भारत सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर ‘श्री विजयपुरम्’ रखने का निर्णय लिया है।
पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम् करने के कारण
औपनिवेशिक विरासत: पोर्ट ब्लेयर का नाम ब्रिटिश नौसेना अधिकारी आर्चीबाल्ड ब्लेयर (Archibald Blair) के नाम पर रखा गया था, जो इसके औपनिवेशिक अतीत को दर्शाता है। इसका नाम बदलना ‘राष्ट्र के औपनिवेशिक फुटप्रिंट से मुक्त करने’ के एक बड़े प्रयास का हिस्सा है।
विजय का प्रतीक: नया नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की विजय का प्रतीक है। यह नाम स्वतंत्रता संग्राम में अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की भूमिका के सम्मान में रखा गया है।
यह वह स्थान है, जहाँ कई स्वतंत्रता सेनानियों को कुख्यात सेलुलर जेल में कैद करके रखा गया था, जिसे काला पानी के नाम से भी जाना जाता है।
पोर्ट ब्लेयर का नाम कैसे पड़ा?
आर्चीबाल्ड ब्लेयर (Archibald Blair) की नियुक्ति: वर्ष 1771 में, आर्चीबाल्ड ब्लेयर, एक नौसेना सर्वेक्षक और बॉम्बे मरीन में लेफ्टिनेंट, ने भारत, ईरान और अरब में कई सर्वेक्षण मिशनों में भाग लेते हुए अपनी सेवा शुरू की।
अंडमान का पहला सर्वेक्षण: दिसंबर 1778 में, ब्लेयर ने दो जहाजों पर सवार होकर कलकत्ता से अंडमान द्वीप तक एक अभियान का नेतृत्व किया। अप्रैल 1779 तक, ब्लेयर ने द्वीप के पश्चिमी और पूर्वी तटों का सर्वेक्षण किया था और एक प्राकृतिक बंदरगाह की खोज की थी।
पोर्ट कॉर्नवालिस (Port Cornwallis) का नामकरण: प्रारंभ में, ब्लेयर ने बंदरगाह का नाम ब्रिटिश भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ कमोडोर विलियम कॉर्नवालिस के नाम पर पोर्ट कॉर्नवालिस रखा था।
पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलना: बाद में, उनके सर्वेक्षण प्रयासों के सम्मान में बंदरगाह का नाम बदलकर आर्चीबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखा गया।
ईस्ट इंडिया कंपनी का उपनिवेशीकरण: ईस्ट इंडिया कंपनी ने सामरिक कारणों से द्वीपों को ब्रिटिश उपनिवेश बनाने का फैसला किया, जिसमें मलय निवासी समुद्री डाकूओं की गतिविधियों को नियंत्रित करना और जहाज के डूब जाने पर नाविकों को शरण प्रदान करना शामिल था।
यह द्वीप एक दंडात्मक उपनिवेश भी बन गया, जहाँ दोषियों को बिना वेतन के मजदूरी करने के लिए भेजा जाता था।
वर्ष 1857 के बाद पुनर्वास: वर्ष1857 के विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने पोर्ट ब्लेयर को एक दंडात्मक उपनिवेश के रूप में पुनर्निर्मित किया तथा कई कैदियों को आजीवन कारावास की सजा दी।
कुख्यात सेलुलर जेल (काला पानी) का निर्माण वर्ष 1906 में किया गया था, जिसमें वीर सावरकर सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया था।
पोर्ट ब्लेयर और शाही चोल वंश के बीच ऐतिहासिक संबंध
चोल नौसेना की रणनीति
सामरिक नौसैनिक अड्डा: अंडमान द्वीपसमूह का उपयोग राजेंद्र चोल प्रथम द्वारा 11वीं शताब्दी में अपने विस्तारवादी अभियानों के दौरान सामरिक नौसैनिक अड्डे के रूप में किया गया था।
श्रीविजय आक्रमण के लिए नौसैनिक अड्डा: अभिलेखों के अनुसार, इन द्वीपों ने चोलों को श्रीविजय साम्राज्य (वर्तमान इंडोनेशिया) पर सफल आक्रमण करने के लिए एक आधार प्रदान किया था।
श्रीविजय पर चोल आक्रमण
दक्षिण-पूर्व एशिया में नौसैनिक प्रभुत्व: शक्तिशाली बौद्ध समुद्री साम्राज्य श्रीविजय पर हमला भारतीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसने चोलों के नौसैनिक प्रभुत्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में विस्तार को चिह्नित किया।
श्रीविजय से संबंध
सांस्कृतिक प्रभाव: इस आक्रमण से पहले, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संबंध काफी हद तक शांतिपूर्ण थे, जो सदियों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान से आकार लेते थे। चोल आक्रमण ने सैन्य हस्तक्षेप की ओर एक बदलाव को चिह्नित किया।
अंडमान का सामरिक महत्त्व: चोलों ने अंडमान द्वीपसमूह को ‘मा-नक्कावरम भूमि’ (Ma-Nakkavaram land) कहा था और ये द्वीप समुद्री मार्गों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण थे, जो व्यापार और सैन्य अभियानों के लिए आवश्यक थे।
निकोबार द्वीपसमूह और चोल नामकरण: ‘निकोबार’ नाम संभवतः चोल पदनाम ‘मा-नक्कावरम’ से विकसित हुआ है, जो इन द्वीपों और चोल नौसैना के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंध पर जोर देता है।
Latest Comments