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संशोधित भूकंप डिजाइन संहिता, 2025

Lokesh Pal December 02, 2025 03:10 6 0

संदर्भ 

भारत ने भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने संशोधित भूकंप डिजाइन संहिता, 2025 के तहत अद्यतन भूकंपीय जोन आधारित मानचित्र जारी किया है।

भूकंपीय जोन आधारित मानचित्र क्या है?

  • भूकंपीय जोन आधारित मानचित्र वह वैज्ञानिक मानचित्र है, जो किसी देश या क्षेत्र को भूकंप की संभाव्यता और तीव्रता के आधार पर भिन्न भूकंपीय जोखिम क्षेत्रों में विभाजित करता है।
  • यह भूकंप जोखिम आकलन, भवन-निर्माण मानकों के निर्धारण तथा आपदा तैयारी में सहायक होता है।
  • इसका प्रकाशन भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा किया जाता है।

संशोधित क्षेत्रीकरण मानचित्र की प्रमुख विशेषताएँ

  • जोन 6 का परिचय: नए भूकंपीय मानचित्र में जोन 6 जोड़ा गया है, जो सर्वाधिक जोखिम वाले क्षेत्र का वर्गीकरण है। इसके अंतर्गत पूरा हिमालयी क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक शामिल किया गया है।

  • भौगोलिक कवरेज में वृद्धि: संशोधित मानचित्र अब भारत के 61% भू-भाग को मध्यम से उच्च जोखिम क्षेत्रों में वर्गीकृत करता है, जो पूर्व संस्करणों के 59% से अधिक है।
    • भारत की 75% जनसंख्या अब भूकंप-सक्रिय क्षेत्रों में अवस्थित है।
  • दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में केवल अल्प संशोधन किए गए हैं, क्योंकि स्थिर भौगोलिक संरचना वहाँ की जोखिम स्थिति को लगभग अपरिवर्तित रखती है।
  • सीमा संबंधी नियम में संशोधन
    • अद्यतन नियमों के अनुसार, दो भूकंपीय क्षेत्रों की सीमा पर स्थित कोई भी नगर या बस्ती स्वतः उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में वर्गीकृत की जाएगी।
    • यह परिवर्तन प्रशासनिक सीमाओं के स्थान पर वास्तविक भू-गर्भीय जोखिम को प्रतिबिंबित करता है।

  • वैज्ञानिक पद्धति
    • अद्यतन भूकंपीय जोखिम मानचित्र संभाव्य भूकंपीय जोखिम आकलन (PSHA) पर आधारित है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य पद्धति है।
    • इसमें दूरी के साथ भूकंपीय कंपन का क्षीणन, क्षेत्रीय भौगोलिकप्रणाली तथा शैलों की वैज्ञानिक संरचना जैसे घटक सम्मिलित हैं।
  • अनिवार्य सुरक्षा उपाय
    • नई संहिता में छतों, ऊपरी जलाशयों, भवन-संबंधी संरचनाओं, वायु-नियंत्रण प्रणालियों तथा ऐसे अन्य अवयवों के लिए सुरक्षा मानक अनिवार्य किए गए हैं, विशेष रूप से तब, जब उनका उत्पन्न भार भवन के कुल भार के 1% से अधिक हो।
    • सक्रिय भ्रंश-रेखाओं के निकट स्थित भवनों को कंपनों का सामना करने योग्य बनाना आवश्यक है, जो ‘निकट-भ्रंश’ भूकंपों की विशेषता है।
  • दक्षिणमुखी विवर्तन (Rupture) का मॉडलन
    • संशोधित मानचित्र स्वीकार करता है कि हिमालयी अग्र-भ्रंश (Himalayan Frontal Thrust) के साथ होने वाले विवर्तन दक्षिण की ओर विस्तृत हो सकते हैं, जिससे मोहंड के निकट देहरादून जैसी सघन आबादी वाले तराई-क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।
    • यह समावेशन पारंपरिक भ्रंश-रेखा मानचित्रण से आगे की विवर्तन-गतिशीलता की समझ को दर्शाता है।
  • मानचित्रण 
    • यह मानचित्र अब PEMA (जनसंख्या जोखिम मानचित्रण और विश्लेषण) पद्धति के माध्यम से जनसंख्या घनत्व, बुनियादी ढाँचे की सघनता और सामाजिक-आर्थिक सुभेद्यता को एकीकृत करता है।
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि भूकंपीय क्षेत्रीकरण में खतरे और मानवीय जोखिम को ध्यान में रखा जाए, जो तेजी से शहरीकृत हो रहे क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

हिमालय सर्वाधिक खतरे वाले जोन में क्यों है?

  • सक्रिय प्लेट टकराव: हिमालय विश्व के सबसे सक्रिय टेक्टॉनिक टकराव क्षेत्रों में से एक पर स्थित है, जहाँ भारतीय प्लेट प्रति वर्ष 5 सेमी. की दर से यूरेशियन प्लेट से टकराती है, जिससे लगातार भारी तनाव उत्पन्न होता है।
  • भू-वैज्ञानिक रूप से नवीन और अस्थिर भू-भाग: भू-वैज्ञानिक दृष्टि से नवीन होने के कारण यहाँ सक्रिय मोड़, भ्रंश तथा उत्थान निरंतर उपस्थित है, जिससे यह क्षेत्र स्वभावतः अस्थिर रहता है।
  • अनेक प्रमुख भ्रंश-तंत्र: मुख्य अग्र-भ्रंश, मुख्य सीमा-भ्रंश तथा मुख्य केंद्रीय भ्रंश जैसे संरचनात्मक तंत्र बड़े एवं विनाशकारी भूकंप उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं।
  • भूकंपीय अंतराल और संचित ऊर्जा: दीर्घकालिक भूकंपीय अंतराल, जिनमें शताब्दियों तक बड़े भूकंप नहीं आते, अत्यधिक संचित तनाव का संकेत देते हैं, जिससे भूकंप संभाव्यता बढ़ जाती है।

अवसंरचना और नियोजन पर प्रभाव

  • कठोर भवन मानक: संवेदनशील क्षेत्रों में भवनों, पुलों तथा महत्त्वपूर्ण अवसंरचना के लिए अधिक कठोर डिजाइन संहिता अपनानी होगी।
  • संरचना-सुदृढ़ीकरण की तात्कालिकता: उच्च जोखिम क्षेत्रों में पुरानी संरचनाओं का सुदृढ़ीकरण आवश्यक है, ताकि वे उच्च तीव्रता के भूकंपों का सामना कर सकें।
  • संवेदनशील क्षेत्रों में प्रतिबंध: दिशा-निर्देश अवसाद, सक्रिय भ्रंश तथा तरलीकरण-प्रवण क्षेत्रों में अवसंरचना विस्तार रोकने की अनुशंसा करते हैं।

BIS भूकंप-डिजाइन संहिताके बारे में

  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) भवनों एवं संरचनाओं के भूकंप-रोधी डिजाइन के लिए IS 1893 श्रृंखला के अंतर्गत राष्ट्रीय मानक जारी करता है।
  • यह श्रृंखला वैज्ञानिक दिशा-निर्देश प्रदान करती है, जिससे भवन भूकंपीय बलों का सामना कर सकें तथा भूकंप के दौरान हानि के जोखिम को न्यूनतम किया जा सके।

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