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‘रीइमेजिनिंग एग्रीकल्चर: ए रोडमैप फॉर फ्रंटियर टेक्नोलॉजी-लेड ट्रांसफॉर्मेशन’

Lokesh Pal November 06, 2025 03:50 36 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग के फ्रंटियर टेक हब ने गुजरात के गांधीनगर में ‘रीइमेजिनिंग एग्रीकल्चर: ए रोडमैप फॉर फ्रंटियर टेक्नोलॉजी-लेड ट्रांसफॉर्मेशन’ (Reimagining Agriculture: A Roadmap for Frontier Technology-Led Transformation) शीर्षक से एक दस्तावेज का अनावरण किया।

नीति आयोग के फ्रंटियर टेक हब के बारे में

  • नीति फ्रंटियर टेक हब, विकसित भारत के लिए एक कार्ययोजना है।
  • दीर्घकालिक विजन: सरकार, उद्योग और शिक्षा जगत के 100 से अधिक विशेषज्ञों के साथ सहयोग करते हुए, यह परिवर्तनकारी, समावेशी विकास हेतु अग्रणी तकनीकों का उपयोग करने हेतु 20 से अधिक क्षेत्रों में 10-वर्षीय विषयगत रोडमैप विकसित कर रहा है।
  • भविष्य के लिए तैयार भारत 2047: यह हब वर्ष 2047 तक एक समृद्ध, सुदृढ़ और तकनीकी रूप से उन्नत भारत के निर्माण के लिए समन्वित कार्रवाई को गति प्रदान करता है।

रिपोर्ट पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

  • यह व्यापक रोडमैप भारत के कृषि परिदृश्य में क्रांति लाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), ड्रोन और सैटेलाइट इमेजिंग को अपनाने पर केंद्रित है।
  • उद्देश्य: डेटा-संचालित और प्रौद्योगिकी-सक्षम हस्तक्षेपों के माध्यम से उत्पादकता, स्थिरता और कृषकों की आय में वृद्धि करना।

  • विकसित भारत 2047 के साथ संरेखण: कृषि में उभरती चुनौतियों से निपटने और दीर्घकालिक विकास, अनुकूलन और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण के साथ संरेखित करना।
  • कृषि विकास में प्रतिमान परिवर्तन: रोडमैप पारंपरिक, इनपुट-आधारित विकास से प्रौद्योगिकी-सक्षम, बुद्धिमत्ता-संचालित मॉडल में परिवर्तन की कल्पना करता है, जो भारतीय कृषि के भविष्य को पुनर्परिभाषित करता है।
  • अनुकूलित तकनीकी हस्तक्षेप: उभरती प्रौद्योगिकियों के माध्यम से, यह रोडमैप ऐसे अनुकूलित समाधानों को बढ़ावा देता है, जो कृषि अनुकूलन एवं समावेशी ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा देते हैं और कृषि तकनीक में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मजबूत करते हैं।
  • तीन रणनीतिक स्तंभ: रोडमैप के तीन मुख्य स्तंभ एक मजबूत, प्रौद्योगिकी-एकीकृत कृषि प्रणाली के निर्माण पर केंद्रित हैं:-
    • संवर्द्धन (Enhance): कृषि समाधानों की अंतिम लक्ष्य तक पहुँच के लिए डेटा पारिस्थितिकी तंत्र और डिजिटल उपकरणों जैसी आधारभूत प्रणालियों को मजबूत करना।
    • पुनर्कल्पना (Reimagine): भारत के कृषि नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का भविष्य सुरक्षित करना, अनुवादात्मक अनुसंधान एवं विकास तथा उद्योग-संरेखित प्रतिभा प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • अभिसरण (Converge): सार्वजनिक-निजी संवाद के लिए मंचों का निर्माण, त्वरित नीति-निर्माण को सुगम बनाना और सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से परिवर्तन प्रक्रिया को गति प्रदान करना।
  • स्मार्ट और सतत् कृषि के लिए प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप
    • परिशुद्ध और स्मार्ट खेती: उपज और स्थिरता में सुधार करते हुए जल, उर्वरक और इनपुट उपयोग को अनुकूलित करने के लिए AI-संचालित फसल निगरानी, ​​ड्रोन और उपग्रह इमेजिंग, और जलवायु-प्रतिरोधी बीज प्रौद्योगिकी का एकीकरण।

    • उन्नत मशीनीकरण: श्रम लागत कम करने और परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए फसल कटाई, छँटाई और ग्रेडिंग के लिए स्वचालित मशीनरी का प्रयोग।
    • डिजिटल ट्विन्स और पूर्वानुमानित विश्लेषण: कृषि वातावरण का अनुकरण करने के लिए AI और डिजिटल ट्विन मॉडल का उपयोग, बेहतर उत्पादकता के लिए डेटा-संचालित निर्णय लेने और पूर्वानुमानित योजना बनाने में सक्षम बनाना।
    • बीज नवाचार: फसल की उपज, अनुकूलन और पोषण गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए CRISPR, जैव-सशक्त और जलवायु-प्रतिरोधी बीज किस्मों का अनुप्रयोग।
    • AI-संचालित सलाहकार प्रणालियाँ: तेलंगाना के AI पायलट परियोजना में प्रदर्शित कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित वास्तविक समय सलाह प्रणाली का कार्यान्वयन कृषकों को सूचित निर्णय लेने, फसल उपज में वृद्धि करने तथा इनपुट लागतों में कमी लाने में सहायक सिद्ध हो रहा है।
  • कृषक विभाजन और अनुकूलित समाधान: संपूर्ण भारत में विविध कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, कृषकों को उनकी आय, भूमि स्वामित्व, सिंचाई की पहुँच और तकनीकी अपनाने के आधार पर तीन प्राथमिक प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
    • आकांक्षी कृषक (70-80%): लघु कृषक, वर्षा-आधारित कृषि, जो कम तकनीक अपनाते हैं और उच्च जोखिम, कम लाभ वाली खेती करते हैं।
    • परिवर्तनशील कृषक (15-20%): मध्यम आकार के कृषक जिनकी सिंचाई तक पहुँच है, उन्नत तकनीकों को अपनाना शुरू कर रहे हैं, लेकिन विस्तार में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
    • उन्नत कृषक (1-2%): बड़े पैमाने के, तकनीक अपनाने वाले कृषक, जो प्रायः व्यावसायिक खेती में शामिल होते हैं, उपज बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए नवीन समाधानों की तलाश करते हैं।
  • डिजिटल कृषि मिशन 2.0: रोडमैप में डिजिटल कृषि मिशन को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव है, जिसमें एक 360° डेटा इकोसिस्टम, एक उन्नत कृषि-तकनीक स्टार्ट-अप एक्सेलेरेटर और डिजिटलीकृत आधारित अंतिम-लक्ष्य वितरण प्रणाली शामिल है।

फ्रंटियर टेक्नोलॉजी के बारे में

  • अग्रणी प्रौद्योगिकियाँ उन्नत नवाचारों को संदर्भित करती हैं, जो मौजूदा प्रणालियों की सीमाओं को आगे बढ़ाती हैं। कृषि में, इनमें शामिल हैं:
    • जलवायु-प्रतिरोधी बीज: आनुवंशिक रूप से संशोधित या जैव-अभियांत्रिकी फसलें, जो जलवायु तनावों से बचने के लिए डिजाइन की गई हैं।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग: भविष्यसूचक खेती के लिए वास्तविक समय आधारित आँकड़ों का विश्लेषण करना तथा जल, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे आदानों का अनुकूलन करना।
    • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और सेंसर: परिशुद्ध कृषि के लिए, कृषकों को मृदा स्वास्थ्य, सिंचाई और फसल स्थिति की दूरस्थ  निगरानी करने में सक्षम बनाना।
    • ड्रोन और उपग्रह इमेजिंग: फसल निगरानी और कीट नियंत्रण के लिए, कृषि प्रबंधन दक्षता में सुधार।
  • इन प्रौद्योगिकियों का उद्देश्य खेती को पारंपरिक तरीकों से अधिक डेटा-संचालित, तकनीक-संवर्धित प्रणालियों की ओर स्थानांतरित करना है, जो उत्पादन में सुधार और लागत कम करती हैं।

प्रासंगिकता और निहितार्थ

  • उत्पादकता और आय वृद्धि: सटीक कृषि और डिजिटल उपकरणों पर ध्यान केंद्रित करके, इस रोडमैप का उद्देश्य उपज बढ़ाना, इनपुट लागत कम करना और कृषकों की शुद्ध आय में सुधार करना है।
  • स्थायित्व और जलवायु अनुकूलन: जलवायु-अनुकूल बीज और डेटा-आधारित कृषि विज्ञान, अनियमित मौसम और संसाधनों की कमी से होने वाले जोखिमों को कम करने में मदद करेंगे।

  • प्रौद्योगिकी प्रसार और पहुँच: कृषक श्रेणियों के अनुसार, हस्तक्षेपों के माध्यम से यह सुनिश्चित होता है कि छोटे कृषक भी अग्रणी तकनीकों से लाभान्वित हों, जिससे कृषि में डिजिटल अंतराल कम हो।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत का प्रयास घरेलू कृषि को वैश्विक नवाचार पथों के साथ संरेखित करता है, जिससे कृषि-तकनीक क्षेत्र एक रणनीतिक विकास क्षेत्र के रूप में स्थापित होता है।
  • राज्यों की भूमिका और संघीय कार्यान्वयन: गुजरात का उदाहरण दर्शाता है कि कैसे राज्य-स्तरीय नवाचार राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन में तेजी ला सकते हैं; ऐसे मॉडलों को संघीय ढाँचों में दोहराया जा सकता है।

वर्तमान भारतीय कृषि परिदृश्य

  • आजीविका का आधार: कृषि भारत के 45.8% कार्यबल को रोजगार देती है और वार्षिक रूप से लगभग 1 बिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन करती है, जो खाद्य सुरक्षा, रोजगार और समावेशी विकास का आधार है।

भारतीय कृषि और प्रौद्योगिकी अपनाने में प्रमुख चुनौतियाँ

  • सतत् संरचनात्मक मुद्दे
    • खंडित भूमि जोत: लगभग 86% कृषक छोटे जोत वाले हैं, जिनके पास औसतन 1 हेक्टेयर से भी कम भूमि है।
    • मशीनीकरण में कमी: मैनुअल और संसाधन-गहन प्रथाओं पर अत्यधिक निर्भरता, दक्षता और मापनीयता को सीमित करती है।
    • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान: अनुमानित रूप से यह नुकसान वार्षिक रूप से 18 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जिससे कृषकों की आय में भारी कमी आ रही है।
    • डिजिटल और वित्तीय अंतराल: ऋण, बीमा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक सीमित पहुँच आधुनिकीकरण को बाधित करती है।
  • जलवायु दबाव: बढ़ती वर्षा परिवर्तनशीलता, मृदा क्षरण और घटता भूजल स्तर भारतीय कृषि की उत्पादकता और दीर्घकालिक स्थिरता, दोनों के लिए खतरा है।
  • डेटा और डिजिटल अंतराल: खंडित और गैर-मानकीकृत डेटा प्रणालियाँ, ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर डिजिटल बुनियादी ढाँचे के साथ, AI-संचालित परिशुद्ध कृषि, IoT-आधारित निगरानी और वास्तविक समय में निर्णय लेने की प्रक्रिया को अपनाने में बाधा डालती हैं।
    • खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी और अपर्याप्त भौतिक बुनियादी ढाँचा डिजिटल एकीकरण को और सीमित करता है।
  • कम विश्वास और तकनीकी जागरूकता: नई तकनीकों की विश्वसनीयता, रखरखाव और प्रभावशीलता के बारे में कृषकों का संदेह (विशेषकर दूरदराज के क्षेत्रों में) विश्वास की कमी उत्पन्न करता है, जिससे तकनीक अपनाने और नवाचार प्रसार की गति धीमी हो जाती है।
  • वित्तीय और पूँजीगत बाधाएँ: उच्च तकनीकी लागत, संस्थागत ऋण तक सीमित पहुँच और उच्च जोखिम वाले कृषि-तकनीकी नवाचारों के लिए अपर्याप्त धन, अपनाने में बाधा डालते हैं।
    • स्टार्ट-अप और छोटे कृषकों के लिए व्यवहार्य वित्तीय मॉडल का अभाव बड़े पैमाने पर तकनीकी प्रसार को और कम करता है।
  • कौशल और प्रतिभा की कमी: अंतरविषयक शोधकर्ताओं, कुशल तकनीशियन और तकनीकी रूप से तैयार कृषकों की कमी, कृषि परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण अग्रणी तकनीकों को विकसित करने, अनुकूलित करने और बनाए रखने की भारत की क्षमता को कमजोर करती है।
  • संरचनात्मक अक्षमताएँ: हाल के वर्षों में 20-40% तक बढ़ी खेती की लागत, कम कृषि उत्पादकता, खंडित भूमि जोत और विकृत बाजार पहुँच के साथ मिलकर लाभप्रदता को कम करती है।
    • कृषकों को प्रायः उपभोक्ता मूल्य का केवल 30-40% ही प्राप्त होता है, जो कम सौदेबाजी शक्ति और अकुशल बाजार प्रणालियों को दर्शाता है।
  • जलवायु और संसाधन तनाव: जलवायु परिवर्तन और मृदा क्षरण के कारण वर्ष 2080 तक प्रमुख फसलों की पैदावार में 10-50% की गिरावट आने का अनुमान है, जो कृषि स्थिरता और खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
  • नियामक और पारिस्थितिकी तंत्र की तैयारी: अपर्याप्त डेटा प्रशासन, पुराने बीज नियम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-सलाहकार ढाँचों का अभाव और कमजोर मशीनीकरण सुरक्षा मानक, कृषि प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर और जिम्मेदारी से अपनाने के लिए भारत की तैयारी को सीमित करते हैं।

डिजिटल और सतत् कृषि के लिए भारत की प्रमुख पहल

  • डिजिटल कृषि मिशन (2021-2025): एग्रीस्टैक के माध्यम से भारत को कृषक-केंद्रित डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र की ओर अग्रसर करता है, जिसमें भूमि अभिलेखों, कृषक डेटाबेस और डेटा-आधारित, परिशुद्ध कृषि के लिए AI-संचालित निर्णय-समर्थन उपकरणों को एकीकृत किया गया है।
  • एग्रीस्टैक और एग्री एक्सेलेरेटर फंड: भारतीय कृषि की डिजिटल रीढ़ और नवाचार इंजन के रूप में कार्य करते हैं, अंतर-संचालनीय डेटा प्लेटफॉर्म को सक्षम बनाते हैं और मापनीय परिवर्तन के लिए स्टार्ट-अप और अग्रणी कृषि-तकनीक समाधानों का समर्थन करते हैं।
  • राज्य-स्तरीय डिजिटल प्लेटफॉर्म (गुजरात मॉडल): डिजिटल फसल सर्वेक्षण, कृषि फार्म रजिस्ट्री और ‘आई-खेदुत’ पोर्टल जैसी पहल वास्तविक समय में फसल डेटा, योजनाओं तक डिजिटल पहुँच और बाजार कनेक्टिविटी प्रदान करती हैं, जिससे दक्षता और पारदर्शिता बढ़ती है।
  • जोखिम प्रबंधन और वित्तीय समावेशन: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) फसल बीमा और जोखिम न्यूनीकरण सुनिश्चित करती है, जबकि पीएम-कृषक और eNAM आय सहायता और डिजिटल बाजार एकीकरण को बढ़ाते हैं, जिससे छोटे कृषकों को सशक्त बनाया जाता है।
  • प्रौद्योगिकी और विस्तार सुधार: कृषक ड्रोन योजना छिड़काव और मानचित्रण को बढ़ावा देती है, और राष्ट्रीय कृषि विस्तार और प्रौद्योगिकी मिशन (NMAET) अंतिम लक्ष्य तक पहुँच के लिए डिजिटल सलाह, मशीनीकरण और क्षमता निर्माण प्रणालियों का विस्तार करता है।
  • स्थायित्व और अवसंरचना समर्थन: राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) जलवायु-अनुकूल, पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देता है, जबकि भारत निर्माण योजना ग्रामीण अवसंरचना को मजबूत करती है, जिससे कृषि में डिजिटल और भौतिक एकीकरण सुनिश्चित होता है।
  • कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (एग्रीस्टैक): कुशल कृषि-सेवा वितरण के लिए कृषक डेटाबेस, सेवाओं और रियल-टाइम डेटा टूल्स के माध्यम से एकीकृत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण के लिए भारत सरकार की एक पहल है।

कृषि परिवर्तन में वैश्विक पहल

  • कृषि नवाचार के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI4AI): विश्व आर्थिक मंच के नेतृत्व में, यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और गहन तकनीकी समाधानों का विस्तार करता है और सतत् एवं जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देता है।
  • खाद्य प्रणालियों के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक पहल: अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU), खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) द्वारा संयुक्त रूप से AI-संचालित खाद्य प्रणालियों को आगे बढ़ाने, उत्पादकता बढ़ाने, अपशिष्ट कम करने और जलवायु-अनुकूलता का निर्माण करने के लिए शुरू किया गया।
  • वैश्विक कृषि प्रौद्योगिकी सहयोग: संयुक्त राष्ट्र और प्रमुख कृषि व्यवसायों सहित वैश्विक संस्थाएँ, वैश्विक कृषि में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने के लिए AI, रोबोटिक्स और मशीनीकरण को बढ़ावा देती हैं।

आगे की राह

  • एकीकृत कृषि डेटा और डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना: GIS मैपिंग और एग्रीस्टैक विस्तार के माध्यम से मृदा, मौसम और फसल डेटा को एकीकृत करते हुए एक विकेंद्रीकृत, 360° एग्री कोश’ डेटा ढाँचा विकसित करना।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल और इंटरनेट अवसंरचना को सुदृढ़ करना ताकि वास्तविक समय में, AI-संचालित निर्णय लेने और परिशुद्ध कृषि को सक्षम बनाया जा सके।
  • भौतिक अंतराल को पाटना और अंतिम लक्ष्य वितरण को सुदृढ़ करना: डिजिटल उपकरणों (AI चैटबॉट, मोबाइल ऐप) को भौतिक अवसंरचना (सामुदायिक केंद्र, कियोस्क, FPO) के साथ मिलाकर एक हाइब्रिड दृष्टिकोण अपनाना।
    • स्थानीय कार्यकर्ताओं और विस्तार ग्राहकों को क्षेत्रीय कृषि-जलवायु आवश्यकताओं के अनुरूप अति-स्थानीय सलाह प्रदान करने के लिए सशक्त बनाना।
  • एग्रीटेक नवाचार और स्टार्ट-अप को सशक्त बनाना: पूँजी पहुँच का विस्तार करके, धैर्यपूर्वक निवेश को बढ़ावा देकर और जीनोमिक्स, फसल कटाई-पश्चात् प्रबंधन और स्वचालन जैसे उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास सहयोग को बढ़ावा देकर एग्रीटेक त्वरक पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाना।
    • देश भर में बुनियादी ढाँचे को एकत्रित करने और समाधानों का विस्तार करने के लिए एक एग्रीटेक समूहों का निर्माण करना।

  • सार्वजनिक-निजी-अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देना: मिशन-संचालित नवाचार के लिए अग्रणी प्रौद्योगिकी उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित करना।
    • ब्लॉकचेन, ड्रोन और AI सलाह जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का सुरक्षित परीक्षण करने के लिए नियामक सैंडबॉक्स और नीति दूरदर्शिता इकाइयाँ शुरू करना। व्यावसायीकरण और अपनाने में तेजी लाने के लिए संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देना।
  • मानव पूँजी और कृषि-तकनीकी कौशल का निर्माण करना: कृषि, इंजीनियरिंग और डेटा विज्ञान में अंतःविषय विशेषज्ञता विकसित करने के लिए एक राष्ट्रीय कृषि-तकनीकी प्रतिभा ढाँचा शुरू करना।
    • कृषकों, शोधकर्ताओं और उद्यमियों को डिजिटल कृषि युग के लिए तैयार करने हेतु उद्योग-संरेखित पाठ्यक्रम, व्यावहारिक नवाचार केंद्र और मॉड्यूलर प्रमाण-पत्रों को एकीकृत करना।
  • बाजार संपर्क और पारिस्थितिकी-तंत्र एकीकरण को मजबूत करना: बाजार पहुँच, भंडारण और परिवहन बुनियादी ढाँचे में सुधार करके भूमि विखंडन, कम कीमत प्राप्ति और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान का समाधान करना।
    • उचित कृषक आय सुनिश्चित करने और एक प्रतिस्पर्द्धी कृषि-मूल्य शृंखला निर्माण के लिए डिजिटल मूल्य और प्रत्यक्ष खरीदार प्लेटफॉर्मों का विस्तार करना।

निष्कर्ष

वर्ष 2047 तक, जब भारत विकसित राष्ट्र का दर्जा पाने के लिए प्रयासरत है, कृषि क्षेत्र (जो देश के आधे कार्यबल को रोजगार देता है) को इस परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। अग्रणी प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर संरचनात्मक बाधाओं को दूर किया जा सकता है, जिससे खाद्य-सुरक्षित और समृद्ध भारत के लिए एक लचीला, उत्पादक और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी कृषि पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित हो सकता है।

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