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उचित वर्गीकरण परीक्षण

Lokesh Pal March 10, 2025 03:41 7 0

संदर्भ 

अनवर अली सरकार वाद (1952) सर्वोच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 की व्याख्या के लिए उचित वर्गीकरण परीक्षण (Reasonable Classification Test) को एक मानक के रूप में स्थापित किया।

उचित वर्गीकरण (Reasonable Classification) के बारे में

  • उचित वर्गीकरण (Reasonable Classification) भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित एक कानूनी सिद्धांत है, जो यह निर्धारित करता है कि कब कोई कानून संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार से विचलित हो सकता है।
  • यह राज्य को विशिष्ट समूहों के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति देता है, यदि वे नीतिगत कारणों से वैध और न्यायोचित मानदंडों पर आधारित हों।
  • यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाए, लेकिन असमान लोगों के साथ अलग व्यवहार किया जा सकता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14

  • प्रावधान: स्टेट, भारत के क्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा।
  • कानून के समक्ष समानता (नकारात्मक अवधारणा)
    • यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को कोई विशेष विशेषाधिकार न मिले।
    • कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, चाहे उसकी स्थिति, पद या स्थिति कुछ भी हो।
    • प्रत्येक व्यक्ति देश के सामान्य कानून और सामान्य न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के अधीन है।
  • कानूनों का समान संरक्षण (सकारात्मक अवधारणा)
    • समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी देता है।
    • समान मामलों को समान कानूनी प्रावधानों के तहत समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए।
    • उचित वर्गीकरण की अनुमति देता है, जिसका अर्थ है कि यदि कोई वैध औचित्य है तो विभिन्न स्थितियों को अलग-अलग तरीके से व्यवहार किया जा सकता है।

सिद्धांत का विकास

  • संकीर्ण व्याख्या (प्रारंभिक चरण): इससे पहले, अनुच्छेद-14 की व्याख्या प्राथमिक परीक्षण के रूप में वर्गीकरण पर सीमित ध्यान केंद्रित करके की जाती थी।
  • समय के साथ विस्तारित दायरा: न्यायिक व्याख्याएँ अनुच्छेद-14 को वर्गीकरण से परे बढ़ाकर मनमानी के विरुद्ध सुरक्षा को भी कवर करने के लिए विकसित हुईं।
  • आधुनिक न्यायिक दृष्टिकोण: सर्वोच्च न्यायालय अब कानून के वर्गीकरण और निष्पक्षता दोनों का मूल्यांकन करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि कानून मनमाना या अन्यायपूर्ण नहीं हैं।

उचित वर्गीकरण के लिए दोहरा परीक्षण

  • सुबोध विभेद: कानून को लोगों या स्थितियों को स्पष्ट और तर्कसंगत अंतरों (जैसे- आर्थिक स्थिति, व्यवसाय या लैंगिक आधार पर) के आधार पर वर्गीकृत करना चाहिए।
    • उदाहरण: महिलाओं, बच्चों या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों जैसे संवेदनशील समूहों के लिए विशेष कानून।
  • कानून के उद्देश्य के साथ तर्कसंगत संबंध: वर्गीकरण और कानून के उद्देश्य के बीच एक उचित संबंध होना चाहिए।

उचित वर्गीकरण बनाम वर्ग विधान

  • यह सिद्धांत निम्नलिखित के बीच अंतर करता है:-
    • उचित वर्गीकरण (अनुमेय): वास्तविक और पर्याप्त अंतरों के आधार पर न्यायसंगत और न्यायसंगत उपचार की गारंटी देता है।
    • वर्ग विधान (अनुमेय नहीं): यह किसी विशिष्ट समूह को मनमाने ढंग से विशेषाधिकार प्रदान करता है और असंवैधानिक है।

उचित वर्गीकरण परीक्षण से संबंधित निर्णय

  • पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनवर अली सरकार (1952): सर्वोच्च न्यायालय  ने एक ऐसे कानून को खारिज कर दिया, जो बिना किसी तर्कसंगत आधार के कुछ व्यक्तियों के लिए विशेष सुनवाई का प्रावधान करता था, यह मानते हुए कि यह अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करता है।
    • इस निर्णय ने ‘उचित वर्गीकरण’ परीक्षण की स्थापना की, जो अपवादों की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद-14 के तहत कुछ शर्तों के अधीन समानता को उल्लेखित किया गया है।
  • डी.एस. नकारा बनाम भारत संघ (1983): पेंशनभोगियों का उनकी सेवानिवृत्ति तिथि के आधार पर वर्गीकरण अनुचित माना गया क्योंकि इसमें उद्देश्य के साथ तर्कसंगत संबंध का अभाव था।
  • ई.पी. रोयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1974): न्यायालय ने मात्र वर्गीकरण से आगे बढ़कर स्वेच्छाचारिता की अवधारणा (Concept of Arbitrariness) को अनुच्छेद-14 का उल्लंघन बताया।
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): अनुच्छेद-14 की व्यापक व्याख्या की गई, जिसमें कहा गया कि वर्गीकरण मनमाना नहीं होना चाहिए तथा निष्पक्षता एवं तर्कसंगतता की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए।

परीक्षण का महत्त्व

  • विशिष्ट विनियमों का समर्थन करता है: अलग-अलग सामाजिक स्थितियों के लिए अनुरूप कानून बनाने की अनुमति देता है।
  • विधिनिर्माताओं और न्यायपालिका का मार्गदर्शन करता है: तर्कहीन परिणामों से बचने के लिए कानूनों की व्याख्या करने में मदद करता है।
  • वैधता परीक्षण: सुनिश्चित करता है कि कानून तर्कसंगत हैं और कानूनी चुनौतियों को कम करता है।
  • न्यायिक समीक्षा मानक: न्यायालयों को मनमाने प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा करने और उन्हें रद्द करने में मदद करता है।
  • विधायी जवाबदेही को मजबूत करता है: सुनिश्चित करता है कि कानून स्पष्ट उद्देश्यों और तार्किक तर्क के साथ बनाए जाएँ, जिससे स्टेट (State) की शक्ति का दुरुपयोग रोका जा सके।

उचित वर्गीकरण की सीमाएँ

  • अनुचित भेदभाव का जोखिम: गलत तरीके से लागू किए जाने से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
  • असंगत व्याख्याओं की ओर ले जाने वाली व्यक्तिपरकता: आयु, लिंग एवं क्षमता जैसे कारक असंगत न्यायिक व्याख्याओं को जन्म दे सकते हैं।

निष्कर्ष 

उचित वर्गीकरण सिद्धांत और परीक्षण समानता तथा निष्पक्षता को संतुलित करता है एवं अनुच्छेद-14 के अंतर्गत न्यायोचित विभेदों की अनुमति देता है। न्यायिक व्याख्याएँ इसे परिष्कृत करती रहती हैं तथा यह सुनिश्चित करती हैं कि कानून न्यायसंगत, तर्कसंगत और गैर-मनमाने बने रहें।

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