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प्राइमर के उपयोग द्वारा क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देना

Lokesh Pal May 09, 2024 03:10 133 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने अपने सभी स्कूलों को शैक्षिक सामग्री का उपयोग करने का निर्देश दिया है, जो मातृभाषा में सीखने पर ध्यान केंद्रित करेगी और बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करेगी।

प्राइमर (PRIMER) का मतलब बच्चों को पढ़ना सिखाने वाली एक छोटी किताब है।

संबंधित तथ्य 

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2022 के अनुरूप CBSE के हालिया परिपत्र में, बच्चे की मातृभाषा, या क्षेत्रीय और स्थानीय भाषा में शिक्षण एवं सीखने पर ध्यान दिया गया है।
  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council for Educational Research and Training) और भारतीय भाषा संस्थान (Indian Institute of Languages) ने देश भर में बोली जाने वाली विभिन्न मातृभाषाओं एवं स्थानीय भाषाओं के अनुरूप 52 प्रवेश स्तर के प्राइमर (वर्णमाला की पुस्तक) की एक शृंखला तैयार करने के लिए सहयोग किया है।
  • CBSE ने कहा है कि इन प्राइमर का उपयोग विद्यार्थियों को जल्दी भाषा कौशल सीखने और उनमें महारत हासिल करने में सहायता के लिए किया जाना चाहिए, यदि उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा, स्कूलों में शिक्षा के माध्यम के रूप में उपलब्ध नहीं है।

52 प्राइमर्स पहल (52 Primers Initiative)

  • भारतीय भाषाओं में 52 प्राइमर या लघु पाठ्यपुस्तकें युवा शिक्षार्थियों के लिए, विशेष रूप से प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education-ECCE) के लिए एक परिवर्तनकारी चरण बन सकती हैं, जो उन्हें उनकी मातृभाषा/स्थानीय भाषा में शिक्षा तक पहुँच प्रदान करेगी।
  • इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुसरण में स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग (DoSEL) द्वारा विकसित किया गया है।
  • विशेषताएँ
    • यह स्थानीय भाषा में बुनियादी पाठक या रीडर तैयार करेगा।
    • यह बालवाटिकाओं और आंगनवाड़ियों के बच्चों को अंकों से परिचित कराता है।
    • यह वयस्क साक्षरता कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देता है।
    • यह किसी भाषा के वर्णमाला के अक्षरों एवं प्रतीकों के उच्चारण एवं समझ में मदद करता है।
    • यह बच्चों को एक शब्द में प्रारंभिक, मध्य और अंतिम स्थिति में उनके संयोजन के माध्यम से बने अक्षरों के एक या अधिक सेट के अर्थ से परिचित कराने में मदद करता है।
  • उपयोगिता एवं महत्त्व
    • यह युवा दिमागों के लिए एक प्रेरणादायक अवसर उपलब्ध कराएगा, जो गहरी समझ, आजीवन सीखने, स्वदेशी संस्कृति में अधिक परिचय और शिक्षाविदों एवं उससे आगे की सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
    • बहुभाषी शिक्षण की चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा जैसे- स्थानीय भाषाओं में शिक्षण के लिए कुशल शिक्षकों की उपलब्धता।
      • ये प्राइमर तीन से आठ वर्ष की आयुवर्ग के बच्चों को बुनियादी स्तर पर उनकी स्थानीय भाषा में पढ़ाने में मदद करेंगे।
    • भूटिया, बोडो, गारो, खानदेशी, किन्नौरी, कुकी, मणिपुरी, नेपाली, शेरपा और तुलु कुछ ऐसी भाषाएँ हैं, जिनमें प्राइमर उपलब्ध हैं।

क्षेत्रीय भाषा का महत्त्व 

  • सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए: क्षेत्रीय भाषाएँ परंपराओं, लोककथाओं और सदियों पुराने ज्ञान को समाहित करती हैं, जिससे सांस्कृतिक विरासत के साथ जुड़ाव को बढ़ावा मिलता है।
  • भाषायी विविधता के माध्यम से युवा दिमागों का पोषण करना 
    • संज्ञानात्मक विकास पर प्रभाव (Impact on Cognitive Development): बहुभाषावाद संज्ञानात्मक विकास को बढ़ाता है, मस्तिष्क के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करता है और समस्या-समाधान कौशल और रचनात्मकता को बढ़ावा देता है।
    • समग्र बौद्धिक टूलकिट (Intellectual Toolkit): भाषा सीखना एक समग्र बौद्धिक टूलकिट प्रदान करता है, जो भाषा दक्षता से परे संज्ञानात्मक लचीलेपन को शामिल करता है।
  • अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने के लिए: भाषा एक साझा स्थान बनाकर अपनेपन को बढ़ावा देती है, जहाँ विद्यार्थी स्वीकार्य और मूल्यवान महसूस करते हैं।
  • शिक्षा में सांस्कृतिक विविधता को अपनाना: शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर देना छात्रों को विविध संस्कृतियों से जोड़ता है और परंपराओं को संरक्षित करता है।
  • नई शिक्षा नीति 2020 का प्रभाव: भारत में नई शिक्षा नीति 2020 का कार्यान्वयन सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और संज्ञानात्मक समझ को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देता है।

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