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दुर्लभ रक्त समूह: CRIB

Lokesh Pal August 04, 2025 02:55 16 0

संदर्भ

कोलार की एक 38 वर्षीय महिला में एक अभूतपूर्व रक्त समूह की पहचान की गई है, जिसे आधिकारिक तौर पर CRIB नाम दिया गया है, जो रक्त आधान चिकित्सा में एक वैश्विक उपलब्धि है।

अंतरराष्ट्रीय रक्त आधान सोसायटी (International Society of Blood Transfusion- ISBT)

  • वर्ष 1935 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय रक्त आधान सोसायटी (ISBT) एक वैश्विक वैज्ञानिक संस्था है, जो रक्त आधान की सुरक्षा और गुणवत्ता में सुधार के लिए समर्पित है।
  • केंद्रीय कार्यालय: एम्स्टर्डम, नीदरलैंड।
  • यह ISBT आचार संहिता के माध्यम से रक्तदाता और रोगी कल्याण का समर्थन करती है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ एक गैर-राज्यीय संस्था के रूप में सहयोग करती है।
  • यह वेबिनार, कार्यशालाएँ, लाइव जर्नल क्लब और अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सम्मेलनों का भी आयोजन करती है।
  • ISBT कांग्रेस: ISBT कांग्रेस वैश्विक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करती है।
    • वर्ष 2025 में मिलान में आयोजित कांग्रेस का मुख्य फोकस दुर्लभ रक्त समूहों की पहचान और रक्त आधान की सुरक्षा में नवाचारों पर रहा।

CRIB के बारे में

  • खोज: रोटरी बंगलूरू TTK ब्लड सेंटर में इसका पता तब चला जब महिला के रक्त में पैनरिएक्टिव” व्यवहार देखा गया, जिसका अर्थ है कि उसका रक्त सभी परीक्षण किए गए नमूनों के साथ असंगत था।
  • अंतरराष्ट्रीय मान्यता: 10 महीने तक चले आणविक और एंटीजन परीक्षण के बाद, इस रक्त समूह की पुष्टि यू.के. की अंतरराष्ट्रीय रक्त समूह संदर्भ प्रयोगशाला (IBGRL) द्वारा की गई।
  • नामकरण: 35वें ISBT सम्मेलन (मिलान, 2025) में, बंगलूरू में पहचाने गए क्रोमर रक्त समूह प्रणाली के लिए इस दुर्लभ रक्त समूह को CRIB (जहाँ CR क्रोमर के लिए और IB भारत के लिए है) नाम दिया गया।
  • विशिष्ट विशेषता: क्रोमर प्रणाली के भीतर एक नए एंटीजन का प्रतिनिधित्व करता है,, जिससे वह इस एंटीजन से पीड़ित होने वाली विश्व की पहली व्यक्ति बन गई हैं।

PWOnlyIAS विशेष

  • क्रोमर रक्त समूह प्रणाली में वे एंटीजन शामिल होते हैं, जो लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर मौजूद क्षयकारी त्वरक कारक (DAF/CD55) नामक प्रोटीन पर स्थित होते हैं।
    • इसमें 20 से अधिक एंटीजन शामिल हैं, जिनमें क्रोमर (Cr^a) सबसे सामान्य है।

रक्त समूह क्या है?

रक्त समूह का वर्गीकरण लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर मौजूद विशिष्ट एंटीजनों के आधार पर किया जाता है। ये एंटीजन आधान के लिए अनुकूलता निर्धारित करते हैं।

रक्त समूहों और संबद्ध एंटीजनों के प्रकार

ब्लड ग्रुप

RBC पर मौजूद एंटीजन

संगत प्लाज्मा एंटीबॉडी

A A एंटीजन एंटीबॉडी- B
B B एंटीजन एंटीबॉडी-A
AB A और B एंटीजन कोई एंटीबॉडी नहीं
O कोई एंटीजन नहीं एंटीबॉडी-A और एंटीबॉडी-B
Rh+ D एंटीजन उपस्थित कोई एंटीबॉडी नहीं
Rh- कोई D एंटीजन नहीं एंटीबॉडी-D बन सकते हैं।

  • एंटीजन ऐसे अणु होते हैं जो आमतौर पर प्रोटीन या शर्करा, जो लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित कर सकते हैं।
  • Rh (Rhesus) कारक लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर पाया जाने वाला एक प्रोटीन है। यदि यह प्रोटीन मौजूद है, तो रक्त समूह Rh-पॉजिटिव होता है, यदि यह अनुपस्थित है, तो रक्त समूह Rh-नेगेटिव होता है।

दुर्लभ रक्त समूह क्या हैं?

  • परिभाषा: दुर्लभ रक्त समूह तब उत्पन्न होते हैं, जब व्यक्तियों में अधिकांश आबादी में पाए जाने वाले उच्च-आवृत्ति” एंटीजनों की कमी होती है, जिससे आधान के लिए संगत रक्त मिलना मुश्किल हो जाता है।
  • वैश्विक प्रचलन: इस प्रकार वर्गीकृत:
    • कम दुर्लभ: 1-2% प्रचलन।
    • बहुत दुर्लभ: <1%, जिसमें प्रायः 3-4 एंटीजन अनुपस्थित होते हैं।

भारत और विश्व भर में दुर्लभ रक्त समूहों के उदाहरण

  • Rh उदासीन (“गोल्डन ब्लड”): सभी Rh एंटीजनों का अभाव।
  • D- रक्त प्रकार: सामान्य Rh एंटीजन का अभाव, अत्यंत दुर्लभ।
  • B नेगेटिव: भारतीय प्रणाली एंटीजन का अभाव।
  • ग्वाडा नेगेटिव: हाल ही में ग्वाडेलोप में पहचाना गया।
  • बॉम्बे रक्त समूह (hh फेनोटाइप): इसमें h एंटीजन का अभाव होता है, जो A, B और O समूह में पाए जाते हैं।
  • CRIB: भारत में नया खोजा गया क्रोमर एंटीजन।

भारत में दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री की आवश्यकता

  • दुर्लभ समूहों वाले मरीजों में अनुपस्थित एंटीजन की एंटीबॉडी विकसित हो जाती हैं, जिससे रक्ताधान मिलान जटिल हो जाता है।
  • वर्तमान प्रयास: रोटरी बंगलूरू, TTK ब्लड सेंटर और उनके सहयोगियों ने एक दुर्लभ रक्तदाता कार्यक्रम (वर्ष 2024) शुरू किया है।
    • इसका उद्देश्य ई-रक्त कोष के साथ एकीकृत एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री बनाना है।
      • 2,108 O-समूह दाताओं में से 21 दुर्लभ प्रकारों की पहचान की गई।
  • भविष्य का दृष्टिकोण: दुर्लभ समूह के रोगियों में नियोजित शल्य क्रियाओं के लिए स्व-आधान या लौह पूरकता का उपयोग।
    • स्व-आधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शल्य क्रिया या उपचार के दौरान रोगी का अपना रक्त एकत्रित किया जाता है, संगृहीत किया जाता है और पुनः रक्त संचारित किया जाता है।

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