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भारत छोड़ो आंदोलन

Lokesh Pal August 12, 2025 03:56 8 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियों को श्रद्धांजलि अर्पित की और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके साहस और एकता को याद किया।

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement- QIM) के बारे में

  • भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे अगस्त आंदोलन भी कहा जाता है, 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने की माँग को लेकर शुरू किया गया था।
  • यह व्यापक सविनय अवज्ञा और एकीकृत जन भागीदारी के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

भारत छोड़ो आंदोलन के कारण

  • क्रिप्स मिशन की विफलता (वर्ष 1942): सीमित स्वशासन के ब्रिटिश प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया गया, जिससे पूर्ण स्वतंत्रता की माँग तीव्र हो गई।
  • आर्थिक कठिनाइयाँ: युद्धकालीन मुद्रास्फीति, खाद्यान्न की कमी और संसाधनों के दोहन ने जन आक्रोश को और गहरा कर दिया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव: ब्रिटेन ने भारत को बिना सहमति के युद्ध में शामिल कर लिया और राजनीतिक अधिकार भी प्रदान नहीं किए।
  • दमनकारी ब्रिटिश नीतियाँ: पूर्ववर्ती आंदोलनों का दमन और नेताओं की गिरफ्तारी ने अवज्ञा को बढ़ावा दिया।
  • राष्ट्रवादी नेताओं का प्रभाव: गांधी, नेहरू, पटेल और अन्य लोगों के भाषणों ने देशव्यापी समर्थन जुटाया।
  • वैश्विक प्रेरणा: अन्य उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों की सफलताओं ने भारतीय प्रतिरोध को प्रोत्साहित किया।
  • युवा और महिलाओं की भूमिका: छात्रों और महिलाओं में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और सक्रियता ने गति प्रदान की।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

  • 8 अगस्त, 1942: बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया।
  • 8 अगस्त, 1942: अरुणा आसफ अली (वरिष्ठ महिला) ने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अगस्त क्रांति मैदान) में भारतीय ध्वज फहराया, जो आंदोलन की शुरुआत का प्रतीक था।
  • 9 अगस्त, 1942: ब्रिटिश अधिकारियों ने गांधी, नेहरू, पटेल और अन्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार किया।
  • मध्य अगस्त 1942: नेतृत्वविहीन परिस्थितियों के बावजूद देश भर में स्वतः स्फूर्त विरोध प्रदर्शन, हड़तालें और धरना शुरू हो गए।
  • वर्ष 1942 के अंत में जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं के नेतृत्व में भूमिगत नेटवर्क ने प्रतिरोध को जारी रखा।
  • वर्ष 1943-1944: छोटे ग्रामीण विद्रोह, छात्र विरोध और महिलाओं के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों ने भारी दमन के बावजूद आंदोलन को जीवित रखा।

आंदोलन के परिणाम

  • कठोर ब्रिटिश दमन: सामूहिक गिरफ्तारियाँ, प्रेस सेंसरशिप और हिंसक दमन ने संगठनात्मक क्षमता को बाधित किया।
  • राष्ट्रवादी भावना को बल मिला: स्वतंत्रता के साझा लक्ष्य के तहत विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों और समुदायों के लोगों को एकजुट किया गया।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: वैश्विक सहानुभूति प्राप्त की, ब्रिटिश औपनिवेशिक उत्पीड़न को उजागर किया और राजनीतिक परिवर्तन के लिए दबाव बढ़ाया।
  • स्वतंत्रता की ओर गति: हालाँकि यह आंदोलन त्वरित रूप से असफल रहा, लेकिन इसने वर्ष 1947 की स्वतंत्रता की ओर ले जाने वाली राजनीतिक प्रक्रिया को गति दी।

निष्कर्ष

क्रूर दमन के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन ने पूरे भारत में अद्वितीय एकता और लचीलेपन को प्रज्वलित किया, राष्ट्रवादी संकल्प को मजबूत किया, ब्रिटिश उत्पीड़न की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया और स्वतंत्रता की ओर गति को काफी तेज कर दिया, जिससे वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक निर्णायक नींव रखी गई।

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