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उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ

Lokesh Pal February 24, 2024 06:28 146 0

संदर्भ

केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय की सिफारिश के बाद उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ की माँग पर बहस तेज हो गई है।

पृष्ठभूमि

  • विधि आयोग की सिफारिश: वर्ष 2009 में, 18वें विधि आयोग ने भी भारत के उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों के गठन की सिफारिश की थी।
  • निजी सदस्य विधेयक (2021): इस विधेयक में उच्चतम न्यायालय के कार्य को कम करने और न्याय प्रणाली को विकेंद्रीकृत करने के लिए क्रमशः उत्तर, पश्चिम, दक्षिण और पूर्व क्षेत्रों के लिए दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में उच्चतम न्यायालय की चार क्षेत्रीय पीठों की स्थापना की माँग की गई थी।
  • संसदीय स्थायी समिति: कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने लोकसभा को सूचित किया कि विधि मंत्रालय ने पूरे भारत में उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने की उसकी सिफारिश स्वीकार कर ली है।
  • उच्चतम न्यायालय ने क्षेत्रीय पीठों के विचार को लगातार खारिज किया है।

उच्चतम न्यायालय के बारे में

  • सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण: सर्वोच्च न्यायिक न्यायालय और अपील की अंतिम अदालत है।
  • संवैधानिक प्रावधान
    • भारतीय संविधान के भाग-V और अध्याय-VI में भारत के उच्चतम न्यायालय का उल्लेख है।
    • संविधान के भाग-V में अनुच्छेद-124 से 147 उच्चतम न्यायालय के संगठन, शक्ति, क्षेत्राधिकार आदि से संबंधित हैं।
  • संरचना: वर्तमान में, उच्चतम न्यायालय में 34 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश और 33 अन्य न्यायाधीश) हैं।
  • स्थान : संविधान दिल्ली को उच्चतम न्यायालय की सीट घोषित करता है। यह मुख्य न्यायाधीश को अन्य स्थान या स्थानों को उच्चतम न्यायालय की सीट के रूप में नियुक्त करने के लिए भी अधिकृत करता है।

क्षेत्रीय पीठ क्या है ?

  • उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठें प्रस्तावित न्यायिक प्रतिष्ठान हैं, जहाँ शीर्ष अदालत के कुछ न्यायाधीश देश के विशिष्ट क्षेत्रों के मामलों की सुनवाई के लिए समय-समय पर बैठते हैं।
    • इसका अर्थ यह है कि उच्चतम न्यायालय की देश के विभिन्न हिस्सों में क्षेत्रीय पीठें होंगी, जिससे उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए न्याय तक आसान पहुँच हो सकेगी।
    • अनुच्छेद-130, जिसमें कहा गया है कि ‘उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित होगा या ऐसे अन्य स्थानों पर स्थित होगा, जिन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की स्वीकृति से, समय-समय पर नियुक्त करें।’, क्षेत्रीय पीठों का उल्लेख करता है।

 क्षेत्रीय पीठों की आवश्यकता क्यों है?

  • पक्ष में तर्क
    • लंबित मामलों की संख्या
      • वर्तमान में लगभग 80,000 मामले न्याय-निर्णयन के लिए लंबित हैं, जिनमें से 60,000 मामले दीवानी हैं और उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं तथा अपीलों के निपटान में कई वर्ष लग जाते हैं।
        • पाँच या सात न्यायाधीशों (संविधान पीठ) द्वारा संविधान की व्याख्या से संबंधित कई मामले वर्षों से लंबित हैं।
        • क्षेत्रीय पीठों की स्थापना से न्यायाधीशों के साथ-साथ अधिवक्ताओं की संख्या में भी वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप हमारी न्यायिक प्रणाली को बहुत जरूरी बढ़ावा मिलेगा।
    • सुलभ न्याय
      • अनुच्छेद-39A: इसमें कहा गया है कि”राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि व्यवस्था का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा दे और यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए।”
    • भौगोलिक दुर्गमता
      • संसदीय स्थायी समिति ने पाया कि दिल्ली में स्थित उच्चतम न्यायालय देश के क्षेत्रों से आने वाले  याचिकाकर्ताओं के लिए एक बड़ी बाधा पैदा करता है और उन्हें न्याय तक पहुँच प्राप्त करने के मौलिक अधिकार से वंचित करता है।
    • उच्चतम न्यायालय का कार्यभार में कमी
      • वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में जजों की 34 सीटें हैं, जो देश की जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है।

        • क्षेत्रीय पीठों के गठन से न्यायाधीशों की सीटों की संख्या में वृद्धि होगी।
      • उदाहरण के लिए, भारत का उच्चतम न्यायालय अमेरिकी उच्चतम न्यायालय की तुलना में काफी अधिक मामलों को सँभालता है, जिसमें अपील और मूल मामले शामिल हैं – वर्ष 2022 में 28,651 मामले दर्ज किए गए।  इसके विपरीत, अमेरिकी उच्चतम न्यायालय तुलनात्मक रूप से कम संख्या में मामलों को सँभालता है, यह प्रतिवर्ष 5,000 से 7,000 मामलों की सुनवाई करता है।
    • स्थानीय बार और कानूनी पेशेवरों के लिए अवसर
      • क्षेत्रीय पीठों की स्थापना से उच्चतम न्यायालय का विभाजन हो जाएगा।
      • क्षेत्रीय पीठों की स्थापना से अधिक अवसर मिलेंगे और बार का लोकतंत्रीकरण होगा, साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर एक मजबूत उच्चतम न्यायालय के बार का निर्माण होगा, उदाहरण के लिए, साकेत, रोहिणी और कड़कड़डूमा के जिला बार।

  • अनुच्छेद-130: यह प्रावधान करता है कि उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित होगा या ऐसे अन्य स्थानों पर स्थित होगा, जिन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की स्वीकृति से, समय-समय पर नियुक्त करें।
  • अनुच्छेद-136: यह भारत के उच्चतम न्यायालय को यह विशेष शक्ति प्रदान करता है कि वह भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी न्यायालय/अधिकरण द्वारा पारित या बनाए गए किसी भी निर्णय, आदेश अथवा डिक्री के खिलाफ विशेष अनुमति अपील प्रदान कर सकता है।

  • विपक्ष में तर्क
    • पृथक अपील न्यायालय 
      • भारतीय विधि आयोग ने अपनी 95वीं और 229वीं रिपोर्ट में क्षेत्रीय पीठों की स्थापना के स्थान पर एक पृथक अपील न्यायालय स्थापित करने की सिफारिश की थी।
        • वर्तमान में, उच्चतम न्यायालय स्थानांतरण याचिकाओं, मध्यस्थ अपीलों आदि जैसे मामलों से भरा हुआ है, जिनकी सुनवाई करने का कोई औचित्य नहीं है।
    • उच्च न्यायालयों में सुधार की आवश्यकता
      • चूँकि उच्चतम न्यायालय में दायर अधिकांश मामले दिल्ली के नजदीक उच्च न्यायालयों से आते हैं।
      • उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने के बजाय, उच्च न्यायालयों में महत्त्वपूर्ण सुधार करके उन याचिकाओं के प्रकारों की जाँच करने के लिए एक तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए, जिन्हें शीर्ष अदालत में स्वीकार करने की अनुमति है।
    • कानून का विखंडन
      • अलग-अलग पीठें कानूनों की अलग-अलग व्याख्या कर सकती हैं, जिससे परस्पर विरोधी निर्णय और कानूनी अनिश्चितता पैदा हो सकती है।
      • अलग-अलग व्याख्याएँ विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न मानकों के साथ एक ‘असंगत कानूनी प्रणाली’ का निर्माण सकती हैं, जो संभावित रूप से व्यापार और निवेश को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • क्षेत्रीय पूर्वाग्रह की संभावना
      • क्षेत्रीय पीठों के न्यायाधीश स्थानीय राजनीतिक दबावों या सामाजिक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, जिसका प्रभाव उनके निर्णय पर पद सकता है।
      • इससे उच्चतम न्यायालय की निष्पक्षता और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य कमजोर हो सकता है।
    • लागत में वृद्धि और तार्किक चुनौतियाँ
      • पूरे भारत में क्षेत्रीय पीठों की स्थापना और रखरखाव महंगा होगा, जिसके लिए बुनियादी ढाँचे, कर्मचारियों और सुरक्षा के लिए संसाधनों की आवश्यकता होगी।
      • विभिन्न पीठों के बीच शेड्यूल, लॉजिस्टिक्स और संचार का समन्वय प्रशासनिक कठिनाइयाँ पैदा कर सकता है।
    • उच्चतम न्यायालय के प्राधिकार में कमी
      • क्षेत्रीय पीठें उच्चतम न्यायालय के केंद्रीय प्राधिकार पर प्रभाव डाल सकती हैं या उसे कमजोर कर सकती हैं, जिससे संभावित रूप से इसका राष्ट्रीय ओहदा और प्रभाव कम हो सकता है।
      • इससे यह भ्रम पैदा हो सकता है कि विशिष्ट मामलों के लिए किस पीठ से संपर्क किया जाए, जिससे कानूनी प्रणाली में जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।

निष्कर्ष 

भारत के उच्चतम न्यायालय के भीतर क्षेत्रीय पीठों की स्थापना देश के विविध परिदृश्य में न्याय तक पहुँच बढ़ाने और कानूनी प्रक्रिया में तेजी लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

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