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भारत में धार्मिक संपरिवर्तन

Lokesh Pal April 20, 2024 05:13 183 0

संदर्भ

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि उत्तर प्रदेश ‘धर्मांतरण विरोधी’ कानून अंतरधार्मिक संबंधों के बीच लिव-इन संबंध पर प्रतिबंध लगाता है।

  • हाल ही में गुजरात सरकार ने स्पष्ट किया कि राज्य में धर्म संपरिवर्तन के लिए बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म को दो अलग धर्म माना जाना चाहिए। 
  • हाल ही में ब्रिटेन स्थित एक ईसाई वकालत समूह ने भारत से राष्ट्रीय चुनावों के बाद लगभग एक दर्जन राज्यों द्वारा अधिनियमित धर्मांतरण विरोधी कानूनों को रद्द करने का आग्रह किया है।

धार्मिक संपरिवर्तनों के बारे में

  • धर्मांतरण में एक संप्रदाय को त्यागना और दूसरे के साथ जुड़ना शामिल है। इसमें एक विशेष धर्म संप्रदाय से पहचाने गए विश्वासों के एक समूह को दूसरों के बहिष्कार के लिए अपनाना शामिल है।
  • चुनौती: विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के अनुसार, जबरन धर्म संपरिवर्तन भारतीय संविधान के मूल मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है।
    • अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष समानता)
    • अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार)
    • अनुच्छेद-25 (विवेक की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता) 

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के बारे में

  • धर्मांतरण विरोधी कानून: इसे वर्ष 2021 में अधिनियमित किया गया था।
  • अधिनियम के प्रावधान
    • धर्मांतरण पर प्रतिबंध: यह अधिनियम ‘गलत बयान, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके’ का उपयोग करके किसी व्यक्ति के धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
      • अधिनियम की धारा 3(1) में कहा गया है कि ‘विवाह या विवाह की प्रकृति के संबंध में धर्म परिवर्तन’ भी अवैध धर्मांतरण के रूप में योग्य होगा।
      • अधिनियम की धारा 6 गैर-कानूनी धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए किसी भी विवाह पर रोक लगाती है तथा ऐसे विवाहों को ‘शून्य’ घोषित किया जाएगा।
    • FIR दर्ज करने पर: इस अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति या उनके रिश्तेदार अवैध धर्मांतरण के लिए FIR दर्ज कर सकते हैं, जो धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
    • सजा: धारा 3 के तहत दोषी पाए जाने वालों को धर्मांतरण विरोधी कानून की धारा 5 के अनुसार दंडित किया जा सकता है।
      • 1-5 वर्ष का कारावास और कम-से-कम 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।
      • यदि पीड़ित महिला, नाबालिग या अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, तो कम-से-कम 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ 2-10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।
      • सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में सजा 3-10 वर्ष और जुर्माना कम-से-कम 50,000 रुपये हो जाता है।

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून

  • धर्मांतरण विरोधी कानून विधायी उपाय हैं, जिनका उद्देश्य धार्मिक संपरिवर्तन को रोकना या प्रतिबंधित करना है।
  • भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की पृष्ठभूमि और स्थिति
    • स्वतंत्रता-पूर्व युग
      • आजादी से पहले, रायगढ़, बीकानेर, कोटा, जोधपुर, सरगुजा, पटना, उदयपुर और कालाहांडी जैसी कई हिंदू रियासतों ने ईसाई धर्म विस्तार से संबंधित मिशनरी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया था। 
    • स्वतंत्रता के बाद की अवधि
      • संसदीय विधेयक: वर्ष 1954 और वर्ष 1960 में, संसद ने भारतीय धर्मांतरण (विनियमन और पंजीकरण) विधेयक और पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक पर विचार किया गया।
        • दोनों का लक्ष्य धर्मांतरण को रोकना था लेकिन अंततः समर्थन की कमी के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।
        • कोई केंद्रीय कानून नहीं: वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा धार्मिक संपरिवर्तन के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं बनाया गया है।
    • भारतीय दंड संहिता, 1860
      • भारतीय दंड संहिता की धारा 295A और 298 जबरन धर्मांतरण को अपराध मानती है, दुर्भावनापूर्ण तरीके से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले कृत्यों को निशाना बनाती है। 

विभिन्न राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून

  • पिछले कुछ वर्षों में, कई राज्यों ने बलपूर्वक, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किए गए धार्मिक संपरिवर्तनों को प्रतिबंधित करने के लिए ‘धर्म की स्वतंत्रता’ कानून बनाया है।
  • ‘धर्म की स्वतंत्रता’ कानून वर्तमान में भारत के 8 राज्यों में लागू हैं, अर्थात् ओडिशा (1967), मध्य प्रदेश (1968), अरुणाचल प्रदेश (1978), छत्तीसगढ़ (2000 और 2006), गुजरात (2003), हिमाचल प्रदेश (2006 और 2019), झारखंड (2017), और उत्तराखंड (2018)।
    • ओडिशा (उड़ीसा धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1967) वर्ष 1967 में इस तरह का कानून पेश करने वाला पहला राज्य था। इसके बाद वर्ष 1968 में मध्य प्रदेश ने इसी तरह का कानून लागू किया।
      • छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2006
      • झारखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2017
      • उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021
      • कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम, 2022
      • हरियाणा गैर-कानूनी धर्म संपरिवर्तन रोकथाम अधिनियम, 2022

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता

  • परंपराओं और मान्यताओं की रक्षा करना: विशिष्ट धर्मों के प्रभाव को बनाए रखते हुए धर्मांतरण से उत्पन्न होने वाले संघर्षों को रोकना।

भारत में धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार कारक

  • व्यक्तिगत पसंद: उन विश्वासों में बदलाव करना, जो उनकी आध्यात्मिक यात्रा के अनुरूप हों और उनके व्यक्तिगत विकास एवं सुविधा में सहायक हों।
  • विवाह: पारिवारिक सौहार्द बनाए रखने या अपने साथी के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिए लोग अपने जीवनसाथी का धर्म अपना सकते हैं।
  • सामाजिक-धार्मिक दबाव
    • कुछ व्यक्ति किसी विशेष सामाजिक ढाँचे में संबद्ध होने के लिए एक विशिष्ट धर्म अपनाने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
    • व्यक्ति अपनी पिछली धार्मिक संबद्धता के आधार पर उत्पीड़न या भेदभाव से बचने के लिए अलग धर्म अपना सकते हैं।
  • आर्थिक अवसर: कुछ मामलों में, व्यक्ति उस धर्म के सदस्यों के लिए विशेष आर्थिक अवसरों या संसाधनों तक पहुँचने के लिए एक अलग धर्म में परिवर्तित हो सकते हैं।
  • जबरन धर्मांतरण: कुछ संस्थाएँ अपने स्वयं के एजेंडे की पूर्ति के लिए व्यक्तियों को एक निश्चित धर्म अपनाने के लिए मजबूर या प्रोत्साहित कर सकती हैं।

  • सामाजिक संघर्षों की रक्षा के लिए: किसी समुदाय के भीतर धार्मिक रूपांतरणों से उत्पन्न होने वाले संघर्षों को रोकने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून आवश्यक हैं।
  • कपटपूर्ण विवाहों की चिंताओं को दूर करने के लिए: हाल ही में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें लोग अपने धर्म की गलत जानकारी देकर या छिपाकर दूसरे धर्म के लोगों से विवाह करते हैं और विवाहोपरांत ऐसे दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में धर्म संपरिवर्तन करने के लिए मजबूर करते हैं।
  • न्यायिक स्वीकृति: उच्चतम न्यायालय ने जबरन धर्म संपरिवर्तन की घटनाओं को स्वीकार किया है।

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों से जुड़ी चिंताएँ

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता सहित स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार मानता है। हालाँकि, धर्मांतरण विरोधी कानून इस मूलभूत सिद्धांत के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।

भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता संबंधी अधिकार

  • अनुच्छेद-25: यह अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के मुक्त पेशे, अभ्यास और प्रचार से संबंधित है।
  • अनुच्छेद-26: यह धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता से संबंधित है।
  • अनुच्छेद-27: यह किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिए करों के भुगतान की स्वतंत्रता से संबंधित है।
  • अनुच्छेद-28: यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता से संबंधित है।

    • ऐसे कानून न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं बल्कि अन्य संवैधानिक अधिकारों, जैसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद-21) और समानता का अधिकार (अनुच्छेद-14) का भी उल्लंघन करते हैं।
  • भेदभाव का खतरा: इन धर्मांतरण विरोधी कानूनों का दुरुपयोग कुछ धार्मिक समूहों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक धर्मों के खिलाफ भेदभाव करने के लिए किया जा सकता है।
    • भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में, कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों की रक्षा हेतु पहले प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • सामाजिक परिस्थितियाँ और कल्याण: कभी-कभी व्यक्ति सामाजिक दबावों के कारण या अपने कल्याण के लिए अपना धर्म बदल लेते हैं। धर्मांतरण विरोधी कानून इन व्यक्तियों और व्यक्तिगत विकल्प चुनने की उनकी स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • अस्पष्ट शब्दावली: भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों में गलत बयान, बल, धोखाधड़ी जैसी कुछ अस्पष्ट शब्दावली शामिल हैं जिनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

धर्मांतरण विरोधी कानूनों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  • हादिया बनाम अशोकन के.एम. मामला: उच्चतम न्यायालय ने एक वयस्क के विवाह करने और स्वतंत्र रूप से दूसरे धर्म में संपरिवर्तित होने के अधिकार की पुष्टि की और कहा कि राज्य इस विकल्प में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
  • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला: उच्चतम न्यायालय ने किसी व्यक्ति के धर्म, जाति या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना विवाह करने के अधिकार पर जोर दिया और इस अधिकार में किसी भी हस्तक्षेप को अपनी पसंद की स्वतंत्रता का उल्लंघन घोषित किया।
  • के.एस. पुट्टास्वामी या ‘गोपनीयता’ निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित निर्णय लेने में व्यक्तिगत स्वायत्तता को रेखांकित किया।
  • सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामला: उच्चतम न्यायालय ने विवाह के उद्देश्य से धर्म संपरिवर्तन के अधिकार को बरकरार रखा, लेकिन कानूनी दायित्वों या जिम्मेदारियों से बचने के लिए धर्म संपरिवर्तन का उपयोग करने के प्रति आगाह किया।
  • एस. पुष्पा बाई बनाम सी.टी. सेल्वराज मामला: उच्चतम न्यायालय ने स्वैच्छिक धर्मांतरण के अधिकार की पुष्टि की, धर्म की स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में ऐसी प्रक्रियाओं में जबरदस्ती या गलत बयानी की निंदा की।
  • रेव स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश मामला: उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धर्म के प्रचार-प्रसार का अधिकार व्यक्तियों के जबरन धर्म संपरिवर्तन के अधिकार तक नहीं फैलता है।
    • हाल ही में जस्टिस एम. आर. शाह और हेमा कोहली की बेंच ने कहा है कि जबरन धर्म संपरिवर्तन एक बहुत गंभीर मुद्दा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, धर्म की स्वतंत्रता और अंतरात्मा की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह

  • अंतरराष्ट्रीय मानकों का संदर्भ: मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा का अनुच्छेद-18 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर जोर देता है, जिसमें किसी के विश्वास को बदलने की क्षमता भी शामिल है। यह अंतरराष्ट्रीय मानक धार्मिक रूपांतरण कानूनों को संबोधित करने में एकरूपता के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
  • केंद्रीय मॉडल कानून का प्रस्ताव: यह देखते हुए कि धार्मिक रूपांतरण कानून राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, केंद्र सरकार को अनुबंध खेती पर मॉडल कानून जैसे मौजूदा ढाँचे के समान एक मॉडल कानून बनाने की आवश्यकता है। इससे राज्यों में स्थिरता और स्पष्टता को बढ़ावा मिलेगा।
  • विधायी प्रावधानों में स्पष्टता: राज्यों को अपने धर्मांतरण विरोधी कानूनों में अस्पष्ट या संदिग्ध प्रावधानों को शामिल करने से बचना चाहिए। विशेषकर स्वैच्छिक धर्मांतरण की प्रक्रिया के संबंध में। स्पष्ट दिशा-निर्देश अपनी पसंद से धर्म संपरिवर्तन करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
  • अल्पसंख्यक समुदाय संस्थानों को शामिल करना: धर्मांतरण विरोधी कानूनों में अल्पसंख्यक समुदाय संस्थानों द्वारा धर्मांतरण की वैध प्रक्रियाओं को रेखांकित करने वाले प्रावधान शामिल होने चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे संस्थानों को कानूनी ढाँचे के भीतर मान्यता प्राप्त एवं सशक्त बनाया जाए।
  • सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: धर्मांतरण विरोधी कानूनों के प्रावधानों और निहितार्थों के बारे में जनता को शिक्षित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
  • संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिकता को तब तक बरकरार रखा है, जब तक वे किसी व्यक्ति के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
    • इसलिए सभी व्यक्तियों के अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान सुनिश्चित करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा और जबरन या धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण के खिलाफ सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।

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