवास, परिवहन और महिला सशक्तीकरण में सुधार से जोड़ती है।

NPP 2000 के उद्देश्य

  • तात्कालिक उद्देश्य: गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य अवसंरचना की अपूर्ण आवश्यकताओं को संबोधित करना तथा बुनियादी प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के लिए एकीकृत सेवाएँ प्रदान करना।
  • मध्यम अवधि के उद्देश्य: वर्ष 2010 तक प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता प्राप्त करना, कुल प्रजनन दर (TFR) को 2.1 तक कम करना।
  • दीर्घ अवधि के उद्देश्य: वर्ष 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करना।

प्रमुख रणनीतियाँ

  • स्वैच्छिक परिवार नियोजन: नीति परिवार नियोजन के लिए स्वैच्छिक दृष्टिकोण अपनाती है, जो दबाव के बजाय सूचित विकल्प और जागरूकता को बढ़ावा देती है।
  • प्रजनन और बाल स्वास्थ्य (Reproductive and Child Health- RCH) कार्यक्रम: वर्ष 1997 में शुरू की गई यह पहल विकेंद्रीकृत नियोजन पर केंद्रित है, जिसमें गुणवत्तापूर्ण परिवार कल्याण सेवाओं, सुरक्षित मातृत्व, बाल जीवन और यौन संचारित संक्रमणों (Sexually Transmitted Infections- STIs) पर नियंत्रण पर जोर दिया गया है।
  • परिवार कल्याण सेवाएँ: सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों के माध्यम से महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: छोटे परिवार के मानदंडों को बढ़ावा देना और लड़कियों के लिए देरी से विवाह (अधिमानतः 20 वर्ष के बाद) करना।

संस्थागत ढाँचा

  • राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग: नीति कार्यान्वयन की निगरानी और समीक्षा करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक आयोग।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण कोष (जनसंख्या स्थिरता कोष): यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जिसका गठन राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की सिफारिशों पर किया गया है।

भारत में जनसंख्या स्थिरीकरण और नियंत्रण के लिए तर्क

  • संसाधन प्रबंधन: भारत की बढ़ती जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों, जैसे जल, भूमि और ऊर्जा पर अत्यधिक दबाव डालती है।
    • उचित प्रबंधन के बिना, इससे संसाधनों की कमी हो सकती है, जिसका कृषि, उद्योग और समग्र आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

जनसंख्या स्थिरीकरण के विरुद्ध तर्क

  • जनसांख्यिकीय लाभांश जोखिम में: एक बड़ी, युवा आबादी जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान कर सकती है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिए, भारत की युवा जनसांख्यिकी को इसके आर्थिक विस्तार में एक प्रमुख कारक के रूप में देखा जाता है, जो विभिन्न क्षेत्रों के लिए श्रम प्रदान करता है।
    • जनसंख्या नियंत्रण पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से श्रम शक्ति में कमी आने से दीर्घकालिक आर्थिक विकास की संभावना कम हो सकती है।
    • उदाहरण: कृषि जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
  • वृद्ध होती जनसंख्या और जनसांख्यिकीय बदलाव: जनसंख्या में तेजी से कमी से वृद्ध होती जनसंख्या हो सकती है, यह एक ऐसा रुझान है जिसने जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना किया है।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन: कुछ लोग तर्क देते हैं कि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं, विशेष रूप से बच्चे पैदा करने और व्यक्तिगत प्रजनन विकल्प बनाने के अधिकार का।
  • लैंगिक असंतुलन: जनसंख्या नियंत्रण नीतियों के कारण पुरुष बच्चों को प्राथमिकता मिलने के कारण लैंगिक असंतुलन हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कन्या भ्रूण हत्या और लिंग-चयनात्मक गर्भपात हो सकता है, जिससे सामाजिक लैंगिक असमानता और भी बढ़ सकती है।
    • उदाहरण: चीन की ‘एक बच्चे की नीति’ के कारण लैंगिक असंतुलन की समस्या उत्पन्न हुई है।

  • आर्थिक स्थिरता: तेजी से बढ़ती जनसंख्या आर्थिक विकास को पीछे छोड़ सकती है, जिससे गरीबी कम करने और जीवन स्तर में सुधार लाने के प्रयासों में बाधा आ सकती है।
  • स्वास्थ्य सुधार: जनसंख्या स्थिरीकरण सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार से जुड़ा हुआ है।
    • इससे स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी तथा स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे के लिए अधिक संसाधन आवंटित करने की क्षमता प्राप्त होती है।
  • शिक्षा और रोजगार: युवा आबादी शुरू में जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान कर सकती है, लेकिन अगर रोजगार सृजन एवं शिक्षा प्रणाली गति बनाए रखने में विफल रहती है, तो इससे बेरोजगारी एवं कौशल बेमेल हो सकते हैं।
    • जनसंख्या वृद्धि को स्थिर करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि संसाधनों का निवेश शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार सृजन में प्रभावी ढंग से किया जाए।
  • पर्यावरण संरक्षण: छोटी, अधिक प्रबंधनीय आबादी के साथ, सतत् विकास प्रथाओं का अधिक प्रभावी कार्यान्वयन हो सकता है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम हो सकता है।

भारत में जनसंख्या स्थिरीकरण में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका

  • जागरूकता अभियान: NGO समुदायों को परिवार नियोजन, प्रजनन स्वास्थ्य और छोटे परिवारों के लाभों के बारे में शिक्षित करते हैं।
    • उदाहरण: परिवार सेवा संस्था (Parivar Seva Sanstha) एक गैर-सरकारी संगठन है, जो प्रजनन स्वास्थ्य क्लीनिक और जागरूकता अभियान चलाता है तथा महिलाओं को परिवार नियोजन विकल्पों के बारे में सशक्त बनाता है।
  • स्वास्थ्य सेवाएँ: अल्पसुविधा प्राप्त क्षेत्रों में किफायती और सुलभ गर्भनिरोधक और मातृ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना।
    • उदाहरण: ‘पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ (PFI)
  • सामुदायिक लामबंदी: जननी (Janani) भारत में परिवार नियोजन और सुरक्षित गर्भपात के सबसे बड़े गैर-सरकारी प्रदाताओं में से एक है।
    • इसका उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से गर्भनिरोध के उपयोग को बढ़ाना तथा अनियोजित गर्भधारण को कम करना है।

  • महिला सशक्तीकरण: जनसंख्या नियंत्रण पहल अक्सर महिलाओं के स्वास्थ्य, सशक्तीकरण और शिक्षा तक पहुँच में सुधार से निकटता से जुड़ी होती हैं।
  • शासन: एक स्थिर जनसंख्या अधिक प्रभावी शासन और नीति कार्यान्वयन की ओर ले जा सकती है।
    • अधिक जनसंख्या सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव डाल सकती है, कानून और व्यवस्था बनाए रखने तथा पर्याप्त आवास, परिवहन एवं रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है।

भारत में जनसंख्या स्थिरीकरण की चुनौतियाँ

  • सांस्कृतिक प्रतिरोध: बेटे को प्राथमिकता देना और बड़े परिवार के आदर्शों सहित सांस्कृतिक मानदंड, छोटे परिवार को प्राथमिकता देने में बाधा डालते हैं।
    • उदाहरण: आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 भारतीय समाज में बेटे की चाहत की ओर इशारा करता है। यह वह परिघटना है, जिसमें माता-पिता तब तक बच्चे पैदा करते रहते हैं, जब तक कि उनकी मनचाही संख्या में बेटे पैदा नहीं हो जाते।
  • परिवार नियोजन तक सीमित पहुँच: अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचा, जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक परिवार नियोजन तक पहुँच को सीमित करते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • उदाहरण: आधुनिक गर्भनिरोधक का कम उपयोग।
  • लैंगिक असमानता: महिलाओं के पास अक्सर प्रजनन विकल्पों पर सीमित नियंत्रण होता है, जो परिवार के आकार के निर्णयों को प्रभावित करता है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में केवल 10% महिलाएँ स्वतंत्र रूप से अपने स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने में सक्षम हैं।
  • आर्थिक बाधाएँ: परिवार नियोजन और स्वास्थ्य सेवा पहलों को लागू करने के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है।

चीन की ‘वन-चाइल्ड’ नीति: एक चेतावनी वाला दृष्टिकोण

  • नीति का उद्देश्य: जनसंख्या वृद्धि को रोकने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1979 में शुरू की गई।
  • अल्पकालिक सफलता: जन्म दर कम हुई और जनसंख्या वृद्धि में उल्लेखनीय कमी आई।
  • अनपेक्षित परिणाम
    • विषम लैंगिक अनुपात: लड़कों को प्राथमिकता देने से लैंगिक असंतुलन उत्पन्न हुआ।
    • वृद्ध जनसंख्या: बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और उन्हें सहारा देने वाले युवा लोगों की संख्या कम हो गई।
    • श्रमबल में कमी: कामकाजी आयु वर्ग की आबादी में कमी से आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रही है।
  • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: जबरन नसबंदी, गर्भपात और गैर-अनुपालन के लिए भारी जुर्माने ने व्यापक पीड़ा उत्पन्न की है।
  • जनसंख्या नीतियों के लिए सबक: स्थायी जनसंख्या नियंत्रण के लिए स्वैच्छिक, संतुलित और मानवाधिकार-केंद्रित दृष्टिकोणों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया।

  • स्थिरीकरण के मुद्दे: दक्षिणी राज्य, जिन्होंने जनसंख्या स्थिरीकरण हासिल कर लिया है, अब इस मुद्दे का सामना कर रहे हैं कि बुजुर्ग आबादी कामकाजी आयु वर्ग की आबादी से अधिक है।
    • उदाहरण: केरल ने परिवार नियोजन कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिसके कारण इसकी प्रजनन दर में गिरावट आई है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य उच्च प्रजनन दर से जूझ रहे हैं।
  • युवा जनसांख्यिकी: भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रजनन आयु वर्ग में है, जिससे तत्काल स्थिरीकरण के प्रयास अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं।

भारत में जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए उठाए गए कदम

  • राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम: देश में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उद्देश्य से लक्ष्य मुक्त दृष्टिकोण के माध्यम से लाभार्थियों को स्वैच्छिक और सूचित विकल्प प्रदान करता है।
    • उदाहरण: मिशन परिवार विकास को 3 से अधिक TFR वाले सात उच्च फोकस वाले राज्यों अर्थात् उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम में गर्भनिरोधक तथा परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिए शुरू किया गया है।
    • आशा द्वारा लाभार्थियों के घर-घर गर्भनिरोधकों की होम डिलीवरी की योजना।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन: भारत सरकार वर्ष 2005 से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को लागू कर रही है, जो NPP-2000 में परिकल्पित जनसंख्या स्थिरीकरण की नीतिगत रूपरेखा के अनुरूप है, जिससे परिवार नियोजन की अपूर्ण आवश्यकता को पूरा करने के लिए एक मजबूत सेवा वितरण तंत्र बनाने में मदद मिलती है।
  • प्रेरणा रणनीति (Prerna Strategy): जनसंख्या स्थिरता कोष (JSK) ने लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने और पहले बच्चे में देरी तथा दूसरे बच्चे में अंतराल रखने में मदद के लिए यह रणनीति शुरू की है और इस रणनीति को अपनाने वाले दंपत्ति को उचित पुरस्कार दिया जाता है।
  • संतुष्टि रणनीति (Santushti Strategy): इस रणनीति के तहत, जनसंख्या स्थिरता कोष, सार्वजनिक निजी भागीदारी मोड में नसबंदी ऑपरेशन करने के लिए निजी क्षेत्र के स्त्री रोग विशेषज्ञों और पुरुष नसबंदी सर्जनों को आमंत्रित करता है।
  • राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (National Family Planning Indemnity Scheme- NFPIS): जिसके तहत नसबंदी ऑपरेशन के बाद मृत्यु, जटिलता और विफलता की स्थिति में ग्राहकों को मुआवजा दिया जाता है।

आगे की राह

  • महिला सशक्तीकरण और शिक्षा को बढ़ावा देना: प्रजनन दर को कम करने में महिलाओं की शिक्षा और सशक्तीकरण महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के प्रभावी कार्यान्वयन से महिलाओं को अपने स्वयं के विकल्प, विशेष रूप से प्रजनन विकल्प चुनने में सशक्त बनाने में मदद मिल सकती है।
  • स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे में सुधार: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता, प्रभावी जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana- PMJAY) का उपयोग सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए किया जा सकता है।
  • अभियानों के माध्यम से जागरूकता: छोटे परिवारों के लाभों को उजागर करने के लिए अभियान तैयार किए जाने चाहिए, जैसे कि बेहतर आर्थिक स्थिति, बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा और स्वस्थ जीवन स्तर।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम ने गर्भनिरोधक विधियों और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जनसंचार माध्यमों का उपयोग किया है।
  • परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करना: कर लाभ, सामाजिक कल्याण योजनाओं में प्राथमिकता या नकद पुरस्कार जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से लोगों को छोटे परिवार के मानदंडों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना प्रभावी हो सकता है।
  • भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाना: भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए अपने युवाओं को कौशल प्रदान करने में निवेश करना चाहिए।
    • श्रम की कमी से जूझ रहे देशों को कुशल श्रमिक प्रदान करके, भारत अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकता है।

निष्कर्ष 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-V के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) में 2.0 की गिरावट आई है, जो जनसंख्या वृद्धि में कमी आने की संभावना को दर्शाता है। हालाँकि, हमारी जनसंख्या नीति को शून्य जनसंख्या वृद्धि के बड़े परिणामों को ध्यान में रखना चाहिए।

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