वित्तीय वर्ष 2024-25 (FY25) की पहली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की घोषणा में RBI गवर्नर ने रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है।
संबंधित तथ्य
लगातार सातवीं बार रेपो रेट को अपरिवर्तित रखा गया है।
इसका उद्देश्य स्थिर विकास पर ध्यान देने के साथ ही केंद्रीय बैंक का लक्ष्य मुद्रास्फीति को 4% करना है।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने 5-1 के बहुमत के फैसले के साथ ‘प्रोत्साहन को कम करने’ के अपने निर्णय को अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2025 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4.5% रखा है।
वर्ष 2024 के फरवरी में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में खुदरा मुद्रास्फीति 5.09% दर्ज की गई है।
रेपो रेट को अपरिवर्तित रखने का कारण
मुद्रास्फीति का निर्धारित लक्ष्य से ऊपर होना: यद्यपि मुद्रास्फीति पिछले 6 महीनों (फरवरी में 5.09%) से बहुत परिवर्तित नहीं हुई है, किंतु अभी भी मुद्रास्फीति RBI के निर्धारित लक्ष्य 4% से अधिक है।
खाद्यान्नों की मूल्य संबंधी अनिश्चितता: RBI भविष्य में खाद्यान्नों की कीमतों में संभावित वृद्धि को लेकर चिंतित है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक अनाज बाजारों और खाद्य तेल की कीमतों को प्रभावित किया है, परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति में पुनः वृद्धि हो सकती है ।
आर्थिक विकास का समर्थन: वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था उल्लेखनीय गति (वित्त वर्ष 2014 के लिए अनुमानित विकास दर 7.6%) से विकास कर रही है तथा RBI ब्याज दरों को स्थिर रखकर इस गति को बनाए रखना चाहता है।
वैश्विक आर्थिक मंदी: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) वैश्विक व्यापार परिदृश्य में मंदी को लेकर सतर्क है, जिसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। इस कारण RBI ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं-
अपरिवर्तित ब्याज दर: RBI ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और भारतीय रुपये के मूल्य को स्थिर रखने के लिए ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा है।
इस कारण विदेशी खरीदार भारतीय उत्पादों को कम मूल्यों पर खरीद सकते हैं परिणामस्वरूप निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करना: ब्याज दरों को स्थिर रखकर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारतीय निवेशकों को व्यवसायों में अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस कारण भारतीय सीमा के अंदर ही अर्थव्यवस्था को बढ़ने में मदद मिलती है तथा भारतीय उत्पादों के विदेशी बाजारों में निर्यात पर अधिक निर्भरता को भी कम किया जा सकता है।
विकसित अर्थव्यवस्थाओं में निरंतर मुद्रास्फीति: विकसित देशों में मुद्रास्फीति ऊँची बनी रह सकती है, जिससे वैश्विक कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
मौद्रिक संचरण (Monetary Transmission): RBI सुनिश्चित करना चाहता है कि रेपो दर में परिवर्तन का पालन अन्य बैंकों द्वारा निर्धारित उधार दरों में प्रभावी ढंग से किया जाए।
रेपो रेट (Repo Rate)
परिभाषा: रेपो दर एक प्रकार की ब्याज दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक (RBI) अन्य वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है।
तरलता का विनियमन (Regulating Liquidity): भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अर्थव्यवस्था में तरलता का प्रबंधन करने के लिए रेपो दर का उपयोग करता है।
बैंकिंग संबंध: रेपो रेट का संबंध बैंकिंग में पुनर्खरीद विकल्प (Repurchase Options) या पुनर्खरीद समझौते (Repurchase Agreements) से होता है।
केंद्रीय बैंक से उधार: जब वाणिज्यिक बैंकों में धन की कमी होती है, तब ये बैंक केंद्रीय बैंक से रेपो दर पर उधार लेते हैं।
सुरक्षित ऋण: केंद्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) सरकारी बॉण्ड जैसी प्रतिभूतियों के विरुद्ध अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है।
मौद्रिक नीति: रेपो दर का निर्धारण केंद्रीय बैंक द्वारा किया जाता है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने तथा बैंक तरलता बढ़ाने में मदद मिलती है।
दर परिवर्तन का प्रभाव: रेपो दर में वृद्धि का उद्देश्य कीमतों और उधार को नियंत्रित करना है, जबकि रेपो दर में कमी से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
रेपो रेट में परिवर्तन से होम लोन और EMI समेत सार्वजनिक उधारी प्रभावित होती है।
सामान्य तौर पर, अपरिवर्तित रेपो दर (Repo Rate) उपभोक्ताओं और व्यवसायों को दिए जाने वाले ऋण पर स्थिर ब्याज दरों को दर्शाती है।
वित्तीय निहितार्थ (Financial Implications): विभिन्न वित्तीय और निवेश संबंधी हित जैसे ऋण पर ब्याज, जमा रिटर्न (Deposit Return) आदि अप्रत्यक्ष रूप से रेपो रेट के परिवर्तन से प्रभावित होते हैं।
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