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निजी विधेयक (Private Bill)

Samsul Ansari December 11, 2023 05:48 298 0

भारतीय राजव्यवस्था

संदर्भ

हाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एक सांसद ने राज्यसभा में निजी विधेयक के माध्यम से सदस्यों से राज्यपालों की जवाबदेही तय करने के लिए एक प्रणाली की माँग की। 

निजी विधेयक के बारे में 

  • निजी विधेयक एक प्रकार का विधेयक है जो संसद के किसी भी निजी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है। 
    • भारतीय संसद के वे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री (Member of Parliament-MP) नहीं होते हैं, निजी सदस्य कहलाते है। वह सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों से संबंधित हो सकते हैं।
  • इस विधेयक के कानून बनने की संभावना बहुत कम है क्योंकि इसके पास बहुमत का समर्थन नहीं है।
  • अब तक कुल 14 निजी सदस्य विधेयक, जिनमें से पाँच राज्यसभा में पेश किये गए, अब कानून बन गए हैं। 
    • पिछली बार दोनों सदनों द्वारा एक निजी सदस्य विधेयक 1970 में पारित किया गया था।
  • महत्त्व:
    • निजी सदस्य के विधेयक का उद्देश्य सरकार का ध्यान उस ओर आकर्षित करना है जिसे व्यक्तिगत सांसद मौजूदा कानूनी ढाँचे में मुद्दों और कमियों के रूप में देखते हैं, जिसके लिए विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
    • इस प्रकार यह सार्वजनिक मामलों पर विपक्षी दल के रुख को दर्शाता है।

संबंधित तथ्य 

  • माकपा सांसद ने विधेयक के उद्देश्यों और कारणों का उल्लेख करते हुए बताया कि राज्यपाल के कार्यालय के पद और गरिमा के लिए आवश्यक है कि जो व्यक्ति ऐसे पद पर है उसे लोगों का वैध समर्थन प्राप्त हो और वह राज्य के लोगों के प्रति जवाबदेह हो। 
    • उन्होंने विधेयक में पक्ष में तर्क दिया कि “कार्यकारी आदेशों के माध्यम से राज्य सरकारों के प्रमुख की नियुक्ति करना लोकतंत्र और संघीय भावना के विपरीत है।”

विधेयक के प्रमुख बिंदु 

  • विधेयक में राज्य विधानसभाओं को राज्यपालों को वापस बुलाने की शक्ति प्रदान करने की माँग की गई।
  • विधेयक में संविधान में संशोधन की माँग की गई ताकि राज्यपाल का चुनाव राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचक मंडल के सदस्यों और राज्यों की ग्राम पंचायतों, नगर पालिकाओं और निगमों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जा सके। 
  • विधेयक में वर्णित बिंदुओं के अनुसार, “राज्यपाल का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से होगा और ऐसे चुनाव में मतदान गुप्त मतदान द्वारा होगा।”
  • इसमें राज्यपाल पद के लिए पद संभालने की तारीख से पांच साल की अवधि तय करने का भी सुझाव दिया गया और राज्यपाल राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष को संबोधित एक पत्र लिखकर इस्तीफा दे सकते हैं। 
  • विधेयक में कहा गया है, “राज्यपाल को राज्य की विधान सभा के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से पारित एक प्रस्ताव द्वारा उनके कार्यालय से हटाया जा सकता है।”

विधेयक के पक्ष में तर्क 

  • विधेयक के पक्ष में तर्क दिया गया कि शासन की परवाह किए बिना सभी राज्यपाल गृह मंत्रालय के अवर सचिवों और उप सचिवों द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अनुसार चलते हैं। इसलिए इस विधेयक के माध्यम से राज्यपाल को राज्यशासन के प्रति जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। 

विधेयक के विपक्ष में तर्क 

  • विधेयक के पक्ष में तर्क दिया गया कि राज्यपाल का पद आधिकारिक उत्तरदायित्व का है, जवाबदेही का नहीं। राज्यपाल हमारे संविधान के संघीय ढाँचे को बनाए रखने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनकी शक्तियों को सीमित नहीं किया जाना चाहिए। 

राज्य सरकार व राज्यपाल विवाद में न्यायलय का तर्क 

  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचित राज्य विधायकों द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपालों द्वारा की जा रही देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। और कहा है कि-
    • यह संवैधानिक प्रावधानों और संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत का उल्लंघन है। 
    • यह तथ्य कि राज्यपाल कार्यालय और निर्वाचित सरकार के बीच टकराव है, लोकतंत्र का बहुत दुखद हिस्सा है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

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