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प्रतुश रेडियो टेलीस्कोप

Lokesh Pal April 05, 2024 06:09 192 0

संदर्भ 

खगोलविदों ने चंद्रमा की सतह और उसकी कक्षा में उच्च-आवर्द्धक क्षमता वाले दूरबीन लगाने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें भारत का प्रतुश रेडियो टेलीस्कोप भी शामिल है।

संबंधित तथ्य 

  • उद्देश्य: ब्रह्मांड की उत्पत्ति और आयनीकरण युग का अध्ययन करना तथा किसी भी तारे के प्रकाश के प्रभाव से मुक्त स्थान से संकेतों का पता लगाना।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति और पुनर्आयनीकरण का युग

  • ब्रह्मांड की उत्पत्ति: यह ब्रह्मांड विज्ञान की एक अवधि है, जब विकिरण के स्रोत (जैसे तारे और आकाशगंगाएँ) की उत्पत्ति पहली बार हुई थी।
  • पुनर्आयनीकरण का युग: इस युग में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के दौरान उत्पन्न विकिरण ने अधिकांश हाइड्रोजन परमाणुओं को पुनः आयनित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन का निर्माण हुआ है।
    • ब्रह्मांड में आयनीकरण की पहली घटना: बिग बैंग के बाद प्रारंभिक ब्रह्मांड में पदार्थ जैसे प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन, हीलियम नाभिक और कुछ अन्य तत्त्व घटक कणों के रूप में मौजूद थे।
    • ब्रह्मांड अपने धीमे विस्तार के साथ ठंडा होता गया। इन कणों ने मिलकर हाइड्रोजन और हीलियम का निर्माण किया तथा आयनित ब्रह्मांड लगभग पूरी तरह से स्थिर हो गया।
  • अंधकार युग की शुरुआत: ब्रह्मांड में प्रारंभिक आयनीकरण के बाद की अवधि को अंधकार युग कहा जाता है, जिसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति के दौरान उत्सर्जित प्रकाश के अलावा विकिरण का कोई स्रोत उपलब्ध नहीं था,  जिसे कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (Cosmic Microwave Background- CMB) कहा जाता है।
    • CMB को माइक्रोवेव आवृत्तियों पर देखा जाता है तथा यह ब्रह्मांड में उत्सर्जित सबसे प्राचीन प्रकाश है, जिसे रेडियो दूरबीनों द्वारा कैद किया जा सकता है।
  • EoR का अध्ययन: EoR को समझने के लिए हाइड्रोजन गैस के विकिरण का उपयोग किया जाता है। उदासीन हाइड्रोजन परमाणु प्राकृतिक रूप से 21 सेमी लंबी. तरंगदैर्ध्य का उत्सर्जन करता है।

चंद्रमा आधारित दूरबीनों पर दबाव 

  • पृथ्वी आधारित दूरबीनों की सीमाएँ: पृथ्वी आधारित दूरबीनों के लिए वायुमंडलीय कारक एक बाधा के रूप में कार्य करता है। ऑप्टिकल दूरबीनों को ग्रह के वायुमंडल की परतों के माध्यम से देखना पड़ता है परिणामस्वरूप ऑप्टिकल उपकरणों के लिए प्रदूषित आकाश के माध्यम से देखना कठिन हो जाता है।
    • विद्युतचुंबकीय हस्तक्षेप (Electromagnetic Interference): रेडियो टेलीस्कोप (सबसे कम तरंगदैर्ध्य) को पृथ्वी पर स्थापित रेडियो तरंग से जुड़ना पड़ता है जिसका उपयोग रडार प्रणाली, विमान और उपग्रहों से संचार माध्यमों के लिए किया जाता है, जो विद्युत चुंबकीय ध्वनि प्रदूषण (Electromagnetic Hiss) को बढ़ाता है। 
    • पृथ्वी का आयनमंडल अंतरिक्ष के बाहर से आने वाली रेडियो तरंगों को भी बाधित करता है।
    • पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले दूरबीन: ये बाहरी अंतरिक्ष से संकेतों के साथ-साथ ग्रह से रेडियो प्रदूषण (Radio Noise) को भी प्राप्त कर सकते हैं।
  • अवलोकन के लिए चंद्रमा की सतह का लाभ
    • रेडियो की बाधाओं से मुक्त स्थान: चंद्रमा की सतह से निरंतर दो सप्ताह तक चलने वाली चंद्ररात्रि के दौरान संपूर्ण अंतरिक्ष का स्पष्ट अवलोकन किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, चंद्रमा की सतह ऑप्टिकल दूरबीनों को खगोलीय परीक्षणों के लिए निर्वात की स्थिति प्रदान करता है।
    • पृथ्वी आधारित रेडियो तरंग के हस्तक्षेप से मुक्ति: चंद्रमा के सुदूर हिस्से पर रेडियो दूरबीनों को स्थापित किया जाएगा, जो पृथ्वी की रेडियो प्रसारण बाधाओं और सूर्य से आने वाले आवेशित प्लाज्मा से अप्रभावित रहता है।

प्रतुश (PRATUSH) अर्थात ‘हाइड्रोजन के उपयोग से ब्रह्मांड के पुन:आयनीकरण की जाँच’ 

  • परिचय: यह चंद्रमा की कक्षा में भविष्य में स्थापित किया जाने वाला रेडियोमीटर है।
  • निर्माण: इसका निर्माण बेंगलूरु में स्थित रमन शोध संस्थान (Raman Research Institute- RRI) द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सक्रिय सहयोग से किया गया है।
  • पेलोड (Payload): PRATUSH के पेलोड के रूप में विस्तृत तरंग वाला स्वतंत्र एंटीना (Wideband Frequency-independent Antenna), सेल्फ-कैलिब्रेटिंग एनालॉग रिसीवर (Self-calibrating Analog Receiver) और एक डिजिटल कोरिलेटर (Digital Correlator) शामिल है।
  • अवस्थिति: शुरुआत में इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाएगा तथा कुछ सुधारों के बाद इसे इसरो द्वारा चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
  • उद्देश्य: ब्रह्मांड की उत्पत्ति किन परिस्थितियों में हुई, पहली बार हमारे ब्रह्मांड में तारों का निर्माण कब और कैसे हुआ, तारों की भौतिक प्रकृति कैसी थी, ब्रह्मांड की उत्पत्ति के दौरान प्रकाश की पहली किरण और उसके रंगों आदि रहस्यों को जानना।

चंद्रमा की सतह से  ब्रह्मांड की उत्पत्ति का अध्ययन करने हेतु आगामी मिशन

  • लूनर सरफेस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सपेरिमेंट (LuSEE Night): यह नासा और बर्कले प्रयोगशाला की संयुक्त परियोजना है, जिसकी शरुआत दिसंबर 2025 में की जाएगी।
    • इसे चंद्रमा के सुदूर भाग पर मध्य में स्थापित किया जाएगा। यह स्थान पृथ्वी से आने वाली रेडियो तरंगों से अप्रभावित रहेगा, इसलिए इस स्थान का चयन किया गया है।
    •   यह दृश्यमान और पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य की उपस्थिति में तारों और सक्रिय आकाशगंगाओं के केंद्रों पर चुंबकीय गतिविधियों का अध्ययन करेगा।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA)
    • ESA का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपने चंद्र लैंडर ‘अर्गोनॉट (Argonaut)’ के माध्यम से चंद्रमा की सुदूर सतह पर एक रेडियो दूरबीन भेजना है।
    • अन्य यूरोपीय परियोजनाओं में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित क्रेटर के अंदर स्थायी रूप से एक इन्फ्रारेड टेलीस्कोप की स्थापना करना शामिल है।
  • चीन: वर्ष 2026 में चंद्रमा की परिक्रमा करने वाला रेडियो टेलीस्कोप भेजने की योजना में है।

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