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भारत की वृद्ध आबादी की सुरक्षा

Lokesh Pal August 30, 2025 02:42 79 0

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक से वैश्विक स्तर पर वृद्ध आबादी में गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

वृद्धावस्था संबंधी देखभाल (Geriatric Care) से तात्पर्य विशेष चिकित्सा और सामान्य देखभाल से है जो वृद्धों, विशेष रूप से 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की स्वास्थ्य, कार्यात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रदान की जाती है।

संबंधित तथ्य

  • भारत में, वर्ष 2000-2004 और वर्ष 2017-2021 के बीच अत्यधिक गर्मी के कारण 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की मृत्यु दर में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
    • भारत के 10 शहरों में, अत्यधिक गर्मी के कारण वृद्धों की दैनिक मृत्यु दर में 14.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
    • देश में हीटवेव से संबंधित सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दर्ज की गईं।
  • गर्मी की तीव्रता में वृद्धि तथा तेजी से बढ़ती वृद्ध आबादी, मानव अस्तित्व और कल्याण के लिए गंभीर चुनौती बन गई है।

वयोवृद्ध (Elderly) कौन है?

  • वृद्धजनों पर राष्ट्रीय नीति, 1999 तथा वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2011 के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को वयोवृद्ध के रूप में नामित किया जाता है तथा उनके कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय सुरक्षा और सामाजिक समावेशन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

भारत में वयोवृद्ध आबादी की स्थिति (नीति आयोग रिपोर्ट, 2024)

  • भारत की कुल आबादी का 12% हिस्सा वयोवृद्ध का है और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह संख्या 319 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जो प्रति वर्ष लगभग 3% की दर से बढ़ रही है।
  • वयोवृद्ध आबादी में कुल लिंगानुपात 1065 है।
  • कुल वयोवृद्ध आबादी में 58% महिलाएँ हैं, जिनमें से 54% विधवाएँ हैं।
  • कुल निर्भरता अनुपात 100 कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या पर 62 है।
  • 10 में से 7 वयोवृद्ध ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।

जनसांख्यिकीय बदलाव तथा वृद्धावस्था देखभाल की बढ़ती माँग

  • वयोवृद्ध आबादी में तीव्र वृद्धि: भारत में वृद्धों (60 वर्ष से अधिक आयु) की संख्या वर्ष 2022 में 149 मिलियन थी और वर्ष 2050 तक 319 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जो कुल जनसंख्या का लगभग 20% है।
  • जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और प्रजनन क्षमता में कमी: जीवन प्रत्याशा 35.8 वर्ष (वर्ष 1950) से बढ़कर 75 वर्ष (वर्ष 2050 के लिए अनुमानित) हो गई है, जबकि प्रजनन क्षमता 5.9 वर्ष (वर्ष 1950) से घटकर वर्तमान में लगभग 2.0 वर्ष हो गई है।
    • युवा आबादी का संकुचित होता आधार और वृद्ध निर्भरता अनुपात में वृद्धि हुई है जो  एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक यह 61.2 हो जाएगी।
  • वयोवृद्ध में रोगों का उच्च भार: 75% वृद्धजन कम-से-कम एक दीर्घकालिक रोग से पीड़ित हैं, और 23.3% बहु-रुग्णता से पीड़ित हैं।
    • मनोभ्रंश, अल्जाइमर और हृदय संबंधी बीमारियों जैसी अपक्षयी बीमारियाँ बढ़ रही हैं, जिनके लिए विशेष दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • वृद्धावस्था देखभाल के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा एवं कार्यबल: माँग में वृद्धि के बावजूद, वृद्धावस्था देखभाल शहर-केंद्रित और विखंडित बनी हुई है।
    • राष्ट्रीय वृद्धावस्था केंद्र (चेन्नई) प्रतिदिन 800-1000 रोगियों का उपचार करता है, जो भारी अप्राप्ति माँग को दर्शाता है।
    • इस बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत में पर्याप्त वृद्धावस्था विशेषज्ञों और प्रशिक्षित नर्सों का अभाव है।
  • पारिवारिक संरचनाओं में बदलाव अनौपचारिक वृद्ध सहायता को कमजोर कर रही हैं: एकल परिवारों और युवाओं के प्रवास की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण वृद्ध लोग अकेले रह जाते हैं, और प्रायः उनके पास देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है।
    • तमिलनाडु हेल्पलाइनों पर वृद्धों को छोड़ दिए जाने की बढ़ती घटनाओं की रिपोर्ट दी गई है, जिनमें से कई को अस्पतालों या सार्वजनिक स्थानों पर छोड़ दिया गया है।

भारत में वृद्धों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ
    • बीमारियों का बढ़ता बोझ: 75% वृद्ध एक या एक से अधिक दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित हैं, और 23.3% बहु-रुग्णता (कई सह-अस्तित्व वाली बीमारियाँ) से पीड़ित हैं।
      • सामान्य बीमारियाँ: मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, मनोभ्रंश, कैंसर।
    • स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: 18% वृद्धों के पास स्वास्थ्य बीमा है; अधिकांश को ‘आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंस’ (OOPE) करना पड़ता है।
      • वृद्धावस्था देखभाल मुख्यतः शहरी तृतीयक केंद्रों तक ही सीमित है; ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी पहुँच कमजोर बनी हुई है।
    • सीमित प्रशिक्षित कार्यबल: वृद्ध रोग विशेषज्ञों, वृद्धावस्था-प्रशिक्षित नर्सों और फिजियोथेरेपिस्टों की कमी बनी हुई है।
  • सामाजिक चुनौतियाँ
    • अलगाव एवं परित्याग: एकल परिवारों के बढ़ने और युवाओं के प्रवास के कारण कई वृद्ध देखभाल सेवाओं से रहित हैं।
    • वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार: कम-से-कम 5% वृद्धों ने शारीरिक, भावनात्मक या आर्थिक दुर्व्यवहार का अनुभव किया है।
    • अधिकारों और योजनाओं के बारे में कम जागरूकता: केवल 12% लोग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम (2007) के बारे में जानते हैं।
      • 28% लोगों को वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली किसी भी सहायता के बारे में जानकारी है।

वयोवृद्धों में गर्मी से मृत्यु के कारण 

  • शारीरिक कारक: हीटवेव, कम तापमान नियंत्रण और कम ऊष्मा निष्कासन आदि कारक वयोवृद्धों में मृत्यु दर को बढ़ाते हैं, जिससे हाइपरथर्मिया और हीट स्ट्रोक होता है।
  • लैंगिक-आधारित जोखिम: ग्रामीण या कम आय वाले परिवारों में वृद्ध महिलाएँ कम वेंटिलेशन वाले आवास और देखभाल संबंधी दायित्वों के कारण घर के भीतर तीव्र गर्मी का सामना करती हैं, जबकि वृद्ध पुरुष सीमित जलयोजन के बावजूद लंबे समय तक बाहरी कार्य में संलग्न रहते हैं।
  • पर्यावरणीय तनाव: 20°C से ऊपर के तापमान की उष्णकटिबंधीय रातें शरीर को ठंडा करने में बाधा डालती हैं, नींद में खलल डालती हैं और हृदय तथा श्वसन तंत्र पर दबाव डालती हैं, विशेषकर उन घरों में जहाँ पर्याप्त शीतलन नहीं होता है।
  • सामाजिक कमजोरियाँ: सीमित गतिशीलता, अलगाव और कम सामुदायिक सहभागिता वृद्धों के लिए जोखिम बढ़ाती है, जिससे अत्यधिक गर्मी की घटनाओं के दौरान मृत्यु दर बढ़ जाती है।

  • आर्थिक चुनौतियाँ
    • वित्तीय सुरक्षा का अभाव: 78% वृद्धों के पास पेंशन कवरेज नहीं है।
      • अनेक लोग बिना वेतन के कार्य करते रहते हैं, विशेषकर कृषि क्षेत्र में, ग्रामीण क्षेत्रों में 65% वयोवृद्ध लोग सेवानिवृत्ति के बाद भी कार्य करते हैं।
    • उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागत: ‘इन-पेशेंट’ देखभाल पर औसत प्रत्यक्ष व्यक्तिगत खर्च (OOPE) ₹31,933 है, जो ऋणग्रस्तता का प्रमुख कारण है; शहरी भारत में इसकी दर 26% है।
  • बुनियादी ढाँचा तथा सेवा अंतराल
    • सार्वजनिक स्थानों पर आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे का अभाव (जैसे- रैंप, रेलिंग, सुलभ परिवहन)।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी: इसमें निम्न की कमी देखी जा रही है।
      • आयु-अनुकूल अस्पताल (गिरने से सुरक्षित डिजाइन के साथ)।
      • वृद्धावस्था वार्ड और डे-केयर सेंटर।
      • सहायक आवास तथा दीर्घकालिक देखभाल सुविधाएँ।
  • उपेक्षित निवारक देखभाल तथा पोषण
    • वयस्क टीकाकरण (जैसे- न्यूमोकोकल, फ्लू) मुख्यधारा में नहीं है; 60 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक दूसरे व्यक्ति को सह-रुग्णताएँ होती हैं जो जोखिम को बढ़ाती हैं।
    • पोषण संबंधी समस्याएँ
      • 27% कम वजन वाले, 22% अधिक वजन वाले।
      • 4.7% एनीमिया से पीड़ित, ग्रामीण वृद्धों में खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है।

भारत में वृद्धावस्था देखभाल का विकास 

  • 1970 के दशक के उत्तरार्ध में: डॉ. वी. एस. नटराजन ने चेन्नई के सरकारी जनरल अस्पताल में भारत की पहली वृद्धावस्था बाह्य रोगी इकाई (Geriatric Outpatient Unit) की स्थापना की।
  • वर्ष 1996: डॉ. नटराजन ने मद्रास मेडिकल कॉलेज में दो सीटों के साथ वृद्धावस्था चिकित्सा में पहला एमडी पाठ्यक्रम शुरू किया, जिससे वयोवृद्धों की देखभाल में विशिष्ट चिकित्सा शिक्षा की शुरुआत हुई।
  • वर्ष 1999: वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति ने पहली बार वृद्धावस्था को एक विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकता के रूप में मान्यता दी।
  • वर्ष 2007: माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 पारित हुआ, जिससे वृद्धों को त्यागने के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई।
  • वर्ष 2010: वृद्धों को विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय वयोवृद्ध स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (National Programme for Health Care of the Elderly- NPHCE) शुरू किया गया।

भारत में वयोवृद्ध आबादी का प्रभाव

  • स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव: स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से वृद्धावस्था और दीर्घकालिक देखभाल की माँग में वृद्धि।
    • लगभग 75% वृद्धजन दीर्घकालिक बीमारियों से ग्रस्त हैं तथा 23.3% वृद्धजन बहु-रुग्णता से ग्रस्त हैं।
  • परिवारों और देखभाल करने वालों पर दबाव: एकल परिवारों में वृद्धि और युवाओं के प्रवास के कारण कई बुजुर्ग लोग या तो अकेले रह गए हैं या उन्हें छोड़ दिया गया है।
    • जीवनसाथी या बुजुर्ग देखभालकर्ताओं पर भावनात्मक और वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।
  • आर्थिक बोझ: वृद्धों को अधिक OOPE का सामना करना पड़ता है (उदाहरण के लिए, अस्पताल में भर्ती मरीजों की देखभाल के लिए 31,933 रुपये)।
    • 78% वृद्धों को पेंशन नहीं मिलती है; कई लोग कम वेतन वाले/अवैतनिक क्षेत्रों में कार्य करना जारी रखते हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा, सहायता प्राप्त जीवन और सहायक सेवाओं की बढ़ती खपत से सार्वजनिक और निजी खर्च में वृद्धि हो सकती है।
  • संकुचित कार्यबल और उत्पादकता: वृद्ध आबादी में वृद्धि और घटती प्रजनन दर (TFR ~2.0) के कारण निर्भरता अनुपात बढ़ रहा है। वर्ष 2050 तक इसके 61.2 तक पहुँचने का अनुमान है।
    • कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में कमी से आर्थिक उत्पादकता और कर आधार प्रभावित होता है।
  • आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता: अधिकांश सार्वजनिक स्थान और परिवहन वृद्धों के अनुकूल नहीं हैं: इनमें रैम्प, रेलिंग, बेंच या सुलभ शौचालयों का अभाव है।
    • सुरक्षित आवास, सहायतायुक्त आवास और वरिष्ठ गतिविधि केंद्रों की माँग में वृद्धि हो रही है।
  • संवेदनशीलता में वृद्धि: वृद्धजन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, उदाहरण के लिए, वर्ष 2018 में 65 से अधिक आयु वर्ग के 31,000 लोगों की गर्मी से संबंधित मृत्यु हुई।​
    • इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएँ, विशेषकर वृद्ध महिलाएँ, दुर्व्यवहार, धोखाधड़ी और उपेक्षा की शिकार हो सकती हैं।​

हीट स्ट्रेस  (Heat Stress) के समाधान

भारत की वृद्ध होती जनसंख्या के साथ-साथ अत्यधिक गर्मी का बढ़ता खतरा तत्काल कार्रवाई की माँग करता है।

  • प्रौद्योगिकी एवं पहुँच
    • शोधकर्ताओं ने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए एक ठंडा कपड़ा विकसित किया है, लेकिन वृद्धों के लिए इसकी सामर्थ्य एवं उपलब्धता अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है।
    • सरकार को वृद्धों, बाहरी कामगारों और ग्रामीण गरीबों जैसे सुभेद्य समूहों की सुरक्षा के लिए ऐसी तकनीकों का विस्तार और सब्सिडी देनी चाहिए।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय
    • वयोवृद्ध पर केंद्रित रणनीतियों के साथ ताप नियंत्रण कार्रवाई संबंधी योजनाओं को सुदृढ़ करना।
    • स्वास्थ्य एवं आपदा कार्यकर्ताओं के लिए ताप निगरानी, ​​जोखिम मानचित्रण और प्रशिक्षण का विस्तार करना।
  • प्रारंभिक चेतावनी और आउटरीच
    • रीयल-टाइम अलर्ट के लिए उमंग, मौसम, मेघदूत और दामिनी को एकीकृत करके एक ऐप विकसित करना।
    • समय पर जन जागरूकता और मार्गदर्शन के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना।
  • दीर्घकालिक जलवायु कार्रवाई
    • अल्पकालिक राहत से दीर्घकालिक लचीलेपन की ओर बदलाव।
    • कार्बन उत्सर्जन कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार करना और सभी क्षेत्रों में स्थायी प्रथाओं को अपनाना।

सरकारी पहल 

  • वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति (NPOP), 1999: इस नीति का उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों का कल्याण, सम्मान और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • वयोवृद्धों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Health Care of the Elderly- NPHCE), 2010: इस कार्यक्रम का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के माध्यम से वृद्धों के लिए सुलभ, सस्ती और विशिष्ट स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
  • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), 2018: इस योजना उद्देश्य वृद्धजनों सहित सभी के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है।
    • वर्ष 2024 में, 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को इसका लाभ मिलेगा।
    • द्वितीयक एवं तृतीयक अस्पताल में भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रति वर्ष ₹5 लाख तक की सहायता प्रदान की जाएगी, जिसमें वृद्धजनों से संबंधित कई विशिष्ट रोग (जैसे- मोतियाबिंद सर्जरी, जोड़ प्रतिस्थापन) शामिल हैं।
  • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 (वर्ष 2019 में संशोधित)
    • उद्देश्य: वृद्धों को उनके परिवारों से वित्तीय और भावनात्मक सहायता सुनिश्चित करना।
      • बच्चों या कानूनी उत्तराधिकारियों को माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण-पोषण (₹10,000/माह तक) प्रदान करना अनिवार्य है।
  • राष्ट्रीय वयोश्री योजना, 2017: इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों के वृद्धों को सहायक उपकरण प्रदान करना है।
  • अटल वयो अभ्युदय योजना (AVYAY), 2021: इसका उद्देश्य वृद्धजन कल्याण योजनाओं को समेकित एवं विस्तारित करना।
  • सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (Indira Gandhi National Old Age Pension Scheme- IGNOAPS): केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2007 में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme- NSAP) के एक भाग के रूप में इसे शुरू किया गया था।
      • 60 वर्ष से अधिक आयु के BPL वृद्धों को मासिक पेंशन (केंद्र सरकार द्वारा 200-500 रुपये, राज्यों द्वारा अनुपूरित) प्रदान की जाती है।
    • अन्नपूर्णा योजना: IGNOAPS के अंतर्गत न आने वाले निराश्रित वृद्धजनों को मासिक रूप से 10 किलो निःशुल्क खाद्यान्न प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY): एक पेंशन योजना जो एकमुश्त निवेश करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को गारंटीकृत रिटर्न प्रदान करती है।
  • एल्डरलाइन (14567): वरिष्ठ नागरिकों की शिकायतों के समाधान के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन।

सिल्वर इकॉनमी (Silver Economy)

  • सिल्वर इकॉनमी, वृद्ध नागरिकों से संबंधित सार्वजनिक और उपभोक्ता व्यय से उत्पन्न होने वाले आर्थिक अवसरों को संदर्भित करती है।
  • इसमें वे उत्पाद एवं सेवाएँ शामिल हैं जिन्हें वे सीधे खरीदते हैं और वे अप्रत्यक्ष आर्थिक गतिविधियाँ, जिन्हें वे प्रोत्साहित करते हैं।

भारत में वृद्धों की देखभाल के लिए आगे की राह

  • वृद्धावस्था स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करना: स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के सभी स्तरों में वृद्धावस्था देखभाल को एकीकृत करना, वयस्क टीकाकरण (जैसे- न्यूमोकोकल, फ्लू टीके) को संचालित करना।
    • निवारक एवं चिकित्सीय देखभाल में आयुष प्रणालियों को शामिल करना।
  • कुशल कार्यबल का निर्माण: सभी मेडिकल कॉलेजों में वृद्ध चिकित्सा विभाग स्थापित करना।
    • अल्पावधि पाठ्यक्रमों के माध्यम से वृद्धावस्था नर्सों, फिजियोथेरेपिस्टों और प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों को प्रशिक्षित करना।
    • तमिलनाडु के वृद्ध देखभालकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसी राज्य-स्तरीय पहलों का विस्तार करना।
  • आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचा विकसित करना: रैंप, लिफ्ट, रेलिंग और शौचालयों सहित सुरक्षित और सुलभ सार्वजनिक स्थान सुनिश्चित करना।
    • किफायती एवं विनियमित सहायतायुक्त आवास एवं वरिष्ठ आवास के विकास को प्रोत्साहित करना।
  • वित्तीय सुरक्षा बढ़ाना: IGNOAPS और PMVVY के अंतर्गत पेंशन कवरेज का विस्तार करना और समय पर वितरण सुनिश्चित करना।
    • रिवर्स मॉर्गेज, वृद्धजनों के अनुकूल कर छूट और किफायती बीमा उत्पादों को बढ़ावा देना।
    • देखभाल और स्वयंसेवी भूमिकाओं में वृद्धजनों के अवैतनिक योगदान को मान्यता देना और उसका मुद्रीकरण करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक समावेशन पर ध्यान केंद्रित करना: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक देखभाल में एकीकृत करना।​
    • स्कूल स्तर पर जागरूकता अभियानों के माध्यम से अंतर-पीढ़ीगत जुड़ाव को बढ़ावा देना।
    • सामुदायिक सहभागिता के लिए वरिष्ठ गतिविधि केंद्र (Senior Activity Centres- SAC) और सहकर्मी सहायता समूह स्थापित करना।
  • डिजिटल डिवाइड को पाटना: वरिष्ठ नागरिकों के लिए वहनीय डिजिटल उपकरणों तक पहुँच में सुधार करना।
    • वृद्धों को स्वास्थ्य, बैंकिंग और सरकारी सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने में मदद के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम संचालित करना।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के केवल 13% लोगों ने ही कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।
  • कानूनी और नीति कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना: माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम (2007) के अंतर्गत न्यायाधिकरण के मामलों में तेजी लाना।
    • वृद्धों से संबंधित सभी योजनाओं, सेवाओं और सहायता के लिए वन-स्टॉप पोर्टल शुरू करना।
  • नवाचार और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: वृद्धाश्रमों, डिजिटल प्लेटफार्मों और देखभाल संबंधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण में CSR भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • वृद्धजन तकनीक, टेलीमेडिसिन और वृद्धावस्था सहायता के क्षेत्र में स्टार्टअप्स और नवाचारों का समर्थन करना।
    • सिल्वर इकोनॉमी का विकास करना, जिसके वर्ष 2027 तक 7 अरब डॉलर से बढ़कर 21 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।

निष्कर्ष

भारत की वयोवृद्ध आबादी को स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और तकनीक को एकीकृत करने वाली एक मजबूत, समावेशी वृद्ध देखभाल प्रणाली की आवश्यकता है। नीतियों को सशक्त बनाना, ग्रामीण-शहरी अंतराल को पाटना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना, वर्ष 2050 तक वृद्धों के सम्मान और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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