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रेड सैंडर्स संरक्षण

Lokesh Pal November 22, 2025 03:06 9 0

संदर्भ 

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) ने भारत की पहुँच और लाभ साझाकरण (ABS) पहल के तहत विलुप्तप्राय ‘रेड सैंडर्स’ प्रजाति के संरक्षण हेतु आंध्र प्रदेश को ₹39.84 करोड़ जारी किए हैं।

रेड सैंडर्स के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: टेरोकार्पस सैंटालिनस
  • सामान्य नाम: रेड सैंडलवुड / रेड सैंडर्स
  • कुल: फैबेसी (दलहनी कुल)
  • प्राकृतिक क्षेत्र: दक्षिण भारत के पूर्वी घाट, विशेषकर आंध्र प्रदेश (चित्तूर, कडप्पा, कुरनूल, अनंतपुर)।
  • आवास: चट्टानी पहाड़ियाँ, शुष्क पर्णपाती वन, चट्टानी ढलानदार भूमि।

  • लकड़ी की विशेषताएँ:  गहरा लाल रंग, घनी, महीन रंध्रयुक्त, भारी और अत्यंत टिकाऊ।
  • उपयोग
    • फर्नीचर और सजावटी वस्तुएँ
    • वाद्य-यंत्र (विंड, पर्कशन)
    • नक्काशी
    • आयुर्वेद एवं सिद्ध चिकित्सा।
  • उच्च वाणिज्यिक मूल्य: इसकी दुर्लभता और वांछनीयता के कारण इसकी अत्यधिक माँग है, जिसके कारण अवैध कटाई और तस्करी को बढ़ावा मिलता है।
  • मुख्य खतरे: कटाई और तस्करी, आवास की हानि एवं विखंडन, तथा पुनर्जनन संबंधी चुनौतियाँ—जैसे कम प्राकृतिक पुनर्जनन, बीजों की हानि और अत्यधिक चारण, मुख्य बाधाएँ हैं।
  • संरक्षण स्थिति
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-II में सूचीबद्ध
    •  CITES के परिशिष्ट-IV में (कड़े विनियमन के साथ व्यापार)
    • IUCN स्थिति: संकटग्रस्त (Endangered)।
  • रेड सैंडर्स का पारिस्थितिकी महत्त्व 
    • पूर्वी घाट की विशिष्ट स्थानिक प्रजाति है।
    • चट्टानी ढलानों को स्थिर कर मृदा अपरदन को रोकती है।
    • शुष्क पर्णपाती पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में योगदान
    • कीट, पक्षियों और छोटे जीवों के लिए आवास उपलब्ध कराती है।

रेड सैंडर्स के संवर्द्धन हेतु पहलें

  • पौध विस्तार कार्यक्रम:  आंध्र प्रदेश जैव विविधता बोर्ड के तहत एक लाख रेड सैंडर्स पौधे उगाने का कार्यक्रम; कुल परियोजना लागत ₹2 करोड़
  • वन क्षेत्रों के बाहर वृक्ष कार्यक्रम: पौधों का वितरण वन क्षेत्रों के बाहर वृक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत किया जाएगा ताकि सतत् संवर्द्धन को बढ़ावा मिले।
  • समुदाय की भूमिका: स्थानीय एवं आदिवासी समुदाय नर्सरी विकास, रोपण और संरक्षण कार्यों में प्रत्यक्ष सहभागी होंगे।
  • वित्तीय स्रोत: ABS तंत्र, जिसके तहत जैव संसाधनों से प्राप्त लाभ स्थानीय समुदायों, व्यक्तियों और जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMC) के साथ साझा किए जाते हैं।

पहुँच और लाभ साझाकरण (ABS) तंत्र

  • परिभाषा: ABS जैविक विविधता अभिसमय (CBD), 1992 और नगोया प्रोटोकॉल, 2010 के तहत वह ढाँचा है, जिसके माध्यम से जैव संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभ स्थानीय और पारंपरिक ज्ञान धारक समुदायों के साथ न्यायोचित तथा समान रूप से साझा किए जाते हैं।
  • भारत में: जैव विविधता अधिनियम, 2002 (संशोधित 2023) के माध्यम से कार्यान्वित किया गया तथा राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय BMC द्वारा इसकी देख-रेख की जाती है।
  • उद्देश्य
    • जैव विविधता का सतत् उपयोग सुनिश्चित करना।
    • स्थानीय/आदिवासी समुदायों को न्यायोचित लाभ देना।
    • संरक्षण कार्यों में लाभ राशि का पुनर्निवेश करना।
  • यह कैसे कार्य करता है?
    • उपयोगकर्ता (कंपनियाँ, उद्योग, शोधकर्ता) जैव संसाधनों के उपयोग हेतु अनुमोदन प्राप्त करते हैं।
    • मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभ (रॉयल्टी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, क्षमता निर्माण, अनुसंधान सहयोग आदि) स्थानीय समुदायों और संरक्षण निकायों के साथ साझा किए जाते हैं।

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) के बारे में

  • कानूनी स्थिति: NBA, जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत स्थापित एक वैधानिक संस्था है।
  • स्थापना वर्ष: इसे औपचारिक रूप से वर्ष 2003 में स्थापित किया गया था।
  • मुख्यालय: चेन्नई, तमिलनाडु।
  • NBA के कार्य
    • नियामक भूमिका: जैव संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग पर नियामकीय देख-रेख।
    • परामर्श भूमिका: जैव विविधता प्रबंधन तथा नीति-कार्यान्वयन में सहयोग और दिशा-निर्देशन।
    • ABS कार्यान्वयन: राज्य बोर्डों और BMC के साथ मिलकर पहुँच और लाभ साझाकरण पहल के प्रावधानों का क्रियान्वयन।
  • प्राधिकरण की संरचना
    • अध्यक्ष: जैव संसाधन संरक्षण, सतत् उपयोग और लाभ-साझेदारी में सिद्ध अनुभव वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति।
    • पदेन सदस्य: भारत सरकार के 10 प्रतिनिधि।
    • गैर-सरकारी सदस्य: जैव विविधता प्रबंधन के विभिन्न क्षेत्रों के पाँच विशेषज्ञ।
  • संस्थागत ढाँचा:  विभिन्न स्तरों पर अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए दो पूरक निकाय स्थापित किए गए:
    • राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB): राज्य स्तर पर
    • जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC): ग्राम एवं स्थानीय निकाय स्तर पर।

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