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राज्य सरकारों की ‘गारंटी’ पर RBI ने जारी किए दिशा-निर्देश (RBI issues guidelines on ‘guarantee’ of state governments)

Samsul Ansari January 30, 2024 03:35 219 0

संदर्भ

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) द्वारा गठित कार्य समूह (Working Group) ने राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली गारंटी से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए दिशा-निर्देश जारी किया है।

संबंधित तथ्य

गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने  कार्य समूह (WG) का गठन जुलाई 2022 में किया था, जिसमें वित्त मंत्रालय, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India-CAG) तथा राज्य सरकारों के सदस्य शामिल हैं।

गारंटी 

  • राज्यों के लिए कानूनी दायित्व: ‘गारंटी’ राज्य सरकारों का कानूनी दायित्व है जिसके माध्यम से राज्य निवेशक एवं ऋणदाताओं के हितों की रक्षा करता है।
    • उदाहरण के लिए: यदि A, B को कुछ सामान या सेवाएँ प्रदान करता है तथा B तयशुदा भुगतान करने में सक्षम नहीं है, इस तरह ऋण अदा न कर पाने की स्थिति में मुकदमा होने का जोखिम है। इस स्थिति में B के बदले C भुगतान करने का वादा करता है जिस शर्त को A द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। यह एक प्रकार की गारंटी है।
  • अनुबंध: भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 (Indian Contracts Act, 1872) के अनुसार, गारंटी ‘किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा अन्य दो व्यक्तियों के बीच हुए वादे के मामले में दायित्व निर्वहन करने’ का एक अनुबंध है।
  • शामिल पक्ष: अनुबंध में तीन पक्ष शामिल होते हैं-  देनदार, लेनदार और जमानतदार।
    • लेनदार: वह संस्था या इकाई जो ऋण दे रहा है।
    • देनदार: वह संस्था या इकाई जिसे भविष्य में ऋण चुकाना है।
    • जमानतदार: देनदार की ओर से गारंटी देने वाली इकाई (उदाहरण के लिए- राज्य सरकारें)
      • क्षतिपूर्ति अनुबंध: यह एक अनुबंध है जो ऋणदाता (लेनदार) और देनदार के बीच संभावित नुकसान से बचने के लिए किया जाता है।
  • उद्देश्य: मुख्य रूप से, राज्य स्तर पर तीन परिस्थितियों में गारंटी का उपयोग किया जाता है-
    • पूर्व निर्धारित गारंटी: द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संस्थाओं (सार्वजनिक क्षेत्र के लिए) से रियायती ऋण प्राप्त करने के लिए पूर्व निर्धारित गारंटी की आवश्यकता होती है।
    • सुधार हेतु गारंटी: महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक लाभ प्रदान करने वाली परियोजनाओं या गतिविधियों में सुधार करने हेतु गारंटी।
    • अनुकूल शर्तों पर गारंटी: सार्वजनिक क्षेत्र की सस्थाओं को संसाधन जुटाने में सक्षम बनाने हेतु कम ब्याज पर या अधिक अनुकूल शर्तों पर गारंटी देना।

भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के कार्य समूहों (Working Groups) द्वारा जारी सिफारिशें

  • गारंटी की परिभाषा 
    • व्यापक अर्थ: ‘गारंटी’ में उन सभी शर्तों को शामिल करना चाहिए,  जो भविष्य में देनदार की ओर से भुगतान करने के लिए जमानतदार (राज्य सरकार) पर लागू होती हैं।
    • राजकोषीय उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना: सरकारी संस्थाओं के माध्यम से सरकारी गारंटी का उपयोग वित्त प्राप्ति के लिए नहीं किया जाना चाहिए तथा राज्य को देनदार की ओर से प्रत्यक्ष दायित्व के निर्वहन की अनुमति भी नहीं दी जानी चाहिए।
  • दिशा-निर्देश 
    • दिशा-निर्देशों का पालन करना: भारत सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए, जिसके तहत गारंटी केवल मूलधन और ऋण के सामान्य ब्याज पर दी जाएगी।
    • सीमित प्रावधान: वाणिज्यिक उधार, परियोजना के 80% से अधिक ऋण (ऋणदाता द्वारा लगाई गई शर्तों के आधार पर) तथा निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए गारंटी नहीं दी जानी चाहिए।
  • उचित पूर्व निर्धारित शर्त: गारंटी की अवधि, जोखिम से निपटने के लिए शुल्क तय करना, लेनदार के प्रबंधन समिति में सरकारी प्रतिनिधित्व तथा निरीक्षण का अधिकार आदि को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए।
  • जोखिम का निर्धारण
    • मूल्यांकन: वर्ष 2002 में जारी अधिदेश की अनुशंसा के अनुरूप, कार्य समूह (WG) ने सुझाव दिया है कि गारंटी देने से पहले राज्य को उचित जोखिम का मूल्यांकन करना चाहिए।
    • विचार-विमर्श: जोखिम का वर्गीकरण उच्च, मध्यम या निम्न जोखिम के रूप में किया जा सकता है तथा देनदार की पिछली आर्थिक गतिविधियों पर भी विचार किया जाना चाहिए। ऋण देने की पद्धति का भी खुलासा होना चाहिए।
  • शुल्क और उच्चतम सीमा
    • शुल्क: जोखिम मूल्यांकन के माध्यम से आधार शुल्क या न्यूनतम गारंटी शुल्क को न्यूनतम 2.5% प्रति वर्ष निर्धारित किया जाना चाहिए।
    • जोखिम मूल्यांकन के आधार पर संभावित अतिरिक्त जोखिम पर विचार किया जाना चाहिए।
  • उच्चतम सीमा: संभावित तनाव को कम करने के लिए कार्य समूह (WG) ने राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) के 5% या GSDP (राज्य सकल घरेलू उत्पाद) के 0.5%, जो भी कम हो, की सीमा का प्रस्ताव रखा है।
  • स्पष्ट जानकारी 
    • सुधार के लिए जानकारी का खुलासा: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अन्य बैंकों या गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) को सरकारी गारंटी के माध्यम से सरकारी संस्थाओं को दी गई ऋण संबंधी जानकारी का खुलासा करने की सलाह दे सकता है।
    • डेटा संग्रह: सभी गारंटियों से संबधित डेटा संगृहीत होना चाहिए। राज्य सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट में जारीकर्ता एवं ऋणदाता दोनों से संबंधित डेटा की उपलब्धता से डेटा की विश्वसनीयता में सुधार हो सकता है।
    • निगरानी संस्था: इसके संकलन और निरीक्षण के लिए राज्य स्तर पर एक संस्था स्थापित की जा सकती है।
  • गारंटीयुक्त दायित्वों का निर्वहन 
    • तर्कपूर्ण निर्णय: राज्य सरकारों को उन संस्थाओं को नई वित्तीय सहायता देने में सावधानी बरतनी चाहिए, जो संस्थाएँ पुरानी शर्तों को पूरा करने में विफल रही हैं।
    • साथ ही, ऋणदाता या निवेशक राज्य सरकार द्वारा जारी की गई नई गारंटी और शर्तों को आसानी से स्वीकार नहीं भी कर सकते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के कार्य समूह (Working Group) द्वारा उठाई गई चिंताएँ

  • राजकोषीय बोझ: दिशा-निर्देशों के उचित पालन से आमतौर पर अग्रिम नकद भुगतान की आवश्यकता नहीं होती है। सामान्यतः गारंटी सुरक्षित होती है किंतु कुछ परिस्थितियों में गारंटी के कारण वित्तीय जोखिम बढ़ सकते हैं जिससे राज्य पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
  • कुछ घटनाओं जैसे संभावित लागत, नकद वित्तीय सहायता आदि के रूप में गारंटी के बोझ का अनुमान लगाना कठिन होता है।
    • जारी किए गए दिशा-निर्देश और सिफारिशों के कार्यान्वयन से ‘राज्य सरकारें बेहतर वित्तीय प्रबंधन कर सकती हैं।’

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