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वर्ष 2030 तक बर्फ मुक्त आर्कटिक की संभावना

Lokesh Pal March 07, 2024 05:13 113 0

संदर्भ 

हाल ही मेंनेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट(Nature Reviews Earth & Environment) जर्नल में प्रकाशित पेपर के अनुसार, आर्कटिक सभी उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत वर्ष 2030 तक पहली बार बर्फ रहित की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • आवृत्ति में भिन्नता: जिस आवृत्ति पर बर्फ रहित स्थिति जनित होती है, वह भविष्य में वार्मिंग के स्तर के आधार पर भिन्न हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए, यदि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ने पर ‘बर्फ-मुक्त स्थितियाँ’ उत्पन्न होती हैं तो कई दशकों तक उनके पुनः उत्पन्न होने की संभावना नहीं होती है।
  • रेजिलियंट आर्कटिक (Resilient Arctic): इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आर्कटिक अत्यंत रेजिलियंट’ (Resilient) है एवं यदि वातावरण ठंडा हो जाए तो यह सामान्य स्थिति में लौट सकता है।
  • अनुमान: अनुमानों से पता चलता है कि वर्ष 2050 तक वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड के निष्कर्षण से तापमान कम होने पर आर्कटिक की बर्फ-मुक्त स्थितियों का सामना करने की संभावना में गिरावट आएगी।
  • बर्फ के आवरण में गिरावट: आर्कटिक समुद्री बर्फ के आवरण में, जिसमें समुद्री बर्फ का क्षेत्र, विस्तार एवं मोटाई शामिल है, में वर्ष 1978 में उपग्रह अवलोकन की शुरुआत के बाद से गिरावट आई है।
    • कारण: तेजी से आर्कटिक समुद्री बर्फ आवरण में गिरावट बढ़ते कार्बन उत्सर्जन एवं ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी है।

आर्कटिक में बर्फ पिघलने की तेज दर के कारण

  • अल्बिडो फीडबैक लूप (Albedo Feedback Loop): जब वैश्विक बर्फ की मात्रा कम हो जाती है, तो पृथ्वी की परावर्तनशीलता बढ़ जाती है, जिससे सौर विकिरण के अवशोषित होने की दर बढ़ जाती है तथा सतह गर्म हो जाती है।
  • अदीप्त समुद्र की सतह (Darker Ocean Surface): चूँकि अपरावर्तित बर्फ, आर्कटिक की परावर्तित बर्फ का स्थान ले लेती है, इसलिए आने वाली सौर ऊर्जा कम परावर्तित होती है, जिससे ऊष्मा एवं बर्फ की हानि बढ़ जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन: पवन, समुद्री धाराओं और चरम ‘हीटवेव’ से बर्फ में विखंडन शुरू हो जाता है, जिससे पिघलने की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है।
  • वामावर्त परिसंचरण (Counter-Clockwise Circulation): साइबेरिया में प्रवेश करने वाले चक्रवात वामावर्त दिशा में पवनें प्रवाहित करते हैं, जिससे ये पवनें हिम अपरदन में सहायक हो जाती हैं और बर्फ की मोटाई का ह्रास होने लगता है। यह चक्रवाती पैटर्न ग्रीनलैंड के पूर्व में फार्म स्ट्रेट (Farm Strait) में बर्फ की मात्रा को कम कर देता है।

फार्म स्ट्रेट (Farm Strait)

  • फार्म स्ट्रेट,  ग्रीनलैंड और स्वालबार्ड (Svalbard) के बीच स्थित एक मार्ग है, जो लगभग 77°N और 81°N अक्षांशों के बीच स्थित है और प्रधान मध्याह्न रेखा पर केंद्रित है।
  • ग्रीनलैंड और नॉर्वेजियन सागर, फार्म स्ट्रेट के दक्षिण में अवस्थित है, जबकि आर्कटिक महासागर का नानसेन बेसिन (Nansen Basin) उत्तर में अवस्थित है।

आर्कटिक समुद्री बर्फ का महत्त्व 

  • पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन को बनाए रखना: यह ध्रुवीय क्षेत्रों को ठंडा रखने एवं पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • वायु को ठंडा रखना: ऊपरी ठंडी वायु एवं नीचे अपेक्षाकृत गर्म जल के बीच अवरोध बनकर वायु को ठंडा रखती है।
  • जैव विविधता का संरक्षण: समुद्री बर्फ की संरचना में परिवर्तन जैव विविधता को प्रभावित कर सकता है एवं ध्रुवीय भालू तथा वालरस (Walruses) जैसे स्तनधारियों के आवास को प्रभावित कर सकता है।
  • देशज आबादी की संस्कृति एवं परंपरा: यूपिक (Yupik), इनुपियाट (Inupiat) एवं इनुइट (Inuit) जैसी देशज आबादी की शिकार आधारित पारंपरिक निर्वाह जीवन शैली को प्रभावित करती है।

आर्कटिक बर्फ पिघलने के संभावित प्रभाव

  • तटीय कटाव: आर्कटिक महासागर के ऊपर बर्फ, समुद्री लहरों के प्रभाव को निष्क्रिय कर देती है, जिससे तटीय अपरदन सीमित हो जाता है।
    • जैसे-जैसे समुद्री बर्फ निकटवर्ती भू-भाग से दूर खिसकती जाती है, गर्मियों के अंत एवं शरद ऋतु में आने वाले तूफानों को ध्यान में रखते हुए शक्तिशाली समुद्री लहरें उत्पन्न होती हैंजो तट से टकराती हैं।
  • समुद्र के जलस्तर में वृद्धि: समुद्री बर्फ के पिघलने से उत्पन्न समुद्री तरंगों की क्रिया में वृद्धि से बर्फ की परतें विखंडित हो सकती हैं, जिससे हिमनदों के विघटन की संभावना बढ़ जाती है।
    • जिन ग्लेशियरों में बर्फ का अग्रभाग नष्ट हो गया है, उनका बहाव तेजी से होता है और क्योंकि इस प्रक्रिया के कारण समुद्र में नई बर्फ पहुँचने लगती है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ जाता है, जिससे संभावित रूप से तटीय बाढ़ आ सकती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग: समुद्री बर्फ के नष्ट होने से पर्माफ्रॉस्ट का पिघलने की दर बढ़ जाती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड तथा मेथेन (जो और भी अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है) का उत्सर्जन होता है। समुद्री बर्फ के हटने से समुद्र के जल का अधिक महत्त्वपूर्ण तरीके से उद्भव होता है, जो परावर्तित समुद्री बर्फ की तुलना में अधिक सौर विकिरण को अवशोषित करता है, जिससेग्लोबल वार्मिंगप्रभाव बना रहता है।

आर्कटिक महासागर:

  • स्थान: आर्कटिक महासागर पृथ्वी का सर्वाधिक उत्तरी जल भंडार एवं दुनिया का सबसे छोटा महासागर है।
  • सीमावर्ती देश: इसकी सीमा ग्रीनलैंड, कनाडा, नॉर्वे, अलास्का एवं रूस से लगती है तथा वर्ष के अधिकांश समय यह लगभग पूरी तरह से बर्फ से ढका रहता है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: यह चुक्ची (Chukchi), पूर्वी साइबेरियन (East Siberian), लापतेव (Laptev), कारा (Kara), बैरेंट्स (Barents), व्हाइट (White), ग्रीनलैंड (Greenland) एवं ब्यूफोर्ट (Beaufort) जैसे सीमांत समुद्रों से घिरा हुआ है।

पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) के बारे में 

  • पर्माफ्रॉस्ट पृथ्वी की सतह पर या उसके नीचे स्थायी रूप से जमी हुई परत है। यह 2 वर्षों से अधिक अवधि से शून्य डिग्री सेल्सियस (32°F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में मौजूद है।
    • इस मृदा में पत्तियाँ, टूटे हुए वृक्ष आदि क्षय रहित अवस्था में विद्यमान रहते हैं। इस कारण इस मृदा में जैविक कार्बन की समृद्धता पाई जाती है।
    • जब मृदा जमी हुई होती है तो कार्बनिक प्रक्रिया काफी हद तक निष्क्रिय अवस्था में होती है, लेकिन जब पर्माफ्रॉस्ट के तापमान में वृद्धि होती है तो सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों के कारण कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में तेजी आने लगती है। फलस्वरूप वातावरण में कार्बन की सांद्रता बढ़ने लगती है।

  • ऐसा ध्रुवीय क्षेत्रों, अलास्का, कनाडा और साइबेरिया जैसे उच्च अक्षांशीय अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में होता है, जहाँ ऊष्मा पूर्णतया मृदा की सतह को तप्त नहीं कर पाती है।

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