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बैंकिंग प्रणाली पर RBI की रिपोर्ट

Lokesh Pal July 04, 2024 06:14 39 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा 29वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) जारी की गई।

  • इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक भारतीय फिनटेक उद्योग 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। भारत में वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा फिनटेक इकोसिस्टम है। 
  • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (Boston Consulting Group- BCG) का अनुमान है कि वर्ष 2026 तक डिजिटल भुगतान का अनुपात 65% तक बढ़ जाएगा।

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR ) के बारे में

  • FSR  भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रत्येक छः महीने में एक बार (एक अर्द्ध-वार्षिक रिपोर्ट) प्रकाशित की जाती है।
  • अधिदेश: यह बैंकों, एनबीएफसी और अन्य वित्तीय मध्यस्थों का उनकी प्रगति के आधार पर मूल्यांकन करता है:
    • परिचालन मार्जिन (Operating Margins)
    • निवल ब्याज आय (Net Interest Income- NII)
    • निवल ब्याज मार्जिन (Net Interest Margins- NIM)
    • सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Gross Non Performing Assets- GNPA)
    • निवल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Net Non-Performing Assets- NPA)
    • RBI द्वारा किए गए विभिन्न तनाव परीक्षणों के परिणाम

29वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) के मुख्य बिंदु

  • FSR भारतीय वित्तीय प्रणाली की लचीलापन और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council- FSDC) की उप-समिति के सामूहिक मूल्यांकन को प्रतिबिंबित करता है। 
  • स्थिर वैश्विक अर्थव्यवस्था: वैश्विक अर्थव्यवस्था में विभिन्न चुनौतियों के बावजूद दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव, उच्च सार्वजनिक ऋण और अवस्फीति में धीमी प्रगति से उत्पन्न जोखिम का सामना करते हुए, वैश्विक वित्तीय प्रणाली लचीली बनी हुई है तथा वित्तीय स्थितियाँ स्थिर बनी हुई हैं।
  • लचीली और मजबूत भारतीय अर्थव्यवस्था: भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली मजबूत और लचीली बनी हुई है, जो व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता पर आधारित है।
    • बेहतर बैलेंस शीट के साथ, बैंक और वित्तीय संस्थान निरंतर ऋण विस्तार के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों का समर्थन कर रहे हैं।

  • मार्च 2024 के अंत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks- SCBs) के लिए वित्तीय सांख्यिकी
    • पूँजी से जोखिम-भारित परिसंपत्ति अनुपात (Capital to Risk-Weighted Assets Ratio- CRAR): यह 16.8% है, जिसका अर्थ है कि जोखिम की प्रत्येक 100 इकाइयों के लिए, बैंक के पास संभावित घाटे को कवर करने के लिए 16.8 पूँजी इकाइयाँ हैं।
    • कॉमन इक्विटी टियर 1 (Common Equity Tier 1- CET1) अनुपात: यह 13.9% है, जिसका अर्थ है कि बैंक के पास उच्च गुणवत्ता वाली पूँजी का एक मजबूत आधार है।
    • सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Gross Non-Performing Assets- GNPA) अनुपात: यह 2.8% के बहु-वर्षीय निम्न स्तर पर पहुँच गया, जिसका अर्थ है कि कुल ऋणों का 2.8% संकट की स्थिति में है।
    • शुद्ध गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Net Non-Performing Assets- NNPA) अनुपात: यह 0.6% है, जिसका अर्थ है कि प्रावधानों के हिसाब से कुल ऋणों का 0.6% संकट की स्थिति में है।

  • क्रेडिट जोखिम के लिए ‘मैक्रो स्ट्रेस टेस्ट’: इससे पता चला कि SCBs न्यूनतम पूँजी आवश्यकताओं का अनुपालन करने में सक्षम होंगे, मार्च 2025 में प्रणाली आधारित CRAR बेसलाइन, मध्यम और गंभीर तनाव परिदृश्यों के तहत क्रमशः 16.1%, 14.4% और 13.0% अनुमानित है।
    • ये परिदृश्य काल्पनिक संकटों के तहत कठोर रूढ़िवादी आकलन हैं और परिणामों की व्याख्या पूर्वानुमान के रूप में नहीं की जानी चाहिए।
    • तनाव परीक्षण (Stress tests) के परिणामों से पता चला कि बैंक अच्छी तरह से पूँजीकृत हैं और हितधारकों द्वारा किसी भी अतिरिक्त पूँजी निवेश के अभाव में भी व्यापक आर्थिक झटके को अवशोषित करने में सक्षम हैं।
      • क्रेडिट जोखिम, ब्याज दर जोखिम और तरलता जोखिम को कवर करते हुए स्ट्रेस टेस्ट आयोजित किए जाते हैं और इन झटकों के जवाब में वाणिज्यिक बैंकों के लचीलेपन का अध्ययन किया जाता है। 
      • स्ट्रेस टेस्ट का उपयोग करते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक उपर्युक्त परिदृश्यों के तहत एक वर्ष की सीमा पर हानि या खराब ऋण और पूँजी अनुपात का अनुमान लगाता है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFC) की स्थिति: यह अच्छी स्थिति में है, जिसमें CRAR 26.6% (वित्तीय रूप से मजबूत), GNPA अनुपात 4.0% (अर्थात् उनके 4% ऋण चुकाए नहीं जा रहे हैं) और परिसंपत्तियों पर रिटर्न (Return on assets- RoA) 3.3% (अपनी परिसंपत्तियों से अच्छा लाभ अर्जित कर रहे हैं) है। 

भारतीय बैंकिंग सेक्टर (Indian Banking Sector)

  • बैंक उधारकर्ताओं और उधारदाताओं के बीच वित्तीय मध्यस्थ हैं। यह जनता से जमा स्वीकार करता है और व्यवसायों तथा उपभोक्ताओं को पैसा उधार देता है। इसकी प्राथमिक देनदारियाँ जमा हैं और प्राथमिक संपत्तियाँ ऋण एवं बॉण्ड हैं।

  • सांख्यिकी: भारतीय बैंकिंग प्रणाली में 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, 21 निजी क्षेत्र के बैंक, 44 विदेशी बैंक, 12 लघु वित्त बैंक शामिल हैं। दिसंबर 2023 तक भारत में माइक्रो-ATM की कुल संख्या 16,88,558 तक पहुँच गई। इसके अलावा, 1,26,205 ऑन-साइट ATM और कैश रिसाइकिलिंग मशीन (Cash Recycling Machines- CRM) और 93,671 ऑफ-साइट ATM एवं CRM हैं।

  • वर्गीकरण: भारत में बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बनने वाले बैंकों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

अनुसूचित बैंक एवं गैर-अनुसूचित बैंक

  • अनुसूचित बैंक: वे वित्तीय संस्थान जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। यह समावेशन दर्शाता है कि वे RBI द्वारा निर्धारित विशिष्ट मानदंडों को पूरा करते हैं और इसके सख्त नियमों के अधीन हैं।
    • RBI अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची के अनुसार, इन बैंकों को कम-से-कम 5 लाख रुपये पूँजी जुटानी चाहिए।
  • गैर-अनुसूचित बैंक: वे वित्तीय संस्थान, जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल होने के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
    • वे अनुसूचित बैंकों की तुलना में अलग नियमों के तहत कार्य करते हैं।

  • बैंकिंग प्रणाली की संरचना: भारतीय रिजर्व बैंक भारत में बैंकिंग प्रणाली की संरचना में सबसे ऊपर है और भारत के केंद्रीय बैंक के रूप में कार्य करता है। केंद्रीय बैंक के नीचे निम्नलिखित विभिन्न प्रकार के बैंक संचालित होते हैं।
    • वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks): भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India- SBI), आवास विकास वित्त निगम (Housing Development Finance Corporation- HDFC) बैंक, भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम (Industrial Credit and Investment Corporation of India- ICICI) बैंक, आदि। 
    • सहकारी बैंक (Cooperative Banks): भारत सहकारी बैंक, सारस्वत सहकारी बैंक, कॉसमॉस सहकारी बैंक आदि। 
    • विकास बैंक (Development Banks): भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (Finance Corporation of India- IFCI), भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India- IDBI), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India- SIDBI), आदि। 
    • विभेदित बैंक (Differentiated Banks): लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक भारत में विभेदित बैंकों के उदाहरण हैं जैसे कस्टोडियन बैंक और थोक एवं दीर्घकालिक वित्त बैंक (Wholesale and Long-Term Finance banks- WLTF) आदि।
  • बैंकिंग उद्योग में बेसल मानदंड (Basel Norms in the Banking Industry)
    • इसमें पूँजी पर्याप्तता, जोखिम प्रबंधन और तरलता पर दिशा-निर्देश देकर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तैयार किए गए अंतरराष्ट्रीय नियामक मानक शामिल हैं। 
    • ये मानदंड दुनिया भर में बैंकों को विनियमित करने, सुरक्षित और अधिक लचीले बैंकिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

29वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) के अनुसार उपलब्धियाँ 

  • प्रभावी प्रदर्शन: भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने विभिन्न मानदंडों पर प्रभावी प्रदर्शन दर्ज करना जारी रखा है।
    • बैंकों ने न केवल अपनी संपत्ति की गुणवत्ता में निरंतर सुधार देखा है, बल्कि उनकी उच्च लाभप्रदता बनी हुई है, और उनकी पूँजी की स्थिति भी सकारात्मक बनी हुई है। 
    •  यह सुधार सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के बैंकों में देखा जा रहा है। 
    • साथ ही निफ्टी बैंक सूचकांक (Nifty Bank index) पिछले वर्ष की तुलना में 16% से अधिक बढ़ा है, PSU बैंकों ने अधिक लाभ दर्ज किया है।
  • सकल गैर-निष्पादित ऋण में गिरावट: रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बैंकिंग प्रणाली के सकल गैर-निष्पादित ऋण मार्च में घटकर 12 वर्ष के निम्नतम स्तर 2.8% पर आ गए हैं, जिसमें सार्वजनिक, निजी और विदेशी बैंकों में गिरावट देखी गई है।
    • क्षेत्रवार आँकड़ों से पता चलता है कि कृषि, उद्योग, सेवा और व्यक्तिगत ऋण श्रेणी में खराब ऋणों में कमी आई है।
    • खराब ऋणों में यह व्यापक गिरावट, बट्टे खाते में डाले गए ऋणों तथा नए खराब ऋणों में कमी के संयोजन से प्रेरित है।
  • प्रोविजन कवरेज अनुपात में सुधार: बैंकों की शुद्ध ब्याज आय बढ़ी है, और उनकी पूँजी की स्थिति अच्छी बनी हुई है। 
    • इसके अलावा, बैंक सामान्य व्यावसायिक परिस्थितियों में मार्च 2025 तक खराब ऋणों में 2.5% तक की गिरावट देख सकते हैं।

29वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) द्वारा उठाई गई चिंताएँ

  • अनेक सकारात्मक प्रभावों के बावजूद, FSR में कई मोर्चों पर चिंताजनक मुद्दों का भी उल्लेख किया गया हैं।
  • बचत में गिरावट (Decline in Savings) 
    • सकल बचत दर: सकल बचत दर में सकल शुद्ध प्रयोज्य आय के 29.7% तक गिरावट।
    • घरेलू बचत: वर्ष 2013-22 की अवधि के दौरान घरेलू बचत 20% से घटकर वर्ष 2022-23 में 18.4% हो गई। 
    • शुद्ध वित्तीय बचत: वर्ष 2013-2022 के दौरान औसतन 39.8% से घटकर, यह हिस्सा वर्ष 2022-23 में घटकर 28.5% हो गया है।
      • वित्तीय देनदारियों में वृद्धि के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 के दौरान शुद्ध वित्तीय बचत सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% तक घट जाएगी, जो वर्ष 2013-2022 के दौरान औसत 8% से कम है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में गिरावट
    • FDI प्रवाह: वर्ष 2022-23 में 28 बिलियन डॉलर से घटकर वर्ष 2023-24 में 9.8 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
      • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): सीमा-पार निवेश की एक श्रेणी, जिसमें एक अर्थव्यवस्था में स्थित निवेशक किसी अन्य अर्थव्यवस्था में स्थित उद्यम में स्थायी रुचि और उस पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव स्थापित करता है।
    • FDI में गिरावट का कारण: यह आंशिक रूप से उच्च प्रत्यावर्तन के कारण हो सकता है, लेकिन इसकी मात्रा चिंता का विषय है। विशेषकर तब जब जेपी मॉर्गन ग्लोबल बॉण्ड इंडेक्स में सरकारी प्रतिभूतियों को शामिल करने से अधिक ऋण प्रवाह आकर्षित होने की संभावना है, जिससे FDI संतुलन और भी बिगड़ जाएगा।
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI) के लिए: इसी अवधि में, FPI प्रवाह -4.8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 44.6 बिलियन डॉलर हो गया, जो लगभग 50 बिलियन डॉलर का अंतर है।
      • आसानी से आने वाले FPI  प्रवाह या ‘हॉट मनी’ (Hot Money) की तुलना में FDI  प्रवाह को प्राथमिकता दी जाती है।

  • परिसंपत्ति मूल्यांकन संबंधी चिंताएँ (Assets Valuation Concerns)
    • बढ़ा हुआ मूल्यांकन: FSR ने चेतावनी दी है कि कुछ परिसंपत्तियों का मूल्यांकन बढ़ाया जा सकता है, और ‘अपेक्षाकृत जोखिम वाली संपत्तियों की कीमतों में तेज वृद्धि’ देखी गई है। 
    • सहसंबद्ध प्रभाव (Correlated Effects): विस्तारित मूल्यांकन में, ‘अचानक संकट की स्थिति तनाव उत्पन्न कर सकती है, जो सहसंबद्ध बिकवाली (Correlated Sell-offs) और बैंडवैगन प्रभावों (Bandwagon effects) के माध्यम से वित्तीय बाजार क्षेत्रों में संक्रामक रूप से फैलता है।’
    • गैर-बैंक संस्थान: वित्तीय मध्यस्थता में गैर-बैंक संस्थानों की भूमिका का बढ़ता महत्त्व तथा उच्च एवं छुपे हुए लीवरेज के कारण बड़े संकटों के सामने तनाव और भी बढ़ सकता है।

  • अन्य: उभरते जोखिम, जिनमें साइबर खतरे, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक विस्तार शामिल हैं।
    • घरेलू जोखिम: वित्तीय प्रणाली में कुछ नई चिंताएँ सामने आने लगी हैं। घरेलू स्तर पर दो जोखिम में वृद्धि हो रही हैं।
      • कम खपत और माँग: यह भारतीय अर्थव्यवस्था में मजदूरी और रोजगार वृद्धि के बारे में व्यापक चिंताओं को दर्शाता है।
      • साइबर जोखिम के साथ जलवायु परिवर्तन: इन्हें इस समय सबसे बड़ा मैक्रो-वित्तीय जोखिम माना जाता है।

आगे की राह

उभरती चुनौतियों का मुकाबला करने तथा भारतीय बैंकिंग प्रणाली की सर्वोत्तम क्षमता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कार्य किए जाने आवश्यक हैं:

  • जलवायु जोखिमों से निपटना: FSR में जलवायु जोखिम को विनियमित करने के मामले में वैश्विक रुझानों की समीक्षा शामिल है। भारतीय वित्तीय प्रणाली और RBI सहित वित्तीय क्षेत्र के नियामकों को बढ़ते जलवायु जोखिम से निपटने के लिए तैयारी शुरू करने की आवश्यकता है।
    • जलवायु परिवर्तन का मौद्रिक नीति पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिससे वित्तीय प्रणाली के लिए जोखिम बढ़ सकता है।
  • शासन पर ध्यान: शासन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। प्रभावी शासन वित्तीय प्रणाली में हितधारकों के लचीलापन का मूल घटक है।
    • Google इंडिया डिजिटल सर्विसेज (P) लिमिटेड और NPCI इंटरनेशनल पेमेंट्स लिमिटेड (NPCI International Payments Ltd- NIPL) ने भारत से परे देशों में UPI के परिवर्तनकारी प्रभाव का विस्तार करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU)) पर हस्ताक्षर किए हैं।
    • भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली 25 देशों में सबसे अधिक विकसित हुई है, भारत की तत्काल भुगतान सेवा फास्टर पेमेंट इनोवेशन इंडेक्स (Faster Payments Innovation Index- FPII) में पांचवें स्तर पर एकमात्र प्रणाली है।
    • भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस ( Unified Payments Interface- UPI) ने भी रियल टाइम के भुगतान में क्रांति ला दी है और हाल के वर्षों में अपनी वैश्विक पहुँच बढ़ाने का प्रयास किया है।
  • निगरानी: नवीनतम FSR के अनुसार, बचत में गिरावट चिंता का विषय है और इस पर निगरानी रखी जानी चाहिए।
    • यद्यपि निजी क्षेत्र के बैंकों के मामले में खुदरा ऋणों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में सुधार हुआ है (जून 2022 में खराब ऋण 2.1% से घटकर मार्च 2024 में 1.2% हो गया है), खराब ऋणों में 40% की नई वृद्धि एक चिंताजनक मुद्दा है, जिस पर निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी में उन्नति: इसने मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग सेवाओं को आगे बढ़ाया है। AI तथा  ऑटोमेशन अभूतपूर्व मूल्य प्रदर्शित कर रहे हैं, जबकि ब्लॉकचेन ने पूरे व्यापार परिदृश्य में नवाचार को बढ़ावा दिया है।
  • अन्य: बुनियादी ढांचे पर बढ़ा हुआ खर्च, परियोजनाओं का तेजी से क्रियान्वयन और सुधारों की निरंतरता से बैंकिंग क्षेत्र में वृद्धि को और गति मिलने की उम्मीद है।

प्रमुख सरकारी और विनियामक पहल

  • प्रधानमंत्री जन धन योजना: दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहल, ‘जन धन योजना’ ने 486+ मिलियन लाभार्थियों के नए बैंक खाते खोलने में मदद की है, जिनमें 265+ मिलियन महिलाएँ हैं।
  • भारत में विदेशी बैंकों द्वारा पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों (Wholly Owned Subsidiaries- WOS) की स्थापना संबंधी योजना: वर्ष 2013 में, RBI ने इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए भारत में विदेशी बैंकों द्वारा WOS की स्थापना के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे।
  • पूर्ण रूप से डिजिटल और परेशानी मुक्त तरीके से किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card- KCC) ऋण की शुरुआत।
  • NBFC/गैर-बैंकिंग संस्थाओं के लिए आधार e-KYC प्रमाणीकरण: सभी NBFC, भुगतान प्रणाली प्रदाता और भुगतान प्रणाली प्रतिभागी अब आधार प्रमाणीकरण लाइसेंस (KUA/Sub-KUA) प्राप्त कर सकते हैं।
  • डिजिटल बैंकिंग इकाइयों की स्थापना: वर्ष 2022 में, भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में देश के 75 जिलों में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों (DBU) की घोषणा की गई।

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