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रेड सैंडर्स

Lokesh Pal October 01, 2025 04:00 21 0

संदर्भ

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority-NBA) ने आंध्र प्रदेश जैव विविधता बोर्ड को पूर्वी घाटों में स्थित लुप्तप्राय प्रजाति रेड सैंडर्स के संरक्षण के लिए 82 लाख रुपये प्रदान करने की मंजूरी दी है।

लाल सैंडर्स के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: टेरोकर्पस सैंटलिनस (Pterocarpus Santalinus)
  • सामान्य नाम: लाल चंदन या रेड सैंडर्स
  • फैमिली: फैबिएसी (लेग्यूम फैमिली)
  • मूल रेंज: दक्षिणी भारत के पूर्वी घाट, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में, चित्तूर, कडप्पा, कुरनूल और अनंतपुर जैसे जिलों में।
  • अवस्थिति: चट्टानी पहाड़ियों, शुष्क पर्णपाती वन क्षेत्र, प्रायः उथली मृदा के साथ खड़ी ढलानों पर।
  • लकड़ी की विशेषताएँ: गहरा लाल रंग, भारी और मजबूत।
  • उपयोग
    • फर्नीचर और सजावटी सामान
    • संगीत वाद्ययंत्र (वुडविंड, टक्कर)
    • नक्काशी
    • पारंपरिक चिकित्सा (आयुर्वेद, सिद्ध में)
    • सीढ़ियाँ और प्रतिष्ठा काष्ठ उत्पाद
  • उच्च वाणिज्यिक मूल्य: लाल चंदन की दुर्लभता और उच्च वांछनीयता ने इसे अत्यधिक माँग वाला बना दिया है, जिससे अवैध कटाई और तस्करी में वृद्धि हुई है।
  • प्रमुख खतरे: इसमें अवैध लॉगिंग एवं तस्करी, निवास स्थान की हानि और विखंडन, तथा प्राकृतिक पुनर्जनन की कमी, बीजों का अपर्याप्त प्रसरण और चारण की कमी शामिल हैं।
  • संरक्षण की स्थिति
    • भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसूची IV के तहत सूचीबद्ध
    • CITES के परिशिष्ट II में शामिल – केवल कठोर विनियमन के तहत व्यापार की अनुमति है।
    • IUCN स्थिति: लुप्तप्राय।

पहल के बारे में

  • उद्देश्य: किसानों को आपूर्ति के लिए 1 लाख रेड सैंडर्स (Red Sanders) पौधे तैयार करना तथा “वनों के बाहर पेड़” (Trees Outside Forests – ToF) कार्यक्रम का समर्थन करना।
  • वित्तीयन स्रोत: प्रवेश और लाभ-साझाकरण (ABS) तंत्र, जो स्थानीय समुदायों, व्यक्तियों और जैव विविधता प्रबंधन समितियों (Biodiversity Management Committees-BMC) के साथ जैविक संसाधनों से प्राप्त लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण सुनिश्चित करता है।
  • सामुदायिक भूमिका: स्थानीय एवं आदिवासी समुदायों को नर्सरी विकास, वृक्षारोपण और देखभाल में सीधे भागीदारी करनी चाहिए।
  • रोजगार प्रभाव: इस पहल से संरक्षण में कौशल निर्माण, आजीविका के अवसर और जमीनी स्तर पर पारिस्थितिकी सुरक्षा (Stewardship) को बढ़ावा मिलेगा।

PW Only IAS विशेष

प्रवेश और लाभ साझाकरण (ABS) तंत्र

  • परिभाषा: प्रवेश और लाभ-साझाकरण तंत्र (ABS) तंत्र जैव विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity-CBD), 1992 और नागोया प्रोटोकॉल, 2010 के तहत एक रूपरेखा है, जो सुनिश्चित करती है कि जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभ स्थानीय एवं स्वदेशी समुदायों सहित सभी प्रदाताओं के साथ निष्पक्ष और समान रूप से साझा किए जाएँ।
  • भारत में: इसे जैव विविधता अधिनियम, 2002 (संशोधित 2023) के माध्यम से लागू किया गया है तथा इसका संचालन राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMC) द्वारा किया जाता है।
  • उद्देश्य
    • जैव विविधता के स्थायी उपयोग को बढ़ावा देना।
    • स्थानीय/आदिवासी समुदायों की सहभागिता सुनिश्चित करना जो जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षक हैं।
    • सुरक्षा और पुनर्जनन में लाभ-साझाकरण धन को फिर से संगठित करके संरक्षण प्रयासों को मजबूत करना।
  • कार्य प्रणाली
    • उपयोगकर्ताओं (कंपनियों, शोधकर्ताओं, उद्योगों) को जैविक संसाधनों तक पहुँच के लिए अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए।
    • मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभ (रॉयल्टी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, क्षमता-निर्माण, अनुसंधान सहयोग, आदि) को स्थानीय समुदायों और संरक्षण निकायों के साथ साझा किया जाता है।

पहल का महत्त्व

  • जैव विविधता संरक्षण: एक गंभीर रूप से संकटग्रस्त स्थानिक प्रजातियों के संरक्षण का समर्थन करता है।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण: संरक्षण से जुड़ी आजीविका के माध्यम से स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार और कौशल-निर्माण।
  • कार्रवाई: यह दर्शाती है कि ABS के प्रावधान समुदाय-संचालित संरक्षण में कैसे परिवर्तित हो सकते हैं।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: जैव विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity – CBD) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है और इसके राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों की प्राप्ति को प्रोत्साहित करता है।

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