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क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर भारत के रुख की समीक्षा

Lokesh Pal November 12, 2024 04:09 48 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग के CEO ने कहा कि भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) का हिस्सा बनने पर पुनर्विचार करना चाहिए।

ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (CPTPP)

  • CPTPP ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कनाडा, चिली, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, पेरू, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और वियतनाम के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है।

संबंधित तथ्य 

  • ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP): उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारत को CPTPP का सदस्य बनना चाहिए।
  • विश्व बैंक ने भारत से RCEP पर रुख का पुनर्मूल्यांकन करने का आग्रह किया: विश्व बैंक की हालिया ‘भारत विकास अद्यतन’ (India Development Update) में भारत से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया गया है।
  • भारत तथा RCEP: भारत RCEP का संस्थापक सदस्य था।
    • हालाँकि, वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल नहीं होगा।
    • ‘फास्ट-ट्रैक जॉइनिंग आप्शन’ (Fast-Track Joining Option): भारत को इस समझौते में शामिल होने का लाभ यह है कि उसे RCEP की शर्तों के तहत नए सदस्यों के लिए आवश्यक 18 महीने की प्रतीक्षा अवधि का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

  • RCEP हस्ताक्षरकर्ताओं का रुख: RCEP पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने कहा कि वे भारत के साथ वार्ता शुरू करने की योजना बना रहे हैं, जब वह समझौते में शामिल होने के अपने उद्देश्य के बारे में ‘लिखित रूप’ में अनुरोध प्रस्तुत करेगा और वह इसमें शामिल होने से पहले पर्यवेक्षक के रूप में बैठकों में भाग ले सकता है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के बारे में

  • समूहीकरण: यह आसियान (ASEAN) तथा उनके FTA भागीदारों के बीच एक मेगा-क्षेत्रीय आर्थिक समझौता है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना है।
  • सदस्य: RCEP एक 15 सदस्यीय समूह है।
    • आसियान राष्ट्र: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड एवं वियतनाम।
    • पाँच FTA भागीदार: ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण कोरिया।
  • समयरेखा: RCEP वार्ता वर्ष 2012 में शुरू हुई, जिसके बाद नवंबर 2020 में इस पर आधिकारिक हस्ताक्षर हुए।
    • यह समझौता 1 जनवरी, 2022 से लागू होगा।
  • कवरेज क्षेत्र: वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्द्धा, विवाद निपटान, ई-कॉमर्स, लघु और मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises- SME) तथा अन्य मुद्दे।
  • महत्व: यह सदस्यों के सकल घरेलू उत्पाद के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि अपने व्यापार उदारीकरण प्रावधानों के माध्यम से RCEP वर्ष 2030 तक 200 बिलियन डॉलर से अधिक की आय वृद्धि कर सकता है तथा विश्व व्यापार में 500 बिलियन डॉलर की वृद्धि कर सकता है।

नॉन-टैरिफ बैरियर्स (Non-Tariff Barriers- NTBs)

  • नॉन-टैरिफ बैरियर्स उन व्यापार प्रतिबंधों को संदर्भित करती हैं, जिनमें आयात और निर्यात पर टैरिफ या कर शामिल नहीं होते हैं लेकिन फिर भी वे व्यापार में बाधा के रूप में कार्य करते हैं। 
  • उदाहरण: प्रतिबंध, आयात लाइसेंसिंग, सब्सिडी, कोटा, मात्रा प्रतिबंध आदि।

भारत के RCEP से हटने के कारण

  • नॉन-टैरिफ बैरियर्स (Non-Tariff Barriers- NTBs): भारतीय कंपनियों को नॉन-टैरिफ बैरियर्स का सामना करना पड़ा, जिससे RCEP सदस्य बाजारों में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो गया।
  • उच्च टैरिफ कटौती: RCEP के तहत भारत को चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आयातित 70% से अधिक वस्तुओं तथा जापान, दक्षिण कोरिया एवं आसियान (ASEAN) से आयातित लगभग 90% वस्तुओं पर टैरिफ कम करना था, जिससे आयात सस्ता हो सकता था व स्थानीय व्यवसायों को नुकसान हो सकता था।
  • विकृत होता व्यापार घाटा
    • RCEP देशों के साथ व्यापार घाटा: वित्त वर्ष 2019 में भारत का 16 RCEP देशों में से 11 के साथ व्यापार घाटा था।
    • चीन एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में: भारत का अकेले चीन के साथ व्यापार घाटा 52 बिलियन डॉलर था, जबकि RCEP देशों के साथ उसका कुल व्यापार घाटा 105 बिलियन डॉलर था।
    • प्रतिकूल FTA अनुभव: भारत के पास पहले से ही RCEP के 15 सदस्यों में से 13 के साथ FTA है, जिनमें आसियान (ASEAN), दक्षिण कोरिया और जापान शामिल हैं।
      • वर्ष 2007- 2009 और वर्ष 2020- 2022 के बीच, आसियान (ASEAN) के साथ व्यापार घाटा 302.9%, दक्षिण कोरिया के साथ 164.1% तथा जापान के साथ 138.2% बढ़ गया।
  • चीन एक कारक के रूप में 
    • चीन का आर्थिक मॉडल (China’s Economic Model): इसकी विशेषता यह है कि व्यापार को विकृत करने वाली सब्सिडी तथा उत्पादन एवं श्रम पर राज्य का व्यापक नियंत्रण है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है।
      • हालाँकि RCEP स्वतंत्र तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा की वकालत करता है, चीन की औद्योगिक नीतियों और सब्सिडी प्रथाओं के कारण भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए समकक्ष समर्थन संरचनाओं के बिना प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
    • बाजार तक पहुँच: भारत को कुछ RCEP  देशों, विशेषकर चीन में पारस्परिक बाजार पहुँच का आश्वासन नहीं दिया गया था।
  • ऑटो ट्रिगर तंत्र का अभाव (Lack of Auto Trigger Mechanism): भारत चाहता है कि समझौते में एक ऑटो-ट्रिगर तंत्र को संस्थागत रूप दिया जाए।
    • यह एक तरह की सुरक्षात्मक प्रणाली के रूप में कार्य करेगा, जिसका उपयोग सदस्य देश RCEP के लागू होने के बाद आयात के अप्रत्याशित प्रवाह की स्थिति में सुरक्षा के लिए कर सकते हैं।
    • लेकिन इसे RCEP की शर्तों में शामिल नहीं किया गया।
  • रैचेट दायित्व (Ratchet Obligations): भारत चाहता है कि समझौते के हिस्से के रूप में रैचेट दायित्वों में छूट शामिल की जाए।
    • रैचेट दायित्व का तात्पर्य यह है कि संधि के प्रभावी होने के बाद कोई भी सदस्य देश टैरिफ नहीं बढ़ा सकता है
    • छूट का अर्थ यह होगा कि कोई देश बाद में राष्ट्रीय हित की रक्षा के आधार पर प्रतिबंधात्मक उपाय लागू करने में सक्षम होगा।
  • डेटा स्थानीयकरण का मुद्दा: भारत चाहता है कि सभी देशों को डेटा सुरक्षा का अधिकार मिले है।
    • इसका अर्थ यह होगा कि देश केवल वहीं डेटा साझा कर सकते हैं, जहाँ यह ‘वैध सार्वजनिक नीति उद्देश्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक है’ या ‘देश की राय में, उसके आवश्यक सुरक्षा हितों या राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है’।
  • लचीले द्विपक्षीय व्यापार समझौते: भारत के पास पहले से ही जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई RCEP सदस्यों के साथ कार्यात्मक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं, जो RCEP की तुलना में इसकी व्यापार प्राथमिकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करते हैं।
  • सेवाओं और डिजिटल व्यापार में सीमित लाभ: RCEP मुख्य रूप से वस्तुओं पर केंद्रित है, जिसमें सेवाओं के लिए सीमित प्रावधान हैं, IT, कुशल श्रम गतिशीलता और डिजिटल व्यापार जैसे प्रमुख क्षेत्र इसमें शामिल नहीं हैं, जो भारत के निर्यात के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत ने अपने बाजार को खोलने के बदले में अधिक श्रम एवं सेवाओं की आवाजाही की वकालत की ।
  • उत्पत्ति के नियम (Rules of origin- RoO): भारत को डर था कि मूल उत्पत्ति के नियमों में ढील के कारण उत्पादों को अन्य देशों के माध्यम से भेजा जा सकेगा, जिससे भारत में माल की डंपिंग होगी और घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुँचेगा।
    • उत्पत्ति के नियम किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मानदंड हैं।
  • घरेलू क्षेत्रों के लिए खतरा
    • बागान और रबर उत्पाद: वियतनाम तथा इंडोनेशिया जैसे देश सस्ते निर्यात के जरिए घरेलू रबर की कीमतों को कम कर सकते हैं।
    • डेयरी क्षेत्र की चिंताएँ: भारत के छोटे पैमाने के डेयरी क्षेत्र को न्यूजीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया के कुशल उत्पादकों के खिलाफ संघर्ष करना पड़ेगा, जो भारत में अप्रतिबंधित पहुँच चाहते हैं।

RCEP से बाहर निकलने से भारत को संभावित लाभ

  • आयात पर नियंत्रण और घरेलू उद्योग संरक्षण: RCEP से बाहर निकलने से भारत को सस्ते चीनी सामानों के प्रवाह को सीमित करने के लिए विनियामक नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति मिलती है, जो अन्यथा घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • चीन पर अत्यधिक निर्भरता कम करना: RCEP से बाहर रहकर भारत ने अपने व्यापार साझेदारों में विविधता लाने तथा चीन पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिम को कम करने की स्थिति बना ली है।
    • उदाहरण: भारत का RCEP में शामिल न होने का निर्णय तब मान्य हुआ जब कोविड-19 महामारी ने चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़ी कमजोरियों को उजागर किया।
  • व्यापार घाटे पर नियंत्रण: भारत अपने व्यापार संतुलन पर अधिक नियंत्रण रख सकता है।
    • भारत का चीन के साथ पहले से ही काफी व्यापार घाटा है, जो वित्त वर्ष 2024 में 85 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा।
    • व्यापार नीति थिंक टैंक ‘जॉर्जिया टेक रिसर्च इंस्टिट्यूट’ (GTRI) के अनुसार, RCEP के सदस्य देशों, जैसे कि जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान के सदस्यों ने ब्लॉक में शामिल होने के बाद से चीन के साथ अपने व्यापार घाटे में वृद्धि देखी है।
  • डंपिंग प्रथाओं के विरुद्ध संरक्षण: RCEP में गैर-भागीदारी से भारत को डंपिंग (बाजार मूल्य से कम पर माल बेचना) प्रथाओं के विरुद्ध सुरक्षात्मक उपायों को लागू करने की अनुमति मिलती है, विशेष रूप से चीन द्वारा, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि भारतीय उद्योगों को अनुचित व्यापार प्रथाओं से नुकसान न पहुँचे

भारत के RCEP का सदस्य बनने के लाभ

  • व्यापार के बेहतर अवसर: RCEP में शामिल होने से भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बड़े बाजारों तक पहुँच मिलेगी, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर MSME से, जो भारत के निर्यात का 40% हिस्सा है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकरण: RCEP में भागीदारी से भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण: ऐसा अनुमान है कि यदि भारत RCEP में शामिल हो जाता है तो उसे वर्ष 2030 तक 60 बिलियन डॉलर तक की आय प्राप्त हो सकती है।
  • उन्नत प्रतिस्पर्द्धात्मकता: RCEP में शामिल होने से सुधारों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे विशेष रूप से कृषि प्रौद्योगिकी और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
  • विनियामक संरेखण: RCEP का हिस्सा बनने के लिए भारत के नियामक ढाँचे को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना होगा, कारोबारी माहौल में सुधार करना होगा और अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) आकर्षित करना होगा।
  • पड़ोसियों के साथ रणनीतिक संरेखण: RCEP की सदस्यता से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में सुधार होगा, इसकी एक्ट ईस्ट नीति को समर्थन मिलेगा तथा क्षेत्र में आर्थिक और कूटनीतिक संबंध प्रगाढ़ होंगे।
  • दीर्घकालिक आर्थिक लाभ: व्यापार उदारीकरण के प्रति RCEP का व्यापक दृष्टिकोण सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है, गरीबी को कम कर सकता है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में अधिक भागीदारी के माध्यम से आय के स्तर को बढ़ा सकता है।

  • SCRI: आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच वर्ष 2021 में शुरू किया गया एक औपचारिक समझौता है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य कई देशों तथा क्षेत्रों में आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाकर सोर्सिंग के लिए किसी एक देश पर निर्भरता को कम करना है।
    • इससे अर्थव्यवस्था को अचानक मानव निर्मित और प्राकृतिक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों से संभावित रूप से बचाया जा सकता है।

भारत के RCEP में शामिल न होने की संभावित लागत

  • चीन के लिए आर्थिक लाभ में वृद्धि: भारत के बिना, RCEP एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आर्थिक प्रभाव को मजबूत करता है, जिससे उसे इस क्षेत्र में अधिक शक्ति प्राप्त करने में मदद मिलती है।
    • चीन के आर्थिक प्रभाव से भारत के पड़ोसी प्रभावित हो सकते हैं तथा बढ़ती आर्थिक निर्भरता के कारण क्षेत्रीय हित संभवतः चीन की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
  • RCEP सदस्यों के साथ द्विपक्षीय व्यापार पर प्रभाव: RCEP में भारत की अनुपस्थिति के कारण सदस्य देश अंतर-समूह व्यापार को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे 2 अरब से अधिक लोगों वाले इस विशाल बाजार तक भारत की पहुँच कम हो सकती है।
  • इंडो-पैसिफिक सहयोग के लिए चुनौतियाँ: भारत के इस निर्णय से इंडो-पैसिफिक में ऑस्ट्रेलिया-भारत-जापान साझेदारी कमजोर हो सकती है तथा ‘सप्लाई चेन रेजिलिएंस इनिशिएटिव’ (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) जैसी पहलों की प्रगति बाधित हो सकती है।
  • भारत की विनिर्माण महत्त्वाकांक्षाओं पर प्रभाव: भारत का विनिर्माण केंद्र बनने का सपना RCEP से बाहर होने के कारण बाधित है, जिससे एक प्रमुख व्यापार ब्लॉक तक सीधी पहुँच सीमित हो गई है।
  • ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को झटका: RCEP की अनुपस्थिति भारत की एक्ट ईस्ट नीति को प्रभावित करती है, जिससे क्षेत्र में भारत की आर्थिक उपस्थिति कम हो जाती है तथा कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना कठिन हो जाता है।

आगे की राह 

  • कर युक्तीकरण (Tax Rationalisation): संसद समिति ने भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार लाने के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को युक्तिसंगत बनाने की सिफारिश की है।
    • इससे भारतीय उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलेगी।
  • घरेलू उद्योगों को मजबूत बनाना: भारत को अपने घरेलू उद्योगों, विशेषकर MSME को अधिक प्रतिस्पर्द्धी और मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
  • यूरोपीय संघ (European Union- EU) के साथ वार्ता: यूरोपीय संघ के साथ व्यापार वार्ता में तेजी लाना प्राथमिकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • श्रम एवं पर्यावरण तथा निवेशक संरक्षण मानकों पर व्यापक चर्चा किए जाने की आवश्यकता है।
  • भारत को ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति का लाभ उठाना चाहिए: चाइना प्लस वन, जिसे केवल ‘प्लस वन’ या (C+1) के नाम से भी जाना जाता है, वह व्यापारिक रणनीति है, जिसके तहत केवल चीन में निवेश करने से बचकर व्यापार को अन्य विकासशील देशों जैसे भारत, थाईलैंड, तुर्की या वियतनाम में फैलाया जाता है।
  • आत्मनिर्भर भारत: भारत की आत्मनिर्भर भारत पहल का उद्देश्य सौर ऊर्जा, घरेलू विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स, डिजिटल व्यापार, हरित प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसे क्षेत्रों को मजबूत करना है।
    • इससे विनिर्माण को बढ़ावा मिल सकता है तथा भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है, जिससे संभवतः भारत RCEP में शामिल होने पर पुनर्विचार कर सकता है।

निष्कर्ष

RCEP में चुनौतियाँ तो हैं ही, लेकिन यह वैश्विक बाजारों और आर्थिक वृद्धि का प्रवेश द्वार भी है। भारत की अनुपस्थिति क्षेत्रीय व्यापार नीति में उसके प्रभाव को कम कर सकती है और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में उसके एकीकरण में बाधा उत्पन्न कर सकती है, जिससे दीर्घकालिक लाभों के लिए RCEP सदस्यता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल मिलता है।

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