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पंजाब, हरियाणा ने पराली जलाने को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई

Lokesh Pal September 26, 2024 02:58 8 0

संदर्भ

भारत में सर्दियों के आगमन से कुछ सप्ताह पहले, पंजाब और हरियाणा ने इस वर्ष पराली जलाने को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई।

संबंधित तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) से पराली जलाने की घटनाओं और इनके विरुद्ध की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट माँगी है।

पराली जलाने (Stubble Burning) के बारे में

  • यह धान, गेंहूँ आदि फसलों की कटाई के बाद अवशिष्ट के रूप में पुआल (पराली) को आग लगाकर खेत से कृषि अपशिष्ट को हटाने का एक तरीका है।
  • यह ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के सिंधु-गंगा के मैदानों में रबी की फसल की बुवाई के लिए खेतों को साफ करने के लिए किया जाता है।

चुनौतियाँ

  • वायु प्रदूषण: इससे प्रत्येक वर्ष वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तथा AQI ‘गंभीर’ और ‘खतरनाक’ स्तर तक पहुँच जाता है।
  • हानिकारक स्वास्थ्य प्रभाव: यह वायुमंडल में विषैले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), NH3, SO2, कैंसरकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) जैसी हानिकारक गैसें शामिल हैं।

  • ऊष्मा प्रवेश: पराली जलाने से उत्पन्न ऊष्मा मिट्टी में प्रवेश कर जाती है, जिससे नमी एवं उपयोगी सूक्ष्मजीवों की हानि होती है।
    • उदाहरण के लिए, धान के पुआल को जलाने से उत्पन्न ऊष्मा मिट्टी में 1 सेंटीमीटर तक प्रवेश कर जाती है, जिससे मृदा का तापमान लगभग 400 सेल्सियस तक बढ़ जाता है।
  • मृदा की उर्वरता: जमीन पर भूसा जलाने से मिट्टी में पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है।
  • वैश्विक तापन: पराली जलाने के दौरान CO2, N2O, O3 आदि ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं जो वैश्विक तापन में सहायक होती हैं।

पराली जलाने को समाप्त करने के तरीके

  • इन-सीटू प्रबंधन (In-Situ Management): फसल अवशेषों को सीधे खेत में प्रबंधित करने के लिए विशेष मशीनरी या जैव रसायनों का उपयोग करना।
    • उदाहरण के लिए ‘पूसा डीकंपोजर’ (Pusa Decomposer) एक सूक्ष्मजीवी घोल है जो फसल के ठूंठ को खाद में बदलने में मदद करता है।
  • एक्स-सीटू प्रबंधन (Ex-Situ Management): फसल अवशेषों को वैकल्पिक उपयोगों के लिए परिवहन करना, जैसे- खाद बनाना या बायोगैस उत्पादन।
  • को-फायरिंग (Co-Firing): धान के भूसे को पैलेट्स में बदलना और थर्मल पावर प्लांट में ईंधन स्रोत के रूप में उनका उपयोग करना।
  • वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देना: किसानों को ऐसी फसल किस्मों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, जिनमें पराली हटाने की कम आवश्यकता होती है।

केंद्र सरकार से नीतिगत समर्थन: केंद्र सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है, जिससे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली राज्यों में उत्पन्न धान की पराली का कुशलतापूर्वक बाह्य प्रबंधन संभव हो सकेगा।

  • तकनीकी-वाणिज्यिक पायलट परियोजनाएँ: किसानों तथा उद्योगों के बीच आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्थापना।
  • वित्तीय सहायता: मशीनरी और उपकरणों की लागत के लिए सरकारी सहायता (65% तक)।
  • कार्यशील पूंजी: उद्योग और लाभार्थी द्वारा संयुक्त वित्तपोषण या कृषि अवसंरचना निधि (AIF), नाबार्ड (NABARD) या अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से।
  • भूमि व्यवस्था: लाभार्थी भंडारण भूमि को सुरक्षित करने एवं तैयार करने के लिए जिम्मेदार है।
  • परियोजना प्रस्ताव-आधारित सहायता: विशिष्ट मशीनरी और उपकरणों के लिए वित्तीय सहायता।
  • राज्य सरकार की मंजूरी: परियोजनाओं को परियोजना स्वीकृति समितियों द्वारा अनुमोदित किया जाना है।
  • उद्योग का योगदान: प्राथमिक प्रमोटर परियोजना लागत का 25% योगदान देता है।
  • किसान या समूह का योगदान: प्रत्यक्ष लाभार्थी परियोजना लागत का 10% योगदान देता है।

पंजाब, हरियाणा ने पराली जलाने को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई

  • सरकारी प्रतिबद्धता: पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने इस शीत ऋतु में पराली जलाने की प्रथा को खत्म करने का संकल्प लिया है।
  • कार्य योजनाएँ: दोनों राज्यों ने इन-सीटू और एक्स-सीटू विधियों के संयोजन के माध्यम से फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए व्यापक कार्य योजनाएँ विकसित की हैं।
  • मशीनरी और सहायता: किसानों को कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) सहित पर्याप्त मशीनरी और सहायता प्रणालियाँ प्रदान की गई हैं।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के बारे में

  • यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तथा आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • संरचना
    • इसका एक अध्यक्ष होता है।
    • 5 पदेन सदस्य (दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभाग के प्रभारी मुख्य सचिव या सचिव)
    • 3 पूर्णकालिक तकनीकी सदस्य
    • गैर-सरकारी संगठनों से 3 सदस्य, CPCB, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और नीति आयोग से तकनीकी सदस्य।
  • उद्देश्य
    • वायु प्रदूषण नियंत्रण: CAQM का मुख्य लक्ष्य NCR में वायु प्रदूषण को रोकना, निगरानी एवं नियंत्रित करना है।
    • अनुसंधान और विकास: CAQM वायु प्रदूषकों की पहचान करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अनुसंधान और विकास करता है।

  • को-फायरिंग (Co-Firing) पहल: धान की पराली को ईंधन स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिए ताप विद्युत संयंत्रों में को-फायरिंग परियोजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं।

पराली जलाने को समाप्त करने में चुनौतियाँ

  • आर्थिक प्रोत्साहन: बजट की कमी और प्रशासनिक कठिनाइयों के कारण किसानों को वैकल्पिक पद्धतियाँ अपनाने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • जागरूकता अभियान: ग्रामीण क्षेत्रों में सभी किसानों तक पहुँचना तथा प्रभावी संचार सुनिश्चित करना समय लेने वाला तथा संसाधन-गहन हो सकता है।
  • तकनीकी सीमाएँ: फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपयुक्त मशीनरी की उपलब्धता और सामर्थ्य किसानों के लिए एक बाधा हो सकती है। 
  • सामाजिक प्रतिरोध: कुछ किसान पारंपरिक खेती के तरीकों एवं सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण नई प्रथाओं को अपनाने का विरोध कर सकते हैं।

आगे की राह

  • व्यापक नीति ढाँचा: एक व्यापक नीति ढाँचा विकसित करना जो आर्थिक एवं पर्यावरणीय दोनों चिंताओं को संबोधित करता हो।
  • वित्तीय सहायता: किसानों को वैकल्पिक पद्धतियों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • सामुदायिक सहभागिता: किसानों को स्थायी पद्धतियों के लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिए सामुदायिक कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना।
  • कठोर प्रवर्तन: पराली जलाने को हतोत्साहित करने और उल्लंघनकर्ताओं को जवाबदेह ठहराने के लिए कठोर प्रवर्तन उपायों को लागू करना।

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