100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

राष्ट्रपति की ‘दया’ शक्ति

Lokesh Pal June 15, 2024 02:55 288 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने वर्ष 2000 के लाल किले पर आतंकवादी हमले के लिए मृत्यु की सजा पाए पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद आरिफ की दया याचिका खारिज कर दी है, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी।

संबंधित तथ्य

  • 27 मई, 2024 को राष्ट्रपति का फैसला तब आया जब मोहम्मद आरिफ अक्टूबर 2005 के ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपनी अपील में दिल्ली उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय से राहत पाने में विफल रहा।

दया याचिका के बारे में

  • दया याचिका: दया याचिका मृत्यु या कारावास की सजा पाए व्यक्ति द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल से क्षमादान की माँग करने वाला एक औपचारिक अनुरोध है।
  • वैश्विक प्रथा: दया याचिका की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा एवं भारत सहित कई देशों में प्रचलित है।
  • दया याचिका के लिए आधार: दया या क्षमादान कोई अधिकार नहीं है, जिसका कैदी दावा कर सकता है। यह कैदी के स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्थिति एवं उनके परिवार के लिए एकमात्र अर्जित किए जाने वाले के रूप में उनकी भूमिका जैसे विचारों के आधार पर दिया जाता है।

संवैधानिक प्रावधान

  • प्रावधान: भारत में, न्यायालय द्वारा सजा पाए दोषी के लिए राष्ट्रपति के पास दया याचिका अंतिम संवैधानिक उपाय है। 
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत, एक दोषी भारत के राष्ट्रपति के पास दया याचिका प्रस्तुत कर सकता है। 
    • इसी प्रकार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत, क्षमादान देने की शक्ति राज्यों के राज्यपालों को प्रदान की गई है।
  • अनुच्छेद-72: ऐसे मामलों में जहाँ सजा या दंडादेश कोर्ट मार्शल द्वारा दिया जाता है, राष्ट्रपति के पास किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति को क्षमा, विलंब, राहत या दंड में छूट देने या उसकी सजा को निलंबित, माफ या कम करने की शक्ति है।
    • संघ की कार्यपालिका शक्ति के अधीन विषयों से संबंधित कानूनों के विरुद्ध अपराधों के लिए, ऐसे मामलों में जहाँ सजा मृत्युदंड है।
  • अनुच्छेद-161: किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य की कार्यपालिकीय शक्ति के अधीन विषयों से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति की सजा को क्षमा, विलंब, राहत या छूट देने या निलंबित करने, माफ करने या लघुकरण करने की शक्ति है।
  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय: वर्ष 2021 में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि किसी राज्य का राज्यपाल मृत्युदंड की सजा पाए कैदियों सहित अन्य कैदियों को, उनकी जेल की सजा के न्यूनतम 14 वर्ष पूरे होने से पहले भी क्षमा कर सकता है।

दया याचिका की प्रक्रिया

  • पात्रता एवं समय: पुलिस अधीक्षक द्वारा अधिसूचना के अनुसार, मृत्युदंड का सामना कर रहा कोई भी अपराधी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसकी अपील खारिज किए जाने के सात दिनों के भीतर दया याचिका दायर कर सकता है।
  • याचिका दायर करना: दोषी या उनके रिश्तेदार राष्ट्रपति या राज्यपाल को एक लिखित याचिका प्रस्तुत करते हैं, जिसमें एकमात्र कमाने वाले, शारीरिक/मानसिक स्वास्थ्य, कानून की कथित कठोरता या न्यायिक त्रुटियों जैसे आधारों का हवाला दिया जाता है।
  • समीक्षा प्रक्रिया: याचिका को संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श सहित मूल्यांकन एवं सिफारिशों के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर: केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिशों और मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर राष्ट्रपति बिना किसी निर्दिष्ट समय सीमा के दया याचिका को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।
  • राज्यपाल का अधिकार: यद्यपि राज्यपाल मृत्युदंड को माफ नहीं कर सकते, लेकिन वे राज्य के कानूनों के विरुद्ध अपराधों के लिए अपने राज्य की कार्यकारी शक्तियों के अंतर्गत सजा को कम कर सकते हैं, माफ कर सकते हैं या स्थगित कर सकते हैं।

दया याचिकाओं पर न्यायिक हस्तक्षेप

  • रंगा बिल्ला मामला (Ranga Billa Case): रंगा बिल्ला मामले में, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि दया याचिका को मंजूर या खारिज करना पूरी तरह से विवेकाधीन है तथा इन निर्णयों के लिए कारण बताना अनिवार्य नहीं है।
  • केहर सिंह बनाम भारत संघ: केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989) मामले के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति की क्षमा एक अनुग्रहपूर्ण कार्य है, न कि कोई अधिकार जिसका दावा किया जा सके। इस शक्ति का प्रयोग पूरी तरह से प्रशासनिक है और न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है।
  • धनंजय चटर्जी (उर्फ धाना) बनाम पश्चिम बंगाल राज्य: धनंजय चटर्जी (उर्फ धाना) बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1994) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद-72 और 161 के तहत क्षमादान की शक्तियों का प्रयोग केवल क्रमशः केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जा सकता है, न कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा स्वायत्त रूप से।
  • मो. अफजल गुरु बनाम दिल्ली राज्य (2014) मामला: अफजल गुरु बनाम दिल्ली राज्य (2014) मामले में, न्यायालय ने दया याचिका की अस्वीकृति और मृत्युदंड के निष्पादन के बीच न्यूनतम 14 दिन का अंतराल अनिवार्य कर दिया, जिससे कानूनी सहायता के लिए पर्याप्त समय सुनिश्चित हो सके।
  • मारू राम बनाम भारत संघ (1981): मारू राम बनाम भारत संघ (1981) में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत क्षमादान देने की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर किया जाना चाहिए।
  • ईपुरु सुधाकर एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (2006): ईपुरु सुधाकर एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (2006), सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद-72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियाँ न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।
    • न्यायालय ने विशिष्ट आधारों की पहचान की, जिसके तहत याचिकाकर्ता न्यायिक समीक्षा की माँग कर सकता है:
      • बिना उचित सोच-विचार के आदेश पारित कर दिए गए।
      • बुरे विश्वास (दुर्भावना) से पारित आदेश।
      • आदेश पूरी तरह से अप्रासंगिक विचारों पर आधारित हैं।
      • मनमानी को प्रदर्शित करने वाले आदेश।
  • प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देश: प्रक्रियात्मक स्तर पर, उच्चतम न्यायालय ने माना है कि राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह के आधार पर किया जाना चाहिए तथा इसे कई आधारों पर चुनौती दी जा सकती है।
    • इसमें यह भी शामिल है कि प्रासंगिक तथ्यों पर विचार नहीं किया गया, राजनीतिक विचारों के आधार पर शक्ति का प्रयोग किया गया या बौद्धिक विश्लेषण का कोई प्रयोग नहीं किया गया। 
  • देरी के कारण सजा कम करना: उच्चतम न्यायालय ने शत्रुघ्न चौहान बनाम यूपी राज्य (2014) जैसी दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के मामलों में भी मौत की सजा को माफ कर दिया है।
    • न्यायालय ने 27 वर्ष हिरासत में (एवं  मौत की सजा पर 21 साल) बिताने के बाद एक गुरमीत सिंह की सजा भी कम कर दी। 
    • अप्रैल 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण देरी के कारण एक महिला एवं उसकी बहन की मौत की सजा को कम करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

कानूनी ढाँचा

  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC), 1860: यह मृत्युदंड संबंधी अपराधों को निर्दिष्ट करता है, जिनमें हत्या (धारा 302), राजद्रोह (धारा 121), आतंकवाद से संबंधित अपराध (धारा 121 A) एवं मौत की सजा वाले अन्य अपराध शामिल हैं।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973: यह कानून मृत्युदंड के मामलों में प्रतिवादियों के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जैसे उच्च न्यायालय द्वारा सजा की अनिवार्य पुष्टि (धारा 366) एवं अपील करने का अधिकार (धारा 374)।
  • विशेष विधान: आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम [Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act- TADA], नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेस एक्ट (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act- NDPS), तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act- POCSO) जैसे विभिन्न विशेष कानून भी विशिष्ट अपराधों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करते हैं।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.