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वैश्विक विकास वित्त का पुनर्निर्धारण

Lokesh Pal July 04, 2025 02:11 5 0

संदर्भ

बढ़ती भू-राजनीतिक जटिलताओं के मध्य, वैश्विक विकास वित्त के पारंपरिक प्रवाह में उल्लेखनीय गिरावट आ रही है। विकास वित्त पर पुनर्विचार करने और इसे पुनः उपयोग में लाने के लिए सामूहिक, रणनीतिक प्रयास की तत्काल आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह प्रासंगिक, उत्तरदायी और प्रभावशाली बना रहे।

वैश्विक विकास वित्त के बारे में

  • वैश्विक विकास वित्त में बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जलवायु परिवर्तन शमन जैसी विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों तथा दाता देशों से वित्तीय संसाधनों को जुटाना शामिल है। 
  • गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों के कारण ऐसे वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता बढ़ रही है। 
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2030 के सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक वित्तपोषण अंतराल को पाटने के लिए 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता है।
  • इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई वैश्विक विकास वित्त पहल सामने आई हैं। 
    • उदाहरण के लिए, OECD देशों द्वारा प्रदान की जाने वाली ‘आधिकारिक विकास सहायता’ (Official Development Assistance- ODA) ऐतिहासिक रूप से विकास वित्तपोषण का एक प्रमुख स्रोत रही है।

वैश्विक विकास वित्त पहल

पहल

योगदान

प्रभाव क्षेत्र

आधिकारिक विकास सहायता (ODA) विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों (LDCs) को दी जाने वाली वित्तीय सहायता, आमतौर पर अनुदान और रियायती ऋण के रूप में।
  • गरीबी में कमी
  • बुनियादी ढाँचे का विकास
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा
अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (IDA) विश्व के सबसे गरीब देशों को रियायती ऋण और अनुदान प्रदान करता है। विश्व बैंक समूह का हिस्सा है।
  • बुनियादी ढाँचा
  • शासन
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन
  • स्वास्थ्य और शिक्षा
ग्रीन क्लाइमेट फंड (Green Climate Fund-GCF) विकासशील देशों को उनके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु लचीलापन बढ़ाने में सहायता करता है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन
  • जलवायु लचीलापन और अनुकूलन
  • नवीकरणीय ऊर्जा
विश्व बैंक समूह – पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय बैंक (IBRD) विकास परियोजनाओं के लिए मध्यम आय और ऋण-योग्य निम्न आय वाले देशों को ऋण प्रदान करता है।
  • बुनियादी ढाँचा
  • आर्थिक विकास
  • शासन
  • ऊर्जा सुरक्षा
दक्षिण-दक्षिण सहयोग (SSC) ज्ञान, विशेषज्ञता और संसाधनों के आदान-प्रदान के माध्यम से विकासशील देशों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाता है।
  • ज्ञान साझा करना
  • क्षमता निर्माण
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
  • स्वास्थ्य सेवा
विश्व बैंक की वैश्विक अवसंरचना सुविधा (GIF) विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए निजी निवेश जुटाता है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास
  • आर्थिक विकास
  • शहरीकरण
एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) यह एशिया में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसका ध्यान सतत् विकास पर केंद्रित होता है।
  • बुनियादी ढाँचा
  • सतत् विकास
  • आर्थिक एकीकरण
द्विपक्षीय विकास वित्त संस्थान (DFI) अमेरिका (DFC), ब्रिटेन (DFC) तथा अन्य देश द्विपक्षीय माध्यमों से विकास को वित्तपोषित करते हैं।
  • बुनियादी ढाँचा
  • निजी क्षेत्र का विकास
  • जलवायु परिवर्तन
एड्स, क्षय रोग और मलेरिया के लिए वैश्विक कोष (GFATM) एड्स, तपेदिक और मलेरिया से निपटने के लिए विकासशील देशों में स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए अनुदान प्रदान करता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य
  • रोग उन्मूलन
  • स्वास्थ्य सेवा प्रणालियाँ
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित करना तथा सतत् विकास लक्ष्यों को समर्थन देने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • शासन
  • गरीबी उन्मूलन
  • जलवायु कार्रवाई
  • शिक्षा

वैश्विक वित्तपोषण में भारत का योगदान

भारत, एक तेजी से बढ़ते वैश्विक अभिकर्ता के रूप में, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ में विकास वित्त परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। भारत जिन पाँच प्रमुख माध्यमों से वैश्विक वित्तपोषण में सम्मिलित हुआ है, वे इस प्रकार हैं:

  • भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (Indian Technical and Economic Cooperation-ITEC): वर्ष 1964 में शुरू किया गया यह प्रमुख कार्यक्रम विकासशील देशों के कर्मियों को प्रशिक्षण और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करता है, जिससे उन्हें अपनी मानव पूँजी बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास भागीदारी निधि: यह निधि, संयुक्त राष्ट्र के साथ साझेदारी में, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में विकासशील देशों में परियोजनाओं का समर्थन करती है, जिससे सतत् विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ (LoC): भारत विकास और आर्थिक सहायता योजना (IDEAS) के तहत, भारत ने विकासशील देशों, मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को रियायती ऋण दिया है।
    • भारत ने 68 देशों को लगभग 32 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की 300 से अधिक लाइन ऑफ क्रेडिट  (LoC) प्रदान की हैं।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत विकासशील देशों के बीच सहयोग और ज्ञान-साझाकरण का समर्थन करता है। दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत विकास साझेदारी में पारस्परिक लाभ और बिना किसी शर्त के ध्यान केंद्रित करता है।
    • ‘ग्लोबल साउथ’ को भारत की सहायता वर्ष 2010-11 में 3 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 7 बिलियन डॉलर हो गई है, जो मुख्य रूप से IDEAS के तहत ऋण-सीमाओं के साथ-साथ क्षमता निर्माण, तकनीक हस्तांतरण और शुल्क-मुक्त पहुँच के माध्यम से है।
  • जलवायु वित्त का समर्थन: भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों की मदद के लिए जलवायु वित्त को बढ़ाने का लगातार आह्वान किया है।
    • यह जलवायु वित्त पर नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) के लिए इसके समर्थन में परिलक्षित होता है, जिसका उद्देश्य शमन और अनुकूलन परियोजनाओं के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करना है।

वैश्विक विकास वित्त की चुनौतियाँ

वैश्विक विकास वित्त में भारत जैसे देशों द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

  • आधिकारिक विकास सहायता (ODA) में कमी: पारंपरिक ODA स्रोत, मुख्य रूप से पश्चिमी देशों से, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (United States Agency for International Development-USAID) के पतन और विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (Foreign, Commonwealth and Development Office- FCDO) की गिरावट जैसे कारकों के कारण बजटीय बाधाओं का सामना कर रहे हैं।
    • ODA स्तर, जो वर्ष 2023 में लगभग $214 बिलियन था, के तेजी से घटकर लगभग $97 बिलियन होने का अनुमान है, जो लगभग 45% की कमी दर्शाता है।
  • बढ़ता संप्रभु ऋण: वैश्विक दक्षिण के कई देश उच्च स्तर के संप्रभु ऋण के दबाव में हैं, जिससे उनके लिए पूर्ववर्ती ऋणों को समय पर चुकाना और नए वित्तीय संसाधनों तक पहुँच बनाना एक बड़ी चुनौती बन गया है।
  • भू-राजनीतिक अस्थिरता: भू-राजनीतिक तनावों ने वैश्विक विकास वित्त की भविष्यवाणी और प्रवाह को प्रभावित किया है।
    • यूक्रेन में जारी संकट और बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता के कारण अनिश्चित वित्तीय वातावरण उत्पन्न हो रहा है।
  • विकास सहायता की उच्च लागत: पश्चिमी सहायता प्रायः उच्च परामर्श शुल्क और प्रशासनिक लागतों के साथ आती है, जो आवंटित धन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का दोहन कर सकती है, जिससे उनका प्रभाव कम हो जाता है।
  • बढ़ी हुई उधारी लागत: जैसे-जैसे वैश्विक तरलता कम होती जाती है, उधारी लागत बढ़ती जाती है, जिससे विकासशील देशों के लिए विकास परियोजनाओं के लिए पूँजी प्राप्त करना अधिक महंगा होता जाता है।

वैश्विक विकास वित्त को पुनः स्थापित करने के उपाय

वैश्विक विकास वित्त की चुनौतियों से निपटने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं और भारत पहले से ही इन रणनीतियों को लागू करने में एक प्रमुख हितधारक रहा है:

  • बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ाना: संसाधनों को एकत्र करने और वित्तपोषण प्रयासों में समन्वय स्थापित करने के लिए विश्व बैंक, UNDP और क्षेत्रीय विकास बैंकों जैसे बहुपक्षीय संस्थानों को मजबूत करना बेहतर संसाधन आवंटन सुनिश्चित करेगा और सामूहिक वैश्विक विकास लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • वैश्विक दक्षिण में विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत, ब्राजील और चीन सहित उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच साझेदारी का विस्तार करना।
  • त्रिकोणीय सहयोग (TrC): ‘ग्लोबल नॉर्थ’ के दाताओं, वैश्विक दक्षिण के निर्णायक देशों और प्राप्तकर्ता देशों को शामिल करते हुए एक सहयोगी मॉडल संसाधन अंतर को पाट सकता है।
    • उदाहरण के लिए, जर्मनी और भारत ने अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए TrC परियोजनाओं के लिए संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
    • यह तंत्र सुनिश्चित करता है कि विकास परियोजनाएँ स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप हों, साथ ही साझा शिक्षा और आपसी सम्मान को बढ़ावा दिया जाए।
  • लाइन्स ऑफ क्रेडिट (LoC) पर फिर से ध्यान केंद्रित करना: वर्तमान वित्तीय माहौल को देखते हुए, भारत को LoC मॉडल का फिर से मूल्यांकन करना चाहिए, जो भागीदार देशों को रियायती ऋण प्रदान करता है।
    • बढ़ते ऋण जोखिमों के साथ, भारत को अधिक सतत् वित्तपोषण समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, प्राप्तकर्ता देशों पर अधिक बोझ डाले बिना विकास का समर्थन करने के लिए अपनी मजबूत आर्थिक स्थिति का लाभ उठाना चाहिए।
  • क्षमता निर्माण के लिए बढ़ी हुई फंडिंग: ITEC जैसे कार्यक्रम विकासशील देशों को सशक्त बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ऐसी पहलों का विस्तार करने से देशों को स्थानीय क्षमताएँ बनाने, निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भर विकास मॉडल को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • ऋण पुनर्गठन पहलों को बढ़ावा देना: G20 में, भारत ने वैश्विक दक्षिण में बढ़ते संप्रभु ऋण स्तरों पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
    • आगे बढ़ते हुए, भारत विकास को बाधित किए बिना देशों को अपने वित्तीय बोझ का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए वैश्विक ऋण पुनर्गठन तंत्र का समर्थन करता है।
  • मिश्रित वित्त: रियायती वित्तपोषण को निजी क्षेत्र के निवेश के साथ मिलाने से जोखिम कम हो सकते हैं और विकास परियोजनाओं, विशेष रूप से ऊर्जा अवसंरचना, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों के लिए बड़े पैमाने पर वित्तपोषण को बढ़ावा मिल सकता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) विकास परियोजनाओं, विशेष रूप से अवसंरचना और जलवायु कार्रवाई के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • भारत को सरकारी एजेंसियों, निजी उद्यमों और बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • विकास के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना: डिजिटल प्लेटफॉर्म विकास चुनौतियों के लिए लागत प्रभावी समाधान प्रदान कर सकते हैं।
    • भारत को भागीदार देशों में समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और शासन जैसे क्षेत्रों में डिजिटल विकास उपकरण और प्रौद्योगिकियों का पता लगाना चाहिए।
  • जीडीसी का विस्तार: वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (Voice of Global South Summit- VoGS) में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा व्यक्त की गई अवधारणा पर निर्माण करते हुए, भारत को ‘ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट’ (Global Development Compact- GDC) के विस्तार की दिशा में काम करना चाहिए।
    • GDC अनुदान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, बाजार पहुँच, रियायती वित्त और क्षमता निर्माण सहित जुड़ाव के पाँच तौर-तरीकों के बीच संतुलन पर जोर देता है।

निष्कर्ष

भारत सहायता प्राप्तकर्ता से प्रमुख वैश्विक विकास भागीदार बन गया है, जो पारस्परिक लाभ, बिना शर्त और माँग संचालित सहायता का समर्थन करता है। त्रिकोणीय सहयोग, सुधारित ऋण लाइनों और क्षमता निर्माण के माध्यम से, भारत समावेशी, सतत् तथा सहकारी वैश्विक विकास वित्त को आगे बढ़ाता है।

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