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भारत में जेल सुधार

Lokesh Pal April 19, 2025 02:24 10 0

संदर्भ

हाल ही में इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 प्रकाशित हुई, जिसमें बताया गया कि भारतीय जेलों में अत्यधिक भीड़भाड़ है तथा वे कई स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

जेल पर रिपोर्ट की मुख्य बिंदु

  • भीड़भाड़ और बुनियादी ढाँचा
    • अधिभोग दर (वर्ष 2022): 131% (वर्ष 2012 में 112% से ऊपर)।
    • जेल की आबादी (वर्ष 2012-22): 3.8 लाख से बढ़कर 5.7 लाख हो गई।
  • विचाराधीन जनसंख्या
    • कुल कैदियों में से 76% विचाराधीन (वर्ष 2012 में यह संख्या 66% थी) हैं।
    • उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में कुल विचाराधीन कैदियों में से 42% मौजूद हैं।
  • स्टाफ की कमी और चिकित्सा संकट
    • कुल स्टाफ के 30% पद रिक्त हैं; 43% चिकित्सा अधिकारी पद रिक्त हैं।
    • चिकित्सा अधिकारी अनुपात: 775 कैदियों पर 1 डॉक्टर (1:300 के मानक के विपरीत)।
    • मनोवैज्ञानिक/मनोचिकित्सक: पूरे देश में केवल 25 (22,929 कैदियों पर 1); स्वीकृत संख्या 69 है।
  • मानसिक स्वास्थ्य
    • दर्ज मानसिक बीमारी के मामले: 9,084 (वर्ष 2022), 4,470 (वर्ष 2012) से ऊपर।
    • 25 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की जेलों में कोई मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक नहीं है।
  • लैंगिक विविधता
    • महिला कैदी: दशक भर में 40% की वृद्धि हुई।
    • महिला जेल कर्मचारी: केवल 13% (वर्ष 2012 में 8% से ऊपर)।
    • केवल मिजोरम ने महिला कर्मचारियों के लिए 33% बेंचमार्क को पूरा किया।
  • बजट और व्यय
    • जेल बजट में वृद्धि: ₹3,275 करोड़ (वर्ष 2012) → ₹8,725 करोड़ (वर्ष 2022) (+166%)।
    • प्रति कैदी व्यय: ₹44,109/वर्ष (₹121/दिन); सबसे कम: मिजोरम ₹5/दिन, महाराष्ट्र ₹47/दिन। आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक व्यय: ₹733 प्रति कैदी/दिन।
    • केवल 6 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने आवंटित बजट का पूरा उपयोग किया।
  • शिक्षा तथा कौशल प्रशिक्षण
    • साक्षरता: 4 में से 1 कैदी निरक्षर है।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण: कुल जेल आबादी में से केवल 2% को ही प्राप्त होता है।

भारत में जेल संबंधी नियम

संवैधानिक ढाँचा

  • अनुच्छेद-14: सभी कैदी, जिनमें विचाराधीन कैदी और दोषी भी शामिल हैं, कानून के समक्ष समान हैं और समान सुरक्षा के हकदार हैं।
  • अनुच्छेद-21: यह गारंटी देता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी व्यक्ति को जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।
    • कैदियों के सम्मान, स्वास्थ्य, भोजन, कानूनी सहायता और यातना से सुरक्षा के अधिकारों की नींव रखता है।
  • अनुच्छेद-22: कानूनी सलाह लेने, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और निवारक हिरासत से सुरक्षा के अधिकार सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद-23: विनियमित परिस्थितियों में जेल में कार्य करना वैध है, लेकिन जबरन या शोषणकारी श्रम पर प्रतिबंध है।
  • अनुच्छेद-39A: राज्य को निर्देश देता है कि वह विचाराधीन कैदियों सहित सभी के लिए न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करे।
  • 7वीं अनुसूची (सूची II) के अंतर्गत राज्य विषय: जेल राज्य सूची का विषय है, जो राज्य सरकारों को जेल प्रशासन, बजट और सुधारों के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी देता है।

कानूनी ढाँचा

औपनिवेशिक युग के कानून

  • कारागार अधिनियम, 1894: यह अभी भी भारत में जेल प्रबंधन के कई पहलुओं को नियंत्रित करता है।
    • पुनर्वास पर नहीं, बल्कि अनुशासन, सुरक्षा और दंड पर केंद्रित है।
    • यह पुराना हो चुका है, सुधारात्मक होने के बजाय हिरासत में रखने के लिए आलोचना की जाती है।
  • कैदी अधिनियम, 1900: राज्यों के बीच कैदियों के स्थानांतरण और निष्कासन से संबंधित है।

स्वतंत्रता के बाद के सुधार और कानून

  • अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम, 1958: पहली बार अपराध करने वाले या नाबालिग अपराधियों को कारावास के बजाय पर्यवेक्षण के साथ या बिना परिवीक्षा पर रिहा करने की अनुमति देता है।
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015: किशोर अपराधियों को वयस्क कैदियों से अलग करता है।
    • किशोरों को नियमित जेलों में नहीं रखा जा सकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017: जेलों में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं और जेल कर्मचारियों के प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाता है।
    • प्रत्येक राज्य की जेलों में कम-से-कम एक मानसिक स्वास्थ्य इकाई होनी चाहिए।
  • मॉडल जेल मैनुअल, 2016: संयुक्त राष्ट्र मंडेला नियमों से प्रेरित है।
  • सुधारात्मक न्याय, अधिकार-आधारित जेल प्रबंधन पर जोर देता है।
    • शामिल सहायता
      • कानूनी सहायता, शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण।
      • जेल में बंद महिलाओं, ट्रांसजेंडरों और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान।
      • पैरोल, फरलो और खुली जेलें।
  • मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023: कारागार अधिनियम, 1894 को प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है।
    • इसका उद्देश्य जेल कानूनों का आधुनिकीकरण करना और सुधार, पुनर्वास, प्रौद्योगिकी के उपयोग तथा कमजोर समूहों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • राज्यों के लिए इसे अपनाना वैकल्पिक (क्योंकि जेल राज्य सूची का विषय है) है।
  • मॉडल जेल मैनुअल (वर्ष 2003 और वर्ष 2016): वर्ष 2016 का संस्करण संयुक्त राष्ट्र के नेल्सन मंडेला नियमों के अनुरूप है।
    • प्रावधानों में शामिल
      • सुधारात्मक सेवाएँ
      • पैरोल, छुट्टी, खुली जेलें
      • महिलाओं, बच्चों, ट्रांसजेंडरों के लिए विशेष सुरक्षा उपाय
    • जुलाई 2024 तक 19 राज्यों और सभी केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा अपनाया जाएगा।

भारतीय जेल सुधारों को प्रभावित करने वाले अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क

  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), 1948
    • अनुच्छेद-5: “किसी को भी यातना, क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड नहीं दिया जाएगा।”
    • अनुच्छेद-10: निष्पक्ष और सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचा (ICCPR), 1966
    • अनुच्छेद-10: स्वतंत्रता से वंचित व्यक्तियों के साथ मानवता और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए।
  • कैदियों के उपचार के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम (नेल्सन मंडेला नियम), 2015
    • भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है।
    • मुख्य सिद्धांत
      • यातना और अपमानजनक व्यवहार पर रोक।
      • विचाराधीन कैदियों और दोषियों को अलग करना।
      • कानूनी परामर्श, पारिवारिक मुलाकात, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच।
      • पुनर्वास, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण।
  • गैर-हिरासत उपायों के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम (टोक्यो नियम), 1990
    • कारावास के स्थान पर परिवीक्षा, सामुदायिक सेवा तथा पैरोल जैसे विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • बैंकॉक नियम (2010): महिला कैदियों के उपचार के लिए
    • लैंगिक-संवेदनशील जेल प्रबंधन पर जोर देना।
    • महिला अपराधियों के लिए हिरासत रहित विकल्पों की माँग करना।

भारत में जेलों से संबंधित मुद्दे

  • अत्यधिक भीड़भाड़ और विचाराधीन कैदियों की अत्यधिक हिरासत: भारत न्याय रिपोर्ट 2025 के अनुसार, दिसंबर 2022 तक राष्ट्रीय अधिभोग दर 131% थी।
  • सभी कैदियों में से 76% विचाराधीन हैं, अधिकांश कैदी 1-3 वर्ष तक तथा कुछ 5 वर्ष से अधिक तक भी न्याय की प्रतीक्षा करते हैं।
    • दिल्ली की जेलों में 90 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं।
  • खराब आवासीय स्थिति और स्वास्थ्य सुविधाएँ: अधिक भीड़भाड़ के कारण स्वच्छता की स्थिति खराब होती है, वेंटिलेशन नहीं होता है, भोजन की गुणवत्ता खराब होती है और स्वच्छ जल की कमी होती है।
  • कर्मचारियों की कमी और प्रशिक्षण का अभाव: 30% से अधिक कर्मचारियों की कमी से दैनिक निगरानी और पुनर्वास कार्य बुरी तरह प्रभावित होता है।
    • भारत में जेल स्टाफ-कैदी अनुपात 1:7 है, जबकि यू.के. में यह 2:3 है।
    • मेडिकल स्टाफ की कमी: अनुपात प्रति डॉक्टर 775 कैदी है, जो अनुशंसित 1:300 से बहुत कम है।
  • जेलों में असमानता और भेदभाव: अमीर और उच्च जाति के कैदियों को अक्सर निजी कोठरियों तक पहुँच, बेहतर भोजन और कम श्रम जैसे तरजीही व्यवहार मिलते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय (वर्ष 2024) ने जाति आधारित कार्य आवंटन (जैसे- दलितों द्वारा शौचालय साफ करना) को अनुच्छेद-14, 17, 21 और 23 का उल्लंघन मानते हुए खारिज कर दिया।
  • कमजोर या अपर्याप्त जेल सुधार कार्यक्रम: अलग-अलग प्रयासों (जैसे- तिहाड़ में आर्ट ऑफ लिविंग स्मार्ट प्रोग्राम, सृजन) के बावजूद, अधिकांश जेलों में निम्नलिखित सुविधाओं की कमी है:
    • दैनिक संरचित गतिविधियाँ।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण।
    • रिहाई के बाद की निगरानी।
    • केवल 3% दोषियों को खुली जेलों में रखा जाता है, जो सुधारात्मक और लागत प्रभावी हैं।
  • अपर्याप्त कानूनी सहायता एवं विलंबित पहुँच: अक्सर कानूनी सहायता केवल मुकदमा शुरू होने के बाद ही उपलब्ध होती है, जिससे विचाराधीन कैदियों को रिमांड चरण में सहायता नहीं मिल पाती हैं।
    • कई लोग अशिक्षित हैं, अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं और वकीलों को नियुक्त करने के लिए वित्तीय साधनों की कमी है।
  • हिरासत में दुर्व्यवहार, यातना और मौतें: शारीरिक दुर्व्यवहार, मारपीट, जबरन श्रम और दुष्कर्म आम हैं, विशेषकर नए कैदियों के लिए।
  • जेल कल्याण के लिए कम बजट आवंटन: IJR 2025 के अनुसार, 18 राज्यों ने प्रति कैदी प्रतिदिन ₹100 से कम खर्च किया।
  • एक समान जेल प्रबंधन की चुनौतियाँ: जेल राज्य सूची का विषय है और इसलिए, एक समान जेल प्रबंधन होना एक कठिन मुद्दा है।

जेल सुधार और अनुशंसा पर महत्त्वपूर्ण समितियाँ

  • मुल्ला समिति (वर्ष 1980-1983): न्यायमूर्ति ए.एन. मुल्ला की अध्यक्षता में।
    • प्रमुख अनुशंसाएँ
      • भारतीय जेल संबंधी सुधार सेवाएँ स्थापित करना।
      • विचाराधीन कैदियों को दोषियों से अलग करना।
      • जेलों तक मीडिया और जनता की पहुँच।
      • पुनर्वास, पश्चात देखभाल तथा सुधारात्मक प्रशिक्षण पर जोर।
      • जेल सुधार के लिए पर्याप्त धन का आवंटन।
  • कृष्णा अय्यर समिति (1987): महिला कैदियों पर केंद्रित।
    • सुझाव 
      • अधिक महिला कर्मचारी।
      • महिला कैदियों के लिए कानूनी सहायता, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण।
      • हिरासत में यौन शोषण से सुरक्षा।
  • जेल सुधार पर न्यायमूर्ति अमिताव रॉय पैनल (वर्ष 2018-2020)
    • भीड़भाड़: प्रत्येक 30 कैदियों के लिए कम-से-कम एक वकील होना।
    • कम कर्मचारी: सर्वोच्च न्यायालय को रिक्त पदों के लिए भर्ती शुरू करने का निर्देश देना।
      • मुकदमों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करना चाहिए।
    • कैदी के अधिकार: प्रत्येक नए कैदी को अपने पहले सप्ताह के दौरान परिवार को प्रतिदिन एक निःशुल्क फोन कॉल करने की अनुमति देना।

भारत में जेल से संबंधित प्रमुख निर्णय

  • सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (वर्ष 1978): न्यायिक स्वीकृति के बिना एकांत कारावास को असंवैधानिक माना गया; न्यायालय ने पुष्टि की कि कैदियों को अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
  • हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (वर्ष 1979): सर्वोच्च न्यायालय ने त्वरित सुनवाई को मौलिक अधिकार घोषित किया, जिसके परिणामस्वरूप वैधानिक सीमाओं से परे हिरासत में लिए गए हजारों विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया।
  • फ्रांसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक, दिल्ली (वर्ष 1981): माना गया कि कैदियों को अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार के तहत परिवार तथा वकीलों से संवाद करने का अधिकार है।
  • राममूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य (वर्ष 1997): जेल प्रणाली में 9 मुख्य मुद्दों (अत्यधिक भीड़भाड़, यातना, स्वास्थ्य, आदि) की पहचान की और सरकारों को तत्काल सुधार लागू करने का निर्देश दिया।
  • प्रभा दत्त बनाम भारत संघ (वर्ष 1982): कैदियों से साक्षात्कार करने के प्रेस के अधिकार को बरकरार रखा, जेल प्रणाली के भीतर पारदर्शिता और सूचना तक पहुँच को मजबूत किया।
  • सुहास चकमा बनाम भारत संघ और अन्य (वर्ष 2024): SC ने पाया कि खुली जेलें भीड़भाड़ को कम करने और पुनर्वास को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी समाधान हो सकती हैं।
    • इसने राज्य सरकारों को पूरे भारत में खुली जेल प्रणाली को अपनाने और उसका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

भारत में जेल सुधार से संबंधित पहल

  • खुली जेल प्रणाली: विश्वास तथा अच्छे व्यवहार के आधार पर, कैदी न्यूनतम सुरक्षा के साथ रहते हैं और खुले वातावरण में रह सकते हैं।
    • उद्देश्य: भीड़भाड़ को कम करना और सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देना।
    • राजस्थान 41 खुली जेलों के साथ सबसे अग्रणी है।
    • हालाँकि, केवल 3% दोषियों को खुली जेलों में रखा जाता है; अधिकांश राज्यों में इनका कम उपयोग किया जाता है।
  • ई-जेल परियोजना: केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल।
    • कैदियों के रिकॉर्ड को डिजिटल बनाता है तथा इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (Interoperable Criminal Justice System-ICJS) के माध्यम से डेटा को एकीकृत करता है।
  • ई-मुलाकात और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग
    • ई-मुलाकात: कैदियों और उनके परिवारों/कानूनी सलाहकारों के बीच डिजिटल संचार को सक्षम बनाता है।
    • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग: न्यायालय में पेश होने के लिए कोविड के बाद इसे बढ़ावा दिया गया।
  • विचाराधीन कैदियों की समीक्षा समितियाँ (Undertrial Review Committees – UTRCs): सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहाई के लिए पात्र विचाराधीन कैदियों के मामलों की समय-समय पर समीक्षा करने का आदेश दिया गया है।
    • इसका उद्देश्य: परीक्षण-पूर्व हिरासत में लिए जाने की संख्या में कमी लाना; जहाँ आवश्यक हो वहाँ जमानत और पैरोल सुनिश्चित करना।
    • मॉडल जेल मैनुअल तथा मॉडल अधिनियम 2023 दोनों के तहत समर्थित है।
  • कानूनी सहायता और पैरा-लीगल स्वयंसेवक कार्यक्रम: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA) द्वारा समर्थित है।
  • गतिविधियों में शामिल: जेलों में कानूनी जागरूकता; विचाराधीन कैदियों को जमानत के लिए आवेदन करने में सहायता करने हेतु पैरा-लीगल स्वयंसेवक।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास योजनाएँ: कुछ जेलों में शुरू की (जैसे- तिहाड़ जेल का SMART कार्यक्रम, सृजन परियोजना) गई।
  • फोकस: कौशल निर्माण, मनोवैज्ञानिक सहायता, जेल के बाद पुनः एकीकरण।
    • हालाँकि, ऐसे कार्यक्रम अपवाद हैं, जो पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं होते हैं।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली कौशल और उद्यमिता विश्वविद्यालय (Delhi Skill and Entrepreneurship University-DSEU) ने कैदियों को कौशल-आधारित पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए तिहाड़ जेल के साथ भागीदारी की है, जिसका उद्देश्य उनके पुनर्वास एवं समाज में एकीकरण है।
  • जेल श्रम सुधार: दंडात्मक से उत्पादक श्रम की ओर बदलाव।
    • कुछ खुली जेलों में, कैदियों को बाजार मजदूरी का भुगतान किया जाता है, जिसमें से वे अपने भरण-पोषण के लिए भुगतान करते हैं।
    • महाराष्ट्र ने वर्ष 1949 में एक व्यापक जेल वेतन प्रणाली शुरू की, यह एक मॉडल था, जिसे बाद में अन्य राज्यों ने भी अपनाया है।
  • नवीन दृष्टिकोण
    • विपश्यना ध्यान: मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर तिहाड़ जेल (1995) में अपराध की पुनरावृत्ति को सफलतापूर्वक कम किया।
    • पश्चात देखभाल कार्यक्रम: सेवा सदन जैसे गैर-सरकारी संगठन आवास और रोजगार सहायता के माध्यम से पुनः एकीकरण में सहायता करते हैं।

भारत में जेल सुधार की आगे की राह

  • आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 को अपनाना और लागू करना: राज्यों को पुनर्वास और अधिकार आधारित लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिए पुराने कारागार अधिनियम, 1894 को नए आदर्श अधिनियम से बदलना चाहिए।
    • यह अधिनियम शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, महिलाओं और ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए अलग आवास तथा प्रौद्योगिकी एकीकरण को बढ़ावा देता है।
  • कानूनी सहायता और फास्ट-ट्रैक तंत्र के माध्यम से विचाराधीन निरोधों को कम करना: विचाराधीन समीक्षा समितियों (UTRC) की भूमिका का विस्तार करना तथा गिरफ्तारी के समय से ही मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना।
    • CrPC की धारा 436A को प्रभावी ढंग से लागू करना तथा जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए दलील सौदेबाजी को प्रोत्साहित करना।
  • खुली जेलों का विस्तार और उपयोग करना: सुहास चकमा (2024) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थित, अच्छे व्यवहार वाले दोषियों के लिए खुली जेलों को बढ़ावा देना।
    • ये संस्थाएँ लागत कम करती हैं, आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देती हैं और सामाजिक एकीकरण में सहायता करती हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 3% अपराधी ही इनमें रह रहे हैं।
  • जेल स्टाफिंग और प्रशिक्षण को मजबूत करना: संवर्ग, सुधारात्मक और चिकित्सा कर्मचारियों में 30-45% रिक्त पदों को तत्काल भरना।
    • विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य सेवा और मानवाधिकार अनुपालन में बुनियादी और सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • गरिमापूर्ण परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना तथा भेदभाव को समाप्त करना: जाति आधारित कर्तव्यों को समाप्त (जैसा कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया है) करना।
    • स्वास्थ्य सेवा, चाइल्डकेयर और नियमित मुलाकातों सहित महिला कैदियों के लिए सुविधाओं में सुधार करना।
  • निरीक्षण तंत्र को मजबूत करना: ‘बोर्ड ऑफ विजिटर’ (BoVs) द्वारा नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करना तथा पारदर्शिता के लिए मीडिया की पहुँच को प्रोत्साहित करना।
    • वर्ष 2022 में आवश्यक 3,100 से अधिक निरीक्षण की तुलना में केवल 899 निरीक्षण दर्ज किए गए; जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इसे अधिक किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत की जेल प्रणाली में भीड़भाड़, विचाराधीन कैदियों की देरी तथा अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा और स्टाफिंग को संबोधित करने के लिए व्यापक सुधारों की तत्काल आवश्यकता है। मॉडल जेल अधिनियम, 2023 को लागू करना, खुली जेलों का विस्तार करना और कानूनी सहायता एवं मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना एक मानवीय तथा पुनर्वास न्याय प्रणाली की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।

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