100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत की बैंकिंग प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए RBI के नीतिगत उपाय

Lokesh Pal October 07, 2025 02:54 15 0

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने तटस्थ रुख के साथ रेपो दर को 5.50% पर अपरिवर्तित रखा है। मौद्रिक नीति समिति (MPC) के अनुसार, RBI ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र के लचीलेपन और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के उद्देश्य से चार प्रमुख उपाय किए हैं।

RBI की नीतिगत दरें और दृष्टिकोण 

  • मौद्रिक नीति रुख
    • उदार: RBI ब्याज दरों को कम करके और तरलता सुनिश्चित करके विकास को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • तटस्थ: RBI विकास और मुद्रास्फीति दोनों को संतुलित रखते हुए, परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार किसी भी दिशा में कदम उठाने के लिए तैयार रहता है।
    • आक्रामक: RBI प्रायः ब्याज दरों में वृद्धि या तरलता में कमी करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने को प्राथमिकता देता है।
  • रेपो दर (5.5%): वह दर, जिस पर RBI सरकारी प्रतिभूतियों के बदले वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक निधियाँ उधार देता है।
    • यह मौद्रिक नीति की दिशा का संकेत देने के लिए उपयोग की जाने वाली मुख्य नीति दर है।
  • स्थायी जमा सुविधा (Standing Deposit Facility- SDF) – 5.25%: वह दर जिस पर बैंक बिना किसी संपार्श्विक के RBI के पास अधिशेष निधियाँ जमा करते हैं।
    • यह नीति गलियारे के आधार के रूप में कार्य करती है, अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करती है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) – 5.75%: वह दर जिस पर बैंक तरलता की कमी का सामना करने पर RBI से ‘ओवरनाइट’ निधियाँ उधार लेते हैं।
  • बैंक दर (5.75%): वह दर जिस पर RBI बैंकों को दीर्घकालिक निधियाँ उधार देता है। 
    • यह MSF के अनुरूप रहती है और बैंकों के लिए समग्र उधार लागत को दर्शाती है।
  • पॉलिसी कॉरिडोर: SDF (निचली सीमा) और MSF (ऊपरी सीमा) के बीच की सीमा, जिसमें रेपो दर बीच में होती है।

संबंधित तथ्य

  • उद्देश्य: ऋण प्रवाह को बढ़ाना, बैंकिंग लचीलेपन को मजबूत करना, विनियमों को सरल बनाना और भारतीय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना।
  • घोषणा का समय: ये घोषणाएँ वैश्विक व्यापार तनाव, टैरिफ अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक अस्थिरता के मध्य की गई हैं, जो वस्तुओं और मुद्रा की गतिविधियों को प्रभावित करती हैं।
  • वैश्विक प्रतिकूलताओं के बावजूद, घरेलू खपत, सार्वजनिक निवेश और स्थिर मुद्रास्फीति के समर्थन से भारत का विकास परिदृश्य मजबूत बना हुआ है।

RBI MPC बैठक 2025-26 के मुख्य निष्कर्ष

  • नीतिगत निर्णय – रेपो दर अपरिवर्तित: MPC ने सर्वसम्मति से रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखने के लिए मतदान किया, जिसमें SDF 5.25 प्रतिशत और MSF और बैंक दर 5.75 प्रतिशत पर स्थिर रही।
    • रुख तटस्थ बना हुआ है।
  • मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान: RBI ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने CPI मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को 3.1% से घटाकर 2.6% कर दिया है।
    • कारण: यह गिरावट GST दरों में कटौती, खाद्य पदार्थों की सस्ती कीमतों और खाद्यान्न भंडार के बेहतर होने के कारण है।

वैश्विक एजेंसियों ने विकास की पुष्टि की: कई वैश्विक एजेंसियों ने भारत की मजबूत आर्थिक विकास संभावनाओं को बनाए रखा है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के मध्य देश की लचीलेपन को उजागर करता है। 

  • IMF (वित्त वर्ष 2025-26: 6.4%), फिच (वित्त वर्ष 2025-26: 6.9%, वित्त वर्ष 27: 6.3%), S&P ग्लोबल (वित्त वर्ष 2025-26: 6.5%), संयुक्त राष्ट्र (वित्त वर्ष 2025-26: 6.3%, वित्त वर्ष 27: 6.4%), और ओईसीडी (वित्त वर्ष 2025-26: 6.7%)।

    • GST को युक्तिसंगत बनाने से कीमतों को कम करने और करों को सरल बनाने में मदद मिली है, जिससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों को लाभ हुआ है। हालाँकि, भारतीय निर्यात पर नए अमेरिकी शुल्क (50% तक) बाहरी माँग को नुकसान पहुँचा सकते हैं और निर्यात वृद्धि को धीमा कर सकते हैं।
  • विकास अनुमान: वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया गया है।

  • वैश्विक माँग स्थिर: भारत का चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में तेजी से घटकर GDP का 0.2% रह गया, जिसे मजबूत सेवा निर्यात और 35.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड प्रेषण से मदद मिली।
    • वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं के बावजूद, निर्यात में 2.5% और आयात में 2.1% (अप्रैल-अगस्त 2025) की वृद्धि हुई, जबकि सेवा निर्यात में दोहरे अंकों की वृद्धि देखी गई।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 37.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
      • प्रमुख निवेश सिंगापुर, अमेरिका, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात और नीदरलैंड से हुआ।
      • शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) प्रवाह जुलाई में 38 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
    • विदेशी मुद्रा भंडार 700.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो 11 महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है, जो आर्थिक तनावों के विरुद्ध एक बफर के रूप में कार्य करता है।
  • रुपये की स्थिरता: रुपया एक सीमा तक स्थिर रहा है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव, व्यापार तनाव और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण यह अस्थायी है।
  • तरलता और संचरण: बैंकिंग प्रणाली में तरलता बनी रही है, अगस्त से अब तक ₹2.1 लाख करोड़ का दैनिक अधिशेष रहा है।
    • RBI को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में 75 आधार अंकों के नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio- CRR) में कटौती और सरकारी खर्च के बाद तरलता में और सुधार होगा।

संचरण: वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से RBI की नीतिगत दर में परिवर्तन बैंकों द्वारा ऋण और जमा पर ली जाने वाली ब्याज दरों को प्रभावित करता है।

    • ब्याज दर संचरण: नीतिगत दर में परिवर्तन से उधार दरों पर पड़ने वाला प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है:
      • नई ऋण दरों में 58 आधार अंकों (0.58%) की गिरावट आई है।
      • जमा दरें 106 आधार अंकों (1.06%) कम हैं।

पूँजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio -CAR): पूँजी की वह राशि जिसे बैंक संभावित घाटों से सुरक्षा के लिए आरक्षित रखता है, उसे पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) कहा जाता है। उच्च CAR का अर्थ है कि बैंक अधिक सुरक्षित और स्थिर है।

  • वित्तीय स्थिरता: भारत की वित्तीय प्रणाली (बैंक और NBFC) स्थिर और अच्छी तरह से पूँजीकृत बनी हुई है।
    • बैंक: पूँजी पर्याप्तता अनुपात 17.5% रहा और सकल NPA (त्रुटिपूर्ण ऋण) घटकर 2.22% रह गया – जो एक दशक का सबसे निचला स्तर है।
    • NBFC (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ): पूँजी अनुपात 25.7% पर रहा, जबकि NPA 2.23% पर सबसे कम रहा।

5 व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत प्रणाली को मजबूत करने के लिए कदम

A. बैंकों के लिए RBI के उपाय (बैंकिंग सुधार)

B. ऋण प्रवाह को आसान बनाने के उपाय (आसान ऋण)

C. व्यापार सुगमता (सरलीकृत नियम)

D. सरलीकृत विदेशी मुद्रा और बाह्य उधार नियम

E. उपभोक्ता-उन्मुख सुधार (दैनिक बैंकिंग के लिए)

F. रुपये को मजबूत करना (अंतरराष्ट्रीयकरण के उपाय)।

  • अतिरिक्त उपाय – प्रणाली को मजबूत करने के लिए 22 कदम: दर निर्णयों के साथ-साथ, RBI ने बैंकिंग को आधुनिक बनाने और विनियमन को सरल बनाने के लिए 22 प्रमुख सुधारों का अनावरण किया।

बैंकों के लिए RBI के 4 उपाय (बैंकिंग सुधार)

  1. अपेक्षित ऋण हानि (Expected Credit Loss- ECL) ढाँचे का कार्यान्वयन: RBI 1 अप्रैल, 2027 से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SFB, PB और RRB को छोड़कर) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों (AIFIs) के लिए अपेक्षित ऋण हानि (Expected Credit Loss- ECL) प्रावधान प्रणाली शुरू करेगा, जिसकी संक्रमण अवधि 31 मार्च, 2031 तक होगी।
    • प्रभाव: यह भारत को वैश्विक IFRS मानदंडों के अनुरूप बनाता है तथा ऋण तनावग्रस्तता की शीघ्र पहचान को प्रोत्साहित करता है, जिससे पारदर्शिता और वित्तीय लचीलेपन में सुधार होता है।

अपेक्षित ऋण हानि (Expected Credit Loss- ECL) ढाँचा

  • बैंकों के लिए ऋण हानियों का वास्तविक रूप से घटित होने से पहले ही अनुमान लगाने का एक दूरदर्शी तरीका।
  • यह पुराने ‘उपगत हानि मॉडल’ का स्थान लेता है, जहाँ बैंकों को हानियों के लिए प्रावधान करना होता है।
  • यह बैंकों को तनाव का शीघ्र पता लगाने, बेहतर बैलेंस शीट बनाए रखने और जमाकर्ताओं की सुरक्षा करने में मदद करता है।
  • बैंक वित्तीय परिसंपत्तियों (मुख्य रूप से ऋण, जिनमें अपरिवर्तनीय ऋण प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं, और परिपक्वता तक धारित या बिक्री के लिए उपलब्ध के रूप में वर्गीकृत निवेश) को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं:
    • चरण 1: वे वित्तीय परिसंपत्तियाँ, जिनमें रिपोर्टिंग तिथि पर ऋण जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है या जिनका ऋण जोखिम कम है।
    • चरण 2: वे वित्तीय उपकरण हैं, जिनमें ऋण जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन जिनमें हानि के वस्तुनिष्ठ प्रमाण नहीं हैं।
    • चरण 3: वे वित्तीय परिसंपत्तियाँ जिनमें रिपोर्टिंग तिथि पर हानि के वस्तुनिष्ठ प्रमाण हैं।

  • बैंकों पर प्रतिबंध हटाना: अब बैंकों को यह तय करने की छूट होगी कि कौन-सी सेवाएँ वे स्वयं या समूह संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाएँगी।
    • प्रभाव: यह कदम बैंक बोर्डों द्वारा रणनीतिक निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है, नियामक सूक्ष्म प्रबंधन को कम करता है और बैंकों को बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यावसायिक मॉडल तैयार करने की अनुमति देता है।
  • जोखिम-आधारित जमा बीमा प्रीमियम की शुरुआत: RBI, जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) द्वारा लगाए जाने वाले ‘फ्लैट-रेट प्रीमियम’ को जोखिम-आधारित प्रीमियम प्रणाली से परिवर्तित कर देगा।
    • DICGC 1962 से फ्लैट-रेट प्रीमियम के आधार पर जमा बीमा योजना का संचालन कर रहा है।
    • प्रभाव: बेहतर जोखिम प्रबंधन और सुदृढ़ प्रशासन वाले बैंक कम प्रीमियम का भुगतान करेंगे, जिससे स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा और जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा होगी।
  • संशोधित बेसल III पूँजी पर्याप्तता मानदंड: ऋण जोखिम के लिए मानकीकृत दृष्टिकोण के अंतर्गत बेसल III ढाँचा अप्रैल 2027 से लागू किया जाएगा।
    • प्रभाव: यह समग्र पूँजी आवश्यकताओं को कम करता है, विशेष रूप से MSMEs और आवास जैसे क्षेत्रों के लिए, जिससे बैंकों को अतिरिक्त ऋण देने के लिए पूँजी मुक्त करने और ऋण उपलब्धता में सुधार करने में मदद मिलती है।

बेसल III और बेसल III एंडगेम के बारे में

  • बेसल III: यह वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) द्वारा विकसित वैश्विक बैंकिंग विनियमों का एक समूह है।
    • इसका उद्देश्य बैंकों को अधिक मजबूत, अधिक पारदर्शी और वित्तीय तनावों से निपटने के लिए बेहतर ढंग से तैयार करना है।
  • बेसल III एंडगेम (अंतिम चरण): बेसल III सुधारों के अंतिम चरण को संदर्भित करता है, जिसकी घोषणा वर्ष 2023 में की गई और इसे वर्ष 2025-2028 तक वैश्विक स्तर पर लागू किया जाएगा।
    • यह बैंकों की पूँजी गणनाओं को अधिक जोखिम-संवेदनशील और विभिन्न देशों में तुलनीय बनाने पर केंद्रित है।
    • अंतिम चरण वैश्विक रूप से व्यवस्थित महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-SIB) के लिए पूँजी आवश्यकताओं को लगभग 20-25% तक बढ़ा देता है।
    • लक्ष्य: बैंकिंग प्रणाली के लचीलेपन में सुधार करना, निरंतर पर्यवेक्षण सुनिश्चित करना और वर्ष 2008 के संकट का कारण बने प्रणालीगत जोखिमों को कम करना।
  • बेसल मानदंड क्यों महत्त्वपूर्ण हैं: ये सुनिश्चित करते हैं कि बैंकों के पास अप्रत्याशित नुकसान को सहने और जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए हमेशा पर्याप्त पूँजी हो।
    • ये मानदंड वित्तीय स्थिरता को मजबूत करते हैं, कॉरपोरेट प्रशासन में सुधार करते हैं और बैंक विफलताओं की संभावना को कम करते हैं।
  • महत्त्वपूर्ण शब्दावली
    • जोखिम-भारित परिसंपत्तियाँ (Risk weighed Assets- RWA): RWA, बैंकों के पास ऋण देने की गतिविधियों से उत्पन्न जोखिम के सापेक्ष आवश्यक न्यूनतम पूँजी से जुड़ा होता है।
      • जोखिम जितना अधिक होगा, जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए उतनी ही अधिक पूँजी की आवश्यकता होगी।
    • टियर I पूँजी (कोर पूँजी): इसमें चुकता शेयर पूँजी, स्टॉक और घोषित रिजर्व शामिल हैं।
    • टियर II पूँजी (पूरक पूँजी): इसमें अन्य सभी पूँजी शामिल हैं, जैसे-अघोषित रिजर्व, पुनर्मूल्यांकन रिजर्व, सामान्य प्रावधान और हानि रिजर्व।
    • पूँजी जोखिम (भारित) परिसंपत्ति अनुपात (CAR): CAR एक प्रतिशत है, जो किसी बैंक की पूँजी की तुलना उसकी जोखिम-भारित परिसंपत्तियों से करके उसके वित्तीय स्वास्थ्य को मापता है।
  • बेसल I, II और III की प्रमुख विशेषताओं की तुलना

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ

  • बैंकिंग प्रणाली में तरलता का दबाव: RBI द्वारा खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations- OMO) जैसे उपायों के बावजूद, भारत के बैंकों को तरलता की कमी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio- LCR) जैसी नियामकीय आवश्यकताएँ धन जारी करने की उनकी क्षमता को सीमित करती हैं।
    • इससे MSME और खुदरा उधारकर्ताओं के लिए ऋण प्रवाह सीमित हो जाता है, जिससे तरलता बढ़ाने और व्यापक ऋण देने के लिए CRR और LCR सुधारों की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
  • असुरक्षित खुदरा ऋणों में बढ़ता दबाव: क्रेडिट कार्ड, स्थायी वित्त और छोटे ऋणों जैसे असुरक्षित व्यक्तिगत ऋणों में तीव्र वृद्धि ने डिफॉल्ट जोखिमों को बढ़ा दिया है।
    • RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) के अनुसार, मार्च 2025 को समाप्त वर्ष के दौरान असुरक्षित खुदरा ऋणों में निजी क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में 52.6 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
    • यह प्रवृत्ति घरेलू अति-उधार का जोखिम पैदा करती है, विशेष रूप से स्थिर वास्तविक आय वृद्धि की पृष्ठभूमि में।

जोखिम पोर्टफोलियो (Portfolio at Risk- PAR) किसी ऋणदाता (बैंक या NBFC) के कुल ऋण पोर्टफोलियो के उस हिस्से को मापता है, जो डिफॉल्ट के जोखिम में है, अर्थात्, ऐसे ऋण जहाँ भुगतान एक विशिष्ट दिनों से अधिक समय तक बकाया है।

  • सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में संकट: निम्न-आय और ग्रामीण उधारकर्ताओं को सेवा प्रदान करने वाला सूक्ष्म वित्त क्षेत्र, बढ़ते घरेलू ऋणग्रस्तता और जलवायु-संबंधी आजीविका संबंधी झटकों के कारण पुनर्भुगतान संबंधी दबाव का सामना कर रहा है।
    • CRIF हाई मार्क के आँकड़ों से पता चलता है कि 31-180 दिनों की अतिदेय श्रेणी में PAR (जोखिम में पोर्टफोलियो) वित्त वर्ष 2025 के दौरान बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गया है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 2.1 प्रतिशत था।
      • वित्त वर्ष के दौरान 180 दिन से अधिक अवधि में PAR (पोर्टफोलियो एट रिस्क) 1.6 प्रतिशत से बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गया है।
  • शासन और अनुपालन में खामियाँ: शासन संबंधी कमियाँ बनी हुई हैं, खासकर शहरी सहकारी बैंकों (Urban Cooperative Banks- UCB) और छोटे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान 353 विनियमित संस्थाओं (RE) पर वैधानिक प्रावधानों और नियामक निर्देशों के विभिन्न उल्लंघनों के लिए कुल ₹54.78 करोड़ का जुर्माना लगाया।
  • स्वर्ण ऋणों में बढ़ती त्रुटियाँ: कभी सुरक्षित माने जाने वाले स्वर्ण ऋणों में तनाव के संकेत दिखाई दे रहे हैं।
    • स्वर्ण ऋणों में NPA मार्च 2024 में ₹5,149 करोड़ से 30% बढ़कर जून 2024 में ₹6,696 करोड़ हो गया (RBI डेटा)।
  • तकनीकी और साइबर सुरक्षा जोखिम: तेजी से डिजिटलीकरण के साथ, बैंक साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों के प्रति अधिक संवेदनशील होते जा रहे हैं।
    • वर्ष 2024 की पहली छमाही में, भारत के वित्तीय क्षेत्र में वर्ष 2023 की इसी अवधि की तुलना में फिशिंग हमलों में 175% की वृद्धि देखी गई।
    • सीमित साइबर सुरक्षा तैयारी और कुशल जनशक्ति की कमी।

आगे की राह

  • तरलता की समस्या का समाधान: RBI उत्पादक क्षेत्रों तक धन की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Long-Term Repo Operations- LTRO), विदेशी मुद्रा खरीद-बिक्री स्वैप और गतिशील तरलता आवश्यकताओं जैसे नवीन उपकरणों का उपयोग कर सकता है।
    • सुधारों का उद्देश्य तरलता सहायता को व्यापक और समावेशी बनाना होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि MSME और छोटे उधारकर्ता भी भारत की मौद्रिक सरलता से लाभान्वित हों।
  • असुरक्षित खुदरा ऋण के लिए जोखिम प्रबंधन को मजबूत करना: उधारकर्ता की पुनर्भुगतान क्षमता का आकलन करने के लिए AI-आधारित ऋण जोखिम विश्लेषण और वैकल्पिक डेटा स्कोरिंग मॉडल के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • RBI अत्यधिक ऋण चक्र को रोकने के लिए कुल ऋण के हिस्से के रूप में असुरक्षित खुदरा ऋणों पर जोखिम सीमा निर्धारित कर सकता है।
  • सूक्ष्म वित्त क्षेत्र को स्थिर करना और PAR (जोखिम वाले पोर्टफोलियो) के स्तर को कम करना: ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक उधारी को हतोत्साहित करने के लिए ऋण परामर्श और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना।
    • उच्च-अपराध वाले राज्यों (जैसे- बिहार, पश्चिम बंगाल) में संकेंद्रण जोखिम से बचने के लिए MFI पोर्टफोलियो के भौगोलिक विविधीकरण को बढ़ावा देना।
    • MFI को जोखिम-आधारित मूल्य निर्धारण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना और CRIF हाई मार्क के तहत साझा MFI क्रेडिट रजिस्ट्री के माध्यम से उधारकर्ता सत्यापन को मजबूत करना।
    • जलवायु-जोखिम-समायोजित ऋण ढाँचे लागू करना, खासकर आय में उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे कृषि क्षेत्रों के लिए।
  • घरेलू ऋणग्रस्तता को नियंत्रित करना और जिम्मेदार उधारी को बढ़ावा देना: उधारकर्ता जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड उत्पादों के लिए स्पष्ट प्रकटीकरण मानदंड अनिवार्य करना।
  • स्वर्ण-समर्थित ऋणों की निगरानी को मजबूत करना: गिरवी रखे गए स्वर्ण संपार्श्विक का समय-समय पर पुनर्मूल्यांकन सुनिश्चित करना, खासकर जब सोने की कीमतों में तेजी से उतार-चढ़ाव हो।
    • सकारात्मक बाजार प्रवृत्ति के दौरान आवश्यकता से अधिक उधारी रोकने के लिए ऋण-मूल्य (Loan-to-Value- LTV) अनुशासन लागू करना। हाल ही में, RBI ने ₹2.5 लाख से कम के ऋणों के लिए स्वर्ण उधार LTV को 75% से बढ़ाकर 85% कर दिया है।
  • शासन और अनुपालन मानकों में सुधार: सहकारी और क्षेत्रीय बैंकों के निदेशकों के लिए एक उपयुक्त मानदंड लागू करना।
    • प्रौद्योगिकी-संचालित ऑडिट और रियल-टाइम अनुपालन डैशबोर्ड के माध्यम से RBI की पर्यवेक्षी क्षमता को मजबूत करना।
    • दक्षता और प्रशासन में सुधार के लिए कमजोर सहकारी बैंकों के विलय और समेकन को प्रोत्साहित करना।
  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों को बढ़ावा देना: स्वायत्तता और दक्षता बढ़ाने के लिए बाजार-आधारित विनिवेश के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूँजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • बड़े पैमाने पर वित्तपोषण के लिए बैंकों पर निर्भरता कम करने हेतु कॉर्पोरेट बॉण्ड बाजार को मजबूत बनाना।
    • चरणबद्ध डिजिटल अनुपालन और डेटा अवसंरचना उन्नयन के माध्यम से भारतीय बैंकिंग प्रथाओं को बेसल III एंडगेम मानदंडों के अनुरूप बनाना।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.