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रैट-होल खनन

Lokesh Pal January 09, 2025 02:27 11 0

संदर्भ

हाल ही में असम के दीमा हसाओ जिले में एक कोयला खदान में जल भर जाने के बाद कई श्रमिक फँस गए हैं।

रैट-होल माइनिंग 

  • यह कोयला खनन की एक आदिम और अवैध तकनीक है, जिसमें सँकरी सुरंगों का निर्माण शामिल है, जिन्हें ‘रैट होल’ कहा जाता है, जहाँ एक व्यक्ति के लिए मुश्किल से पर्याप्त स्थान होता है।
  • मजदूर, कुदाल और फावड़े जैसे बुनियादी औजारों का उपयोग करके इन खदानों से कोयला निकालते हैं।
  • भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेष रूप से मेघालय में आमतौर पर इसका अभ्यास किया जाता है।

रैट-होल खनन के प्रकार 

  • साइड-कटिंग प्रक्रिया (Side-Cutting Procedure): पतली कोयला परतों का पता लगाने के लिए पहाड़ी ढलानों में सुरंगें खोदी जाती हैं, जो अक्सर 2 मीटर से कम मोटी होती हैं।
    • इन सुरंगों से कोयला मैन्युअल रूप से निकाला जाता है।
  • बॉक्स-कटिंग प्रक्रिया (Box-Cutting Procedure): एक आयताकार छेद (10-100 वर्ग मीटर) बनाया जाता है, जिससे एक ऊर्ध्वाधर गड्ढा (100-400 फीट गहरा) खोदा जाता है।
    • कोयला परत मिल जाने के बाद कोयला निकालने के लिए क्षैतिज सुरंगें बनाई जाती हैं।

रैट-होल खनन के कारण

  • आर्थिक कारक: गरीबी और वैकल्पिक आजीविका के अवसरों की कमी स्थानीय आबादी को ‘रैट-होल’ खनन में संलग्न होने के लिए प्रेरित करती है।
    • कोयला निष्कर्षण से होने वाली आय इस खतरनाक प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है, भले ही इसमें जोखिम शामिल हो।
  • भूमि स्वामित्व के मुद्दे: अस्पष्ट भूमि स्वामित्व, शीर्षक विनियामक खामियों को उत्पन्न करते हैं, जो अवैध खनन को जारी रखने की अनुमति देते हैं।
  • कोयले की माँग: कानूनी और अवैध दोनों तरह के कोयले की निरंतर माँग इस अभ्यास को बनाए रखती है।
    • बिचौलिए और अवैध व्यापारी इस चक्र को जारी रखते हैं, जिससे खनिकों की जान जोखिम में पड़ जाती है।
  • नीतिगत खामियाँ: नियमों और निगरानी के कमजोर प्रवर्तन से अवैध संचालकों को इस तंत्र का लाभ उठाने का अवसर मिलता है।
    • नागालैंड में अनुच्छेद-371A जैसे विशेष प्रावधान निजी स्वामित्व वाली भूमि पर खनन गतिविधियों को विनियमित करने के सरकारी प्रयासों को जटिल बनाते हैं।

रैट-होल खनन से संबंधित मुख्य मुद्दे

  • मानव सुरक्षा चिंताएँ: संकीर्ण सुरंगों के ढहने का खतरा रहता है, जिससे खनिक भूमिगत रूप से फँस जाते हैं।
    • खराब वेंटिलेशन के कारण दम घुटने और खतरनाक गैसों के संपर्क में आने की संभावना रहती है।
    • सुरक्षा उपकरणों की कमी से दुर्घटनाओं और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • वनों की कटाई: खदान में पहुँचने के लिए पेड़ों को काटा जाता है।
    • एसिड माइन ड्रेनेज (AMD), जिसे एसिड रॉक ड्रेनेज (Acid Rock Drainage- ARD) के रूप में भी जाना जाता है, एक प्राकृतिक रूप से होने वाली प्रक्रिया है जो खनन के दौरान वायु, नमी और बैक्टीरिया के संपर्क में आने पर सल्फाइड युक्त खनिजों के अम्लीय जल और धातु युक्त घोल का उत्पादन करती है।
    • भूमि क्षरण: अनियोजित खनन से भू परिदृश्य में बदलाव आता है और ऊपरी मृदा का क्षरण होता है।
    • जल प्रदूषण: एसिड माइन ड्रेनेज (Acid Mine Drainage- AMD) जल प्रदूषण और जैव विविधता हानि का कारण बनता है।
    • वायु प्रदूषण: कोयला जलाने और अपर्याप्त वेंटिलेशन के परिणामस्वरूप। 
    • सामाजिक चिंताएँ:
      • सुरंगों के छोटे आकार के कारण बाल श्रम सामान्य है।
      • स्थानीय समुदायों के विस्थापन से आजीविका का नुकसान होता है।

नियामक ढाँचा

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा प्रतिबंध
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने वर्ष 2014 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था तथा सुरक्षा चिंताओं और पर्यावरण क्षरण का हवाला देते हुए मेघालय में वर्ष 2015 में भी प्रतिबंध बरकरार रखा।
    • प्रतिबंध के बावजूद, कमजोर प्रवर्तन और आर्थिक निर्भरता के कारण अवैध खनन जारी है।
  • नागालैंड की कोयला खनन नीति (2006):
    • नागालैंड ने अपनी वर्ष 2006 की नीति के तहत विनियमित लघु-स्तरीय खनन की अनुमति दी है। 
    • लाइसेंस सीमित अवधि और शर्तों के लिए दिए जाते हैं, लेकिन अपर्याप्त निगरानी के कारण अवैध खनन जारी है।

आगे की राह

  • आजीविका के विकल्प: कौशल विकास कार्यक्रम, पर्यटन और हस्तशिल्प जैसे स्थायी आय स्रोत प्रदान करने से समुदायों को ऐसी खतरनाक खनन गतिविधियों से दूर जाने में मदद मिल सकती है।
    • माइक्रोफाइनेंस के अवसर वैकल्पिक उद्यमों का समर्थन कर सकते हैं।
  • सतत खनन प्रथाएँ: ‘बोर्ड-एंड-पिलर’ खनन या छोटे पैमाने पर मशीनीकृत खनन जैसे सुरक्षित तरीकों की खोज से आर्थिक व्यवहार्यता बनाए रखते हुए जोखिम कम हो सकते हैं।
  • प्रवर्तन को मजबूत करना: अवैध खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त दंड और उन्नत निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है।
    • प्रभावी निगरानी के लिए नियामक निकायों को आवश्यक संसाधनों से सशक्त बनाया जाना चाहिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश से कोयला खनन पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण: ‘रैट-होल’ खनन के जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सुरक्षित प्रथाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना आवश्यक है।

निष्कर्ष 

आर्थिक आवश्यकता और विनियामक खामियों के कारण भारत में रैट-होल खनन एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। एक बहुआयामी दृष्टिकोण जिसमें सख्त प्रवर्तन, स्थायी आजीविका, आधुनिक खनन तकनीक और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश शामिल है, रैट-होल खनन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, साथ ही प्रभावित समुदायों का कल्याण सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है।

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