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‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ की रिपोर्ट

Lokesh Pal April 19, 2024 06:53 227 0

संदर्भ

हाल ही में जारी ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2000 के बाद से भारत में 2.33 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष क्षेत्र नष्ट हो गया है।

रिपोर्ट से संबंधित तथ्य

  •  आर्द्र प्राथमिक वन  में कमी
    • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच, जो उपग्रह डेटा और अन्य स्रोतों का उपयोग करके वास्तविक समय में वन परिवर्तनों पर नजर रखता है, ने कहा कि भारत ने वर्ष 2002 से 2023 तक 4,14,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन (4.1 प्रतिशत) खो दिया है, जो इसी अवधि में कुल वृक्षावरण हानि का 18 प्रतिशत है। 

  • वृक्षावरण हानि हमेशा वनों की कटाई से संबंधित नहीं होती है, जो आम तौर पर मानव-जनित, प्राकृतिक वन आवरण को स्थायी रूप से हटाने को संदर्भित करती है। 
  • इसमें मानव-जनित हानि और प्राकृतिक हस्तक्षेप और स्थायी या अस्थायी हानि दोनों शामिल हैं।
  • वृक्षावरण हानि के उदाहरण, जो वनोन्मूलन की परिभाषा को पूरा नहीं कर सकते हैं उनमें कटाई, आग, बीमारी या तूफान से होने वाली क्षति शामिल है।

  • CO2 उत्सर्जन
    • इसमें कहा गया है कि वर्ष 2001 और 2022 के बीच, भारत के वनों ने एक वर्ष में 51 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन किया और 141 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण किया। यह प्रतिवर्ष 89.9 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर शुद्ध कार्बन सिंक का प्रतिनिधित्व करता है।

  • वन, कार्बन के लिए सिंक और स्रोत दोनों हैं, खड़े होने या दोबारा उगने पर वायु से कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और साफ होने या नष्ट होने पर उत्सर्जन करते हैं। 
  • इस प्रकार, वनों के नष्ट होने से जलवायु परिवर्तन में तेजी आती है।

    • भारत में वृक्षों की हानि के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष औसतन 51.0 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में उत्सर्जित की गई। 
    • इस अवधि के दौरान कुल मिलाकर 1.12 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन हुआ। 
  • वृक्षावरण का 95 प्रतिशत नुकसान
    • आँकड़ों से पता चला कि वर्ष 2013 से 2023 तक भारत में वृक्षावरण का 95 प्रतिशत नुकसान प्राकृतिक वनों के अंतर्गत हुआ।
  • सर्वाधिक वृक्षावरण क्षति
    • वर्ष 2017 में सर्वाधिक 1,89,000 हेक्टेयर वृक्षावरण क्षति हुई । देश में वर्ष 2016 में 1,75,000 हेक्टेयर और 2023 में 1,44,000 हेक्टेयर वृक्षावरण का नुकसान हुआ, जो पिछले छ: वर्षों की अवधि में सर्वाधिक है।
    • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (GFW) से प्राप्त डेटा के अनुसार, वर्ष 2001 और 2023 के बीच कुल वृक्षावरण में 60 प्रतिशत की क्षति  पांँच राज्यों में हुई है।
  • राज्यवार क्षति
    • असम में औसतन 66,600 हेक्टेयर की तुलना में 3,24,000 हेक्टेयर में सबसे अधिक वृक्षों की क्षति हुई है। मिजोरम में 3,12,000 हेक्टेयर, अरुणाचल प्रदेश में 2,62,000 हेक्टेयर, नागालैंड में 2,59,000 हेक्टेयर और मणिपुर में 2,40,000 हेक्टेयर वृक्ष क्षेत्र नष्ट हो गया है।
  • वन कटाई दर
    • खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, वर्ष 2015 और 2020 के बीच भारत में वनों की कटाई की दर 6,68,000 हेक्टेयर प्रति वर्ष थी, जो वैश्विक स्तर पर दूसरी सबसे अधिक है।
    • आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2002 से 2022 तक भारत में वनाग्नि के कारण 35,900 हेक्टेयर वृक्षों का नुकसान हुआ, वर्ष 2008 में वनाग्नि के कारण सबसे अधिक वृक्षों की क्षति को  (3,000 हेक्टेयर) दर्ज किया गया।
    • वर्ष 2001 से 2022 तक, ओडिशा में वनाग्नि के कारण वृक्षों की क्षति दर सबसे अधिक थी, प्रति वर्ष औसतन 238 हेक्टेयर का नुकसान हुआ। 
    • अरुणाचल प्रदेश में 198 हेक्टेयर, नागालैंड में 195 हेक्टेयर, असम में 116 हेक्टेयर और मेघालय में 97 हेक्टेयर भूमि बर्बाद हुई।
  • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच
    • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (GFW) द्वारा प्रस्तुत वृक्षावरण क्षति डेटा दुनिया भर में वनों में आ रहे बदलावों और इस पर सर्वोत्तम उपलब्ध स्थानिक आँकड़ों को दर्शाता है। 
    • हालाँकि, एल्गोरिदम समायोजन और बेहतर उपग्रह डेटा के कारण समय के साथ डेटा में परिवर्तन हुए हैं।
    • इसलिए, GFW उपयोगकर्ताओं को पुराने और नवीन डेटा की तुलना करने से सचेत करता है।
    • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच वनों के विस्तार, क्षति और लाभ के बारे में बताते समय वृक्षावरण को संदर्भित करता है। 
    • वन परिवर्तन की निगरानी के लिए वृक्षावरण एक सुविधाजनक मीट्रिक है क्योंकि इसे स्वतंत्र रूप से उपलब्ध, मध्यम-रिजॉल्यूशन उपग्रह इमेजरी का उपयोग करके अंतरिक्ष से आसानी से मापा जा सकता है। 
      • इसका अर्थ है कि कम लागत पर और विशाल भौगोलिक स्तर पर वृक्षावरण की लगातार निगरानी की जा सकती है।
    • हालाँकि, वृक्षावरण के कारण हमेशा वनों का निर्माण नहीं होता है और वृक्षावरण के लाभ का अर्थ हमेशा वनों से प्राप्त लाभ या बहाली नहीं होता है।
      • इन चरों की माप प्रत्यक्ष रूप से तकनीकी चुनौतियाँ उत्पन्न करती है, क्योंकि वन की अधिकांश परिभाषाओं में वृक्षावरण और भूमि उपयोग का संयोजन शामिल होता है। GFW के अनुसार, उपग्रह इमेजरी का उपयोग करके निगरानी करना कुछ मामलों में असंभव तो नहीं है परंतु तो कहीं अधिक कठिन है।

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