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प्रोजेक्ट-76

Lokesh Pal July 02, 2024 04:00 250 0

संदर्भ

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने प्रोजेक्ट-76 (Project-76) के अंतर्गत स्वदेशी पारंपरिक पनडुब्बी के डिजाइन एवं विकास पर प्रारंभिक अध्ययन शुरू किया है। 

  • प्रारंभिक अध्ययन पूर्ण होने के पश्चात् परियोजना की मंजूरी के लिए औपचारिक रूप से सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Security-CCS) के समक्ष रखा जाएगा। 

पनडुब्बियों (Submarines) के बारे में

  • पनडुब्बियाँ नौ-सैनिक पोत या जहाज हैं, जो समुद्री क्षेत्र में जल के अंदर या जल की सतह पर संचलन करती हैं। पनडुब्बी के साथ संबद्ध मिसाइलों या हथियार प्रणालियों को ‘टारपीडो’ कहा जाता है।
  • प्रथम प्रयोग: पहली बार पनडुब्बियों का उपयोग प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के दौरान किया गया था, जब जर्मनी ने इनका उपयोग सतह पर मौजूद व्यापारिक जहाजों को नष्ट करने के लिए किया था। 
  • भारतीय नौसेना में पनडुब्बियाँ: भारतीय नौसेना के पास 30 वर्ष का पनडुब्बी निर्माण कार्यक्रम है और P-75I के बाद, इसका उद्देश्य पारंपरिक पनडुब्बियों को स्वदेशी रूप से डिजाइन एवं निर्मित करना है। 
    • परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियाँ (Nuclear  ballistic missile submarines- SSBN): अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियाँ, जिनमें आईएनएस अरिहंत (INS Arihant) (S2) और आईएनएस अरिघात (INS Arighat) (S3) शामिल हैं, को परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों के डिजाइन एवं निर्माण के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (Advanced Technology Vessel- ATV) परियोजना के तहत विकसित किया गया है। 
    • कन्वेंशन डीजल इलेक्ट्रिक सबमरीन (Convention Diesel Electric Submarines) 
      • कलवरी श्रेणी (Kalvari Class): आईएनएस कलवरी (INS Kalvari) प्रोजेक्ट 75 के तहत निर्मित छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों में से पहली है, जिसे 14 दिसंबर, 2017 को कमीशन किया गया। 
      • सिंधुघोष श्रेणी (Sindhughosh Class): सिंधुघोष श्रेणी की पनडुब्बियाँ किलो श्रेणी (Kilo class) की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ हैं। 
      • शिशुमार श्रेणी (Shishumar Class): शिशुमार श्रेणी के जहाज (टाइप 1500) डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें जर्मन यार्ड हॉवल्ड्सवर्के ड्यूश वेरफ्ट (Howaldtswerke Deutsche Werft) द्वारा विकसित किया जा रहा है।

प्रोजेक्ट 75I (भारत)

  • यह एक सैन्य अधिग्रहण पहल है, जिसका उद्देश्य भारतीय नौसेना के लिए ईंधन सेल और एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम (AIP) के साथ स्कॉर्पीन श्रेणी की डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियों की खरीद करना है ताकि भारत की नौसैनिक शक्ति में वृद्धि की जा सके और स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण क्षमताओं का विकास किया जा सके। 
  • गोपनीयता की क्षमता (Stealth capability): प्रोजेक्ट 75I में AIP प्रौद्योगिकी के कारण पनडुब्बियाँ दो सप्ताह तक जल के अंदर रह सकती हैं, जबकि प्रोजेक्ट 75 के तहत स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को प्रत्येक 48 घंटे में सतह पर आना पड़ता है। 
  • रणनीतिक साझेदारी मॉडल: मझगाँव डॉक लिमिटेड ने परियोजना के लिए बोली लगाने हेतु जून 2023 में जर्मन शिपबिल्डर ‘थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स’ (ThyssenKrupp Marine Systems- TKMS) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 
    • लार्सन एंड टुब्रो (Larson & Toubro) ने इस परियोजना के लिए तकनीकी-व्यावसायिक बोली प्रस्तुत करते हुए स्पेन की नवांतिया (Navantia) के साथ एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए। 

स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियाँ (Scorpene Class Submarines) 

  • प्रोजेक्ट 75: मझगाँव डॉक लिमिटेड (MDL) ने प्रोजेक्ट-75 के तहत छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों का निर्माण किया है, जो अक्टूबर 2005 में हस्ताक्षरित 3.75 बिलियन डॉलर के सौदे का हिस्सा है। 
  • रणनीतिक साझेदार (Strategic Partner): फ्राँसीसी रक्षा फर्म, नेवल ग्रुप को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की अनुमति दी गई।
  • कमीशनिंग स्थिति (Commissioning Status)
    • पहले चार: INS कलवरी, INS खंडेरी, INS करंज और INS वेला को वर्ष 2017 से  2021 के बीच कमीशन किया गया था। 
    • INS वागीर (Vagir) को इस वर्ष जनवरी (2024) में कमीशन किया गया था। 
    • INS वाग्शीर (Vagsheer): इसका समुद्री परीक्षण प्रारंभ हो चुका है। 

प्रोजेक्ट-76 

  • परिचय: यह नौसेना के लिए स्वदेशी पारंपरिक एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन से युक्त डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियों की एक नई पीढ़ी को डिजाइन एवं विकसित करने का एक कार्यक्रम है। 
  • प्रोजेक्ट 76, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल (Advanced Technology Vessel- ATV) परियोजना का ही एक हिस्सा होगा, जिसका उद्देश्य एक पारंपरिक पनडुब्बी का निर्माण करना है। 
    • इस परियोजना के अंतर्गत अरिहंत श्रेणी की परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों (Nuclear Ballistic Missile Submarines- SSBN) का निर्माण किया जा रहा है। 
  • आनुक्रमिक: यह परियोजना प्रोजेक्ट 75 (फ्राँस) और प्रोजेक्ट 75I (जर्मन/स्पेनिश) की आनुक्रमिक होगी तथा जिसमें सर्वोत्तम प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाएगा। 
  • निर्माणकर्ता: यह परियोजना रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय नौसेना के युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो (Warship Design Bureau of Indian Navy) का संयुक्त प्रयास होगा। इस पनडुब्बी का डिजाइन वर्ष 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है। 
  • बेड़े का आकार (Fleet Size): भारतीय नौसेना प्रोजेक्ट 76 के अंतर्गत 3,000-4,000 टन वजन वाली 6 पनडुब्बियों का निर्माण करने की योजना बना रही है। 
  • प्रौद्योगिकी: इसमें कुछ अत्यंत उन्नत प्रौद्योगिकियों जैसे AIP प्रौद्योगिकी, स्वदेशी हथियार नियंत्रण प्रणाली (Indigenous Weapon Control System), लीथियम-आयन बैटरी (Lithium-ion Batteries), उन्नत ध्वनिक अवशोषण तकनीक (Advanced Acoustic Absorption Techniques), लो रेडिएटेड नॉइज लेवल (Low Radiated Noise Levels), लॉन्ग रेंज गाइडेड टारपीडो (Long-Range Guided Torpedoes), ट्यूब-लॉन्च एंटी-शिप मिसाइल (Tube-Launched Anti-Ship Missiles), सोनार और सेंसर सूट (Sonars & Sensor Suites) शामिल होने की उम्मीद है। 
  • स्वदेशी सामग्री: इस परियोजना में लगभग 70-80% स्वदेशी सामग्री होगी, जिसमें हथियार, मिसाइल, कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम, सोनार, संचार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट, मास्ट (Mast) और पेरिस्कोप (Periscope) शामिल हैं। 

एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (Air Independent Propulsion) 

  • यह एक समुद्री प्रणोदन प्रौद्योगिकी है, जो वायुमंडलीय ऑक्सीजन तक पहुँच के बिना (सतह पर आकर या स्नोर्कल का उपयोग करके) गैर-परमाणु पनडुब्बी के संचालन की क्षमता को बढ़ाती है। 
  • महत्त्व: AIP मॉड्यूल एक बल गुणक के रूप में कार्य करता है क्योंकि यह पारंपरिक पनडुब्बियों को लंबे समय तक जल में डूबे रहने में सक्षम बनाता है, जिससे उसकी क्षमता में वृद्धि हो जाती है और पता लगने की संभावना कम हो जाती है। 
  • प्रकार: क्लोज्ड साइकिल डीजल इंजन (Closed Cycle Diesel Engine- CCD), ऑटोनोमस सबमरीन एनर्जी मॉड्यूल (Autonomous Submarine Energy Module- MESMA), स्टर्लिंग इंजन (Stirling Engine) और ईंधन सेल (Fuel Cells)। 
  • स्वदेशी AIP प्रौद्योगिकी (Indigenous AIP Technology): DRDO की नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (Naval Materials Research Laboratory- NMRL) की ईंधन सेल आधारित एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (Air Independent Propulsion- AIP) प्रणाली जल्द ही INS कलवरी पर लगाई जाएगी। 
    • ईंधन सेल: AIP मॉड्यूल फॉस्फोरिक एसिड आधारित है और इसमें हाइड्रोजन उत्पन्न करने वाली ईंधन सेल का एक समूह है, प्रत्येक ईंधन सेल का विद्युत उत्पादन 13.5 किलोवाट है, जिसे अंततः प्रोजेक्ट-76 की भविष्य की पनडुब्बी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 20 किलोवाट तक बढ़ाया जाएगा। 

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