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न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया

Lokesh Pal July 05, 2025 03:00 40 0

संदर्भ

सरकार जल्द ही न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ करेगी, क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद जाँच में कुछ निष्कर्ष सामने आए हैं।

भारत में न्यायाधीशों को हटाया जाने के प्रमुख विगत मामले

1. न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी (वर्ष 1993)

  • आरोप: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वित्तीय अनियमितता।
  • परिणाम: जाँच में उन्हें दोषी पाया गया, लेकिन लोकसभा में प्रस्ताव गिर गया क्योंकि सत्तारूढ़ कांग्रेस ने मतदान से दूरी बनाई।

2. न्यायमूर्ति सौमित्र सेन (वर्ष 2011)

  • आरोप: वकील रहते हुए उन्होंने धन का दुरुपयोग किया और न्यायाधीश रहते हुए भी इसे छिपाते रहे।
  • परिणाम: राज्यसभा में महाभियोग पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में मतदान से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिससे प्रक्रिया समाप्त हो गई।

3. न्यायमूर्ति एस. के. गंगेले (वर्ष 2015)

  • आरोप: यौन उत्पीड़न, एक महिला न्यायाधीश की शिकायत पर आधारित।
  • परिणाम: एक न्यायिक समिति ने उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया और प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा।

4. न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला [J. B. Pardiwala] (वर्ष 2015)

  • आरोप: एक निर्णय में आरक्षण नीति के विरुद्ध विवादास्पद टिप्पणी।
  • परिणाम: टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटा दिए जाने के बाद, महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।

मामले की मुख्य विशेषताएँ और न्यायालय के निर्णय 

  • सर्वोच्च न्यायालय की आंतरिक जाँच: तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा सहित गवाहों के बयानों की जाँच करने के बाद न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश करने के लिए पर्याप्त आधार पाया।
  • कोई औपचारिक अभियोग नहीं: समिति ने स्पष्ट किया कि उसकी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा पर अभियोग (Impeachment) की सिफारिश नहीं की गई है, बल्कि यह सुझाव दिया गया है कि उन्हें हटाने के लिए संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए।
  • सरकार की योजनाबद्ध कार्रवाई: सरकार संसद में प्रस्ताव पारित करने के लिए तैयार है, हालाँकि प्रस्ताव को प्रस्तुत करने के लिए सदन (लोकसभा या राज्यसभा) को अभी अंतिम रूप दिया जाना है।

न्यायाधीशों पर महाभियोग लगाने का संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान में ‘महाभियोग’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन आम बोलचाल की भाषा में इसका प्रयोग सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनुच्छेद-124 के तहत कार्यवाही को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने का कार्य भारत के संविधान के अनुच्छेद-217(1)(B) और अनुच्छेद-218 द्वारा नियंत्रित होता है।
  • इन अनुच्छेदों में प्रावधान है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर भारत के राष्ट्रपति के आदेश द्वारा ही हटाया जा सकता है।

दुर्व्यवहार या अक्षमता क्या है?

  • संविधान में “सिद्ध कदाचार” और “अक्षमता” शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित कदाचार में जानबूझकर किया गया कदाचार, भ्रष्टाचार, ईमानदारी की कमी और नैतिक अक्षमता से जुड़े कार्य शामिल हैं।
  • अक्षमता से तात्पर्य ऐसी शारीरिक या मानसिक स्थिति से है, जो न्यायिक कामकाज में बाधा डालती है।

  • कानूनी ढाँचा: इस प्रक्रिया का विस्तृत विवरण न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 में दिया गया है, जिसमें निम्नलिखित चरण दिए गए हैं:
    • प्रस्ताव की शुरुआत: निष्कासन के प्रस्ताव पर कम-से-कम 100 लोकसभा सांसदों या 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
    • जाँच समिति का गठन: एक बार स्वीकार किए जाने के बाद, पीठासीन अधिकारी तीन सदस्यीय समिति का गठन करता है, जिसमें शामिल हैं:
      • भारत के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश,
      • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश,
      • एक प्रतिष्ठित न्यायविद।
    • जाँच: समिति आरोपों की जाँच करती है और रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
    • संसदीय प्रक्रिया: यदि समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार या अक्षमता का दोषी पाती है, तो संसद के प्रत्येक सदन को विशेष बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत, तथा सदन की कुल सदस्यता का बहुमत) द्वारा निष्कासन प्रस्ताव पारित करना होगा।
    • अंतिम निर्णय: निष्कासन का अंतिम आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा पारित किया जाता है।

न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपाय

  • इन-हाउस मैकेनिज्म: न्यायपालिका के पास न्यायाधीशों के विरुद्ध शिकायतों की जाँच करने के लिए एक आंतरिक प्रक्रिया है, जिसकी शुरुआत भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
    • इसका उद्देश्य कदाचार के मामलों को गोपनीय लेकिन गंभीरता से निपटाना है।
  • न्यायालय की अवमानना: न्यायालय न्यायिक गरिमा को बनाए रखने के लिए स्वप्रेरणा से कार्रवाई कर सकते हैं और न्यायपालिका की अखंडता को कमजोर करने वाली किसी भी कार्रवाई को दंडित कर सकते हैं। 
  • नैतिक दिशा-निर्देश: न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन (वर्ष 1997) न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता प्रदान करता है, हालाँकि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। 
  • सार्वजनिक जाँच और पारदर्शिता: जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए न्यायिक नियुक्तियों, संपत्ति की घोषणाओं और आंतरिक जाँच में पारदर्शिता पर जोर दिया जा रहा है।

अन्य देशों में न्यायाधीशों पर महाभियोग कैसे लगाया जाता है?

संयुक्त राज्य अमेरिका

  • संघीय न्यायाधीशों, जिनमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल हैं, को ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव’ द्वारा महाभियोग तथा सीनेट द्वारा दोषसिद्धि के माध्यम से हटाया जा सकता है।
  • हटाने के आधारों में “देशद्रोह, रिश्वतखोरी या अन्य गंभीर अपराध और दुष्कर्म” शामिल हैं।

यूनाइटेड किंगडम

  • संसद के दोनों सदनों द्वारा अभिभाषण के बाद क्राउन द्वारा न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग बहुत कम किया जाता है। 
  • न्यायिक स्वतंत्रता को दृढ़ता से संरक्षित किया जाता है तथा गंभीर कदाचार या कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थता के लिए हटाया जाना आरक्षित है।

कनाडा

  • कनाडाई न्यायिक परिषद द्वारा जाँच और संसद द्वारा अनुमोदन के बाद न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है।
  • हटाने का आधार अक्षमता या कदाचार है, जो न्यायपालिका में जनता के विश्वास को कम करता है।

निष्कर्ष

न्यायमूर्ति वर्मा का मामला न्यायिक मानकों और जवाबदेही विधेयक को लागू करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है, ताकि पारदर्शिता को संस्थागत बनाया जा सके, नैतिक मानकों को लागू किया जा सके और न्यायिक स्वतंत्रता तथा न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बनाए रखते हुए न्यायाधीशों को जवाबदेह ठहराने के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित किया जा सके।

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