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अवैतनिक देखभाल कार्य को मान्यता देना

Lokesh Pal November 05, 2024 03:38 34 0

संदर्भ

अवैतनिक देखभाल कार्य, पालन-पोषण तथा घरेलू जिम्मेदारियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान की अदृश्यता अनुसंधान एवं चर्चा का एक बढ़ता हुआ विषय रहा है।

राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA)

  • राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानक है, जो आर्थिक गतिविधियों के उपायों को संकलित करने के संबंध में सिफारिशें प्रदान करता है।
  • SNA में शामिल कुछ प्रमुख घटक हैं: सकल घरेलू उत्पाद (GDP), उत्पादन संबंधी खाते, आय संबंधी खाते, व्यय संबंधी खाते, वित्तीय संबंधी खाते, बैलेंस शीट, सेक्टोरल अकाउंट इत्यादि।

संबंधित तथ्य 

  • संयुक्त राष्ट्र की राष्ट्रीय लेखा प्रणाली में घरेलू उत्पादन को सकल घरेलू उत्पाद की गणना में शामिल किया जाता है, लेकिन अवैतनिक देखभाल कार्य को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
  • महिलाओं द्वारा वहन किए जाने वाले अवैतनिक श्रम के महत्त्वपूर्ण भार को दर्शाने वाले आँकड़े
    • टाइम यूज सर्वे (Time Use Survey), 2019 के आँकड़ों के अनुसार, कामकाजी आयु वर्ग की महिलाएँ अकेले अवैतनिक घरेलू कार्यों में प्रतिदिन लगभग सात घंटे बिताती हैं।
    • नौकरीपेशा महिलाएँ भी इसी तरह के कार्यों में 5.8 घंटे बिताती हैं।
    • इसके विपरीत, बेरोजगार पुरुष चार घंटे से भी कम समय कार्य में लगाते हैं, जबकि नौकरीपेशा पुरुष प्रतिदिन केवल 2.7 घंटे ही कार्य में लगाते हैं।
  • भारत के सकल घरेलू उत्पाद में देखभाल कार्य का योगदान लगभग 15-17% होने का अनुमान लगाया गया है।

केयर इकोनॉमी (Care Economy) के बारे में 

  • परिभाषा: केयर इकोनॉमी या देखभाल अर्थव्यवस्था से तात्पर्य अर्थव्यवस्था के उस क्षेत्र से है, जो देखभाल सेवाओं एवं गतिविधियों जैसे बुजुर्गों एवं बच्चों की देखभाल, खाना पकाने आदि पर केंद्रित है।
    • देखभाल अर्थव्यवस्था, व्यक्तियों को कार्यबल में भाग लेने में सक्षम बनाकर परिवारों, समुदायों और समग्र अर्थव्यवस्था को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • इसमें शामिल है: इसमें भुगतान एवं अवैतनिक दोनों प्रकार के देखभाल कार्य शामिल हैं।
    • सशुल्क देखभाल कार्य (Paid Care Work): सशुल्क देखभाल कार्य में औपचारिक रोजगार शामिल होता है, जहाँ देखभाल करने वालों को उनकी सेवाओं के लिए पारिश्रमिक दिया जाता है।
      • उदाहरण: नर्स तथा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, बाल देखभाल कार्यकर्ता, घरेलू कामगार आदि।
    • अवैतनिक देखभाल कार्य (Unpaid Care Work): अवैतनिक देखभाल कार्य उन देखभाल गतिविधियों को संदर्भित करता है, जिनकी आर्थिक रूप से क्षतिपूर्ति नहीं की जाती है।
      • उदाहरण: बच्चों का पालन-पोषण और बच्चों की परवरिश, परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल, घरेलू कार्य (सफाई, खाना बनाना, कपड़े धोना), सामुदायिक देखभाल और स्वयंसेवा आदि।
      • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में तीन गुना से अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं।
      • अवैतनिक देखभाल कार्य महिलाओं को औपचारिक कार्यबल में शामिल होने से रोकने वाली मुख्य बाधाओं में से एक है।
    • भारत में अवैतनिक कार्य का अनुमान 
      • भारतीय स्टेट बैंक की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवैतनिक कार्य लगभग ₹22.7 लाख करोड़ या देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7.5% योगदान देता है।
      • महिलाएँ अवैतनिक कार्यों पर प्रति सप्ताह लगभग 36 घंटे बिताती हैं, जबकि पुरुष 16 घंटे बिताते हैं।
      • अवैतनिक कार्यों में लैंगिक असमानताओं को दूर करने से भारत की सकल घरेलू उत्पाद में 27% की वृद्धि हो सकती है।

महिला श्रम बल भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate)

  • महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) उन महिलाओं के अनुपात को मापती है, जो या तो किसी विशिष्ट आबादी में कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रही हैं।
  • भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2004-05 से ऐतिहासिक रूप से घट रही है।
  • वर्ष 2022-23 के दौरान, श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 37.0% हो गई है।
    • ऐसा ग्रामीण महिलाओं, विशेष तौर पर कृषि क्षेत्र में स्वरोजगार में वृद्धि के कारण हुआ है।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2022-23 के अनुसार, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़कर 64% हो गई है।

महिलाओं के अवैतनिक देखभाल संबंधी कार्य के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दे

  • आर्थिक मुद्दे
    • अल्परोजगार और श्रम बाजार में भागीदारी: कई महिलाएँ देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण वेतन वाली नौकरी नहीं कर पाती हैं, जिसके कारण भागीदारी दर कम हो जाती है और श्रम का कम उपयोग होता है।
    • बाजार विफलता: देखभाल कार्य का कम भुगतान और कम मूल्यांकन आर्थिक उपायों में इसकी अदृश्यता में योगदान देता है, जिसके परिणामस्वरूप बाजार विफलता होती है।
    • अवैतनिक कार्य का मूल्यांकन: अवैतनिक देखभाल कार्य के आर्थिक योगदान को अक्सर GDP गणनाओं में पहचाना नहीं जाता है, जिससे महिलाओं के आर्थिक प्रभाव की विकृत समझ उत्पन्न होती है।
    • आय असमानता: अवैतनिक देखभाल कार्य में संलग्न महिलाओं को वित्तीय निर्भरता और आर्थिक असुरक्षा की उच्च दर का सामना करना पड़ता है।
    • समय की कमी: महिलाओं को अक्सर ‘समय की कमी’ का सामना करना पड़ता है, जिससे वे वेतनभोगी कार्य या अवकाश में शामिल नहीं हो पातीं, जिससे उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन प्रभावित होता है।
  • स्वास्थ्य एवं कल्याण संबंधी मुद्दे
    • मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ: अवैतनिक देखभाल कार्य का तनाव तथा माँग चिंता और अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों में योगदान कर सकता है।
    • शारीरिक स्वास्थ्य जोखिम: देखभाल करने से दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ और शारीरिक तनाव हो सकता है, क्योंकि महिलाएँ अपनी स्वास्थ्य आवश्यकताओं की उपेक्षा कर सकती हैं।
    • कार्य का दोहरा बोझ: कार्य के दोहरे बोझ को किसी भी प्रकार के भुगतान वाले कार्य के साथ-साथ घर पर किए जाने वाले अवैतनिक कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
      • अवैतनिक देखभाल कार्य और वेतनभोगी रोजगार के बीच संतुलन बनाने की चुनौती से थकान और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है।
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक मुद्दे
    • लैंगिक भूमिकाओं का सुदृढ़ीकरण: पारंपरिक मानदंड अक्सर यह तय करते हैं कि देखभाल करना एक महिला की जिम्मेदारी है, जो रूढ़िवादिता को बनाए रखता है और महिलाओं के अवसरों को सीमित करता है।
    • सामाजिक अपेक्षाएँ: सांस्कृतिक दबाव महिलाओं को व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं पर पारिवारिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, जिससे उनके कॅरियर के विकल्प और आकांक्षाएँ प्रभावित होती है।
  • सहायता प्रणालियों और बुनियादी ढाँचे का अभाव
    • बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल सेवाओं का अभाव: सस्ती और सुलभ देखभाल सेवाओं का अभाव महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ डालता है, जिससे उन्हें अधिक अवैतनिक कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • सीमित सरकारी सहायता: कई देशों में ऐसी नीतियों का अभाव है, जो देखभाल करने वालों को पर्याप्त सहायता प्रदान करती हैं, जैसे कि माता-पिता की छुट्टी, लचीली कार्य व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा लाभ।
    • सामुदायिक सहायता नेटवर्क: कमजोर सामुदायिक सहायता प्रणालियाँ तथा बढ़ता एकल परिवार देखभालकर्ताओं को और अधिक अलग-थलग कर सकता है एवं साझा संसाधनों या सहायता तक उनकी पहुँच को सीमित कर सकता है।
    • वैश्विक संकटों का प्रभाव: महामारी या आर्थिक मंदी जैसी घटनाएँ महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करती हैं, जिससे अक्सर उनकी देखभाल का बोझ बढ़ जाता है, जबकि उनके आर्थिक अवसर कम हो जाते है।
  • नीतिगत बाधाएँ: नीतिगत चर्चाओं में अवैतनिक देखभाल कार्य को अपर्याप्त रूप से मान्यता दी जाती है।

अवैतनिक देखभाल कार्य को परिमाणित करने का महत्त्व

  • सकल घरेलू उत्पाद में मूल्यांकन: अवैतनिक देखभाल कार्य की मात्रा निर्धारित करके, सरकारें इसके आर्थिक मूल्य को राष्ट्रीय खातों में शामिल कर सकती हैं, जिससे समग्र आर्थिक गतिविधियों और योगदान की अधिक व्यापक समझ प्राप्त होती है।
  • महिलाओं के योगदान को आर्थिक मान्यता: यह बेहतर जानकारी वाली आर्थिक नीतियों की अनुमति देता है, जो अर्थव्यवस्था में महिलाओं तथा देखभाल करने वालों के वास्तविक योगदान को प्रतिबिंबित करती है।
  • सहायता सेवाओं को लक्षित करना: मात्रा निर्धारण से देखभाल सेवाओं में अंतराल की पहचान की जा सकती है, जिससे देखभाल करने वालों के लिए आवश्यक बाल देखभाल, वृद्ध देखभाल और अन्य सहायता प्रणालियों तक बेहतर पहुँच हो सकती है।
  • श्रम के अल्प-उपयोग को समझना: अवैतनिक देखभाल कार्य का परिमाणीकरण करने से यह स्पष्ट परिदृश्य मिलता है कि कितने संभावित श्रमिक अवैतनिक जिम्मेदारियों के कारण श्रम बल से बाहर रह जाते हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG 5- लैंगिक समानता) में योगदान: लक्ष्य 5.4 का उद्देश्य विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों मे वर्ष 2030 तक सहायक नीतियों तथा साझा घरेलू जिम्मेदारियों के माध्यम से अवैतनिक देखभाल एवं घरेलू कार्य को मान्यता देना है।
  • रूढ़िवादिता को चुनौती देना: अवैतनिक देखभाल कार्य के मूल्य को स्वीकार करने से पारंपरिक लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती दी जा सकती है तथा घरेलू जिम्मेदारियों के अधिक न्यायसंगत वितरण की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा मिल सकता है।

अवैतनिक घरेलू गतिविधियों के मौद्रिक मूल्य का अनुमान लगाने की विधियाँ

  • अवसर लागत विधि (GOC): यह दृष्टिकोण भुगतान न किए गए श्रम के मूल्य की गणना, भुगतान किए गए कार्यों के बजाय भुगतान न किए गए घरेलू कार्यों में संलग्न होने पर व्यक्तियों द्वारा छोड़े गए मौद्रिक लाभों पर विचार करके करता है।
    • मूलतः, यह अनुमान लगाता है कि यदि कोई व्यक्ति उस समय को वेतन सहित कार्य करके बिताता, तो वह कितना कमा सकता था।
  • प्रतिस्थापन लागत विधि (RCM): इस पद्धति से यह गणना की जाती है कि किसी व्यक्ति को बिना वेतन के घरेलू कार्य करने के लिए नियुक्त करने में कितना खर्च आएगा।
    • यह उन खर्चों का निर्धारण करके अवैतनिक कार्यों के मूल्य का अनुमान लगाता है, जिन्हें समाज को वहन करना होगा यदि उन कार्यों को भुगतान किए गए श्रमिकों द्वारा किया जाता है।

अवैतनिक देखभाल कार्य की मात्रा निर्धारित करने से जुड़ी चुनौतियाँ

  • डेटा संग्रहण की जटिलता: अवैतनिक घरेलू श्रम पर सटीक डेटा एकत्र करना जटिल और संसाधन-गहन है, जो स्पष्ट या उपयोगी जानकारी प्रदान नहीं कर सकता है।
    • उदाहरण: समय उपयोग सर्वेक्षण आयोजित करने के लिए गतिविधियों की विस्तृत ट्रैकिंग की आवश्यकता होती है, जो कई परिवारों के लिए जटिल हो सकता है, विशेषकर कम संसाधन वाली व्यवस्था में।
  • देखभाल कार्य का अंतर्निहित मूल्य: देखभाल कार्य की उसके अंतर्निहित मूल्य के लिए सराहना की जानी चाहिए, न कि केवल आर्थिक दृष्टि से मापा जाना चाहिए।
    • इसे परिमाणित करने से देखभाल के संबंधपरक पहलुओं का वस्तुकरण हो सकता है।
    • उदाहरण: देखभाल में पोषण, भावनात्मक समर्थन और सामाजिक बंधन शामिल है, जिसे आर्थिक शब्दों में पर्याप्त रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
  • देखभाल की गुणवत्ता की उपेक्षा: अवैतनिक कार्य की मात्रा पर जोर देने से देखभाल की गुणवत्ता की अनदेखी हो सकती है।
    • उदाहरण: एक देखभालकर्ता देखभाल प्रदान करने में काफी घंटे खर्च कर सकता है, लेकिन उस देखभाल की गुणवत्ता (भावनात्मक समर्थन, जुड़ाव, आदि) मात्रात्मक माप में परिलक्षित नहीं होती है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तनशीलता: अवैतनिक देखभाल कार्य का मूल्य और प्रकृति संस्कृतियों में काफी भिन्न होती है, जिससे स्थानीय प्रथाओं और मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाले मानकीकृत उपाय बनाना मुश्किल हो जाता है।
  • सरकार के लिए वहनीयता: वर्ष 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण ने भारतीय अर्थव्यवस्था में अवैतनिक कार्य के महत्त्व को मान्यता दी है।
    • हालाँकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, विशेष रूप से सरकारी सामर्थ्य तथा संबद्ध मूल्यों की सटीक गणना के संबंध में।

देखभाल कार्य से संबंधित पहल

  • भारत में समय उपयोग सर्वेक्षण: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) ने वर्ष 2019 में भारत में पहला व्यापक समय उपयोग सर्वेक्षण आयोजित किया, ताकि यह डेटा एकत्र किया जा सके कि लोग किस तरह से अपना समय विभिन्न गतिविधियों के लिए आवंटित करते हैं, जिसमें अवैतनिक घरेलू और देखभाल संबंधी कार्य शामिल हैं।
  • यूएन वुमेन का ‘देखभाल को दृश्यमान बनाना’ अभियान (UN Women’s ‘Making Care Visible’ Campaign): इस पहल का उद्देश्य अवैतनिक देखभाल कार्य के महत्त्व और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
    • यह देखभाल कार्य को पहचानने एवं पुनर्वितरित करने के महत्त्व को बढ़ावा देता है।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का सभ्य देखभाल कार्य के लिए ‘5R’ फ्रेमवर्क
    • पहचान करना (Recognize): अर्थव्यवस्था और समाज में योगदान देने में भुगतान किए गए और अवैतनिक देखभाल कार्य दोनों के मूल्य को स्वीकार करना।
    • कम करना (Reduce): सहायता सेवाएँ प्रदान करके और साझा जिम्मेदारियों को बढ़ावा देकर अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ को कम करना।
    • पुनर्वितरित करना (Redistribute): लिंग और समुदाय के सदस्यों के बीच देखभाल की भूमिकाओं के न्यायसंगत बँटवारे को प्रोत्साहित करना।
    • पुरस्कृत करना (Reward): मान्यता और समर्थन के माध्यम से अवैतनिक देखभाल को महत्त्व देते हुए भुगतान किए गए देखभाल कर्मियों के लिए उचित मुआवजा एवं लाभ सुनिश्चित करना।
    • प्रतिनिधित्व करना (Represent): देखभाल कर्मियों को निर्णय लेने में मुद्दों को संबोधित करना और सुनिश्चित करना कि वकालत तथा संगठन के माध्यम से उनके अधिकारों की रक्षा की जाए।

‘ग्लोबल केयर चेन’ (Global Care Chain)

  • ‘ग्लोबल केयर चेन’ एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करती है, जिसमें देखभाल की जिम्मेदारियाँ एक महिला से दूसरी महिला को हस्तांतरित की जाती हैं, जो अक्सर सीमाओं और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों को पार करती है।
  • यह परिघटना तब उभरती है, जब अधिक विशेषाधिकार प्राप्त समुदायों की महिलाएँ तेजी से कार्यबल में प्रवेश कर रही हैं, जिससे एक ‘देखभाल अंतराल’ (Care Gap) उत्पन्न हो रहा है, जिसे अक्सर प्रवासी महिलाओं और हाशिए की पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं द्वारा पूरा किया जाता है।
  • परिणामस्वरूप, सामाजिक-आर्थिक सीढ़ी के निचले स्तर पर स्थित महिलाएँ सबसे अधिक असुरक्षित हैं और शृंखला में सबसे निचले स्तर पर ही रहती हैं।

देखभाल कार्य की मान्यता के लिए उठाए जा सकने वाले कदम

  • सामाजिक देखभाल अवसंरचना: बाल देखभाल तथा सामाजिक देखभाल जैसी किफायती तथा सुलभ सार्वजनिक देखभाल सेवाओं में निवेश और प्रावधान से उन महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे, जो पहले से ही देखभाल करने वाली भूमिकाओं में अनुभवी हैं।
  •  ILO के सुझाव के अनुसार, देखभाल सेवा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने से वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 475 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न होने की संभावना है।
    • इससे पारंपरिक रूप से अवैतनिक कार्य को तथा अधिक औपचारिक बनाया जा सकेगा।
  • महिलाओं की श्रम बाजार पहुँच को बढ़ाना: देखभाल कर्मियों के लिए न्यूनतम मजदूरी कानून लागू करना और उन्हें औपचारिक श्रम ढाँचे में शामिल करना, देखभाल कार्य को कुशल श्रम के रूप में मान्यता दे सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, घरेलू कामगारों, बाल देखभाल प्रदाताओं जैसे अनौपचारिक देखभालकर्ताओं को पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ प्रदान करने से उनकी आर्थिक स्थिरता में सुधार हो सकता है और उचित कार्य स्थितियाँ सुनिश्चित हो सकती हैं।
  • व्यापक आर्थिक नीतियों में अवैतनिक कार्य को मान्यता देना और उसका प्रतिनिधित्व करना: भारत ने वर्ष 2019 में एक समय उपयोग सर्वेक्षण किया, जो अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ को समझने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • ऐसे सर्वेक्षणों से प्राप्त आँकड़ों से अवैतनिक देखभाल कार्य के मूल्य का आकलन किया जा सकता है तथा इसकी अवधारणा को घरेलू कर्तव्य से उत्पादक आर्थिक गतिविधियों में बदला जा सकता है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देना: अवैतनिक कार्य को कलंकमुक्त करने की आवश्यकता है, जिससे लैंगिक रूढ़िवादिता और देखभाल कार्य को बदलने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण: सार्वजनिक अभियान, शैक्षिक कार्यक्रम और मीडिया संबंधी कार्यों में पुरुषों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने में भूमिका निभा सकते है।
      • सरकारी नीतियाँ पितृत्व एवं अभिभावकीय अवकाश को प्रोत्साहित कर सकती हैं, पुरुषों को बच्चों की देखभाल के लिए समय निकालने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं और देखभाल में पुरुषों की भागीदारी को सामान्य बना सकती हैं।
  • देखभाल को मुख्य स्तंभ के रूप में स्थापित करना: देशों में सामाजिक-आर्थिक विकास के मूलभूत घटक के रूप में देखभाल कार्य की पहचान करना और उसे प्राथमिकता देना।
    • उदाहरण: भारत के लिए, वर्ष 2047 तक विकसित भारत में महिलाओं के नेतृत्व में विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देखभाल अर्थव्यवस्था को मजबूत करना आवश्यक है।

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