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सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण नीतियाँ

Lokesh Pal January 13, 2025 05:31 159 0

संदर्भ

हाल ही में वैश्विक पोषण लक्ष्यों (Global Nutrition Targets- GNTs) की प्राप्ति (या असफलता) की दिशा में वैश्विक प्रगति का मूल्यांकन द लैंसेट (The Lancet) में प्रकाशित हुआ था। 

संबंधित तथ्य

  • विश्लेषण में वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक 204 देशों में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति के रुझान दिए गए हैं, जिसमें वर्ष 2050 तक के अनुमान भी शामिल हैं।
  • सामान्य तौर पर, सभी देशों में धीमी और अपर्याप्त प्रगति दिखाई दी।
  • यह अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2030 तक, कुछ ही देश (भारत नहीं) स्टंटिंग के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होंगे, और कोई भी देश जन्म के समय कम वजन, एनीमिया और बचपन के समय के मोटापे को पूरा नहीं कर पाएगा।
  • कुपोषण में थोड़ी प्रगति हुई है, लेकिन अधिक वजन जैसी समस्याओं में वृद्धि हुई है।

पोषण से संबंधित बुनियादी अवधारणाएँ

  • स्टंटिंग (Stunting)
    • स्टंटिंग का तात्पर्य खराब पोषण, बार-बार संक्रमण और अपर्याप्त मनोसामाजिक उत्तेजना के कारण बच्चों के  वृद्धि एवं विकास में बाधा से है।
    • ‘ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 34.7% बच्चे स्टंटिंग से पीड़ित हैं, जो एशिया के क्षेत्रीय औसत से अधिक है।
  • एनीमिया (Anaemia)
    • एनीमिया की पहचान लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी से होती है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन कम हो जाता है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) से पता चलता है कि एनीमिया का अधिक भार है, जो भारत में प्रजनन आयु की 57% महिलाओं को प्रभावित करता है।
  • वेस्टिंग (Wasting)
    • वेस्टिंग कुपोषण का एक रूप है, जिसमें व्यक्ति, विशेष रूप से बच्चे का वजन-ऊँचाई के अनुपात में कम होता है, जो तीव्र कुपोषण का संकेत देता है।
    • यह गंभीर रूप से वजन घटने को दर्शाता है, जो अक्सर पर्याप्त आहार न मिलने या डायरिया जैसी संक्रामक बीमारियों के कारण होता है, जो पोषक तत्त्वों के अवशोषण को बाधित करते हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण के बारे में

  • परिभाषा: सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण अध्ययन का वह क्षेत्र है, जो आबादी में पोषण संबंधी बीमारियों की रोकथाम सुनिश्चित कर अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और इन समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों से संबंधित है।
  • इसे समाज के संगठित प्रयासों/कार्रवाई के माध्यम से स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारियों को रोकने, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है।
  • यह आहार की कमियों, अधिकता और संबंधित स्वास्थ्य स्थितियों को संबोधित करने के लिए विज्ञान, नीति और कार्यक्रमों को एकीकृत करता है, जिससे समग्र कल्याण सुनिश्चित होता है।

पोषण सुरक्षा का महत्त्व

  • फाउंडेशन फॉर ह्यूमन कैपिटल: भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन से पीड़ित हैं (NFHS-5)।
    • विश्व बैंक के अनुसार, कुपोषण के कारण भारत को उत्पादकता में सालाना 10 बिलियन डॉलर की हानि होती है।

वैश्विक पोषण लक्ष्यों के बारे में

  • वैश्विक पोषण लक्ष्य विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) द्वारा वर्ष 2012 में स्थापित मापनीय लक्ष्यों का एक समूह है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक सभी प्रकार के कुपोषण से निपटना है।
  • ये लक्ष्य मातृ, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि खराब पोषण से जुड़ी मृत्यु दर, रुग्णता और विकास संबंधी चुनौतियों को कम किया जा सके।

छह वैश्विक पोषण लक्ष्य 2025

  • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनेपन की समस्या से निपटना: अविकसित बच्चों की संख्या में 40% की कमी करना।
  • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में कमजोरी को दूर करना: कमजोरी को 5% से कम पर बनाए रखना।
  • बचपन में अधिक वजन को रोकना: 5 वर्ष से कम आयु के अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या को नियंत्रित करना।
  • प्रजनन आयु की महिलाओं को एनीमिया मुक्त होने सहायता प्रदान करना: 15-49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया के प्रसार में 50% की कमी लाना।
  • केवल स्तनपान बढ़ाना: पहले 6 महीनों के लिए केवल स्तनपान की दर को बढ़ाकर कम-से-कम 50% करना।
  • जन्म के समय कम वजन (LBW) की समस्या को कम करना: जन्म के समय कम वजन की समस्या को 30% तक कम करना।

  • स्वास्थ्य परिणामों में सुधार: पर्याप्त पोषण एनीमिया जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करता है, जो प्रजनन आयु की 57% महिलाओं को प्रभावित करता है (NFHS-5)।
    • उदाहरण: भारत के PDS में आयरन के साथ चावल को फोर्टीफाइड करने का उद्देश्य आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया को दूर करना है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है: WHO के अनुसार, एक अच्छी तरह से पोषित आबादी कार्यबल की उत्पादकता को 20-30% तक बढ़ाती है।
    • उदाहरण: वियतनाम ने एक दशक में कुपोषण को 20% तक कम किया, जिससे 7% वार्षिक जीडीपी वृद्धि में योगदान मिला।
  • खाद्य प्रणालियों को मजबूत करता है: पोषण सुरक्षा कृषि में पोषक तत्त्वों से भरपूर फसलों जैसे बाजरा को शामिल करने के लिए विविधता लाती है।
  • उदाहरण: भारत ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) घोषित किया, जिससे उनकी खेती और खपत को बढ़ावा मिला।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करता है: SDG 2 (भुखमरी को समाप्त करना) और SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण) को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाता है।

भारत में वर्तमान पोषण संबंधी चुनौतियाँ

  • कुपोषण का दोहरा बोझ: NFHS-5 (वर्ष 2019-21) से पता चलता है कि 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे बौने हैं और 22% वयस्क अधिक वजन वाले या मोटे हैं।
    • बिहार (42.9%) और उत्तर प्रदेश (39.7%) जैसे राज्यों में बौनेपन की उच्च दर प्रचलित है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (छिपी हुई भुखमरी): 57% महिलाएँ (15-49 वर्ष) और 67% बच्चे (6-59 महीने) एनीमिया से पीड़ित हैं (NFHS-5)।
    • नमक आयोडीनीकरण कार्यक्रमों के बावजूद पहाड़ी क्षेत्रों में आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों में वृद्धि देखी गई है।
  • खराब आहार विविधता: 6-23 महीने की आयु के केवल 11% बच्चों को पर्याप्त रूप से विविध आहार मिलता है (NFHS-5)।
    • राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में फलों, सब्जियों और प्रोटीन के अपर्याप्त आहार के संबंध में बताया गया है।
  • खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव: खाद्य मुद्रास्फीति वर्ष 2024 में 11.5% तक पहुँच गई, जिससे कई लोगों के लिए पौष्टिक भोजन अप्राप्य हो गया।
    • दालों और खाद्य तेलों की बढ़ती लागत कम आय वाले परिवारों में उनकी खपत को सीमित करती है।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • फ्रंट-ऑफ-पैकेज पोषण लेबलिंग (FOPNL): फ्राँस जैसे देशों ने न्यूट्री-स्कोर प्रणाली को अपनाया है, जो उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने के लिए स्पष्ट पोषण संबंधी जानकारी प्रदान करता है।
  • राजकोषीय नीतियाँ: मैक्सिको और यू.के. जैसे देशों ने शर्करा युक्त पेय पदार्थों पर कर लागू किया है, जिसके परिणामस्वरूप खपत कम हुई है और निर्माताओं द्वारा सुधार को प्रोत्साहित किया गया है।
  • अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का विनियमन: चिली ने बच्चों को अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के विपणन पर सख्त नियम लागू किए हैं, जिसमें विज्ञापन प्रतिबंध और अनिवार्य चेतावनी लेबल शामिल हैं।

  • पोषण में लैंगिक असमानता: सांस्कृतिक मानदंडों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों को अक्सर पुरुषों की तुलना में भोजन में कम कैलोरी और प्रोटीन मिल पाती है।

भारत की राष्ट्रीय पोषण नीति (NNP)

  • वर्ष 1993 में अपनाया गया: स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और शिक्षा को मिलाकर एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • प्रत्यक्ष हस्तक्षेप: पूरक आहार, सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का संवर्द्धन और पोषण शिक्षा।
    • अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप: खाद्य उत्पादन, स्वच्छता और मातृ देखभाल में सुधार।
  • हालिया अपडेट
    • पोषण (POSHAN) अभियान (2018): इसका उद्देश्य स्टंटिंग, कुपोषण और एनीमिया को प्रतिवर्ष 2-3% तक कम करना है।
    • मिड-डे मील योजना: स्कूलों में फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ और दूध को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया गया।
  • परिणाम: NFHS-4 से NFHS-5 तक बौनेपन में 3.4% की कमी देखी गई है।

आगे की राह

  • डेटा-संचालित लक्ष्यीकरण: कुपोषण के हॉटस्पॉट की पहचान करने के लिए एआई और भू-स्थानिक मानचित्रण का उपयोग करना।
    • उदाहरण: आंध्र प्रदेश की वास्तविक समय पोषण निगरानी प्रणाली ने डेटा संग्रह और नीति प्रतिक्रिया में सुधार किया।
  • फोर्टिफिकेशन और बायोफोर्टिफिकेशन: सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ चावल, गेहूँ और नमक जैसे ‘फोर्टिफाइड स्टेपल’ को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: छत्तीसगढ़ के फोर्टिफाइड चावल कार्यक्रम ने पायलट जिलों में एनीमिया को 6% तक कम कर दिया।

सार्वजनिक पोषण समस्याओं से निपटने की रणनीतियों में शामिल हैं:

  • आहार या भोजन-आधारित रणनीतियाँ: विविध, पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुँच में सुधार, खाद्य पदार्थों को सुदृढ़ बनाना और आहार विविधता को प्रोत्साहित करना।
  • पोषक तत्त्व-आधारित या औषधीय दृष्टिकोण: आयरन, विटामिन A और आयोडीन जैसे पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने के लिए पूरक आहार प्रदान करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप: शैक्षणिक अभियान, बेहतर स्वास्थ्य सेवा पहुँच, स्वच्छता और समुदाय-आधारित पहल।
  • आर्थिक रणनीतियाँ: पोषक भोजन की सामर्थ्य और उपलब्धता सुनिश्चित करना, और निम्न-आय समूहों का समर्थन करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप।

  • व्यवहार परिवर्तन अभियान: आहार विविधता और स्वच्छता में सुधार के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
    • उदाहरण: गुजरात की पोषण सखी पहल महिलाओं को संतुलित आहार के बारे में घर घर जाकर प्रशिक्षण प्रदान करने में सहायक है।
  • स्थानीय पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करना: सांस्कृतिक प्रथाओं और आहार संबंधी प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बिठाने के लिए हस्तक्षेप करना।
    • उदाहरण: ओडिशा की ममता योजना माताओं को प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना: सस्ते, पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य उत्पाद विकसित करने के लिए निजी क्षेत्रों के साथ सहयोग करना।
    • उदाहरण: कर्नाटक में भागीदारी स्कूली बच्चों के लिए फोर्टिफाइड स्नैक्स उपलब्ध कराती है।

निष्कर्ष

भारत की पोषण संबंधी चुनौतियाँ बहुआयामी हैं, जिनमें कुपोषण, अतिपोषण और कार्यान्वयन की अक्षमताएँ शामिल हैं। इनसे निपटने के लिए समग्र रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय हस्तक्षेप, सामुदायिक सहभागिता और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना शामिल है। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को स्थानीय समाधानों के साथ जोड़कर, भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण में सुधार और सतत् विकास को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

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