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अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की प्रक्रिया

Lokesh Pal March 18, 2025 03:17 85 0

संदर्भ

एक आंतरिक सरकारी टास्क फोर्स ने समुदायों को ST सूची में शामिल करने की वर्तमान प्रक्रिया और मानदंडों की आलोचना की थी।

संबंधित तथ्य

  • मानवविज्ञानी द्विआधारी वर्गीकरण (जनजाति या जनजाति नहीं) से हटकर ‘जनजाति के स्पेक्ट्रम’ का आकलन करने का सुझाव देते हैं।
  • यह चर्चा भारतीय मानव विज्ञान कांग्रेस में हुई, जिसमें भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India-AnSI) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने भाग लिया।

अनुसूचित जनजाति की सूची बनाने की प्रक्रिया

  • राज्य सरकार का प्रस्ताव: राज्य/संघ शासित प्रदेश सरकार अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहने वाले समुदाय की पहचान करती है, नृवंशविज्ञान संबंधी अध्ययन करती है, और प्रस्ताव को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को सौंपती है, जो फिर इसे भारत के महारजिस्ट्रार कार्यालय (Office of the Registrar General of India-ORGI) को भेज देता है।
  • भारत के महारजिस्ट्रार (RGI) द्वारा समीक्षा: केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन ORGI ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और मानवशास्त्रीय साक्ष्यों के आधार पर दावे की पुष्टि करता है और यदि स्वीकृत हो जाता है, तो इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को भेज देता है।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) द्वारा समीक्षा: NCST सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, सांस्कृतिक विशिष्टता और मुख्यधारा के समाज से अलगाव के आधार पर दावे का मूल्यांकन करता है, और यदि स्वीकृत हो जाता है, तो संघ सरकार को शामिल करने की सिफारिश करता है।
  • अंतिम स्वीकृति और कार्यान्वयन: सभी संस्थाओं की सहमति के बाद, संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन के लिए प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जाता है।
    • अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के पास होता है, जो अनुच्छेद-341 और अनुच्छेद-342 के तहत अधिसूचना जारी करते हैं।

ST सूची में शामिल करने के मानदंड (लोकुर समिति, 1965)

  • ORGI अभी भी लोकुर समिति के मानदंडों का पालन करता है, जिसमें शामिल हैं:-
    • आदिम विशेषताओं की मौजूदगी।
    • विशिष्ट संस्कृति।
    • भौगोलिक अलगाव।
    • व्यापक समुदाय के साथ समावेशन को न अपनाना। 
    • आर्थिक पिछड़ापन।

भारत में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति

  • भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों को मान्यता देने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं करता है।
  • वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को ‘बहिष्कृत’ और ‘आंशिक रूप से बहिष्कृत’ क्षेत्रों में रहने वाली ‘पिछड़ी जनजातियाँ’ कहा जाता था।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 में प्रांतीय विधानसभाओं में ‘पिछड़ी जनजातियों’ के लिए प्रतिनिधित्व की शुरुआत की गई थी।

अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-366(25): अनुच्छेद-342 के आधार पर अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करता है।
  • अनुच्छेद-342(1): राष्ट्रपति, राज्यपाल से परामर्श के बाद, किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में जनजातियों को निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद-342(2): संसद ST सूची में समुदायों को शामिल या बाहर कर सकती है।
  • ST सूची राज्य/संघ राज्य क्षेत्र विशेष है, जिसका अर्थ है कि कोई समुदाय एक राज्य में ST हो सकता है, लेकिन दूसरे में नहीं।
  • पाँचवीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों और ST (छठी अनुसूची वाले राज्यों को छोड़कर) के प्रशासन और नियंत्रण के लिए प्रावधान करती है।
  • छठी अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन को नियंत्रित करती है।

प्रक्रिया के विरुद्ध उठाए गए मुद्दे

  • पुराने एवं कठोर मानदंड: लोकुर समिति के वर्ष 1965 के मानदंड पुराने होने के बावजूद अभी भी अपनाए जाते हैं।
    • मानदंड आदिम विशेषताएँ, सांस्कृतिक विशिष्टता, अलगाव, व्यापक समुदाय के साथ समावेशन को न अपनाना और पिछड़ेपन पर केंद्रित हैं।
  • आंतरिक सरकारी टास्क फोर्स (2014) की आलोचना: हृषिकेश पांडा के नेतृत्व में एक सरकारी टास्क फोर्स ने इस प्रक्रिया में खामियों को उजागर किया:-
    • इसे ‘अप्रचलित’, ‘कृपालु’, ‘रूढ़िवादी’ और ‘कठोर’ कहा गया।
    • इसे ‘बोझिल’ और सकारात्मक कार्रवाई के विरुद्ध बताया गया।
    • इसमें कहा गया कि लगभग 40 समुदायों को बहिष्कार या समावेशन में देरी का सामना करना पड़ा है।

सुधार का अधूरा प्रस्ताव

  • वर्ष 2014 में, प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने प्रक्रिया एवं मानदंडों को संशोधित करने के लिए एक मसौदा नोट प्रस्तुत किया।
    • यह प्रस्ताव आठ वर्ष तक लंबित रहा और कभी लागू नहीं हो सका।
  • वर्ष 2022 में, जनजातीय मामलों के मंत्री ने लोकुर समिति के मानदंडों का बचाव करते हुए कहा कि ‘आदिवासी समाज नहीं बदलते हैं।’

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