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बहुपक्षवाद को पुन: संतुलित करना (Rebalancing multilateralism)

Samsul Ansari January 02, 2024 04:33 225 0

संदर्भ

हाल ही में भारत ने रूस के साथ पुनर्संतुलन (Rebalancing) के महत्त्व और बहुध्रुवीयता (Multipolarity) के उद्भव के बारे में चर्चा की।

संबंधित तथ्य 

  • सामरिक बैठक: भारत ने रूसी रणनीतिक समुदाय के प्रमुख प्रतिनिधियों के साथ बैठक जिसमें कनेक्टिविटी, बहुपक्षवाद, बड़ी शक्ति प्रतिस्पर्द्धा और क्षेत्रीय संघर्षों पर चर्चा की गई।
  • परिस्कृत बहुपक्षवाद: भारत ने परिस्कृत बहुपक्षवाद का आह्वान किया, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ध्रुवीकृत प्रकृति के संदर्भ में, जिसे अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • भविष्य के शिखर सम्मेलन: इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि अगले सितंबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित होने वाले भविष्य के शिखर सम्मेलन को निष्पक्षता की वकालत करने और बहुपक्षवाद में सुधार के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।
    • इस सुधार में सुरक्षा परिषद की सदस्यता का विस्तार शामिल है। अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव के लिए अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए एक प्रतिनिधि और अच्छी तरह से कार्य करने वाली सुरक्षा परिषद की आवश्यकता है।

बहुपक्षवाद (Multilateralism) क्या है?

बहुपक्षवाद में परामर्श, समावेशन और एकजुटता जैसे संस्थापक सिद्धांतों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों एवं  मंचों के माध्यम से कई देशों को शामिल करना ही बहुपक्षवाद है।

बहुपक्षवाद को पुनः संतुलित करने की आवश्यकता

  • वैश्विक शक्ति स्थानांतरण: अमेरिका जैसी स्थापित शक्तियों से भारत जैसी उभरती शक्तियों की ओर शक्ति का स्थानांतरण आवश्यक है। 
    • यह एक अधिक न्यायसंगत और प्रतिनिधि वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने तथा एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय भूमिका के लिए भारत की आकांक्षाओं के अनुरूप है।
  • भारत के लिए भू-राजनीतिक क्षेत्र में बढ़त: घरेलू चुनौतियों और चीन के साथ रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता का सामना कर रहा अमेरिका तेजी से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • इससे भारत को अपने निकटतम पड़ोस और उससे आगे अधिक प्रभाव डालने के लिए जगह मिल सकती है।
  • आर्थिक अवसर: पुनर्संतुलन आर्थिक सहयोग और व्यापार विविधीकरण के लिए नए रास्ते खोलता है, जिससे भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ मजबूत साझेदारी बना सकता है और चीन तथा अन्य पर निर्भरता कम कर सकता है।
    • चीन पर भारत की निरंतर निर्भरता चिंता का विषय बनी हुई है। वित्तीय वर्ष 2002 से 2012 की अवधि के दौरान, व्यापार घाटा 1.1 अरब डॉलर से बढ़कर 37 अरब डॉलर हो गया; जो वित्त वर्ष 2022 में $73 बिलियन के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू गया।
    • भारत द्वारा G20 की प्रेसीडेंसी: G20 प्रेसीडेंसी के दौरान मानव-केंद्रित प्रगति और समावेशिता पर भारत का ध्यान बहुपक्षवाद में सुधार पर भविष्य की चर्चाओं के लिए एक अहम उद्देश्य को साकार करता है।

बहुपक्षवाद से संबंधित चिंताएँ

  • वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने में UNSC की विफलता: यूक्रेन संघर्ष के दौरान कार्रवाई करने में सुरक्षा परिषद की विफलता और इजरायल में हमास द्वारा किए गए आतंकवादी हमले जैसे वैश्विक संकटों को संबोधित करने में UNSC की असफलता इसकी प्रभावशीलता के संदर्भ में चिंताओं को उजागर करते हैं।
    • स्थायी सदस्यों के वीटो के कारण गाजा युद्ध में मानवीय युद्धविराम सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र परिषद की असमर्थता ने संकट प्रबंधन में इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं।
  • बहुपक्षीय संस्थानों का कम होता प्रभाव: मिस्र जैसे गैर-पश्चिमी देशों को प्रभावित करने वाले आर्थिक और जलवायु संबंधी व्यवधान, बहुपक्षीय संस्थानों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, के घटते प्रभाव से जटिल रूप से जुड़े हुए हैं।
    • वीटो शक्तियों, अपने स्वयं के सुधारों की कमी और सदस्य देशों के बीच विश्वास में कमी जैसे मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में असमर्थता के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र की आलोचना की गई।
  •  WTO अपीलीय निकाय संकट: WTO अपीलीय निकाय में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अमेरिका द्वारा वीटो शक्ति के उपयोग ने WTO की विवाद समाधान प्रक्रिया को अप्रभावी बना दिया है।
    • इसी तरह, WTO ने बहुपक्षीय व्यापार वार्ता में प्रगति करने के लिए संघर्ष किया है, जिससे देश तेजी से द्विपक्षीय या क्षेत्रीय व्यापार सौदों का सहारा ले रहे हैं, जिससे बहुपक्षवाद के सिद्धांत कमजोर हो रहे हैं।
  • बहुपक्षीय मंचों का बहिष्कार: चीनी राष्ट्रपति और रूसी राष्ट्रपति जकार्ता में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए, जो बहुपक्षीय व्यवस्था के सामने आने वाले अपरिवर्तनीय खतरे को उजागर करता है।
  • चीन का बढ़ता आधिपत्य: चीनी विस्तारवाद अपने बढ़ते सैन्य एवं आर्थिक प्रभाव के कारण एशिया में एक महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न कर रहा है, रूस के प्रति इसके दृढ़ समर्थन से यूरोप में तनाव बढ़ रहा है।
    • जहाँ चीन का वियतनाम, फिलीपींस, भारत, जापान और अमेरिका सहित कई एशियाई पड़ोसियों के साथ मतभेद है, वहीं रूस, यूक्रेन को लेकर पश्चिमी शक्तियों से लड़ रहा है।
  • नियामक चुनौतियाँ: अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में, विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) को बौद्धिक संपदा अधिकार, श्रम मानकों और पर्यावरण नियमों जैसे मुद्दों पर नियामक ढाँचे में असमानताओं के कारण बहुपक्षीय समझौतों तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
    • इसके परिणामस्वरूप अलग-अलग नियमों एवं विनियमों के साथ द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का प्रसार हुआ है, जो नियामक विखंडन एवं जटिलता में योगदान दे रहा है।

भारत की बहुपक्षवाद नीति

  • भारत की विदेश नीति की आधारशिला: भारत परंपरागत रूप से बहुपक्षवाद का समर्थक रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक वैश्विक कार्रवाई के महत्त्व पर जोर देता है।
    • भारत विकासशील देशों या ‘ग्लोबल साउथ’ को गुट निरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement- NAM), G-77 आदि मंचों पर एकजुट करके संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने हितों के साथ संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है।
  • बहुपक्षीय मंचों का सक्रिय सदस्य: भारत संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों का सक्रिय सदस्य रहा है।
  • वैश्विक चुनौतियों को संबोधित करना: भारत जलवायु परिवर्तन, सतत विकास एवं आतंकवाद विरोधी जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने की पहल में सबसे आगे रहा है।
  • उदाहरण: भारत वैश्विक जलवायु वार्ता में सक्रिय रूप से शामिल रहा है और उसने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं।
  • भारत ने गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं लैंगिक सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सतत विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा को आगे बढ़ाने में भी प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार: भारत बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता को प्रतिबिंबित करते हुए, वैश्विक संस्थानों को अधिक प्रतिनिधित्त्वपूर्ण और समावेशी बनाने के लिए उनमें सुधार का भी अग्रणी समर्थक रहा है।
    • उदाहरण: इंडिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे वैश्विक शासन संस्थानों में सुधारों का आह्वान किया है, ताकि उन्हें अधिक समावेशी एवं वर्तमान वैश्विक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व करने वाला बनाया जा सके।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की सिफारिश: भारत ने एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जहाँ शक्ति कई केंद्रों के बीच वितरित की जाती है तथा कोई एक राष्ट्र वैश्विक मामलों पर हावी नहीं होता है।
  • संप्रभु समानता की वकालत: भारत राष्ट्रों के बीच ‘संप्रभु समानता’ की अवधारणा का अग्रणी समर्थक रहा है, जो आपसी सम्मान, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के महत्त्व पर जोर देता है।
  • सामूहिक कार्रवाइयों का अनुसरण: बहुपक्षवाद में मौजूदा संकट के बावजूद भारत सामूहिक समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध है।
    • भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रयास किए हैं कि G-20 में यूक्रेन जैसे विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित न किया जाए।
    • इसके बजाय, भारत का उद्देश्य विभिन्न महत्त्वपूर्ण मामलों पर समझौते सुरक्षित करना है, जैसे वैश्विक कर व्यवस्था का आधुनिकीकरण और बहुपक्षीय विकास बैंकों का सुधार।
  • वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ: भारत ने पहला ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ आयोजित करके G-20 शिखर सम्मेलन में बहुपक्षवाद के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया, ग्लोबल साउथ की आवाज को बढ़ाया, समावेशी विकास का समर्थन किया और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए संघर्ष किया।
    • G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान पारित नई दिल्ली घोषणा में जलवायु न्याय और समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया, जिसमें वैश्विक उत्तर से पर्याप्त वित्तीय एवं तकनीकी सहायता का आग्रह किया गया।

द्वि-पक्षीयवाद का उदय और नए क्षेत्रीय गुटों का गठन

  • क्षेत्रीय लक्ष्यों का पीछा करना: हाल के दिनों में वैश्विक स्तर पर कई देशों ने बहुपक्षवाद से दूरी बनाई  है और अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय संगठनों के साथ जुड़ना शुरू कर दिया है। 
    • उदाहरण- देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते,  QUAD, I2U2 आदि।
  • भारत का रुख: भारत ने भारत-जापान-अमेरिका त्रिपक्षीय वार्ता और भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान-अमेरिका चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (India-Australia-Japan-US Quadrilateral Security Dialogue- Quad) जैसे द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय समझौतों को भी आगे बढ़ाया है, जिन्हें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्य से रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखा जाता है।

द्विपक्षीयवाद से जुड़े मुद्दे

  • वैश्विक व्यवस्था का विखंडन: क्षेत्रीय एकीकरण एवं सहयोग को बढ़ावा देते हुए, यह विखंडन, बहिष्कार और यहाँ तक कि संघर्ष को भी जन्म दे सकता है।
    • उदाहरण:- दुनिया के विभिन्न हिस्सों, जैसे मध्य पूर्व, पूर्वी यूरोप और दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय तनाव का बढ़ना।
    • ये क्षेत्रीय गुट संभावित रूप से वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक वैश्विक दृष्टिकोण को कमजोर कर सकते हैं, छोटे तथा कम शक्तिशाली देशों को हाशिए पर धकेल सकते हैं।
  • क्षेत्रीय समूहों के बीच प्रतिस्पर्द्धा: ये क्षेत्रीय गुट क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं और गैर-सदस्य राज्यों को अपनी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से बाहर कर देते हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रीय समूहों के बीच प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाती है।
    • ऐसे क्षेत्रीय गुटों के उदाहरणों में यूरोपीय संघ (EU), शंघाई सहयोग संगठन (SCO), और अफ्रीकी संघ (AU) शामिल हैं।
    • क्षेत्रीय एकीकरण और संरक्षणवादी नीतियों पर यूरोपीय संघ के जोर की वैश्विक व्यापार उदारीकरण प्रयासों को कमजोर करने के लिए आलोचना की गई है।

आगे की राह

  • द्विपक्षीयवाद और बहुपक्षवाद को संतुलित करना: बहुपक्षीय मंचों की समावेशिता और निष्पक्षता के साथ द्विपक्षीय वार्ता की सीधी भागीदारी को जोड़कर, विवाद समाधान के लिए एक व्यापक और प्रभावी दृष्टिकोण प्राप्त किया जा सकता है।
    • द्विपक्षीय और बहुपक्षीय जुड़ाव का यह व्यावहारिक और संदर्भ-विशिष्ट प्रणाली राष्ट्रों को जटिल विवादों से निपटने, सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक मंच पर दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में काम करने में सक्षम बनाता है।
  • पुन: वैश्वीकरण पर ध्यान केंद्रित करना: यह एक अधिक विविध और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण है जिसमें चीन के कारखानों और उसके राजनीतिक निर्णयों पर विशेष निर्भरता से हटकर उत्पादन के कई केंद्र शामिल हैं।
  • बहुपक्षीय प्रणाली का पुनर्गठन: क्षेत्रीय और वैश्विक संगठनों के बीच अधिक विश्वास-निर्माण सहयोग के साथ, बहुपक्षीय प्रणाली को स्थिर से अधिक सहयोगात्मक तक पुनर्गठित करने की आवश्यकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र को चयनित क्षेत्रीय संगठनों के साथ एक आधिकारिक साझेदारी स्थापित करनी चाहिए, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों और क्षेत्रीय संगठन के प्रमुखों के बीच नियमित बैठकें शामिल हो सकती हैं।
  • बहुपक्षीय बैंकों में सुधार: बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDB) की वित्तीय क्षमता और न्यायसंगत प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की जरूरत है।
    • इसके लिए बहुपक्षीय बैंकों को अपने पारंपरिक देश-केंद्रित मॉडल से हटकर वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं के निवेश को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • यह गरीब और अमीर देशों की सतत प्रगति को बढ़ावा देने, समावेशी आर्थिक विकास को सक्षम करने तथा गरीबी एवं असमानता को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • डेटा-गवर्नेंस फ्रेमवर्क: बहुपक्षीय संगठनों को डेटा स्थानीयकरण की प्रवृत्ति से निपटने और सीमा पार डेटा साझाकरण और सार्वजनिक-निजी डेटा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए डेटा-गवर्नेंस फ्रेमवर्क और सामान्य मानक स्थापित करना चाहिए।
    • उन्हें सरकारों को एक मजबूत राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणाली बनाए रखने, प्रतिभा विकसित करने और साइबर सुरक्षा समाधान तथा डेटा-शासन नीतियों को बढ़ावा देने में मदद करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और प्रौद्योगिकी पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव का कार्यालय खुली प्रौद्योगिकी की अवधारणा को बढ़ावा दे रहा है जिसका उद्देश्य ऐसे समाधानों के विकास को सक्षम बनाना है जो किसी को भी अनुकूलित करने के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए- डिजिटल सार्वजनिक सामान (DGP) जैसे- ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा (DPI) जैसी भुगतान प्रणाली।

निष्कर्ष

बहुपक्षवाद को पुनर्संतुलित करने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है और इसमें अपार संभावनाएँ हैं। सुधार की वकालत करके, रणनीतिक साझेदारी बनाकर और अपनी आंतरिक चुनौतियों का समाधान करके, भारत एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी वैश्विक शासन प्रणाली में योगदान दे सकता है जो ‘वसुधैव कुटुंबकम‘ के भारतीय लोकाचार को प्रतिबिंबित करता है।

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