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दुर्लभ मृदा तत्त्व संकट

Lokesh Pal April 17, 2025 01:36 21 0

संदर्भ

हाल ही में चीन ने सात दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों के निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा की।

संबंधित तथ्य 

  • प्रतिबंधित तत्त्वों में समैरियम (Samarium), गैडोलीनियम (Gadolinium), टेरबियम (Terbium), डिस्प्रोसियम (Dysprosium), ल्यूटेटियम (Lutetium), स्कैंडियम (Scandium) और यिट्रियम (Yttrium) शामिल हैं।
    • ये तत्त्व उच्च तकनीक और रक्षा-संबंधी उत्पादों, जैसे- पवन टर्बाइन, अंतरिक्ष यान और इलेक्ट्रॉनिक्स हेतु चुंबक के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

दुर्लभ मृदा तत्त्व में चीनी प्रभुत्व

  • चीन दुनिया की दुर्लभ मृदा तत्त्व माँग का 85-95% आपूर्ति करता है और खनन एवं शोधन दोनों में अग्रणी है।
  • हालाँकि दुर्लभ मृदा तत्त्व स्वाभाविक रूप से दुर्लभ नहीं हैं, लेकिन केंद्रित और आर्थिक रूप से व्यवहार्य भंडार और उन्नत शोधन क्षमताओं के कारण चीन रणनीतिक लाभ रखता है।
  • चीन ने दुनिया के कुछ सबसे समृद्ध दुर्लभ मृदा तत्त्व खनिज भंडार भी हासिल किए हैं।
    • चीनी कंपनियों ने वर्ष 2023 और 2024 के बीच अफ्रीका में खनन और महत्त्वपूर्ण खनिज परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च किए हैं।

प्रतिबंध के कारण

  • रणनीतिक लाभ: चीन दुर्लभ मृदा तत्त्व को रणनीतिक संपत्ति मानता है और भू-राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने के लिए निर्यात नियंत्रण का उपयोग करता है, जैसा कि जापान और अमेरिका के साथ पिछले विवादों के दौरान देखा गया था।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: चीनी सरकार ने नवीनतम निर्यात प्रतिबंधों के पीछे प्रमुख कारणों के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने और अप्रसार दायित्वों को पूरा करने की आवश्यकता को संदर्भित किया।
  • व्यापार प्रतिशोध: यह कदम हाल ही में अमेरिकी टैरिफ और बढ़ते व्यापार तनावों का प्रत्यक्ष जवाब है, जो महत्त्वपूर्ण संसाधन नियंत्रण के साथ आर्थिक दबाव का मुकाबला करने के बीजिंग के उद्देश्य को दर्शाता है।
  • बाजार नियंत्रण: निर्यात को प्रतिबंधित करके, चीन का लक्ष्य घरेलू आपूर्ति का प्रबंधन करना, कीमतों को स्थिर करना और दुर्लभ मृदा खनन एवं शोधन में अपना वैश्विक प्रभुत्व बनाए रखना है।

चीनी प्रतिबंध का वैश्विक प्रभाव

  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: डिस्प्रोसियम और यिट्रियम जैसे दुर्लभ मृदाओं पर चीन के निर्यात प्रतिबंध इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा उद्योगों में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के लिए एक बड़ा खतरा हैं।
  • मुद्रास्फीति: बाजार में तनाव के कारण भंडारण और अनुमानित मूल्य वृद्धि हुई है, डिस्प्रोसियम के 230 डॉलर प्रति किलोग्राम से बढ़कर 300 डॉलर प्रति किलोग्राम होने की उम्मीद है, जिसका असर पवन टर्बाइन और मिसाइल प्रणालियों पर पड़ेगा।
  • व्यापार शस्त्रीकरण: बीजिंग का यह कदम रणनीतिक व्यापार शस्त्रीकरण को दर्शाता है, जो जापान पर वर्ष 2010 के दुर्लभ मृदा प्रतिबंध की याद दिलाता है, यह दर्शाता है कि चीन भू-राजनीतिक लाभ के लिए खनिजों का उपयोग कैसे करता है।
  • व्यापार विविधीकरण: अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ जैसे देश तत्काल वैकल्पिक स्रोतों और ‘रीसाइक्लिंग’ प्रौद्योगिकियों की तलाश कर रहे हैं, क्योंकि चीनी रिफाइनिंग पर निर्भरता ऑटोमोटिव और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में महँगी देरी का कारण बनती है।
    • चीन के REE पर जापान की निर्भरता 2010 में 90% से घटकर वर्ष 2023 में 60% हो गई।

भारत के लिए निहितार्थ

  • इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा विनिर्माण और हरित ऊर्जा जैसे दुर्लभ मृदा पर निर्भर भारत के उद्योगों को आपूर्ति में व्यवधान का जोखिम बढ़ गया है।
  • चीन के निर्यात नियंत्रण और U.S.-चीन व्यापार तनाव के मद्देनजर भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और आपूर्ति लचीलेपन का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।
  • U.S.-चीन टैरिफ संघर्ष के व्यापक संदर्भ ने भारत को कूटनीतिक रूप से संवेदनशील स्थिति में डाल दिया है, क्योंकि यह दोनों वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित करता है।

दुर्लभ मृदा आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए भारत की पहल

  • घरेलू संसाधन विकास: भारत में दुर्लभ मृदा भंडार है, जिसका प्रबंधन मुख्य रूप से ‘इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड’ (Indian Rare Earths Limited-IREL) द्वारा किया जाता है तथा यह घरेलू अन्वेषण और शोधन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत ने दुर्लभ मृदा आपूर्ति में विविधता लाने और उसे सुरक्षित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ संसाधन एवं प्रौद्योगिकी-साझाकरण समझौते किए हैं।
  • भंडारण और पुनर्चक्रण: जापान की वर्ष 2010 के बाद की रणनीति से प्रेरित होकर, भारत दुर्लभ मृदा भंडारीकरण और शहरी खनन तथा इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनर्चक्रण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने पर विचार कर रहा है।
  • रणनीतिक जोखिम-मुक्ति: भारत आवश्यक व्यापार संबंधों को बनाए रखते हुए एकल स्रोत (अर्थात् चीन) पर निर्भरता को कम करके आपूर्ति शृंखलाओं को “जोखिम-मुक्त” करने के वैश्विक कदम का समर्थन करता है।

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