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धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002

Lokesh Pal July 15, 2024 01:57 73 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले (Delhi excise policy Scam) में प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate- ED) द्वारा लाए गए मामले में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी। 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act– PMLA) की धारा 19 के तहत ED द्वारा गिरफ्तारी की शक्ति के उपयोग के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उठाईं और मामले को एक बड़ी पीठ को भेज दिया।

PMLA की धारा 19 क्या है?

  • PMLA की धारा 19 गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित है।
  • धारा 19(1): इसमें कहा गया है कि यदि ED निदेशक के पास “अपने पास मौजूद साक्ष्य के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है (ऐसे विश्वास का कारण लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए) कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है, तो वह ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है और जितनी जल्दी हो सके, उसे ऐसी गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित करेगा।” 

धारा 19 (1) से संबंधित चिंताएँ

  • उपरोक्त मामले में, ED ने धारा 19 में ‘विश्वास करने का कारण’ शब्दों को पुष्ट करते हुए तर्क दिया है कि निदेशक साक्ष्य को आधार नहीं बना सकते हैं, लेकिन उनके पास विश्वास करने का कारण है, जो व्यक्तिपरक है और जाँच के दौरान बदलता रहता है। 
  • PMLA बनाम साधारण कानून: PMLA साधारण आपराधिक कानून से अलग है। साधारण कानून में सीमा कम है और जमानत प्राप्त करना आसान है। 
    • CrPC की धारा 41 के तहत पुलिस किसी संज्ञेय अपराध के ‘उचित संदेह’ के आधार पर बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।  
  • PMLA के तहत जमानत के लिए शर्त: PMLA के तहत जमानत के लिए शर्त, जो सुबूत का उल्टा बोझ डालती है- जिसका अर्थ है कि अभियोजन पक्ष को अपने आरोप को साबित करने के बजाय, आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी- यह भी सामान्य आपराधिक कानून से अलग है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का रुख (Supreme Court’s Stand): PML एक्ट की धारा 19(1) के अनुसार, नामित अधिकारी को केवल साक्ष्य रखने के आधार पर नहीं, बल्कि स्वीकार्य साक्ष्य के आधार पर दोषी होने की राय बनानी चाहिए। इस राय को ऐसे साक्ष्य द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए, जो न्यायालय में वैध हो सकें, जिसमें दोष स्थापित करने के लिए स्वीकार्य साक्ष्य की आवश्यकता पर जोर दिया गया हो। 

PMLA के जमानत प्रावधान पर कानूनी स्थिति 

  • संवैधानिक चुनौती: निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ (2018) में, PMLA  अधिनियम के जमानत प्रावधान को असंवैधानिक माना गया क्योंकि यह अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन करता था। 
  • संसदीय बहाली: इसके बाद, संसद ने संशोधनों के माध्यम से जमानत प्रावधान को बहाल कर दिया गया।
  • न्यायिक मान्यता: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2022 में ऐतिहासिक विजय मदनलाल चौधरी फैसले में धारा 19 के फैसले की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो उचित था और PMLA अधिनियम के उद्देश्यों के अनुरूप था। 
    • यद्यपि इसने गिरफ्तारी की आवश्यकता और गिरफ्तारी के लिए आवश्यक साक्ष्य के मानक (आनुपातिकता पहलुओं) को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि गिरफ्तार करने की व्यापक शक्ति अपने आप में असंवैधानिक नहीं है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने जिस आधार पर कठोर जमानत प्रावधानों को बरकरार रखा, वह यह था कि सामान्य कानून की तुलना में गिरफ्तारी की शक्ति भी संकीर्ण है। 
  • विधायी विवेक: न्यायालय ने पुष्टि की कि विशिष्ट अपराधों को अनुसूची में शामिल करना विधायी नीति के दायरे में आता है।

धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के प्रावधान

  • धारा 3: यह धन शोधन के अपराध को परिभाषित करती है, जो किसी पूर्व-निर्धारित अपराध के अस्तित्व पर निर्भर है।
  • जाँच प्राधिकरण: केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) या राज्य पुलिस संबंधित अपराध की जाँच एवं अभियोजन करती है। 
  • धारा 4 PMLA के अंतर्गत अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करती है। 
  • धारा 50: यह प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों को मनी लॉण्ड्रिंग के लिए संदिग्धों को बुलाने और उनके बयान दर्ज करने के लिए सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान करती है।
  • निर्धारित दायित्व: PMLA बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यस्थों को ग्राहकों की पहचान तथा लेन-देन के रिकॉर्ड को सत्यापित करने एवं बनाए रखने का आदेश देता है। 
    • उन्हें ऐसे लेन-देन की सूचना निर्धारित प्रारूप में वित्तीय खुफिया इकाई (FIU-IND) को भी देनी होगी। 
  • धारा 45: PMLA की धारा 45 जमानत से संबंधित है। इसमें सबसे पहले कहा गया है कि कोई भी न्यायालय इस कानून के तहत अपराधों के लिए जमानत नहीं दे सकता है और फिर कुछ अपवादों का उल्लेख किया गया है। 
  • जमानत की दोहरी शर्तें: इस प्रावधान के अनुसार, सभी जमानत आवेदनों में सरकारी अभियोजक की बात सुनी जानी आवश्यक है और जब अभियोजक जमानत का विरोध करता है, तो न्यायालय को दोहरी शर्त लागू करनी होगी। 
    • ये दो शर्तें हैं: कि “यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि [आरोपी] ऐसे अपराध का दोषी नहीं है”; और यह कि “जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है”।  
  • अन्य कानूनों में भी इसी तरह के प्रावधान: गंभीर अपराधों से निपटने वाले कई अन्य कानूनों में भी इसी तरह के प्रावधान हैं, उदाहरण के लिए, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 36AC, स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 37, तथा गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 की धारा 43D(5)। 
  • न्याय निर्णयन प्राधिकरण (Adjudicating Authority): PMLA अधिनियम द्वारा प्रदत्त क्षेत्राधिकार, शक्ति और प्राधिकार के साथ एक न्याय निर्णयन प्राधिकरण की स्थापना करता है। 
  • अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal): इसके अतिरिक्त, एक अपीलीय न्यायाधिकरण की परिकल्पना की गई है, जो न्याय निर्णयन प्राधिकरण ( Adjudicating Authority) और FIU-IND के निदेशक जैसे प्राधिकारियों के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करेगा। 
  • विशेष न्यायालय:  PMLA के तहत विशेष न्यायालयों को अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत लगाए जा सकने वाले अपराधों पर एक ही मुकदमे में सुनवाई के लिए नामित किया गया है। 
  • अंतरराष्ट्रीय समझौते: PMLA केंद्र सरकार को अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने, सूचना का आदान-प्रदान करने या PMLA के तहत अपराधों से संबंधित मामलों की जाँच करने के लिए विदेशी सरकारों के साथ समझौते करने का अधिकार देता है।

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