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विशेषाधिकार प्रस्ताव

Lokesh Pal August 12, 2024 03:59 75 0

संदर्भ

हाल ही में कुछ NCERT पाठ्यपुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को ‘हटाने’ के मुद्दे पर सदन को कथित रूप से ‘गुमराह’ करने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री के खिलाफ राज्यसभा में विशेषाधिकार कार्यवाही शुरू करने के लिए एक नोटिस प्रस्तुत किया गया था।

  • विशेषाधिकार प्रस्ताव: विशेषाधिकार प्रस्ताव एक औपचारिक नोटिस है, जो संसद सदस्य (सांसद) या विधानसभा सदस्य (विधायक) द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए प्रस्तुत किया जाता है। 
    • ऐसा तब होता है, जब किसी सदस्य के अधिकारों एवं उन्मुक्तियों की उपेक्षा की जाती है, जो उनके कर्तव्यों के प्रभावी निर्वहन के लिए आवश्यक हैं। 
    • ऐसे मामलों को ‘विशेषाधिकार के उल्लंघन’ के रूप में जाना जाने वाला अपराध माना जाता है, एवं संसदीय कानूनों के तहत दंडनीय हैं।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव कौन ला सकता है?
    • लोकसभा में सांसद एवं राज्य विधानसभाओं में विधायक दोनों विशेषाधिकार प्रस्ताव ला सकते हैं।
  • प्रक्रिया
    • प्रस्ताव में हाल की कोई घटना शामिल होनी चाहिए, जिसे सदस्य विशेषाधिकार का उल्लंघन मानता हो।
    • नोटिस सुबह 10 बजे से पहले सदन के अध्यक्ष या सभापति को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • सदस्य को इस मुद्दे को उठाने के लिए अध्यक्ष (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) से सहमति लेनी होगी।

लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति की भूमिका

  • प्रारंभिक जाँच: विशेषाधिकार प्रस्ताव की प्रथम स्तर की जाँच के लिए अध्यक्ष एवं सभापति जिम्मेदार होते हैं।
    • वे या तो प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकते हैं या इसे विशेषाधिकार समिति को भेज सकते हैं।
  • सहमति एवं स्पष्टीकरण: नियम 222 के अंतर्गत सहमति देने पर संबंधित सदस्य को अपना मामला स्पष्ट करने की अनुमति दी जाती है।

विशेषाधिकार समिति

  • संरचना: लोकसभा समिति में 15 सदस्य होते हैं, जबकि राज्यसभा समिति में 10 सदस्य होते हैं।
  • राज्यसभा में उपसभापति विशेषाधिकार समिति का प्रमुख होता है।
  • कार्य: समिति विशेषाधिकार हनन की जाँच करती है एवं विचार के लिए सदन को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।

संसदीय विशेषाधिकार

  • संसदीय विशेषाधिकार संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों एवं उनके सदस्यों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ तथा छूट हैं।
  • संविधान उन व्यक्तियों को भी संसदीय विशेषाधिकार प्रदान करता है, जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने एवं भाग लेने के हकदार हैं। इनमें भारत के अटॉर्नी जनरल तथा केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।
  • संसदीय विशेषाधिकार राष्ट्रपति तक विस्तारित नहीं होते, जो संसद का अभिन्न अंग भी है। संविधान का अनुच्छेद-361 राष्ट्रपति के लिए विशेषाधिकार प्रदान करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख है, अर्थात् संसद में बोलने की स्वतंत्रता एवं इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
  • संविधान में निर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अतिरिक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 सदन या उसकी किसी समिति की बैठक के दौरान तथा उसके प्रारंभ होने से चालीस दिन पूर्व और उसके समापन के 40 दिन पश्चात् सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों को गिरफ्तारी और हिरासत से मुक्ति प्रदान करती है।
  • संसद ने अब तक सभी विशेषाधिकारों को विस्तृत रूप से संहिताबद्ध करने के लिए कोई विशेष कानून नहीं बनाया है।

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