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फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता का प्रस्ताव: फ्राँस

Lokesh Pal July 28, 2025 03:10 21 0

संदर्भ

फ्राँसीसी राष्ट्रपति ने घोषणा की कि फ्राँस सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन राज्य को आधिकारिक रूप से मान्यता देगा और ऐसा करने वाला वह G7 का पहला देश बन जाएगा।

राज्य के चार आवश्यक घटक हैं:-

  • जनसंख्या
  • क्षेत्र
  • सरकार
  • संप्रभुता

राष्ट्र लोगों का एक समूह है, जो साझा संस्कृति, भाषा, इतिहास या जातीयता से एकजुट होता है।

  • एक राज्य (स्टेट) में एक या कई राष्ट्र शामिल हो सकते हैं। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक और भावनात्मक पहचान से अधिक संबंधित होता है।
  • राष्ट्रों की राजनीतिक संप्रभुता हो भी सकती है और नहीं भी।
    • उदाहरण:कुर्द’ समुदाय एक राज्य विहीन राष्ट्र के उदाहरण हैं।

संबंधित तथ्य

  • फ्राँसीसी राष्ट्रपति ने इस मान्यता को टू-स्टेट समाधान को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक कदम बताया, जिसमें इजरायल और फिलिस्तीन शांति तथा सुरक्षा के साथ सह-अस्तित्व में रहेंगे।
  • उन्होंने इसकी आवश्यकता दोहराई
    • गाजा में तत्काल युद्धविराम
    • हमास का विसैन्यीकरण
    • मानवीय सहायता और गाजा का पुनर्निर्माण
    • पारस्परिक मान्यता: फिलिस्तीन को इजरायल को मान्यता देनी होगी साथ ही इजरायल को फिलिस्तीनी संप्रभुता को स्वीकार करना होगा।

फिलिस्तीन की उत्पत्ति

  • फिलिस्तीन मध्य पूर्व का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है, जो भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच अवस्थित है। यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम के लिए इसका गहरा धार्मिक महत्त्व है।
  • समय के साथ, इस क्षेत्र पर विभिन्न साम्राज्यों बेबीलोनिया, फारसी, रोमन, इस्लामी खिलाफत और ओटोमन साम्राज्य (वर्ष 1517-1917) का शासन रहा।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद, ब्रिटेन ने राष्ट्र संघ के अधिदेश (वर्ष 1923) के तहत इस पर नियंत्रण कर लिया, जिसमें एक यहूदी  क्षेत्र संबंधी प्रावधान शामिल थे।
  • वर्ष 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने इस क्षेत्र को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें येरुशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया गया। यह आधुनिक इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।
  • वर्तमान मेंफिलिस्तीनी क्षेत्रमुख्य रूप से पश्चिमी तट और गाजा पट्टी को संदर्भित करता है, जहाँ इजरायल और फिलिस्तीनी प्राधिकरण के बीच शासन व्यवस्था जटिल एवं विवादास्पद बनी हुई है।

वर्तमान मान्यता स्थिति

  • संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 146 अब फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देते हैं।
  • इसे मुख्यतः एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अरब समूह के अधिकांश देशों से समर्थन मिलता है।
  • अमेरिका, कनाडा, पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया ने इसे अब तक मान्यता नहीं दी है।
  • संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद की मंजूरी आवश्यक है। किंतु अप्रैल 2024 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता के प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया।

टू स्टेटसमाधान क्या है?

  • मूल विचार: ऐतिहासिक फिलिस्तीन को दो राज्यों में विभाजित करना एक यहूदियों (इजरायल) के लिए और दूसरा अरबों (फिलिस्तीन) के लिए, जो स्थायी शांति के मार्ग के रूप में है।
  • इसका अर्थ है कि एक संप्रभु, स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य का निर्माण, जो इजरायल के साथ अस्तित्व में रहेगा और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत कार्य करेगा।

फिलिस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र विशेष आयोग (UN Special Commission on Palestine- UNSCOP) योजना

  • UNSCOP ने एक नई विभाजन योजना प्रस्तावित की—UNGA प्रस्ताव 181
    • 56% भूमि यहूदियों को (जो जनसंख्या का 32% थे)।
    • शेष भूमि अरबों को
    • येरूशलम का प्रशासन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा
  • अरब पक्ष ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, जबकि जायनिस्ट नेतृत्व ने इसे स्वीकार कर लिया और 14 मई, 1948 को एकतरफा रूप से इजरायल की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, जिसके परिणामस्वरूप प्रथम अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया।

इसका क्या अर्थ है

  • वर्ष 1967 से पूर्ववर्ती सीमाओं के अंतर्गत फिलिस्तीनी संप्रभुता को मान्यता।
  • फिलिस्तीनी दूतावास की स्थापना सहित पूर्ण राजनयिक संबंध।
  • राज्य के दर्जे के लिए प्रतीकात्मक समर्थन, लेकिन कोई तात्कालिक कानूनी या आर्थिक परिवर्तन नहीं।

फिलिस्तीन के प्रति भारत की नीति

  • वर्ष 1974 में, भारत फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (Palestine Liberation Organization- PLO) को फिलिस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना।
  • वर्ष 1988 में, भारत फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बना।
  • वर्ष 1996 में, भारत ने गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में वर्ष 2003 में रामल्लाह स्थानांतरित कर दिया गया।
  • वर्ष 2011 में, भारत ने फिलिस्तीन को यूनेस्को का पूर्ण सदस्य बनाने के पक्ष में मतदान किया।
  • मतदान पैटर्न: भारत ने पिछले 5 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे से संबंधित 54 प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया है और 8 प्रस्तावों पर मतदान से दूरी बनाए रखी।
  • डि-हाइफनेशन नीति: यह इजरायल और फिलिस्तीन के साथ अलग-अलग संबंध स्थापित करने के भारत के दृष्टिकोण को संदर्भित करती है, जिसमें प्रत्येक द्विपक्षीय संबंध को उसके गुणों के आधार पर स्वतंत्र रूप से माना जाता है।
    • इससे पूर्व, भारत की विदेश नीति मुख्यतः फिलिस्तीन समर्थक थी।
    • हालिया वर्षों में, भारत ने फिलिस्तीनी हितों के प्रति अपने पारंपरिक समर्थन को बनाए रखते हुए, इजरायल के साथ संबंधों (विशेषतः रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में) को मजबूत करने का प्रयास किया है, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में एकरूपता आई है।

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