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वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना

Lokesh Pal January 18, 2025 02:11 14 0

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि भरण-पोषण की कार्यवाही वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापन से स्वतंत्र है।

वैवाहिक अधिकार 

  • वैवाहिक अधिकार विवाह द्वारा सृजित अधिकार हैं, अर्थात् पति या पत्नी का दूसरे जीवनसाथी के साथ रहने का अधिकार।
  • कानून इन अधिकारों को विवाह, तलाक आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में और जीवनसाथी को भरण-पोषण तथा गुजारा भत्ता देने की आवश्यकता वाले आपराधिक कानून के संबंध में मान्यता देता है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 वैवाहिक अधिकारों के एक पहलू को मान्यता देती है, जो कि साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार है और यह पति या पत्नी को अधिकार लागू करने के लिए न्यायालय जाने की अनुमति प्रदान करती है।

वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना क्या है?

  • परिभाषा: वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना का तात्पर्य दंपत्ति द्वारा पहले प्राप्त वैवाहिक साहचर्य और दायित्वों को बहाल करना है।
    • इसका उद्देश्य विवाह की पवित्रता को बनाए रखना और आपसी संबंधों को प्रोत्साहित करना है।
  • वैवाहिक अधिकार की उत्पत्ति: वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की अवधारणा अब हिंदू पर्सनल लॉ में संहिताबद्ध है, लेकिन इसकी उत्पत्ति औपनिवेशिक है और इसकी उत्पत्ति चर्च संबंधी कानून में हुई है।
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ-साथ तलाक अधिनियम, 1869 में भी इसी तरह के प्रावधान मौजूद हैं, जो ईसाई पारिवारिक कानून को नियंत्रित करता है।
  • कानूनी प्रावधान
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act-HMA) की धारा 9 द्वारा शासित।
    • यदि दूसरा पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के उनके समाज से अलग हो गया है, तो पीड़ित पति या पत्नी न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं।
  • न्यायालय की भूमिका: न्यायालय दावों की सत्यता का आकलन करता है और क्षतिपूर्ति का आदेश जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करता है कि कोई कानूनी बाधा न हो।
  • स्पष्टीकरण: उचित तर्क सिद्ध करने का भार उस पति या पत्नी पर होता है, जो दूसरे के समाज से अलग हो गया है।

भरण-पोषण पर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

  • मुख्य निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि भरण-पोषण और वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापन स्वतंत्र मुद्दे हैं।
    • पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार है, भले ही वह पुनर्स्थापन डिक्री का पालन न करे।
    • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि पति को भरण-पोषण देना जारी रखना चाहिए, भले ही पत्नी पुनर्स्थापन डिक्री के तहत अपने वैवाहिक घर में लौटने से इनकार कर दे।
  • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों का उल्लेख किया, जहाँ क्षतिपूर्ति आदेशों का पालन न करने के बावजूद भरण-पोषण दिया गया।
  • निहितार्थ: निर्णय में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भरण-पोषण का उद्देश्य वैवाहिक विवादों के बावजूद पत्नी के लिए वित्तीय सहायता और सम्मान सुनिश्चित करना है।

धारा 9 की संवैधानिकता

  • चुनौतियाँ: वर्ष 1983 में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने धारा 9 को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह व्यक्तिगत स्वायत्तता और गोपनीयता का उल्लंघन करती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (1984) में इसे पलट दिया, यह कहते हुए कि यह एक सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति करती है।
  • वर्तमान बहस: एक लंबित जनहित याचिका (2019) में तर्क दिया गया है कि धारा 9 लैंगिक समानता और गोपनीयता अधिकारों का उल्लंघन करती है।

इसमें शामिल प्रमुख कानूनी प्रावधान

  • वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना: HMA की धारा 9 का उद्देश्य मतभेदों को सुलझाना और वैवाहिक बंधनों की रक्षा करना है।
  • तलाक के प्रावधान: HMA की धारा 13 व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, मानसिक विकार और आपसी सहमति जैसे आधारों पर विवाह विच्छेद की अनुमति देती है।
  • भरण-पोषण: CrPC की धारा 125 में उपेक्षा या खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थता के मामलों में पत्नी, बच्चों और माता-पिता को वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान है।

महत्त्वपूर्ण मामले एवं कानून

  • सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (1984): धारा 9 को बरकरार रखा, वैवाहिक संबंधों के टूटने को रोकने में इसकी भूमिका पर जोर दिया।
  • त्रिपुरा उच्च न्यायालय का निर्णय (2017): इसमें कहा गया कि पुनर्स्थापन आदेश का पालन न करने से पत्नी स्वतः ही भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य नहीं हो जाती।
  • XYZ और ABC (2023): कर्नाटक उच्च न्यायालय ने XYZ और ABC के मामले में माना कि वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापन आदेश का पालन न करना पत्नी द्वारा तलाक का आधार है।

वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की आलोचना

  • पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह: आलोचकों का तर्क है कि यह पत्नी को संपत्ति मानने की धारणा को कायम रखता है और पुरानी लैंगिक भूमिकाओं को लागू करता है।
  • गोपनीयता का उल्लंघन: इस प्रावधान को व्यक्तिगत स्वायत्तता और अकेले रहने के अधिकार का उल्लंघन करने वाला माना जाता है।

निष्कर्ष

वैवाहिक अधिकारों की बहाली के इर्द-गिर्द कानूनी ढाँचा विवाह को संरक्षित रखने और व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करने के बीच तनाव को दर्शाता है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसलों में पति-पत्नी के लिए वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है, चल रही बहसें आधुनिक संवैधानिक मूल्यों के साथ सामाजिक मानदंडों को संतुलित करने की आवश्यकता को उजागर करती हैं।

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