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मैंग्रोव का पुनुरुद्धार

Lokesh Pal August 01, 2025 02:48 11 0

संदर्भ

प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for the Conservation of the Mangrove Ecosystem) के रूप में मनाया जाता है।

  • वर्ष 2025 में इस दिवस की थीम है:- हमारे भविष्य के लिए आर्द्रभूमि का संरक्षण’ (Protecting Wetlands for our future)

संबंधित  तथ्य

इसे वर्ष 2015 में आयोजित यूनेस्को (UNESCO) के आम सम्मेलन के 38वें सत्र के दौरान अपनाया गया था।

मैंग्रोव के बारे में

  • मैंग्रोव लवण सहिष्णु वृक्ष एवं झाड़ियाँ हैं, जो तटीय अंतरज्वारीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ मीठे जल और समुद्री जल का मिश्रण होता है।
  • ये उच्च वर्षा (1,000-3,000 मिमी) और 26-35°C के बीच तापमान वाले उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपते हैं।
  • मैंग्रोव की विशेषताएँ
    • जरायुजता [विविपैरी (Vivipary)]: बीज मूल वृक्ष पर ही अंकुरित हो जाते हैं, जिससे लवणीय और जलभराव वाली परिस्थितियों में जीवित रहने में मदद मिलती है।
    • वायवीय जड़ें (Aerial Roots): ये श्वसन जड़ें (न्यूमेटोफोर) वायु से ऑक्सीजन अवशोषित करती हैं।
    • मोमयुक्त और रसीली पत्तियाँ (Waxy and Succulent Leaves): जल की कमी को कम करने और लवण के तनाव को प्रबंधित करने में मदद करती हैं।
  • सामान्य प्रजातियाँ: रेड मैंग्रोव (Red Mangrove), एविसेनिया मरीना (Avicennia Marina), ग्रे मैंग्रोव (Grey Mangrove) और राइजोफोरा (Rhizophora) सामान्यतः पाए जाते हैं।

मैंग्रोव का महत्त्व

  • तटीय संरक्षण (बायो-शील्ड): इनकी सघन जड़ प्रणालियाँ तीव्र समुद्री लहरों की तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं और तटीय अपरदन को रोकने में मदद करती हैं।
  • कार्बन भंडारण: मैंग्रोव कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और इसे सदियों तक मृदा में संगृहीत करते हैं, जिससे ये शक्तिशाली कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं।
  • आजीविका स्रोत: ये मत्स्यन शहद संग्रह, जलीय कृषि और अन्य पर्यावरण-आधारित आजीविका के माध्यम से स्थानीय समुदायों का समर्थन करते हैं।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: ये मछलियों, पक्षियों और सरीसृपों के लिए प्रजनन स्थल के रूप में कार्य करते हैं। इनकी समृद्ध जैव विविधता जटिल खाद्य शृंखलाओं को सहारा देती है।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे

  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र का बढ़ता जल स्तर और समुद्री तूफानों की बढ़ती आवृत्ति मैंग्रोव के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है और उनके प्राकृतिक भूमि की ओर प्रवास को सीमित कर रही है।
  • मानव अतिक्रमण: तेजी से बढ़ते शहरीकरण, कृषि, जलीय कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास से मैंग्रोव अनुकूल भूमि का क्षरण रहा है।
  • प्रदूषण और बाँध: औद्योगिक अपशिष्ट, तेल रिसाव और नदियों पर बाँध बनाने से प्राकृतिक जल प्रवाह बाधित होता है और मैंग्रोव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • पुनर्जनन स्थलों का अनुकरण: बस्तियों और भूमि उपयोग में परिवर्तन उनके अंतरदेशीय विस्तार को बाधित करते हैं, जिससे उनका प्राकृतिक प्रसार सीमित हो जाता है।
  • यूनेस्को (UNESCO): मैंग्रोव का ह्रास वैश्विक वन ह्रास की दर से 3-5 गुना तेजी से हो रहा है।
  • IUCN: वर्ष 2050 तक वैश्विक मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का 50% से अधिक हिस्सा नष्ट हो सकता है।

भारत में मैंग्रोव की स्थिति

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2023 (ISFR 2023) के अनुसार, भारत में मैंग्रोव का क्षेत्रफल 4,992 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भूमि क्षेत्र का 0.15% है।
  • ये मुख्यतः पूर्वी और पश्चिमी तटों तथा द्वीपीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

प्रमुख मैंग्रोव वन

  • सुंदरबन: दुनिया का सबसे बड़ा सन्निहित मैंग्रोव वन, जो रॉयल बंगाल टाइगर्स और गंगा डॉल्फिन के लिए जाना जाता है।
  • भितरकनिका: खारे जल के मगरमच्छों और ओलिव रिडले टर्टल के घोंसले के लिए जाना जाता है।

राज्यवार वितरण

  • पश्चिम बंगाल: मैंग्रोव का सबसे बड़ा हिस्सा, मुख्यतः सुंदरबन में।
  • गुजरात: दूसरा सबसे बड़ा, मुख्यतः कच्छ की खाड़ी और खंभात की खाड़ी के आसपास का क्षेत्र।
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह: तटीय मैंग्रोव से समृद्ध है।
  • अन्य स्थान: गोदावरी-कृष्णा डेल्टा (आंध्र प्रदेश), भितरकनिका (ओडिशा), पिचवरम (तमिलनाडु), और केरल का तटीय क्षेत्र।

भारत में उल्लेखनीय मैंग्रोव पुनरुद्धार संबंधी प्रयास

तमिलनाडु

  • वर्ष 2021 से वर्ष 2024 के बीच तमिलनाडु का मैंग्रोव क्षेत्र 4,500 हेक्टेयर से दोगुना होकर 9,000 हेक्टेयर हो गया।
  • ग्रीन तमिलनाडु मिशन (Green Tamil Nadu Mission) ने तंजावुर, तिरुवरूर, कुड्डालोर में मैंग्रोव पुनरुद्धार में सहायता की है।
  • पट्टुवनाची मुहाना (Pattuvanachi Estuary) (मुथुपेट्टई): 4.3 लाख एविसेनिया बीज (Avicennia Seeds), 6000 राइजोफोरा प्रोपेग्यूल्स (Rhizophora Propagules) का उपयोग करके 115 हेक्टेयर मैंग्रोव क्षेत्र का पुनर्स्थापन किया गया।
  • बकिंघम नहर (चेन्नई): आक्रामक प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora) को हटाने के बाद 12,500 मैंग्रोव पौधे लगाए गए।

मुंबई (महाराष्ट्र)

  • ठाणे क्रीक पुनर्स्थापन परियोजना (2025): इस परियोजना को अमेजन के ‘राइट नाउ क्लाइमेट फंड’ (Right Now Climate Fund) द्वारा समर्थन दिया जा रहा है।
    • लक्ष्य: 3.75 लाख मैंग्रोव पौधे।
    • अपशिष्ट संग्रह बूम का उपयोग करके 150 टन प्लास्टिक हटाया गया।
    • रोपण और रखरखाव में महिलाओं के नेतृत्व वाले रोजगार के लिए समर्थन दिया गया।

गुजरात

  • मिष्टी योजना (MISHTI Scheme), जिसे 5 जून, 2023 को शुरू किया गया था,  के अंतर्गत मैंग्रोव पुनरुद्धार संबंधी प्रयास किया जा रहा है।
  • 2 वर्षों में मैंग्रोव का 19,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र पुनर्स्थापित किया गया (5-वर्षीय लक्ष्य 54,000 हेक्टेयर में से)।
  • फोकस क्षेत्र: कच्छ और सौराष्ट्र तटरेखाएँ।
  • गुजरात में भारत के कुल मैंग्रोव आवरण का 23.6% हिस्सा है।

भारत में संरक्षण पहल

  • मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टेंजिबल इनकम्स’ (Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes-MISHTI): एक केंद्रीय योजना, जिसका उद्देश्य तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव को पुनर्स्थापित करना तथा पारिस्थितिकी आजीविका को बढ़ावा देना है।
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में सतत् जलीय कृषि (Sustainable Aquaculture In Mangrove Ecosystem-SAIME) (पश्चिम बंगाल): मैंग्रोव संरक्षण के साथ-साथ सतत् जलीय कृषि को बढ़ावा देता है।
  • वन संरक्षण समितियाँ (आंध्र प्रदेश): तटीय संरक्षण में शामिल समुदाय नेतृत्व आधारित वन संरक्षण समूह।
  • ग्रीन तमिलनाडु मिशन: व्यापक पर्यावरणीय लक्ष्यों के अंतर्गत मैंग्रोव वृक्षारोपण और संरक्षण प्रयासों को शामिल करता है।
  • CRZ विनियम: विनाशकारी औद्योगिक गतिविधियों पर रोक लगाना और संवेदनशील तटीय क्षेत्रों के पास निर्माण को प्रतिबंधित करना।

अंतरराष्ट्रीय पहल

  • मैंग्रोव अलायंस फॉर क्लाइमेट (Mangrove Alliance for Climate-MAC): COP-27 में शुरू किया गया, यह वैश्विक मैंग्रोव पुनर्स्थापन और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए भारत सहित विभिन्न देशों को एक मंच प्रदान करता है।
  • मैंग्रोव फॉर द फ्यूचर’ (Mangroves for the Future-MFF): तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के सतत् प्रबंधन के लिए एक IUCN-UNDP पहल है। यह भारत और अन्य सुनामी प्रभावित देशों को शामिल करता है और इसमें प्रवाल भित्तियाँ, लैगून और आर्द्रभूमि शामिल हैं।

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