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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार

Lokesh Pal April 21, 2025 02:26 6 0

संदर्भ 

ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ G-4 समूह के एक भाग के रूप में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) के विस्तार एवं सुधार की अपनी मांग को दोहराया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार करने में मुख्य रूप से इसकी स्थायी एवं अस्थायी दोनों तरह की सदस्यता का विस्तार करना शामिल है, जिससे वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को बेहतर ढंग से दर्शाया जा सके। 
  • इसमें कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से अफ्रीका और एशिया के कम प्रतिनिधित्व को संबोधित करना और स्थायी सदस्यों की वीटो शक्ति को संभावित रूप से सीमित करना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत का पक्ष

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता: भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है। यह पिछले 70 वर्षों से संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशनों में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक रहा है।
  • सबसे बड़ा लोकतंत्र और उभरती अर्थव्यवस्था: भारत, 1.4 बिलियन से अधिक जनसंख्या के साथ, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यह पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (नॉमिनल जीडीपी के अनुमान से) एवं सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
  • जिम्मेदार वैश्विक अभिकर्ता: भारत बहुपक्षवाद, ‘विधि के शासन’ के सिद्धांतों को अनुपालन करता है, और भारत की विदेश नीति पंचशील के शाश्वत सिद्धांतों (संप्रभुता, गैर-आक्रामकता, गैर-हस्तक्षेप, समानता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए पारस्परिक सम्मान) पर आधारित है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक समर्थन: भारत की दावेदारी को फ्राँस, रूस, यू.के. और यू.एस. जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियों द्वारा समर्थन प्राप्त है, जो इसकी वैध आकांक्षाओं को मान्यता देते हैं।
  • ‘ग्लोबल साउथ’ का प्रतिनिधित्त्व: भारत ने जलवायु न्याय, खाद्य सुरक्षा आदि जैसे प्रमुख मुद्दों पर विकासशील देशों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए ग्लोबल साउथ के अग्रणी प्रतिनिधि के रूप में खुद को मजबूती से स्थापित किया है। उदाहरण: वर्ष 2023 में अपनी G-20 अध्यक्षता के दौरान, भारत ने ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करके ग्लोबल साउथ को वैश्विक एजेंडे के केंद्र में रखा था।

संयुक्त राष्ट्र में प्रमुख सुधारों की समय-सीमा

  • वर्ष 1997: कोफी अन्नान ने दो सुधार पैकेजों (‘ट्रैक वन’ और ‘ट्रैक टू’) के साथ संयुक्त राष्ट्र सुधार के लिए अपनी योजना की घोषणा की।
  • वर्ष 2000: सहस्राब्दि शिखर सम्मेलन और सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (Millennium Development Goals-MDGs): संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करते हुए MDGs को अपनाया।
  • वर्ष 2004: सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए दो मॉडल प्रस्तावित किए गए।
  • वर्ष 2005: कोफी अन्नान ने अपनी रिपोर्ट ‘इन लार्जर फ्रीडम’ के साथ अपना सबसे व्यापक सुधार और नीतिगत एजेंडा प्रस्तुत किया।
    • शांति स्थापना आयोग (PBC) की स्थापना की गई। 
  • वर्ष 2006: मानवाधिकार परिषद ने पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग का स्थान लिया है।
  • वर्ष 2007-2016: ‘बान की मून’ के कार्यकाल के दौरान सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा की शुरूआत और पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के साथ सुधार जारी रहे।
  • वर्ष 2015: सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को अपनाना: SDG ने MDG का स्थान ले लिया, तथा वर्ष 2030 तक वैश्विक विकास के लिए 17 लक्ष्य निर्धारित किए गए।
  • वर्ष 2017-2020: संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा परिकल्पित सुधार जारी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के शांति और सुरक्षा स्तंभ पर केंद्रित हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के बारे में

  • UNSC संयुक्त राष्ट्र (UN) के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
    • इसके कार्य हैं:
      • अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
      • महासभा में नए संयुक्त राष्ट्र सदस्यों के प्रवेश की सिफारिश करना।
      • संयुक्त राष्ट्र चार्टर में किसी भी बदलाव को मंजूरी देना।
  • सदस्य: इस परिषद में 15 सदस्य हैं:-
    • पाँच स्थायी सदस्य: चीन, फ्राँस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। 
    • दस गैर-स्थायी सदस्य महासभा द्वारा दो वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।
  • भारत और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: भारत वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं है।
    • भारत पिछली बार वर्ष 2021-22 में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में परिषद में शामिल हुआ था।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता

  • शक्ति एवं प्रभाव: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पास संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में सर्वोच्च अधिकार है। यह प्रतिबंध लगा सकता है, सैन्य कार्रवाई को अधिकृत कर सकता है और बाध्यकारी निर्णय ले सकता है। इससे इसकी संरचना एवं निर्णय लेना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • संरचना समकालीन वैश्विक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व नहीं करती है: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की वर्तमान संरचना वर्तमान वैश्विक और भू-राजनीतिक वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
    • यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधित्व की भी उपेक्षा करती है।
  • प्रमुख क्षेत्रों का कम प्रतिनिधित्व: UNSC के पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर है, जबकि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया जैसे क्षेत्रों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • अफ्रीका में 54 देश होने के बावजूद उसे कोई स्थायी सीट प्राप्त नहीं हुई है।
    • भारत, जो दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश और 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, को इससे बाहर रखा गया है।
  • पुराना वीटो पावर तंत्र: वीटो पावर किसी भी P5 सदस्य को प्रस्तावों को अवरुद्ध करने की अनुमति देता है, जिससे अक्सर पक्षाघात होता है, उदाहरण के लिए, सीरिया, यूक्रेन संकट।
    • संघर्ष, आतंकवाद और मानवीय संकटों के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से अधिक मजबूत प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। सुधारित सुरक्षा, परिषद निवारक कूटनीति एवं शांति स्थापना प्रयासों को बढ़ावा देगी।
  • वैधता और विश्वसनीयता के मुद्दे: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुछ स्थायी सदस्यों का प्रभुत्व विश्वास को कमजोर करता है। यह सुनिश्चित करने के लिए सुधार आवश्यक है कि निर्णय सभी सदस्य देशों के हितों को प्रतिबिंबित करें।

‘पैक्ट फॉर द फ्यूचर’ (Pact for the Future)

  • प्रकृति: यह विश्व में बहुपक्षवाद के भविष्य के लिए एक विजन दस्तावेज है।
  • अपनाना: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा आयोजित वर्ष 2024 के ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ सम्मेलन में।
  • UNSC सुधार प्रतिबद्धता: इस समझौते के एक हिस्से के रूप में, UNGA के सदस्यों ने UNSC में सुधार करने पर सहमति व्यक्त की ताकि ‘अफ्रीका के विरुद्ध ऐतिहासिक अन्याय को प्राथमिकता के रूप में संबोधित किया जा सकता’, साथ ही लैटिन अमेरिका और कैरिबियन एवं एशिया प्रशांत से प्रतिनिधित्व में सुधार किया जा सकता है।

सुरक्षा परिषद सुधारों के लिए अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) बैठक में UNSC विस्तार के लिए G4 प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया

  • कुल सदस्यता विस्तार: इस परिषद की सदस्यता को 15 से बढ़ाकर 25 या 26 करने की आवश्यकता है।
  • स्थायी सदस्य: सुधारित सुरक्षा परिषद में 11 स्थायी सदस्य और 14 या 15 अस्थायी सदस्य होंगे।
  • आधार के रूप में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व
    • G4 ने इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व ही मार्गदर्शक सिद्धांत बना रहना चाहिए।
    • प्रतिनिधित्व के लिए नए मापदंडों के रूप में धर्म या आस्था को शामिल करने के प्रयासों का विरोध किया।
  • स्थायी सदस्यता: प्रस्तावित छह नए स्थायी सदस्यों में अफ्रीका से दो, एशिया प्रशांत से दो, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन से एक, तथा पश्चिमी यूरोप और अन्य देशों से एक-एक सदस्य शामिल होंगे
    • भारत एशिया प्रशांत समूह के अंतर्गत आता है। 
    • गैर-स्थायी सदस्य: एशिया प्रशांत से एक, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन से एक, पूर्वी यूरोप से एक और अफ्रीका से एक या दो।
    • इससे UNSC सदस्यों की कुल संख्या 25 या 26 हो जाएगी।
  • नीति-आधारित वार्ता की आवश्यकता: स्पष्ट समय-सीमा और एक सुनिश्चित लक्ष्य के साथ नीति-आधारित वार्ता की तत्काल शुरुआत करने का आह्वान किया।
    • G4 राष्ट्रों ने सदस्य देशों को नीति-आधारित वार्ता को सुविधाजनक बनाने के लिए सुधारों के अग्रणी मॉडल प्रस्तुत करने के लिए भी प्रोत्साहित किया है।
  • आंशिक विस्तार की अस्वीकृति: केवल गैर-स्थायी सीटों का विस्तार करने वाले प्रस्तावों की आलोचना की, क्योंकि वे:
    • स्थायी सदस्यता में असंतुलन को दूर करने में विफल रहे।
    • विकासशील विश्व, विशेष रूप से अफ्रीका की आकांक्षाओं की अनदेखी की।
    • वर्तमान P5 की शक्ति को मजबूत करने के बजाय इसे लोकतांत्रिक बनाना।
  • जवाबदेही तथा कार्य पद्धतियाँ: परिषद के प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए कार्य पद्धतियों में सुधार एवं जवाबदेही तंत्र की शुरूआत का आह्वान किया गया।

फ्राँस का समर्थन

  • अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) बैठक में स्थायी सदस्यता के लिए भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान का समर्थन किया।
  • अफ्रीका के लिए 2 स्थायी सीटों का भी समर्थन किया।
  • भावी स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर सहित पूर्ण विशेषाधिकार होने चाहिए, इस पर सहमति बनी।

अन्य समूह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए प्रयास कर रहे हैं

  • एजुल्विनी सर्वसम्मति (Ezulwini Consensus): एज़ुल्विनी सर्वसम्मति, सुधारित UNSC में कम-से-कम दो स्थायी सीटों के लिए अफ्रीका की एकीकृत मांग है, जिसमें वीटो पावर हो तथा पाँच गैर-स्थायी सीटें हों।
    • यह स्थायी सदस्यता से अफ्रीका के बहिष्कार के ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • L69 (विकासशील राष्ट्र समूह): ‘ग्लोबल साउथ’ प्रतिनिधित्व एवं व्यापक UNSC सुधारों का समर्थन करता है।
    • सदस्य: इसमें एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और प्रशांत (छोटे द्वीप विकासशील राज्य) में से 42 विकासशील राष्ट्र (भारत सहित) शामिल हैं।
  • C-10 (अफ्रीकी राष्ट्र समूह): दस अफ्रीकी देशों का समूह, अर्थात् अल्जीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, केन्या, लीबिया, नामीबिया, सेनेगल, सिएरा लियोन, युगांडा और जाम्बिया।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मजबूत अफ्रीकी उपस्थिति के लिए ‘कॉमन अफ्रीकन पोजीशन’ (Common African Position- CAP) का समर्थन करता है।
  • IBSA (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका): G4 और L69 की मांगों के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधारों का आह्वान किया।

‘यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस’ (Uniting for Consensus- UfC) के बारे में

  • यह अर्जेंटीना, कनाडा, कोलंबिया, कोस्टारिका, माल्टा, मैक्सिको, पाकिस्तान, कोरिया गणराज्य, सैन मैरिनो, स्पेन, तुर्किए और इटली का समूह है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों के विस्तार का विरोध करता है।
    • UfC ने 27 सदस्यीय सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव रखा है, जिसमें स्थायी सदस्यों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं की जाएगी, जो वर्तमान में पाँच है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की चुनौतियाँ

  • P5 (स्थायी पाँच) सदस्यों का प्रतिरोध: वर्तमान स्थायी सदस्य अपनी विशेष वीटो शक्तियों को कम करने के लिए अनिच्छुक हैं।
    • वीटो-धारक सदस्यों को विस्तारित परिषद के साथ भू-राजनीतिक प्रभाव खोने का डर है।
  • संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच सामान्य सहमति का अभाव: G4, यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस (UfC) और अफ्रीकी संघ जैसे विभिन्न सुधार समूहों के बीच मतभेद मौजूद हैं।
  • चीन का विरोध: चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का लगातार विरोध किया है और प्रायः सामान्य सहमति के अभाव का संदर्भ दिया है।
  • सदस्यता के मानदंडों पर असहमति: इस बात पर असहमति है कि विस्तार क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, आर्थिक क्षमता, जनसंख्या के आकार, धर्म या आस्था, संयुक्त राष्ट्र में योगदान आदि के आधार पर होना चाहिए या नहीं।
  • प्रक्रियात्मक गतिरोध: समय-सीमा के साथ नीति-आधारित वार्ता की कमी के कारण कार्रवाई योग्य परिणामों के बिना चर्चाएँ हुई हैं। अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया में पारदर्शिता तथा जवाबदेही का अभाव है।

भारत और संयुक्त राष्ट्र

  • संस्थापक सदस्य: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर (वर्ष 1942) तथा संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन (वर्ष 1945) में भाग लिया।
  • उपनिवेशवाद के उन्मूलन में नेतृत्व: स्वतंत्रता पर वर्ष 1960 की घोषणा को सह-प्रायोजित किया तथा उपनिवेशवाद उन्मूलन समिति की अध्यक्षता की।
  • रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई: संयुक्त राष्ट्र में रंगभेद को उठाने वाला पहला देश (वर्ष 1946) तथा वर्ष 1965 के नस्लीय भेदभाव विरोधी सम्मेलन का समर्थन किया।
  • विकासशील देशों के लिए अधिवक्ता: NAM तथा G77 के संस्थापक सदस्य, एक निष्पक्ष वैश्विक व्यवस्था के लिए प्रयासरत है।
  • शांति स्थापना में अग्रणी: वर्ष 1948 से 49 मिशनों में 244,500 से अधिक कर्मियों के साथ सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्ता है।
  • शांति स्थापना में महिलाएँ: सभी महिला आधारित पुलिस इकाई (वर्ष 2007, लाइबेरिया) तैनात करने वाला पहला देश, जिसने सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा दिया।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य: भारत विशेषतौर पर वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 और 2021-22 की अवधि के दौरान आठ बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है।

आगे की राह

  • नीति-आधारित वार्ता के लिए दबाव: भारत को सुधार प्रक्रिया में समयबद्ध प्रगति सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट, लिखित प्रस्तावों को अपनाने के लिए एकजुट होना चाहिए, साथ ही परिभाषित समय-सीमा भी होने चाहिए।
  • सदस्य देशों के बीच सामान्य सहमति बनाना: क्षेत्रीय समूहों (जैसे- L.69, अफ्रीकी संघ, अरब समूह) को शामिल करने और G4 एवं ‘यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस’ (UfC) के बीच मतभेदों को पाटने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्रीय और विषयगत गठबंधनों का लाभ उठाना: ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका), क्वाड (क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग) और ‘ग्लोबल साउथ’ के साथ जुड़ने से संयुक्त राष्ट्र सुधारों को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र के बाहर जुड़ाव को मजबूत करना
    • वैश्विक शासन को आकार देने के लिए भारत को संयुक्त राष्ट्र से परे बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
    • NAM, WTO और व्यापार ब्लॉकों में कूटनीतिक पहुँच का विस्तार करना सुनिश्चित करेगा कि भारत के हितों की रक्षा हो।

निष्कर्ष

वर्तमान की वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए एक सुधारित एवं प्रतिनिधिकारी सुरक्षा परिषद महत्त्वपूर्ण है। संतुलित प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए समय पर, समावेशी और पारदर्शी वार्ता की आवश्यकता होती है जो सुधार के लिए वास्तविक प्रतिबद्धता पर आधारित हो।

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