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प्रश्न काल

Lokesh Pal July 19, 2025 03:20 6 0

संदर्भ

संसद के मानसून सत्र में 21 बैठकें होंगी और सरकार आठ नए विधेयक पेश करेगी।

संबंधित तथ्य   

  • मानसून सत्र में पेश किए जाने वाले नए विधेयक हैं:
    • भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष (संरक्षण एवं रखरखाव) विधेयक।
    • खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक।
    • राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक।

संसद के सत्रों के बारे में 

  • संवैधानिक आधार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-85 राष्ट्रपति को संसद के प्रत्येक सदन को आहूत करने का अधिकार देता है। हालाँकि, दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए।
    • अनुच्छेद-85(1): राष्ट्रपति, संसद को ऐसे समय और स्थान पर बुला सकते हैं, जो उचित समझे।
    • अनुच्छेद-85(2): राष्ट्रपति किसी एक या दोनों सदनों का सत्रावसान कर सकते हैं और लोकसभा को भंग कर सकते हैं।

सत्रों के प्रकार

संविधान में सत्रों या बैठकों की कोई निश्चित संख्या निर्दिष्ट नहीं की गई है।

बजट सत्र (फरवरी-मई)

मानसून सत्र (जुलाई-अगस्त)

शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर)

  • राष्ट्रपति के अभिभाषण से आरंभ।
  • मुख्य फोकस: केंद्रीय बजट का प्रस्तुतीकरण और अनुमोदन।
  • अनुदानों की माँगों की समीक्षा हेतु स्थायी समितियों के लिए अवकाश शामिल है।
  • विधायी कार्य और नीतिगत चर्चाएँ भी की जाती हैं।
  • सबसे लंबा और सबसे महत्त्वपूर्ण सत्र।
  • मानसून के मौसम में आयोजित।
  • विधेयकों को प्रस्तुत करने और पारित करने पर ध्यान केंद्रित।
  • राष्ट्रीय मुद्दों और सरकारी जवाबदेही पर बहस का अवसर प्रदान करता है।
  • कैलेंडर वर्ष का अंतिम सत्र।
  • सरकारी कार्य-निष्पादन की समीक्षा।

विशेष सत्र

  • संविधान में इसकी परिभाषा नहीं है, लेकिन विशिष्ट उद्देश्यों के लिए इसे आहूत किया जा सकता है।
  • आमतौर पर इसे अत्यावश्यक विधायी कार्य या ऐतिहासिक घटनाओं के उपलक्ष्य में बुलाया जाता है।
  • उदाहरण
    • वर्ष 1962: भारत-चीन युद्ध
    • वर्ष 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध।

प्रश्न काल क्या है?

  • प्रश्न काल संसदीय बैठक का पहला घंटा होता है, जिसके दौरान संसद सदस्य (सांसद) सरकार को उसकी नीतियों और कार्यों के लिए जवाबदेह बनाने के लिए प्रश्न पूछते हैं।
  • वर्ष 2014 में, राज्यसभा ने इसे सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक कर दिया।
  • नियम 38 के अनुसार, प्रत्येक बैठक का एक घंटा इस उद्देश्य के लिए निर्धारित है।
  • राज्यसभा और लोकसभा के पीठासीन अधिकारी प्रश्न काल के संचालन के लिए अंतिम प्राधिकारी हैं।
  • प्रश्न काल संसद के प्रत्येक कार्य दिवस पर सत्र के प्रारंभ में आयोजित किया जाता है। हालाँकि, यह दो अवसरों पर आयोजित नहीं होता: प्रथम, जब राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करते हैं; और द्वितीय, जब वित्त मंत्री केंद्रीय बजट प्रस्तुत करते हैं।

महत्त्व

  • सरकारी नीतियों और प्रशासन की जाँच करता है।
  • जनता की शिकायतों और नीतिगत कमियों को उजागर करता है।
  • सरकारी पहलों के प्रति जनता की प्रतिक्रिया का आकलन करता है।
  • आगे की कार्रवाई की ओर ले जा सकता है—जैसे, समितियों का गठन करना या विधेयकों की समीक्षा करना।

प्रश्नों के प्रकार

प्रकार

प्रतिक्रिया

विवरण

तारांकित मौखिक तारांकन (*) से चिह्नित; पूरक प्रश्नों की अनुमति देता है।
अतारांकित लिखित कोई मौखिक उत्तर नहीं; उत्तर पटल पर रखा जाता है; कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं।
अल्प अवधि सूचना मौखिक अत्यावश्यक मामलों से संबंधित; 15 दिन से कम समय के नोटिस और औचित्य के साथ अनुमति दी जाती है।
निजी सदस्यों के लिए मौखिक या लिखित यह प्रश्न तब पूछा जाता है, जब मुद्दा किसी निजी सदस्य के विधेयक, प्रस्ताव या सदन के कार्य से संबंधित हो।
पूरक मौखिक सांसदों द्वारा तारांकित या अल्पसूचित प्रश्नों पर और स्पष्टीकरण माँगने के लिए कहा गया।

शून्य काल क्या है?

  • शून्य काल भारत की एक अनूठी संसदीय परंपरा है, जिसका आधिकारिक प्रक्रिया नियमों में उल्लेख नहीं है।
  • यह प्रश्न काल के तुरंत बाद (दोपहर 12 बजे से) शुरू होता है और सांसदों को बिना किसी पूर्व सूचना के अत्यावश्यक मामले उठाने की अनुमति देता है।
  • 1950 के दशक में अनौपचारिक रूप से इसकी शुरुआत की गई थी, क्योंकि सांसदों को आवश्यक सार्वजनिक मुद्दे उठाने के लिए एक मंच की आवश्यकता थी।
  • इसे ‘शून्य काल’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दोपहर 12:00 बजे शुरू होता है, जो प्रश्न काल और भोजनावकाश के बीच का समय है।
  • अनौपचारिक होने के बावजूद, इसकी उपयोगिता के कारण इसे व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है।
  • नागरिकों, मीडिया, सांसदों और पीठासीन अधिकारियों द्वारा प्रोत्साहित किए जाने के कारण, शून्य काल की प्रस्तुतियाँ लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बन गई हैं।

PWonlyIAS विशेष

भारत ने विधायी जाँच के माध्यम से निरंतर कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए संसदीय प्रणाली को अपनाया।

संसदीय प्रणाली, कार्यपालिका की नीतियों, कार्यों और व्यय के पर्यवेक्षण तथा मूल्यांकन में विधायिका की भूमिका को संदर्भित करती है।

कार्यपालिका पर विधायिका द्वारा निगरानी के साधन

  • प्रश्न काल और शून्य काल
  • अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, विधेयकों और बजट पर बहस।
  • संसदीय समितियाँ: विभाग-संबंधित स्थायी समितियाँ (Department-related Standing Committees- DRSC)।
  • वित्तीय समितियाँ: प्राक्कलन समिति, लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee- PAC), और सार्वजनिक उपक्रम समिति।

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