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भारत में जेल सुधार

Lokesh Pal October 08, 2024 01:19 83 0

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य जेल नियमावली (State Prison Manuals) के कई नियमों को निरस्त कर दिया, जो औपनिवेशिक काल से चले आ रहे थे।

संबंधित तथ्य

  • एक पत्रकार द्वारा दायर याचिका में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भेदभावपूर्ण जेल नियमों की ओर इशारा किया गया था।
  • इन नियमों ने सामाजिक पदानुक्रम को मजबूत किया और हाशिये पर पड़े समूहों को लक्षित किया, विशेष रूप से उन लोगों को जिन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान ऐतिहासिक रूप से ‘आपराधिक जनजाति’ (Criminal Tribes) के रूप में दर्शाया गया था।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य जेल मैनुअल में उन नियमों के विरुद्ध फैसला सुनाया, जो जाति के आधार पर भेदभाव करते थे और कहा कि वे कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

भेदभावपूर्ण जेल नियमों को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय के कारण

  • जाति आधारित श्रम विभाजन: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मौजूदा नियमों के तहत जेलों में कार्य इस तरह से किया जाता है कि जाति आधारित श्रम विभाजन कायम रहता है और सामाजिक पदानुक्रम मजबूत होता है। उदाहरण 
    • मध्य प्रदेश जेल मैनुअल, 1987 (Madhya Pradesh Jail Manual, 1987): इस मैनुअल में विशेष रूप से अनुसूचित जाति समुदाय ‘मेहतर’ के कैदियों को शौचालय की सफाई का कार्य सौंपा गया है।
    • पश्चिम बंगाल जेल कोड नियम, 1967 (West Bengal Jail Code Rules, 1967): इस राज्य की जेलों में खाना एक जेल अधिकारी की देखरेख में ‘उपयुक्त जाति’ के रसोइयों द्वारा पकाया एवं कैदियों तक पहुँचाया जाता है।
  • रूढ़िवादिता को कायम रखना: जेल नियमावली में आदतन और गैर-आदतन अपराधियों के बीच वर्गीकरण के माध्यम से विमुक्त जनजातियों के विरुद्ध नकारात्मक रूढ़िवादिता को कायम रखा गया है।

उदाहरण: मध्य प्रदेश में, विमुक्त जनजाति के सदस्यों को राज्य सरकार के विवेक के अधीन आदतन अपराधी के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।

    • आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में, व्यक्तियों को उनकी आदतों या संगति के आधार पर, पूर्व दोषसिद्धि के बिना भी, आदतन अपराधी माना जा सकता है।
  • जेल मैनुअल नियमों में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
    • समानता का अधिकार (अनुच्छेद-14): उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जाति को वर्गीकरण का आधार तभी बनाया जाना चाहिए, जब इसका उद्देश्य जातिगत भेदभाव के पीड़ितों को लाभ पहुँचाना हो।
      • कैदियों को जाति के आधार पर अलग करने से विभाजन बढ़ता है तथा उन्हें मूल्यांकन और पुनर्वास के समान अवसरों से वंचित किया जाता है।
    • भेदभाव के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद-15): इन मैनुअल में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों के विरुद्ध भेदभाव किया गया है।
      • हाशिये पर पड़ी जातियों को सफाई का कार्य सौंपना तथा खाना पकाने का कार्य उच्च जातियों के लिए आरक्षित रखना रूढ़िवादिता को कायम रखता है, जिसके परिणामस्वरूप अप्रत्यक्ष भेदभाव होता है।
    • अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद-17): यह धारणा कि किसी व्यवसाय को ‘अपमानजनक या निम्न’ माना जाता है, जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता का एक पहलू है।
    • गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार (अनुच्छेद-21): ये भेदभावपूर्ण जेल नियम हाशिये पर पड़े कैदियों के सुधार में बाधा डालते हैं और उन्हें गरिमा से वंचित करते हैं, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
    • जबरन श्रम का निषेध (अनुच्छेद-23): हाशिये पर पड़े समुदायों के सदस्यों पर अशुद्ध या निम्न श्रेणी का माना जाने वाला श्रम या कार्य थोपना अनुच्छेद-23 के तहत ‘जबरन श्रम’ के समान है।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • प्रावधानों की असंवैधानिकता: उच्चतम न्यायालय ने सभी प्रावधानों एवं नियमों को असंवैधानिक घोषित किया, जिसमें सभी कैदियों के लिए समानता एवं सम्मान की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • संशोधन की आवश्यकता: उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को तीन महीने के भीतर अपने जेल मैनुअल को संशोधित करने का निर्देश दिया।
  • मॉडल जेल मैनुअल अपडेट: उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को मॉडल जेल मैनुअल, 2016 और ड्राफ्ट मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 में संशोधन करने का भी निर्देश दिया, ताकि उसी समय सीमा के भीतर जातिगत भेदभाव को दूर किया जा सके।
  • जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों और आगंतुकों के बोर्ड को निर्देश: उच्चतम न्यायालय ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों और मॉडल जेल मैनुअल, 2016 के तहत स्थापित आगंतुकों के बोर्ड को निरीक्षण करने और यह निर्धारित करने का निर्देश दिया कि क्या जेल प्रणालियों के भीतर जाति आधारित भेदभाव जारी है।
    • वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authorities- SLSA) को एक संयुक्त निरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे, जो इसे संकलित करके राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA) को भेजेगा। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) स्वतः संज्ञान रिट याचिका के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक संयुक्त स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगा।

भारत में जेलों से संबंधित मुद्दे

  • समान जेल प्रबंधन (Uniform Prison Management) की चुनौतियाँ: भारतीय संविधान में जेल राज्य सूची का विषय है और इसलिए, समान जेल प्रबंधन होना एक कठिन मुद्दा है।
  • लंबित मामले: वर्ष 2022 तक भारतीय न्यायालयों में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। 
  • औपनिवेशिक प्रकृति और अप्रचलित कानून, भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली ज्यादातर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान स्थापित कानूनों पर आधारित है।
    • आधुनिक संदर्भ में 19वीं सदी के इन कानूनों की प्रासंगिकता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
  • सलाखों के पीछे अमानवीय व्यवहार: कर्मचारियों द्वारा कैदियों के साथ उदासीन और अमानवीय व्यवहार के बारे में चिंताएँ व्याप्त हैं।
    • हिरासत में दुष्कर्म एवं मृत्यु के मामले मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन को उजागर करते हैं। 
    • जेल में थर्ड डिग्री टॉर्चर कई बार अनदेखा रह जाता है।
  • अत्यधिक भीड़: कई भारतीय जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ है।
    • ‘जेल की स्थिति, बुनियादी ढाँचे और सुधार, 2023’ पर स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जेलों में राष्ट्रीय औसत अध्यावास दर 130% है।
    • सबसे अधिक भीड़भाड़ दर राज्यों के जिलों की जेलों (148 प्रतिशत) में देखी गई, उसके बाद केंद्रीय जेलों (129 प्रतिशत) और उप-कारागारों (106 प्रतिशत) में देखी गई।
  • विचाराधीन कैदियों का मुद्दा: वर्ष 2020 में, देश के सभी जेल कैदियों में से लगभग 76% विचाराधीन कैदी थे।
    • हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979): न्यायालय ने उन विचाराधीन कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया, जिन्होंने अपने कथित अपराधों के लिए अधिकतम सजा से अधिक समय जेल में बिताया था।
  • अपर्याप्त कर्मचारी: भारतीय जेल में जेल कर्मचारियों और कैदियों के बीच का अनुपात लगभग 1:7 है, जबकि यू.के. में, प्रत्येक 3 कैदियों के लिए 2 जेल अधिकारी उपलब्ध हैं।
  • ट्रांसजेंडर कैदी: जेल सुधार समिति, 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का अभाव है।
    • केवल 13 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के उल्लंघन के समाधान के लिए एक ‘शिकायत अधिकारी’ नामित किया है, जैसा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 द्वारा अनिवार्य किया गया है।
  • भारतीय जेलों में वित्तपोषण की कमी: हालाँकि केंद्र सरकार वित्तीय सहायता प्रदान करती है, राज्य सरकारें अपने बजट का प्रबंधन स्वयं करती हैं।
    • वर्ष 2021-22 में, सभी जेलों के लिए कुल बजट 7,619 करोड़ रुपये था, जिसमें वास्तविक व्यय केवल 88% (6,727 करोड़ रुपये) था।

भारत में जेल सुधार से संबंधित पहल

  • आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 (Model Prisons Act, 2023): केंद्रीय गृह मंत्रालय ने औपनिवेशिक युग के कारागार अधिनियम, 1894 को प्रतिस्थापित करने के लिए ‘आदर्श कारागार अधिनियम 2023’ तैयार किया है।
    • इस नए कानून का उद्देश्य कैदियों के सुधार और पुनर्वास को प्राथमिकता देकर जेल प्रशासन में बदलाव लाना है।
  • न्याय वितरण और कानूनी सुधारों के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Justice Delivery and Legal Reforms): इसका दोहरा उद्देश्य देरी और लंबित मुकदमों को कम करके पहुँच बढ़ाना तथा संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से जवाबदेही बढ़ाना है।
  • ई-जेल परियोजना (E-Prisons Project): इसका उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन दक्षता में सुधार करना है।
  • मॉडल जेल मैनुअल 2016 (Model Prison Manual 2016): कैदियों को उपलब्ध कानूनी सेवाओं (निःशुल्क सेवाओं सहित) के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA): राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित किया गया है।
    • राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • वर्ष 2007 की जेल सुधार और सुधारात्मक प्रशासन पर राष्ट्रीय नीति (National Policy on Prison Reforms and Correctional Administration): पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (Bureau of Police Research and Development- BPR&D) द्वारा तैयार की गई।
    • इसका उद्देश्य कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करना तथा बेहतर बुनियादी ढाँचे और पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से जेल प्रबंधन में सुधार करना है।

आगे की राह

  • जेलों को केवल दंडात्मक सुविधाओं के बजाय पुनर्वास स्थानों के रूप में देखा जाना चाहिए: यह पुनर्एकीकरण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करके प्राप्त किया जा सकता है, जो कैदियों को सफल सामाजिक पुनःप्रवेश के लिए तैयार करते हैं, जिससे पुनरावृत्ति दर कम हो जाती है।
  • प्ली बार्गेनिंग (Plea Bargaining) को बढ़ावा देना: प्ली बार्गेनिंग की शुरुआत एवं प्रचार, न्यायालयों पर बोझ को कम करने और जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे से निपटने के लिए एक मूल्यवान तंत्र प्रदान कर सकता है।
  • जेल प्रबंधन को बेहतर बनाना
    • जेल कर्मचारियों को संचालन में सुधार के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना।
    • प्रभावी निगरानी और जवाबदेही प्रणाली लागू करना।
    • कैदियों के लिए बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करना, जिसमें स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुँच शामिल है।
  • महिला कैदी: गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसमें जेल के बाहर बच्चे को जन्म देने की अनुमति देना और उचित प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल प्रदान करना शामिल है।
    • स्थायी समिति ने जेल में माताओं के साथ शिशुओं के रहने की अवधि को छह वर्ष से बढ़ाकर बारह वर्ष करने की सिफारिश की।
  • ट्रांसजेंडर कैदी: ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए अलग बुनियादी सुविधाएँ, जैसे अलग वार्ड, होने चाहिए।
    • ट्रांसजेंडर कैदियों को जेलों में उचित स्थान सुनिश्चित करने और गलत लिंग निर्धारण को रोकने के लिए जाँच के लिए डॉक्टर चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • अन्य 
    • विचाराधीन समीक्षा समिति (Undertrial Review Committee- UTRC) तंत्र को मजबूत करना: यह विचाराधीन कैदियों और रिहाई के लिए पात्र दोषियों की रिहाई का आकलन करता है।
    • शीघ्र सुनवाई: जेल में भीड़भाड़ को कम करने के लिए तेजी से सुनवाई प्रक्रियाओं को लागू करना आवश्यक है।
    • वैकल्पिक सजा: जुर्माना, परिवीक्षा, पैरोल, गैरहाजिरी (Furlough), चेतावनी जैसी वैकल्पिक सजाओं के कानूनी प्रावधानों का वर्तमान में अदालतों द्वारा कम उपयोग किया जाता है।
    • कानूनी प्रतिनिधित्व: कानूनी पहुँच में सुधार के लिए प्रत्येक 30 कैदियों के लिए कम-से-कम एक वकील सुनिश्चित करना।
    • फास्ट-ट्रैक कोर्ट: पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे अपराधों को निपटाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना करना।

जेल सुधार पर विभिन्न समितियों की सिफारिशें

  • न्यायमूर्ति मुल्ला समिति (1983)
    • अखिल भारतीय कैडर: जेल कर्मचारियों के लिए अखिल भारतीय कैडर की स्थापना करें और जेलों को समवर्ती सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
    • राष्ट्रीय नीति: सरकार को जेलों पर एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए।
    • कारावास के विकल्प: सामुदायिक सेवा जैसे विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • महिला कैदियों पर न्यायमूर्ति वी.आर.कृष्ण अय्यर समिति (1987): महिला अपराधियों के लिए अलग संस्थान स्थापित करना, जिनमें केवल महिलाएँ ही कार्य करें।
  • जेल सुधार पर न्यायमूर्ति अमिताव रॉय पैनल (2018-2020)
    • भीड़भाड़: प्रत्येक 30 कैदियों के लिए कम-से-कम एक वकील का अनुपात बनाए रखना।
    • कम कर्मचारी: उच्चतम न्यायालय को रिक्त पदों के लिए भर्ती शुरू करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
      • मुकदमों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग किया जाना चाहिए।
    • कैदी के अधिकार: प्रत्येक नए कैदी को अपने पहले सप्ताह के दौरान परिवार को प्रतिदिन एक निःशुल्क फोन कॉल करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

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