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बाघ अभयारण्यों से वनवासियों का स्थानांतरण

Lokesh Pal November 12, 2025 03:22 35 0

संदर्भ

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने संरक्षण और सामुदायिक अधिकारों में सामंजस्य: भारत के बाघ अभयारण्यों में पुनर्वास और सह-अस्तित्व के लिए एक नीतिगत ढाँचा’ शीर्षक से एक नीतिगत संक्षिप्ति जारी की है।

बाघ अभयारण्यों से गाँवों के स्थानांतरण पर NTCA का निर्देश

  • पिछले वर्ष राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने 19 राज्यों को पत्र लिखकर मुख्य बाघ क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों को हटाने को प्राथमिकता’ देने को कहा था।
  • कानूनी आधार: वन्यजीव अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, कोर क्षेत्र को मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त रखना आवश्यक है और इसके लिए स्थानीय निवासियों को पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर स्वेच्छा से स्थानांतरित किए जाने का प्रावधान है।
  • मुख्य या महत्वपूर्ण बाघ आवास (CTH): ये बाघ अभयारण्यों के अंदर के क्षेत्र हैं, जिन्हें बाघों और उनके शिकार के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए मानव आवास से मुक्त रखा जाता है।
  • NTCA निर्देश का दायरा: NTCA पूरे भारत में अधिसूचित बाघ अभयारण्यों की देख-रेख करता है, जहाँ लगभग 591 गाँव (64,801 परिवार) अभी भी मुख्य बाघ आवासों में रहते हैं।
    • राज्यों से इन गाँवों के स्थानांतरण को प्राथमिकता देने के लिए कहा गया है ताकि हस्तक्षेप मुक्त क्षेत्रों का निर्माण किया जा सके।
  • पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, जनवरी 2022 से मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के बाघ अभयारण्यों से 56 गाँवों के कुल 5,166 परिवारों को स्थानांतरित किया गया है।
    • मुख्य/महत्त्वपूर्ण बाघ आवासों से सभी स्थानांतरण स्वैच्छिक प्रकृति के थे, जैसा कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 द्वारा पहले से ही अपेक्षित है।

संबंधित तथ्य 

  • यह नीति, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के निर्देशों के तहत किए गए अनैच्छिक स्थानांतरणों पर बढ़ती चिंताओं के बीच आई है।
    • कई ग्राम सभाओं और आदिवासी समूहों ने जबरन बेदखली, अपर्याप्त मुआवजा और वन अधिकार अधिनियम को मान्यता न दिए जाने का आरोप लगाया है।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) द्वारा तैयार नीतिगत ढाँचे में इस बात पर बल दिया गया है कि बाघ अभयारण्यों से वनवासी समुदायों का स्थानांतरण स्वैच्छिक, असाधारण और साक्ष्य-आधारित होना चाहिए, न कि प्रशासनिक बाध्यता।
  • इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी संरक्षण को स्वदेशी समुदायों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के साथ संतुलित करना है और इस बात की पुष्टि करता है कि भारत के लोकतांत्रिक और नैतिक शासन ढाँचे के भीतर संरक्षण और मानवाधिकारों का सह-अस्तित्व होना चाहिए।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा तैयार की गई नीतिगत रूपरेखा को संयुक्त कार्यान्वयन के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के साथ साझा किया गया है।

जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा उजागर की गई चिंताएँ

  • वन अधिकार अधिनियम का कार्यान्वयन नहीं होना: राज्य बेदखली से पूर्व सामुदायिक और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करने में विफल रहे हैं।
  • सहमति का अभाव: पुनर्वास प्रायः ग्रामसभा के प्रस्तावों या विकल्पों के बारे में उचित जागरूकता के बिना हुआ है।
  • अपर्याप्त मुआवजा: कई विस्थापित परिवारों को आजीविका संबंधी कमी, खराब पुनर्वास और सामाजिक विघटन का सामना करना पड़ता है।
  • हितों का टकराव: वन विभाग प्रायः पुनर्वास परियोजनाओं के कार्यान्वयनकर्ता और निगरानीकर्ता दोनों के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जवाबदेही में कमी आती है।

स्वैच्छिक ग्राम पुनर्वास कार्यक्रम (VVRP)

  • इसे वर्ष 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के एक भाग के रूप में प्रारंभ किया गया था। NTCA इसके दो उद्देश्य निर्धारित करता है:
    • स्थानांतरित परिवारों को आजीविका और बुनियादी ढाँचे के अवसर प्रदान करना, और
    • बाघों के लिए सुरक्षित स्थान का निर्माण करना।
  • स्वैच्छिक और अधिकार-आधारित पुनर्वास: सभी पुनर्वास स्वैच्छिक होने चाहिए और ग्राम सभाओं एवं प्रभावित परिवारों की सूचित सहमति पर आधारित होने चाहिए।
  • मुआवजे के विकल्प
    • वित्तीय पैकेज: प्रति परिवार ₹15 लाख।
    • पुनर्वास पैकेज: भूमि, आवास, और सड़क, जल, स्वच्छता, बिजली और दूरसंचार जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच।

भारत के बाघ अभयारण्यों में पुनर्वास और सह-अस्तित्व के लिए नीतिगत ढाँचे के बारे में

  • बाघ अभयारण्यों से स्थानांतरण के दौरान वनवासी अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए, इसका मार्गदर्शन करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का नीतिगत ढाँचा।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) द्वारा वर्ष 2025 में विकसित किया गया।

नीति ढाँचे की मुख्य विशेषताएँ 

  • स्वैच्छिक और साक्ष्य-आधारित पुनर्वास: पुनर्वास अंतिम उपाय होना चाहिए, केवल तभी जब मानव और वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व एक स्पष्ट पारिस्थितिकी खतरा उत्पन्न करता हो।
    • सहमति स्वतंत्र, पूर्व और सूचित (FPIC) होनी चाहिए, जिसमें ग्राम सभा की भागीदारी हो और स्वतंत्र नागरिक समाज पर्यवेक्षकों द्वारा सत्यापित हो।
  • समुदाय-केंद्रित संरक्षण और पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय ढाँचा (NFCCR): यह ढाँचा जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा संयुक्त रूप से प्रबंधित NFCCR के निर्माण का प्रस्ताव करता है, ताकि:
    • सभी पुनर्वास परियोजनाओं के लिए मानकीकृत प्रक्रियाएँ, समय-सीमाएँ और जवाबदेही प्रणालियाँ निर्धारित की जा सकें।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष, आवास व्यवहार्यता और आजीविका संबंधी प्रभावों के वैज्ञानिक आकलन के माध्यम से साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है।
  • संरक्षण-समुदाय इंटरफेस पर राष्ट्रीय डेटाबेस (NDCCI): इसने स्थानांतरित किए गए परिवारों और गाँवों, प्रदान किए गए मुआवजे, पुनर्वास के बाद आजीविका की स्थिति और मानवाधिकारों तथा FRA अनुपालन की निगरानी करने के लिए एक केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस का प्रस्ताव रखा।
    • संरक्षण-संचालित पुनर्वास कार्यक्रमों में पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही को सक्षम बनाता है।
  • स्वतंत्र ऑडिट और शिकायत निवारण 
    • वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने के लिए सूचीबद्ध स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा वार्षिक लेखा परीक्षा।
    • प्रभावित समुदायों के लिए त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली (जिला-राज्य-राष्ट्रीय)।
    • प्रत्येक बाघ अभयारण्य में अनुपालन एवं सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति।
  • इन-सीटू’ विकास और सह-अस्तित्व मॉडल: जहाँ स्थानांतरण को प्राथमिकता नहीं दी जाती है, वहाँ ढाँचा निम्नलिखित की अनुमति देता है:
    • बुनियादी ढाँचे (सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा) का यथास्थान विकास,
    • बाघ संरक्षण संस्थानों और पर्यावरण-विकास समितियों में ग्राम सभा सदस्यों को शामिल करना,
    • स्थायी वन जीवन और संरक्षण सामंजस्य को प्रदर्शित करने वाले सह-आवास मॉडल को बढ़ावा देना।
      • समुदायों के लिए विकल्प: समुदाय वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत अपने व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों का प्रयोग करते हुए पारंपरिक वन आवासों” में रह सकते हैं।

कानूनी और संवैधानिक आधार

कानून / प्रावधान मुख्य अधिदेश
वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA)
  • वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के व्यक्तिगत, सामुदायिक और आवास संबंधी अधिकारों को मान्यता देता है (धारा 3-5)।
  • धारा 4(2) के तहत अधिकारों के निपटारे के बाद और ग्राम सभा की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति से ही पुनर्वास की अनुमति है।
  • ग्राम सभाओं को वन संसाधनों की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार देता है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (संशोधित 2006)
  • बाघ संरक्षण के लिए हस्तक्षेप रहित क्षेत्रों के निर्माण हेतु, पारस्परिक रूप से सहमत नियमों और शर्तों’ पर लोगों के स्वैच्छिक स्थानांतरण हेतु आवश्यकताएँ निर्धारित की गई हैं।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को बाघ-अभयारण्य योजनाओं को अनुमोदित करने और मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने का अधिकार देता है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA): बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए स्थापित तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि संरक्षित क्षेत्रों का पारिस्थितिकी रूप से असतत् उपयोगों के लिए उपयोग न किया जाए।
संविधान – अनुच्छेद-21
  • यह सम्मानपूर्वक जीवन और आजीविका के अधिकार की रक्षा करता है; बिना उचित प्रक्रिया के जबरन बेदखली इस अधिकार का उल्लंघन है।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA)
  • यह अधिनियम आदिवासी क्षेत्रों में किसी भी भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास या पुनर्स्थापन के लिए ग्राम सभा की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य बनाता है।
  • स्थानीय समुदायों को प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और विकास प्राथमिकताओं को तय करने का अधिकार देता है।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
  • धारा 3(1) अनुसूचित जातियों और जनजातियों को गैर-कानूनी बेदखली, संपत्ति के विनाश और जबरन बेदखली से सुरक्षा प्रदान करती है और दोषी पाए जाने वालों, जिनमें लोक सेवक भी शामिल हैं, के लिए कठोर दंड का प्रावधान है।
  • गलत तरीके से विस्थापन के लिए जिम्मेदार पाए जाने वाले अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (LARR)
  • उचित मुआवजा: यह सुनिश्चित करता है कि भूमि स्वामियों को उनकी भूमि के लिए बाजार मूल्य और अन्य निर्दिष्ट कारकों के आधार पर उचित तथा न्यायसंगत मुआवजा मिले।
  • पारदर्शिता: भूमि अधिग्रहण के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया अनिवार्य करता है, जिसमें प्रभावित आबादी पर परियोजना के संभावित प्रभावों का निर्धारण करने के लिए सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) की आवश्यकता भी शामिल है।
  • पुनर्वास और पुनर्स्थापन (R&R): अधिग्रहण के कारण विस्थापित सभी व्यक्तियों और परिवारों के लिए व्यापक पुनर्वास और पुनर्स्थापन लाभ प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य उनके जीवन स्तर में सुधार लाना या कम-से-कम उन्हें अधिग्रहण-पूर्व स्थिति में वापस लाना है।
  • सूचित सहमति: कुछ मामलों में, विशेष रूप से निजी कंपनियों या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए, अधिकांश भूमि स्वामियों की सहमति आवश्यक है।
संवैधानिक निर्देशक सिद्धांत [अनुच्छेद-48A और-51A(g)]
  • राज्य और नागरिकों को पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिए प्रेरित करना।
  • मानव अधिकारों के साथ पारिस्थितिकी संरक्षण को संतुलित करने के लिए नैतिक आधार प्रदान करना।

जबरन स्थानांतरण का प्रभाव 

  • बलात् पुनर्वास: बलात पुनर्वास के प्रयासों से आदिवासी समुदायों की मौजूदा आर्थिक और सामाजिक असुरक्षाएँ और बढ़ सकती हैं, जिससे वे गरीबी, आजीविका अस्थिरता तथा सामाजिक बहिष्करण की स्थिति में पहुँच सकते हैं।
    • उदाहरण: कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिजर्व से 40 वर्ष पहले बेदखल किए गए जेनु कुरुबा जनजाति के 52 परिवारों ने वन अधिकारों को पुनः प्राप्त करने और जबरन पुनर्वास के कारण हुई आजीविका के नुकसान का विरोध करने के लिए अपने पैतृक गाँव में फिर से बस गए हैं।
  • अपर्याप्त पुनर्वास और अधूरे वादे: पुनर्वास पैकेजों में संरचनात्मक कमियों के कारण अनेक परिवारों को न तो आवास योग्य भूमि मिलती है और न ही पर्याप्त बुनियादी सुविधाएँ, परिणामस्वरूप वे वर्षों तक अधूरा पुनर्वास झेलते रहते हैं।
    • उदाहरण: सह्याद्री टाइगर रिजर्व (महाराष्ट्र) में, स्थानांतरित परिवारों ने एक दशक तक सड़क या पेयजल की सेवाओं से वंचित रहने के बाद वापसी की माँग की।
  • कानूनी और मानवाधिकार उल्लंघन: वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अधिकारों का निपटारा किए बिना या स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) प्राप्त किए बिना बेदखली घरेलू कानून और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन है।
    • उदाहरण: नस्लीय भेदभाव उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति (CERD) ने 18 राज्यों के बाघ अभयारण्यों से जबरन स्थानांतरण को अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
  • सामाजिक विखंडन और संघर्ष: विस्थापित परिवारों को प्रायः मेजबान समुदायों के साथ विवादों या मुआवजे और संसाधनों तक असमान पहुँच के कारण आंतरिक विभाजन का सामना करना पड़ता है।
  • सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विस्थापन: जबरन स्थानांतरण समुदायों के पवित्र उपवनों, पैतृक समाधि स्थलों और पारंपरिक पारिस्थितिकी प्रथाओं से संबंध विच्छेद कर देता है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान नष्ट हो जाती है।
  • अनिश्चित संरक्षण परिणाम: स्थानांतरण से बाघों या शिकार का आबादी घनत्व स्वतः ही नहीं बढ़ जाता; आवास सुधार के बिना, पारिस्थितिकी लाभ सीमित ही रहते हैं।
    • व्यापक स्थानांतरण सीमित पारिस्थितिकी लाभ प्रदान करता है, जब तक कि आवास पुनर्स्थापन के साथ इसे जोड़ा न जाए।

नीति के प्रभावी कार्यान्वयन में GES 

  • अधिकारों की अपूर्ण मान्यता: कई राज्यों ने वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार संबंधी समस्याओं का निपटारा किए बिना ही पुनर्वास शुरू कर दिया है, जो धारा 4(2) का उल्लंघन है।
    • उदाहरण: राज्य आदिवासी विकास विभाग (TDD) ने मेलघाट टाइगर रिजर्व (MTR) के पाँच गाँवों के स्वैच्छिक पुनर्वास में इस आधार पर देरी की है कि उनके सामुदायिक वन अधिकार (CFR) और व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) का FRA 2006 के तहत निपटारा नहीं हुआ है।
  • स्वैच्छिक’ सहमति का कमजोर सत्यापन: हालाँकि नीति स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) की माँग करती है, फिर भी कई पुनर्वासों में प्रामाणिक ग्राम सभा प्रस्तावों का अभाव रहा है या प्रशासनिक दबाव में किए गए हैं।
    • उदाहरण: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उन आरोपों की जाँच के आदेश दिए हैं कि ओडिशा वन विभाग ने सिमलीपाल टाइगर रिजर्व (STR) के मुख्य क्षेत्रों से पुनर्वास के लिए ग्रामीणों की सहमति अनुचित तरीके से प्राप्त की थी।
  • पुनर्वास निर्णयों के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य का अभाव: कई पुनर्वास शिकार आधार, आवास विखंडन या संघर्ष की तीव्रता के पारिस्थितिकी आकलन के स्थान पर प्रशासनिक लक्ष्यों से प्रेरित होते हैं।
  • अंतर-एजेंसी समन्वय और भूमिका स्पष्टता का अभाव: प्रभावी पुनर्वास के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, और राज्य वन विभागों के बीच समन्वित कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है; समन्वय की कमी के कारण दोहराव या परस्पर विरोधी आदेश उत्पन्न होते हैं।
  • अपर्याप्त पुनर्वास-पश्चात् सहायता और निगरानी: मुआवजा प्रायः दीर्घकालिक आजीविका या सामाजिक एकीकरण उपायों के बिना एकमुश्त अनुदान के रूप में दिया जाता है, जिससे गरीबी और पलायन होता है।
  • अल्प डेटा पारदर्शिता और शिकायत निवारण तंत्र: एक कार्यशील राष्ट्रीय डेटाबेस या स्वतंत्र ऑडिट का अभाव मुआवजे के वितरण या मानवाधिकार अनुपालन की निगरानी करना कठिन बना देता है।

आगे की राह 

  • किसी भी स्थानांतरण से पूर्व वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अनुपालन को प्राथमिकता देना: सुनिश्चित करना कि सभी व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों का निपटारा हो गया है और स्थानांतरण शुरू करने से पहले सहमति दर्ज कर ली गई।
  • पुनर्स्थापन को साक्ष्य-आधारित और चयनात्मक बनाना: यह तय करने के लिए कि क्या स्थानांतरण पारिस्थितिकी रूप से आवश्यक है, वन्यजीव आबादी, आवास दबाव और संघर्ष की तीव्रता जैसे वैज्ञानिक मानदंडों का उपयोग करना।
  • पारदर्शिता और सहमति सत्यापन को मजबूत बनाना: स्वतंत्र पर्यवेक्षक नियुक्त करना और ग्राम सभा के प्रस्तावों का सार्वजनिक प्रकटीकरण करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि स्थानांतरण वास्तव में स्वैच्छिक और प्रलेखित हों।
  • पुनर्स्थापन के बाद आजीविका और सामाजिक निगरानी स्थापित करना: स्थानांतरित परिवारों को दीर्घकालिक आजीविका कार्यक्रमों (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005, प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण) से जोड़ना और उनकी आय, आवास और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच की निगरानी करना।
  • डेटा प्रणालियों और स्वतंत्र ऑडिट को संस्थागत बनाना: राष्ट्रीय संरक्षण-समुदाय इंटरफेस डेटाबेस (NDCCI) की स्थापना एवं प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए, साथ ही पुनर्वास परियोजनाओं का स्वतंत्र वार्षिक तृतीय-पक्ष आधारित मूल्यांकन किया जाए।
  • स्व-स्थाने संरक्षण और सह-अस्तित्व मॉडल को बढ़ावा देना: जहाँ मानव-वन्यजीव संघर्ष न्यूनतम हो, स्थानीय बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, ग्राम सभा के सदस्यों को पर्यावरण-विकास समितियों में एकीकृत करना और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

बाघ संरक्षण में मानव अधिकारों को प्राथमिकता और साक्ष्य-आधारित निर्णय प्रक्रिया अपनाने से ही संवैधानिक न्याय और पर्यावरणीय उद्देश्यों के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है, जिससे स्थानांतरण को केवल अंतिम विकल्प के रूप में अपनाया जाए।

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